Monday 11 April 2016

soorah Ambiya 21 Q1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
***********


  सूरह अंबिया -२१ परा १७
पहली  किस्त 
चलिए देखें उस डरावने बगड़बिल्ला को जो मुसलमानों को डरा डरा कर अल्लाह बना हुवा है- - -
कुछ मुसलमानों का मानना है कि इंसान के दिल में अगर खौफे-खुदा न रहे तो वह हैवान हो जायगा और माँ बहन बेटियों की तमाज़त खो देगा। आधी दुन्या जो नॉन बिलिवेर्स है, तो क्या वह सब ऐसी ही है? 
हाँ मुहम्मद तबअ रखने वाले लोग ऐसे ज़रुर हो सकते हैं जिनके लिए गढ़ित अल्लाह सब रिश्तों की छूट देता है, या उन्हें अल्लाह मानने वाले लोग।
मुहम्मद ने इंसान की जिस सब से बड़ी कमजोरी पर अपनी गिरफ़्त मज़बूत की है, वह है अल्लाह का डर. वह कुरआन में बार बार कहते हैं कि वह अल्लाह की तरफ से तुम को डरा रहे हैं और मुसलमान उनके झूट पर रोज़े हश्र और दोज़ख का यक़ीन कर लेता है. उसको कैसे समझाया जाए कि दोज़ख और जन्नत सब उसके दिलो-दिमाग में हैं और कायनात में कहीं नहीं हैं, उसके बुरे और अच्छे फ़ेल ही उसको दोज़खी और जन्नती बनाए रहते हैं. किसी फ़ेल या अमल से पहले खूब सोच समझ लेना चाहिए कि इसका रद्दे अमल दूसरों के लिए नुक्सान दह या फायदे मंद, बस वह हर अमल आपका रहनुमाई करता है कि आप इस वक़्त दोज़ख में जाने वाले है या जन्नत में. यह ख़याल दिमाग से निकाल दीजिए कि ज़माना क्या कहेगा. ज़माना तो ज़माना है, उसके कहने पर मत जाइए. जो समाज में कमजोरियां हैं उनका डट कर विरोध करिए, एक दिन आएगा कि लोग आपके साथ होंगे और आप खुद को जन्नती महसूस करेंगे।
चलिए डरपोक बने समाज को जगाया जाए कि अल्लाह किसी बनिए का मुनीम नहीं होता जो अपनी मख्लूक़ के फ़ेलों का बही खता रक्खे, इस कायनात में वह हर शय में विराजमान है और हर शय उसके बनाए नियमानुसार चलती है, कि सदाक़त जन्नत के दरवाजे पर बैठी आप का इंतज़ार कर रही है और दारोग और झूट दोज़ख के दर पे - - - 

''इन लोगों से इनका हिसाब नजदीक आ पहुँचा और ये गफ़लत में एराज़ (विमुखता) किए हुए हैं. इनके पास इनके रब से जो नसीहत ताज़ा आती है, ये इसको ऐसे सुनते हैं कि उनके साथ हँसी करते हैं, उनके दिल मुतवज्जो नहीं होते और ये लोग यानी ज़ालिम लोग चुपके चुपके सरगोशी करते हैं कि ये तुम जैसे एक आदमी हैं, तो क्या तुम भी जादू के पास जाओगे? हालाँकि तुम जानते हो कि पैगम्बर ने फ़रमाया कि मेरा रब आसमान में या ज़मीन में सब जानता है. और वह खूब सुनने वाला और जानने वाला है, बल्कि कहा कि परेशान खयालात हैं। बल्कि इन्हों ने इसको तराश लिया है, बल्कि यह तो एक शायर हैं, तो इसको चाहिए कि हमारे पास कोई ऐसी निशानी लावें जैसे पहले लोग रसूल बनाए गए. इनसे पहले कोई बस्ती वाले जिनको हमने हलाक़ किया है, ईमान नहीं लाए तो क्या यह लोग ईमान ले आवेंगे और इस से पहले सिर्फ आदमियों को ही पैगम्बर बनाया जिनके पास हम वह्यी को भेजा करते थे, सो अगर तुमको मालूम न हो तो अहले किताब से दरियाफ़्त कर लो, और हमने इन के ऐसे जुस्से (शरीर) नहीं बनाए थे जो खाना न खाते हों और वह हमेशा रहने वाले नहीं हुए. फिर हमने उन से जो वअदा किया था उसको सच्चा किया. यानी उनको और जिन जिन को मंज़ूर हुआ, हमने नजात दी. और हद से गुजरने वाले को हलाक किया, हम तुम्हारे पास ऐसी किताब भेज चुके हैं कि जिसमें नसीहत है, क्या फिर भी तुम नहीं समझते''
सूरह अंबिया -२१ परा १७ - आयत (१-१०)

