Friday 19 February 2016

Soorah nAHL १६ Q १

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह नह्ल १६- परा 
पहली किस्त 

''अल्लाह तअला का हुक्म पहुँच चुका है, सो तुम इस में जल्दी मत मचाओ. वह लोगों के शिर्क से पाक और बरतर है. वह फरिश्तों को वह्यी यानी अपना हुक्म भेज कर अपने बन्दों पर जिस पर चाहे नाज़िल फ़रमाते हैं कि ख़बरदार कर दो कि मेरे सिवा कोई लायक़े इबादत नहीं है सो मुझ से डरते रहो. आसमान को ज़मीन को हिकमत से बनाया. वह उनके शिर्क से पाक है. इन्सान को नुतफ़े से बनाया फिर वह यकायक झगड़ने लगा. उसने चौपाए को बनाया, उनमें तुम्हारे जाड़े का सामान है और बहुत से फ़ायदे हैं और उन में से खाते भी हो. और उनकी वजेह से तुम्हारी रौनक़ भी है जब कि शाम के वक़्त लाते हो और जब कि सुब्ह के वक़्त छोड़ देते हो. और वह तुम्हारे बोझ भी ऐसे शहर को ले जाते हैं जहाँ तुम बगैर जान को मेहनत में डाले हुए नहीं पहुँच सकते थे. वाक़ई तुम्हारा रब बड़ी शफ़क़त वाला और रहमत वाला है. और घोड़े और खच्चर और गधे भी पैदा किए ताकि तुम उस पर सवार हो और ज़ीनत के लिए भी.''
सूरह नह्ल १६-  आयत (१-८)
यह कुर आन की आठ आयतें हैं. मुताराज्जिम ने अल्लाह की मदद के लिए काफी रफुगरी की है मगर मुहम्माग के फटे में पेवंद तो नहीं लगा सकता.
१-अल्लाह तअला का हुक्म पहुँच चुका है . . . तो कहाँ अटका है?
२-सो तुम इस में जल्दी मत मचाओ - - - किसको जल्दी थी, सब तुमको पागल दीवाना समझते थे.
३-वह लोगों के शिर्क से पाक और बरतर है. . .क्या है ये शिर्क? अल्लाह के साथ किसी दुसरे को शरीक करना, न ? फिर तुम क्यूं शरीक हुए फिरते हो.
४- अल्लाह को तुम जैसा फटीचर बन्दा ही मिला था कि तुम पर हुक्मरानी नाज़िल कर दिया.
५-सो मुझ से डरते रहो - - - आख़िर अल्लाह खुद से बन्दों का डरता क्यूं है?
६-अल्लाह इन्सान को कभी नुतफ़े से बनता है, कभी बजने वाली मिटटी से, कभी, उछलते हुए पानी से तो कभी खून के लोथड़े से? तुहारा अल्लाह है या चुगद?
७- इन्सान को अगर अल्लाह नेक नियति से बनता तो झगडे की नौबत ही न आती.
८- अब इंसान को छोड़ा तो चौपाए खाने पर आ गए, उनकी सिफ़तें गिनाते है जिस पर अलिमान दीन किताबों के ढेर लगाए हुए हैं, न उन पर रिसर्च, न उनकी नस्ल अफ़ज़ाइश पर काम, न उनका तहफ़फ़ुज़ बल्कि उनका शिकार और उन पर ज़ुल्म देखे जा सकते हैं।
'' और वह ऐसा है कि उसने दरया को मुसख़ख़िर (प्रवाहित) किया ताकि उस में से ताजः ताजः गोश्त खाओ और उसमें से गहना निकालो जिसको तुम पहेनते हो. और तू कश्तियों को देखता है कि वह पानी को चीरती हुई चलती हैं और ताकि तुम इसकी रोज़ी तलाश करो और ताकि तुम शुक्र करो. और उसने ज़मीन पर पहाड़ रख दिए ताकि वह तुम को लेकर डगमगाने न लगे. और उसने नहरें और रास्ते बनाए ताकि तुम मंजिले मक़सूद तक पहुँच सको . . . और जो लोग अल्लाह को छोड़ कर इबादत करते हैं वह किसी चीज़ को पैदा नहीं कर सकते और वह ख़ुद ही मख्लूक़ हैं, मुर्दे हैं, जिंदा नहीं और इस की खबर नहीं कि कब उठाए जाएँगे.
