Monday 8 February 2016

Soorah Ibraheem Qit2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह इब्राहीम १४- परा १३-आयत (१८)
दूसरी  किस्त 
अल्लाह के साथ बन्दा कभी कुफ्र कर ही नहीं सकता जब तक अल्लाह खुद न चाहे, ऐसा मैं नहीं खुद मुहम्मदी अल्लाह का कहना है. 
दूर दराज़ की गुमराही और आस पास कि गुमराही में क्या फ़र्क़ है ये कोई अरबी नुकता होगा जिसे मुहम्मद बार बार दोहराते हैं, इसमें कोई दूर की कौड़ी जैसी बात नहीं. 
कोई नेक अमल हवा में नहीं उड़ता बल्कि नमाज़ें ज़रूर हवा में उड़ जाती हैं या ताकों में मकड़ी के जाले की तरह फँसी रहती हैं.
'' और जब तमाम मुक़दमात फ़ैसल हो चुके होंगे तो शैतान कहेगा कि अल्लाह ने तुम से सच वादे किए थे, सो वह वादे हम ने तुम से उस से ख़िलाफ़ किए थे और मेरे तुम पर और कोई ज़ोर तो चलता नहीं था बजुज़ इसके कि हम ने तुम को बुलाया था, सो तुम ने मेरा कहना मान लिया, तो तुम मुझ पर मलामत मत करो, न मैं तुम्हारा मदद गार हूँ और न तुम मेरे मदद गार हो. मैं खुद इस से बेज़ार हूँ कि तुम इससे क़ब्ल मुझ को शरीक क़रार देते थे. यक़ीनन ज़ालिमों के लिए दर्द नाकअज़ाब है.''
सूरह इब्राहीम १४- परा १३-आयत (22)
मुहम्मद जब कलाम इलाही बडबडाने में तूलानी या वजदानी कैफ़ियत में आ जाते हैं तो राह से भटक जाते हैं, इस सूरत में अगर कोई उनसे वज़ाहत चाहे तो जवाज़ होता है कि 
'' वह आयतें हैं जो मुशतबह-उल-मुराद हैं, इनका बेहतर मतलब बजुज़ अल्लाह तअला कोई नहीं जानता.'' 
सूरह आले इमरान आयत(७)में भी कुछ ऐसी ही कैफ़ियत है. अल्लाह के रसूल की, शैतान के साथ शैतानी कर रहे हैं.
''क्या आप को मालूम है कि अल्लाह ने कैसी मिसालें बयान फ़रमाई है . . . कलमा ए तय्यबा वह कि मुशाबह एक पाकीज़ा दरख़्त के जिसकी जड़ें खूब गडी हुई हों और इसकी शाखें उचाई में जारी हों और परवर दिगार के हुक्म से हर फ़स्ल में अच्छा फल देता हो. . . . और गन्दा कलमा की मिसाल ऐसी है जैसे एक ख़राब दरख़्त की हो जो ज़मीन के ऊपर ही ऊपर से उखाड़ लिया जाए, उसको कोई सबात न हो.''
सूरह इब्राहीम १४- परा १३-आयत (२४-२५)
मुहम्मदी अल्लाह की मिसालें हमेशा ही बेजान और फुसफुसी होती हैं. खैर. मुहम्मद अपने कलमा ए तय्यबा की बात करते हैं, यह वह कलमा है जो अनजाने में ज़हरे हलाहल बन कर दुन्या पर नाज़िल हुवा. देखिए कि इसका असर कब तलक दुन्या पर क़ायम रहता है.
''तमाम हम्दो सना अल्लाह के लिए है जिसने बुढ़ापे में हमें इस्माईल और इशाक (इसहाक) अता फरमाए ऐ मेरे रब मुझको भी नमाज़ों का एहतमाम करने वाला बनाए रखियो मेरी औलादों में से भी बअज़ों को.''
सूरह इब्राहीम १४- परा १३-आयत (४०)
इर्तेकई हालात का शिकार, इंसानी तहज़ीब में ढलता हुवा इब्राहीम उस वक़्त अर्वाह ए आसमानी में ज़ात मुक़द्दस के लिए चंद पत्थर इकठ्ठा किए थे जो ज़मीन और उसके क़द से ज़रा ऊँचे हो जाएँ और उसी बेदी के सामने अपने सर को झुकाया था, उसके मन में बअज़ों के लिए बुग्ज़ न बअज़ों के लिए हुब थी. न ही मुहम्मदी इस्लाम का कुफ्र.
'' ऐ मेरे रब मेरी मग्फेरत कर दीजो, और मेरे माँ बाप की भी और कुल मोमनीन की हिसाब क़ायम होने के दिन . . . ''
सूरह इब्राहीम १४- परा १३-आयत (४१)
इसी कुरआन में मुहम्मदी अल्लाह इस आयत के ख़िलाफ़ कहता है कि उन लोगों के लिए मग्फेरात की दुआ न करो जो काफ़िर का अक़ीदा लेकर मरे हों, ख्वाह वह तुम्हारे कितने ही क़रीबी अज़ीज़ ही क्यूं न हों. यहाँ पर इब्राहीम काफ़िर बाप आज़र के लिए अल्लाह के हुक्म से दुआ मांग रहा है? कोई आलिम इनबातों का जवाब नहीं देता।
'' पस कि अल्लाह तअला को अपने रसूल की वअदा खिलाफ़ी करने वाला न समझना. बे शक अल्लाह तअला बड़ा ज़बरदस्त और पूरा बदला लेने वाला है और सब के सब ज़बदस्त अल्लाह के सामने पेश होने वाले हैं.''
सूरह इब्राहीम १४- परा १३-आयत (४७)
इस आयत के लिए जोश मलीहाबादी कि रुबाई काफी होगी.कहते हैं - - -