वह कथित काफ़िर और जाहिल आज के तालीम याफ़्ता लोगों से कुजा बेहतर थे जो कुरआन को उस दीवाने पैगम्बर का ख्याल-ए-परेशान कहते थे, कैसी माकूल बात है. जो आज भी लागू होती है. मुहम्मद अपनी बातों को तारीफ़ के सन्दर्भ में जादू जैसी पुर कशिश बतलाते हैं, नहीं जानते कि जादू झूट होता है. मुहम्मदी अल्लाह की तमाम वाणी मज़ाक के स्तर पर भी नहीं बल्कि मज्मूम (निन्दित) हैं. इन बातों को कैसे किसी अल्लाह का कलाम माना जा सकता है? मुसलामानों को इनसे पीछा छुड़ाने में शर्म कैसी? ये समझदारी और फ़ख्र का क़दम होगा.

''बहुत सी हस्तियाँ जहाँ के रहने वाले ज़ालिम थे, गारत कर दीं और उसके बाद दूसरी कौम पैदा कर दीं. सो जब उन्हों ने हमारा अज़ाब आता देखा, इस से भागना शुरू किया, भागो मत और अपने सामान ऐश की तरफ और अपने मकानों की तरफ वापस चलो, शायद तुम से कोई पूछे पाछे,. वह लोग कहने लगे हाय! हमारी कम्बख्ती, बेशक हम लोग ज़ालिम थे. सो उनकी यही पुकार रही, हत्ता कि हमने उनको ऐसा कर दिया जिस तरह खेती कट गई हो. और आग ठंडी हो गई. और हमने आसमान और ज़मीन को इस तरह नहीं बनाया कि हम कोई फालतू काम कर रहे हों. अगर हमको मशगला ही बनाना मंज़ूर होता तो हम खास अपने पास की चीजों को मशगला बनाते. अगर हम को ये करना होता, बल्कि हम हक बात को बातिल पर फ़ेंक मारते हैं,. सो वह इस का भेजा निकाल देता है.सो वह दफअतन जाता रहता है. और तुम्हारे लिए ये बड़ी खराबी होगी जो तुम गढ़े हो और जितने कुछ आसमानों और ज़मीन में है, सब इसी के हैं और जो उसके नज़दीक हैं, वह उस से आर नहीं करते.और न झुकते हैं. बल्कि शबो रोज़ तस्बीह करते हैं,  मौकूफ नहीं करते हैं''
सूरह अंबिया -२१ परा १७ -आयत (११-२०)

यह मुहम्मदी अल्लाह मुहम्मद के कठमुल्ला जैसे दिमाग की पैदावार है, पच्चीस साल की उम्र तक मक्कियों की भेड़ बकरियां चराने के दरमियान वह भेड़ बकरियों को साधते और सोचते रहे कि इनकी तरह ही आदमी भी इस धरती पर मौजूद हैं क्यूँ न उनको चराया जाए, और बेवकूफ भेड़ बकरियों जैसा दिमाग रखने वाले दुन्या में उनको भरे पड़े मिले, माँ की उम्र वाली खदीजा ने इनको टुकड़े डाले और यह उसके पालतू बन गए, फिर क्या था गारे-हरा में बैठ कर पंद्रह सालों तक मुफ़्त की रोटियाँ तोड़ते रहे और मंसूबा बंदी करते रहे. चालीस सालों में एक जाहिल जट ने पैगम्बरी का एलान कर दिया. ईसा और मूसा के बराबर होने का मौक़ा मुनासिब था और अपनी उम्मियत को उरूज पर रखते हुए तजुर्बा किया किए और बन बैठे भेड़ बकरियों नुमा उम्मत के पैगम्बर- ए- आखुज्ज़मा - . कई हदीसें गवाही देती है कि मुहम्मद तबीयतन ज़ालिम थे. इज्ज़त दार खातून का हाथ काट डाला मअमूली सी चोरी के इलज़ाम में, अपने सामने दो वफ़ादार और बाकिरदार जोड़े को संगसार करते हुए जिंदा दफन कराया. ऐसी एक नहीं सैकड़ों मिसालें हैं. अपने ही तरह ज़ालिम अल्लाह को मुहम्मद ने क़ायम किया।
साजगारे-कायनात कहता है कि उसे मशगला मंज़ूर होता तो अपने आस-पास ही करता. देखिए कि अल्लाह भागते हुए लोगों को ललकारता है, भागो मत, मेरे ज़ुल्म से भाग न सकोगे, वह अपने बन्दों को जला कर ही अपने ज़ुल्म की आग को ठंडी बतलाता है. उनकी बसी बसी दुन्या को वीरान करके कटे हुए खेत कि तरह कर देता है. हद तो ये है  कि वह कसाइयों की तरह बन्दों के भेजे भी खोल देता है. कहता है शबो रोज़ तस्बीह किया करो, सोचो कि अगर शबो रोज़ तस्बीह करोगे तो मेहनत और मशक्क़त करके अपने बच्चों का पेट कैसे भरोगे?
मुसलमानों! क्या तुम फिर भी ऐसे अल्लाह को पसंद करोगे जिसे फ़ासिक़ मुहम्मद ने गढ़ा हो?