सूरह नह्ल १६-  आयत (१४-२१)
बगैर तर्जुमा निगारों के सजाए यह कुरआन की उरयाँ इबारत है. मुहम्मद बन्दों को कभी तू कहते हैं कभी तुम, ऐसे ही अल्लाह को. कभी ख़ुद अल्लाह बन कर बात करने लगते हैं तो कभी मुहम्मद बन कर अल्लाह की सिफ़तें बयान करते हैं. कहते हैं ''वह पानी को चीरती हुई चलती हैं और ताकि तुम इसकी रोज़ी तलाश करो और ताकि तुम शुक्र करो'' 
अगर ओलिमा उनकी रोज़े अव्वल से मदद गार न होते तो कुरआन की हालत ठीक ऐसी ही होती ''कहा उनका वो अपने आप समझें या खुदा समझे.'' कठ मुल्ले नादार मुसलमानों को चौदा सौ सालों से ये बतला कर ठग रहे है कि अल्लाह ने
''ज़मीन पर पहाड़ रख दिए ताकि वह तुम को लेकर डगमगाने न लगे.'' मुहम्मद इंसान के बनाए नहरें और रास्ते को भी अल्लाह की तामीर गर्दान्ते हैं. भूल जाते हैं कि इन्सान रास्ता भूल कर भटक भी जाता है मगर कहते हैं 
'' ताकि तुम मंजिले मक़सूद तक पहुँच सको'' 
मख्लूक़ को मुर्दा कहते हैं, फिर उनको मौत से बे खबर बतलाते हैं. 
''वह ख़ुद ही मख्लूक़ हैं, मुर्दे हैं, जिंदा नहीं और इस की खबर नहीं कि कब उठाए जाएँगे''
मुसलामानों की अक्ल उनके अकीदे के आगे खड़ी ज़िन्दगी की भीख माँग रही है मगर अंधी अकीदत अंधे कानून से ज़्यादा अंधी होती है उसको तो मौत ही जगा सकती है, मगर मुसलमानों! तब तक बहुत देर हो चुकी होगी. जागो.
मुहम्मद जब अपना कुरआन लोगों के सामने रखते, लेहाज़न लोग सुन भी लेते, तो बगैर लिहाज़ के कह देते 
 '' क्या रक्खा है इन बातों में ? सब सुने सुनाए क़िस्से हैं जिनकी कोई सनद नहीं'' 
ऐसे लोगों को मुहम्मद मुनकिर (यानी इंकार करने वाला) कहते हैं और उन्हें वह क़यामत के दिन से भयभीत करते हैं. 
एक ख़ाका भी खीचते हैं क़यामत के दिन का कि 
काफ़िरो-मुनकिर को किस तरह अल्लाह जहन्नम रसीदा करता है और ईमान लाने वालों को किस एहतेमाम से जन्नत में दाखिल करता है. काफिरों मुशरिकों के लिए . . . '' 
सो जहन्नम के दवाज़े में दाखिल हो जाओ, इसमें हमेशा हमेशा को रहो, ग़रज़ तकब्बुर करने वालों का बुरा ठिकाना है.'' और मुस्लिमों के लिए ''फ़रिश्ते कहते हैं . . .अस्सलाम अलैकुम! तुम जन्नत में चले जाना अपने आमाल के सबब.''
सूरह नह्ल १६-  आयत (२२-३४)
इतना रोचक प्लाट, और इतनी फूहड़ ड्रामा निगारी.
मुशरिकीन ऐन मुहम्मद का कौल दोहराते हुए पूछते हैं 
''अगर अल्लाह तअला को मंज़ूर होता तो उसके सिवा किसी चीज़ की न हम इबादत करते और न हमारे बाप दादा और न हम बगैर उसके हुक्म के किसी चीज़ को हराम कह सकते'' 
इस पर मुहम्मद कोई माक़ूल जवाब न देकर उनको गुमराह लोग कहते हैं और बातें बनाते हैं कि माज़ी में भी ऐसी ही बातें हुई हैं कि पैगम्बर झुटलाए गए हैं . . . जैसी बातें करने लगे.
सूरह नह्ल १६- आयत (35-३७)
''और लोग बड़े ज़ोर लगा लगा कर अल्लाह कि क़समें खाते हैं कि जो मर जाता है अल्लाह उसको जिंदा न करेगा, क्यों नहीं? इस वादे को तो उस ने अपने ऊपर लाज़िम कर रक्खा है, लेकिन अक्सर लोग यक़ीन नहीं करते. . . . हम जिस चीज़ को चाहते हैं, पस इस से हमारा इतना ही कहना होता है कि तू हो जा, पस वह हो जाती है.''
