Friday 26 February 2016

Soorah bani israeel 17 Qist 1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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क़ुरआन सूरह बनी इस्राईल -१७
पहली किस्त 


मुहम्मदुर रसूलिल्लाह
(मुहम्मद ईश्वर के दूत हैं)
मुहम्मद की फितरत का अंदाज़ा क़ुरआनी आयतें निचोड़ कर निकाला जा सकता है कि वह किस कद्र ज़ालिम ही नहीं कितने मूज़ी तअबा शख्स थे। क़ुरआनी आयतें जो खुद मुहम्मद ने वास्ते तिलावत बिल ख़ुसूस महफूज़ कर दीं, इस एलान के साथ कि ये बरकत का सबब होंगी न कि इसे समझा समझा जाए. अगर कोई समझने की कोशिश भी करता है तो उनका अल्लाह उस पर एतराज़ करता है कि 
ऐसी आयतें मुशतबह मुराद (संदिग्ध) हैं जिनका सही मतलब अल्लाह ही जानता है.
 इसके बाद जो अदना(सरल) आयतें हैं और साफ़ साफ़ हैं वह अल्लाह के किरदार को बहुत ही ज़ालिम, जाबिर, बे रहम, मुन्तकिम और चालबाज़ साबित करती है बल्कि अल्लाह इन अलामतों का खुद एलान करता है कि अगर
 ''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' (मुहम्मद ईश्वर के दूत हैं) 
को मानने वाले न हुए तो?
अल्लाह इतना ज़ालिम और इतना क्रूर है कि इंसानी खालें जला जला कर उनको नई करता रहेगा , इंसान चीखता चिल्लाता रहेगा और तड़पता रहेगा मगर उसको मुआफ़ करने का उसके यहाँ कोई जवाज़ नहीं है, कोई कांसेप्ट नहीं है. मज़े की बात ये कि दोबारा उसे मौत भी नहीं है कि मरने के बाद नजात कि सूरत हो सके, 
उफ़! इतना ज़ालिम है मुहमदी अल्लाह? सिर्फ़ इस ज़रा सी बात पर कि उसने इस ज़िन्दगी में ''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' क्यूं नहीं कहा. 
हज़ार नेकियाँ करे इन्सान, कुरआन गवाह है कि सब हवा में ख़ाक की तरह उड़ जाएँगी अगर ''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' नहीं कहा क्यों कि हर अमल से पहले ईमान शर्त है और ईमान है ''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' . 
इस कुरआन का खालिक़ कौन है जिसको मुसलमान सरों पर रखते हैं ? मुसलमान अपनी नादानी और नादारी में यकीन करता है कि उसका अल्लाह . वह जिस दिन बेदार होकर कुरआन को खुद पढ़ेगा तब समझेगा कि इसका खालिक तो दगाबाज़ खुद साख्ता अल्लाह का बना हुवा रसूल मुहम्मद है. उस वक़्त मुसलमानों की दुन्या रौशन हो जाएगी.
मुहम्मद कालीन मशहूर सूफ़ी ओवैस करनी जिसके तसव्वुफ़ के कद्रदान मुहम्मद भी थे, जिसको कि मुहम्मद ने बाद मौत के अपना पैराहन पहुँचाने की वसीअत की थी, मुहम्मद से दूर जंगलों में छिपता रहता कि इस ज़ालिम से मुलाक़ात होगी तो कुफ्र ''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' मुँह पर लाना पड़ेगा. 
इस्लामी वक्तों के माइल स्टोन हसन बसरी और राबिया बसरी इस्लामी हाकिमों से छुपे छुपे फिरते थे कि यह ''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' को कुफ्र मानते थे. मक्के के आस पास फ़तेह मक्का के बाद इस्लामी गुंडों का राज हो गया था. किसी कि मजाल नहीं थी कि मुहम्मद के खिलाफ मुँह खोल सके . 
मुहम्मद के मरने के बाद ही मक्का वालों ने हुकूमत को टेक्स देना बंद कर दिया कि ''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' कहना हमें मंज़ूर नहीं 'लाइलाहा इल्लिल्लाह' तक ही सही है. अबुबकर ख़लीफ़ा ने इसे मान लिया मगर उनके बाद ख़लीफ़ा उमर आए और उन्हों ने फिर बिल जब्र ''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' पर अवाम को आमादः कर लिया . इसी तरह पुश्तें गुज़रती गईं , सदियाँ गुज़रती गईं, जब्र, ज़ुल्म, ज्यादती और बे ईमानी ईमान बन गया.
आज तक चौदह सौ साल होने को हैं सूफ़ी मसलक ''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' को मज़ाक़ ही मानता है, वह अल्लाह को अपनी तौर पर तलाश करता है, पाता है और जानता है किसी स्वयंभू भगवन के अवतार और उसके दलाल बने पैगम्बर के रूप में - - -