''क्या बावजूद दलायल के उन लोगों ने खुदा के सिवा किसी और को माबूद बना रक्खे हैं - - - और हमने आपसे पहले कोई ऐसा पैगम्बर नहीं भेजा जिसके पास हमने ये वह्यी न भेजी हो कि मेरे सिवा कोई माबूद नहीं, पस मेरी इबादत किया करो. - - - वह जानते हैं कि अल्लाह तअला उनके अगले और पिछले अहवाल को जनता है और बजुज़ उसके जिसके लिए अल्लाह तअला की मर्ज़ी हो और किसी की सिफ़ारिश नहीं कर सकते. और सब अल्लाह तअला की मौजूदगी से डरते। इन काफ़िरों को मअलूम नहीं कि आसमान और जमीन बंद थे, फिर हमने अपनी कुदरत से दोनों को खोल दिया और हमने पानी से हर जानदार चीज़ को बनाया. क्या फिर भी ईमान नहीं लाते ''
सूरह अंबिया -२१ परा १७ -आयत (२१-३०)

उस अल्लाह पर लअनत है जो अपने मुँह से कहता हो कि मैं ही इबादत के लायक हूँ,तुम मेरी इबादत ही किया करो. वह टुच्चा और खुद नुमाई करने वाला अल्लाह तुम्हारा मालिके-कायनात है? तो यह तुम्हारे लिए शर्म की बात होनी चाहिए. जहिले-मुतलक की दलील पर गौर हो कि ''क्या इन काफ़िरों को मअलूम नहीं कि आसमान और जमीन बंद थे, फिर हमने अपनी कुदरत से दोनों को खोल दिया'' जैसे कि मुस्लिमों को इसका इल्म रहा हो। मुसलमान इस खुलासे को पाकर फूले नहीं समाते, उनसे बेहतर काफ़िर हैं जो इनका मज़ाक उड़ाते हैं।
मुसलामानों, सिर्फ ये मुल्ला और मोलवी ही नहीं दूसरे फ़िरके के दुष्ट प्रकृति के लोग भी नहीं चाहते कि तुम बेदार हो सको. तुमको मुसलमान बना कर रखने में ही उनका हित निहित है. तुम अगर जग गए तो उन्हें अच्छे और मेहनती मज़दूर मिस्त्री कहाँ मिलेंगे? अच्छे दस्त कर मुसलमानों में ही ज़्यादा पाए जाते हैं, क्या कभी सोचा है कि ऐसा क्यूं? इस लिए कि जिन बच्चों में पढ़ लिख कर इंजीनियर, डाक्टर, केमिस्ट और साइंटिस्ट बनने कि सलाहियत होती है मगर वह उसकी तालीम से महरूम रहते है, तो हुनर में अपनी सलाहियत का मज़हिरा करते हैं. 
मुल्ला बार बार दोहराते हैं कि कुरआन कहता है''  इल्म हासिल करना है तो चीन तक जाना पड़े तो जाओ'', तो चीन में क्या इस्लामी अल्लाह के मुताबिक तालीम तब थी, या अब है। तुम बेदार हुए तो उनकी सनअतों का क्या होगा जो तुम्हारे लिए वज़ू बनाने और इस्तेंजा पाक (लिंग-शोधन) करने का टोटी दार लोटा बनाते हैं. तहमदें, टोपियाँ, पोशाकें और खिज़ाब वगैरा बनाते हैं. बड़ी दूकानों और सलाटर हाउसों के लिए कर्मीं कहाँ होंगे? हत्ता कि तुम्हारे कुरआन की इशाअत और तबाअत भी उन्हीं के हाथ है.
नवल किशोर प्रेस का नाम सुना है? तुम्हारी सभी दीनी किताबों की बरकतें पचास साल तक उन्हीं के हक में गई है. गैर मुसलामानों की कंज्यूमर सेंटर तुम्हारी इस दीनी जेहालत पर ही क़ायम है, वह तो तुमको क़ायम रखना ही चाहेंगे. 
कुरआन बार बार तुम्हारी बदहाली और काफिरों की खुशहाली की वकालत करता है क्यूंकि तुम्हारी पूँजी तो ऊपर जमा हो रही है.
 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

No comments:

Post a Comment