सूरह नह्ल १६- आयत (३८+४०)
यह सूरह मक्का की है जब मुहम्मद खुद राह चलते लोगों से क़समें खा खा कर और बड़े ज़ोर लगा लगा कर लोगों को इस बात का यक़ीन दिलाते कि तुम मरने के बाद दोबारा क़यामत के दिन ज़िन्दा किए जाओगे और लोग इनका मज़ाक उड़ा कर आगे बढ़ जाते. मुहम्मद ने अल्लाह को कारसाज़े-कायनात से एक ज़िम्मेदार मुलाज़िम बना दिया है. उनका अल्लाह इतनी आसानी से जिस काम को चाहता है इशारे से कर सकता है तो अपने प्यारे नबी को क्यूँ अज़ाब में मुब्तिला किए हुए है कि लोगों को इस्लाम पर ईमान लाने के लिए जेहाद करने का हुक्म देता है? यह बात तमाम दुन्या के समझ में आती है मगर नहीं आती तो ज़ीशान और आलीशानों के।
''४१ से ५५'' आयत तक मुहम्मद ने अपने दीवान में मोहमिल बका है जिसको ज़िक्र करना भी मुहाल है। उसके बाद कहते हैं
''और ये लोग हमारी दी हुई चीज़ों में से उन का हिस्सा लगते हैं जिन के मुताललिक़ इन को इल्म भी नहीं. क़सम है ख़ुदा की तुम्हारी इन इफतरा परदाज़यों की पूछ ताछ ज़रूर होगी.'"
सूरह नह्ल  १६ आयत (५६)
मुहम्मद ज़मीन पर पूजे जाने वाले बुत लात, मनात, उज़ज़ा वगैरा पर चढ़ाए जाने वाले चढ़ावे को देख कर ललचा रहे हैं कि एक हवा का बुत बना कर सब का बंटा धार किया जा सकता है और इन चढ़ावों पर उनका क़ब्ज़ा हो सकता है, वह अपने इस मंसूबे में कामयाब भी हैं.एक अल्लाह ए वाहिद का दबदबा भी क़ायम हो गया है और इन्सान तो पैदायशी मुशरिक है, सो वह बना हुवा है. मुस्लमान आज भी पीरों के मज़ारों के पुजारी हैं,मगर हिदू बालाजी और तिरुपति मंदिरों के श्रधालुओं का मज़ाक उड़ाते हुए.
''और अल्लाह के लिए बेटियां तजवीज़ करते हैं सुबहान अल्लाह!और अपने लिए चहीती चीजें.''
सूरह नह्ल १६ आयत (५७)
मुहम्मद भटक कर गालिबन ईसाई अकीदत पर आ गए हैं जो कि खुदा के मासूम फरिश्तों को मर्द और औरत से बाला तर समझते हैं. उनके आकृति में पर, पिश्तान, लिंग आदि होते हैं मगर पवित्र आकर्षण के साथ. मुहम्मद को वह लडकियाँ लगती हैं, वह मानते हैं कि ऐसा ईसाइयों ने खुदा के लिए चुना. और कहते है खुद अपना लिए चाहीती चीज़ यानि बेटा.मूर्ति पूजकों के साथ साथ ये मुहम्मद का ईसाइयों पर भी हमला है.
''और जब इन में से किसी को औरत की ख़बर दी जाए तो सारे दिन उस का चेहरा बे रौनक रहे और वह दिल ही दिल में घुटता रहे, जिस चीज़ की उसको खबर दी गई है । इसकी आर से लोगों से छुपा छुपा फिरे कि क्या इसे ज़िल्लत पर लिए रहे या उसको मिटटी में गाड़ दे. खूब सुन लो उन की ये तजवीज़ बहुत बुरी है.''
सूरह नह्ल १६-  आयत (५८-५९)
मुल्लाओं की उड़ाई हुई झूटी हवा है कि रसूल को बेटियों से ज़्यादः प्यार हुवा करता था. यह आयत कह रही है कि वह बेटी पैदा होने को औरत की पैदा होने की खबर कहते हैं. बेशक उस वक़्त क़बीलाई दस्तूर में अपनी औलाद को मार देना कोई जुर्म न था बेटी हो या बेटा. आज भी भ्रूण हत्या हो रही है. मुहम्मद से पहले अरब में औरतों को इतनी आज़ादी थी कि आज भी जितना मुहज्ज़ब दुन्या को मयस्सर नहीं. इस मौज़ू पर फिर कभी.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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