''मस्जिदे अक़सा तक जिसके गिर्दा गिर्द हम ने बरकतें कर रखी हैं ले गया ताकि हम उनको अपने कुछ अजायब दिखला दें. बेशक अल्लाह तअला बड़े सुनने और देखने वाले हैं. और हमने मूसा को किताब दी और हमने उसको बनी इस्राईल के लिए हिदायत बनाया कि तुम मेरे सिवा किसी और को करसाज़ मत क़रार दो. ऐ उन लोगो की नस्ल! जिन को हमने नूह के साथ सवार किया था वह बड़े शुक्र गुज़र बन्दे थे. और हमने बनी इस्राईल को किताब में बतला दी थी कि तुम सर ज़मीन पर दोबारा खराबी करोगे और बड़ा ज़ोर चलाओगे. फिर जब उन दो में से पहली की मीयाद आवेगी, हम तुम पर ऐसे बन्दों को मुसल्लत कर देंगे जो बड़े जंगजू होंगे. फिर वह तुम्हारे घरों में घुस पड़ेंगे और ये एक वतीरा है जो हो कर रहेगा.''
सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (१-५)
पाठको क्या समझे? तर्जुमा कर अशरफ अली थानवी ने ब्रेकेट की खपच्चियाँ लगा लगा कर बड़ी रफ़ू गरी की मगर जब जेहालत सर पर चढ़ कर बोले तो कौन मुँह खोले? 
अल्लाह कहता है ''हम तुम पर ऐसे बन्दों को मुसल्लत कर देंगे जो बड़े जंगजू होंगे. फिर वह तुम्हारे घरों में घुस पड़ेंगे और ये एक वतीरा है जो हो कर रहेगा.'' 
यानि अल्लाह का भी वतीरा होता है? 
बद किमाश सियासत दानों की तरह, वह खुद जंगजू तालिबान को पैदा किए हुए है, जो मासूम बच्चियों को इल्म के लिए घरों से बाहर तो निकलने नहीं देते और घरों में ऐसी आयतों का सहारा लेकर घुस जाते हैं और मनमानी करते हैं.
मुसलमानों तुम कितने बद नसीब हो कि तुम्हारी आँखें ही नहीं खुलतीं. कितने बेहिस हो? 
कितने डरपोक? कितने बुजदिल? कितने अहमक हो ? 
जागो, अभी तो तुमको तुम में से ही जगा हुवा एक मोमिन जगा रहा है, मुमकिन है कि कल दूसरों के लात घूंसे खा कर तुम्हारी आँखें खुलें।