गर मुन्ताकिम है तो झूटा है खुदा,
जिसमें सोना न हो वह गोटा है खुदा,
शब्बीर हसन खाँ नहीं लेते बदला,
शब्बीर हसन खाँ से भी छोटा है खुदा। 

''जिस रोज़ दूसरी ज़मीन बदल दी जाएगी, इस ज़मीन के अलावा आसमान भी, और सब के सब एक ज़बर दस्त अल्लाह के सामने पेश होंगे और तू मुजरिम को ज़ंजीरों में जकड़े हुए देखेगा, और उनके कुरते क़तरान के होंगे और आग उनके चेहरों पर लिपटी होगी ताकि अल्लाह हर शख्स को इसके किए की सज़ा दे यक़ीनन अल्लाह बहुत जल्द हिसाब लेने वाला है.''
सूरह इब्राहीम १४- परा १३-आयत (४९-५१)
ज़मीन बदल जाएगी, आसमान बदल जाएगा मगर इंसान न बदलेगा, क़तरान का कुरता पहने मुंह पर आग की लपटें लिए ज़बर दस्त अल्लाह के आगे अपने करतब दिखलाता रहेगा. आज ऐसा दौर आ गया है कि बच्चे भी ऐसी कहानियों से बोर होते हैं. मुसलमान इन पर यकीन रखते हैं?
मुसलमानों! 
दुन्या की हर शय फ़ानी है और यह दुन्या भी. साइंस दान कहते है कि यह धरती सूरज का ही एक हिस्सा है और एक दिन अपने कुल में जाकर समां जाएगी मगर अभी उस वक़्त को आने में अरबों बरसों का फासला है. अभी से उस की फ़िक्र में मुब्तिला होने की ज़रुरत नहीं. साइंस दान यह भी कहते हैं कि तब तक नसले-इंसानी दूसरे सय्यारों तक पहुँच कर बस जाएगी. साइंस कि बातें भी अर्द्ध-सत्य होती हैं, वह खुद इस बात को कहते है मगर इन अल्लाह के एजेंटों की बातें १०१% झूट होती हैं, इन पर क़तई और यक़ीननयक़ीन न करना.



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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