''फिर उन पर तुम्हारा गलबा कर देंगे और मॉल और बेटों से हम तुम्हारी मदद करेगे और हम तुम्हारी जमाअत को बढ़ा देंगे. अगर अच्छे कम करते रहोगे तो अपने ही नफ़े के लिए अच्छे कम करोगे. और अगर बुरे कम करोगे तो भी अपने लिए, फिर जब पिछली की मीयाद आएगी ताकि तुम्हारे मुँह बिगाड़ दें और जिस तरह वह पहली बार मस्जिद में घुसे थे, यह लोग भी इस में घुस पड़ें और जिन जिन पर इनका ज़ोर चले सब को बर्बाद कर डालें. अजब नहीं कि तुम्हारा रब तुम पर रहेम फरमा दे और अगर वही करोगे तो हम फिर वही करेंगे और हमने जहन्नम को काफिरों का जेल खाना बना रखा है. बिला शुबहा ये कुरआन ऐसे को हिदायत देता है जो बिलकुल सीधा है. और ईमान वालों को जो कि नेक कम करते हैं, ये खुश खबरी देता है कि उसको बहुत बड़ा सवाब है. और जो आखरत पर ईमान नहीं लाते उनके लिए दर्दनाक सजा तैयार है,
सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (६-१०)
ये है कुरानी अल्लाह की ज़ेहन्यत और इस्लाम की रूह। ऐसी तसवीर लेकर आप ज़माने के सामने जाकर इस्लाम की तबलीग़ करने लायक़ तो रह नहीं गए कि इसमें कुछ दम नहीं और इसे सब जान चुके है और इससे बुरे इस्लामी एहकाम को भी, लिहाज़ा अब तगलीगिए मुसलमानों के मुहल्लों में ही जा कर उनके नव उम्रों को भड़काते फिरते हैं कि अल्लाह तुम को जैशे मुहम्मद की तरफ़ बुला रहा है. इस तरह एक नया ख़तरा मुसलमानों पर आन खड़ा हवा है. ज़रुरत है निडर होकर मैदान में आने की , इस एलान के साथ कि आप हसन बसरी की तरह सिर्फ़ मोमिन हैं. जाइए आपको जो करना हो कर लीजिए. आप जागिए और लोगों को जगाइए.

''और हमने रात और दिन को दो निशानियाँ बनाया, सो रात की निशानी को तो हमने धुंधला बनाया और दिन की निशानी को हमने रौशन बनाया ताकि तुम अपने रब कि रोज़ी तलाश करो और ताकि तुम बरसों का शुमार और हिसाब मालूम कर लो और हम ने हर चीज़ को खूब तफ़सील के साथ बयान कर दिया है. ''
सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (१२)
मुहम्मद रात को कोई ऐसी शय मानते हैं जो ढक्कन नुमा होती हो और रौशनी को ढक कर उस पर ग़ालिब हो जाती हो और दिन को एक रौशन शय जो आकर सूरज को रौशन कर देता हो,जैसे बल्ब में फिलामेंट. 
हदीसें बतलाती हैं कि वह सूरज को रात में मसरुफे सफ़र जानिबे अल्लाह बराय सजदा रेज़ी होना जानते हैं. 
मुहम्मद कहते हैं ''हमने दिन को रौशन बनाया ताकि तुम अपने रब कि रोज़ी तलाश करो'' बन्दे का रब उसकी तलाश कि हुई कौन सी रोज़ी खाता है? मुतरजजिम लिखता है गोया बन्दों कि रोज़ी. अब रात पायली काम होने लगे, बरसों का शुमार और हिसाब रात और दिन पर कभी मुनहसर नहीं रहे। मुसलमान सच मुच इतना ही पीछे है जितना इसका कुरान इसे अपनी बेहूदा तफसीलो में मुब्तिला किए हुए है।


''हर इंसान को आमल नामे के मुताबिक सज़ा मिलेगी, साथ में अल्लाह ये भी सहेज देता है कि ''और हम सज़ा नहीं देते जब तक किसी रसूल को नहीं भेज लेते।''
सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (१३)
गोया अल्लाह पाबन्द है रसूलों का कि वह आकर मुझे जन्नतियों कि लिस्ट दे. यहाँ पर भी मुहम्मद भोले भालों को चूतिया बनाते हैं कि फ़िलहाल तुम्हारा रसूल तो मैं ही हूँ. असली दीन की अदालत में जिस दिन आलमी मुजरिमों पर मुक़दमा चलेगा, मुहम्मद सब से बड़े जहन्नमी साबित होंगे।

अल्लाह कहता है
''जो शख्स दुन्या की नीयत रखेगा हम उस शख्स को दुन्या में जितना चाहेंगे, जिसके वास्ते चाहेंगे, फ़िलहाल दे देंगे फिर उसके लिए हम जहन्नम तजवीज़ करेंगे और वह उस में बदहाल रांदे दरगाह होकर दाख़िल होगा।और जो शख्स आख़िरत की नीयत रखेगा और इसके लिए जैसी साईं करना चाहिए वैसी ही साईं करेगा बशर्ते ये कि वह शख्स मोमिन भी हो, सो ऐसे लोगों की ये साईं मकबूल होगी।''

यहाँ पर पहली बात तो ये साबित होती है कि मुहम्मदी अल्लाह परले दर्जे का शिकारी है कि शिकार के लिए दाना डालता है, आदमी दाना चुगने लगे और चैन कि साँस ले कि वह इसको दबोच लेता है? दूसरी बात ये कि जैसे मैं पहले बयान करचुका हूँ कि आप लाख नेक इन्सान हों, अल्लाह आपकी नेकियों का कोई वास्ता नहीं अगर आप मोमिन 
''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' कहने वाले नहीं।

सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (१३-२२)

''अल्लाह अपने बालिग़ बच्चों को समझाता है कि माँ बाप के फ़रायज़ याद रखना, उनसे हुस्ने सुलूक से पेश आना, क़राबत दारों के हुक़ूक़ भी याद दिलाता है, फुज़ूल खर्ची को मना करता है मगर बुखालत को भी बुरा भला कहता है, मना करता है कि औलादों को तंग दस्ती के बाईस मार डालना भारी गुनाह है, ज़िना कारी को बे हयाई बतलाता है. साथ साथ अपनी अज़मत को ख़ुद अपने मुँह से बघारना नहीं भूलता. ''
सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (२३-३२)
जिस तरह बच्चों को एखलाकयात सिखलाया और पढाया जाता है उसी तरह मुहम्मद कुरआन के ज़रीए मुसलामानों को सबक़ देते हैं लगता है उस वक़्त अरब में सब जंगली और वहशी रहे होंगे। ख़ुद दूसरों को नसीहत देने वाले मुहम्मद अपने चचाओं पर कैसा ज़ुल्म ढाया कोई तवारीख़ से पूछे. ज़िना कारी और हराम कारी को बे हयाई गिनवाने वाले मुहम्मद पर दस्यों इलज़ाम हैं कि इसके कितने बड़े मुजरिम वह ख़ुद थे।

हदीस है - - - मुहम्मद फरमाते हैं ''जो शख्स मेरे वास्ते दो चीज़ों का जामिन हो जाय ,पहली दोनों जबड़ों के दरमियान जो ज़ुबान है, दूसरी दोनों पैरों के बीच जो शर्मगाह (लिंग) है तो मैं उस शख्स के वास्ते जन्नत का जामिनदार हो जाऊँगा. (बुखारी २००७)

अपनी फूफी ज़ाद बहन ज़ैनब जोकि इनके मुँह बोले बेटे ज़ैद बिन हारसा की बीवी थी, के साथ मुँह काला करते हुए उसके शौहर ज़ैद बिन हारसा ने हज़रात को पकड़ा तो तूफ़ान खड़ा हुवा, ,जिंदगी भर उसको बिन निकाही बीवी बना के रक्खा और चले हैं बातें करने। आगे कुरआन में ही इस वाकेआ पूरा हाल आने वाला है.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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