Friday 1 April 2016

Soorah Taha 20 Q1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह ताहा २० 
पहली किस्त 
बहुत से लक़बों (उपाधियों) के साथ साथ तथा-कथित पैगम्बर मुहम्मद का एक लक़ब उम्मी भी है जिसके के लफ़्ज़ी मानी होते हैं अनपढ़ और जाहिल. ये लफ्ज़ किसी फर्द को नफ़ी (न्यूनता की परिधि)में ले जाता है मगर बात मुहम्मद की है तो बात कुछ और ही हो जाती है. 
इस तरह उनके तुफैल में उम्मी शब्द पवित्र और मुक़द्दस हो जाता है. 
ये इस्लाम का खास्सा है. इस्लामी इस्तेलाह (परिभाषा) में कई लफ्जों आलिमों के साजिशो से अस्ल मानी कुछ के कुछ हो गए हैं जिसे आगे आप देखेंगे. मुहम्मद निरे उम्मी थे, मुतलक जाहिल. क़ुरआन उम्मी, अनपढ़ और अकली तौर पर उजड, मुहम्मद का ही कलाम (वचन) है जिसे उनके गढे हुए अल्लाह का कलाम कहा जाता है. इसको कुराने-हकीम कहा जाता है यानी हिकमत से भरी हुई बातें.
क़ुरआन के बड़े बड़े हयूले बनाए गए, बड़ी बड़ी मर्यादाएं रची गईं, ऊंची ऊंची मीनारें कायम की गईं, इसे विज्ञान का का जामा पहनाया गया, तो कहीं पर रहस्यों का दफीना साबित किया गया है. यह कहीं पर अजमतों का निशान बतलाया गया है तो कहीं पर जन्नत की कुंजी है और हर सूरत में नजात (मुक्ति) का रास्ता, निजामे हयात (जीवन विद्या) तो हर अदना पदना मुसलमान इसे कह कर फूले नहीं समाता, गोकि दिनोरात मुस्लमान इन्हीं क़ुरानी आयतों की गुमराही में मुब्तितिला, पस्पाइयों में समाता चला जा रहा है. आम मुसलमान क़ुरआन को अज़ खुद कभी समझने की कोशिश नहीं करता, उसे हमेशा अपनी माँओं के खसम ओलिमा (धर्म गुरु) ही समझाते हैं.
इस्लाम क्या है? इसकी बरकत क्या है? छोटे से लेकर बड़े तक सारे मुसलमान ही दानिस्ता और गैर दानिस्ता तौर पर इस के झूठे और खोखले फायदे और बरकतों से जुड़े हुए हैं. 
सच पूछिए तो कुछ मुट्ठी भर अय्यार और बेज़मीर मुसलमानों का सब से बड़ा ज़रीया मुआश (भरण पोषण) इस्लाम है जो कि मेहनत कश इसी तबके के अवाम पर मुनहसर करता है यानी बाकी कौमों से बचने के बाद खुद मुसलमान मुसलमानों का इस्तेह्सल (शोषण) करते हैं. 
दर अस्ल यही मज़हब फरोशों का तबका, गरीब मुसलामानों का ख़ुद दोहन करता है और दूसरों से भी इस्तेह्साल कराता है. वह इनको इस्लामी जेहालत के दायरे से बहार ही निकलने नहीं देता.

" ताहा" 
सूरह ताहा २० आयत 1 
यह शब्द निरर्थक है ऐसे शब्दों को क़ुरआनी सन्दर्भ में हुरूफे-मुक़त्तेआत कहते हैं जिसका मतलब अल्लाह ही जाने. ऐसे शब्द सूरह के पहले कभी कभी आते हैं. यहाँ यह एक आयत भी बन गया है अर्थात अल्लाह का एक पैगाम जिसे बन्दे न समजते हुए भी गाया करते हैं. 

"हमने कुरान को आप पर इस लिए नहीं उतरा कि आप तकलीफ उठाएं बल्कि ऐसे शख्स के नसीहत के लए उतारा है कि जो अल्लाह से डरता हो" 
सूरह ताहा २० आयत २-३ 
ऐ अल्लाह ! 
तू अगर वाकई है तो सच बोल तुझे इंसान को डराना भला क्यूं अचछा लगता है ? क्या मज़ा मज़ा आता है कि तेरे नाम से लोग थरथरएं ? गर बन्दे सालेह अमल और इंसानी क़द्रों का पालन करें जिससे कि इंसानियत का हक अदा होता हो तो तेरा क्या नुकसान है? तू इनके लिए दोज्खें तैयार किए बैठा है, तू सबका अल्लाह है या कोई दूसरी शय ? 
तेरा रसूल लोगों पर ज़ुल्म ढाने पर आमादा रहता है. तुम दोनों मिलकर इंसानियत को बेचैन किए हुए हो. 

"क्या आपको मूसा की खबर है? उन्हों ने एक आग देखी, तो घर वालों से कहा तुम ठहरे रहो, मैं ने एक आग देखी है, शायद कोई शोला तुम्हारे लिए ला सकूं और रास्ते का पता मालूम हो सके और जब मूसा आग के पास पहुचे तो अल्लाह ने आवाज़ दी कि ऐ मूसा! तू अपनी जूतियाँ उतार दे. हमने तुझे मुन्तखिब किया है. जो कुछ वह्यी की जा रही है, तू उसे सुन. मैं ही अल्लाह हूँ , मेरे सिवा कोई माबूद नहीं , मेरी ही इबादत किया करो और मेरे नाम की नमाज़ पढ़ा करो. दूसरी बात सुनो बिला शुब्ह क़यामत आएगी. मैं इसको पोशीदा रखना चाहता हूँ, ताकि हर शख्स को उसके किए का बदला मिले." 
सूरह ताहा २० आयत ९-१५ 
जब मुहम्मद को यहूदी मुखबिर से कोई खबर मिलती तो वह अपने कबीलाई माहौल में इसे अल्लाह की वह्यी बना कर पेश करते. मुआमले में कुछ फेर बल कर लेते ताकि बात मुहम्मद की अपनी लगे, वह उसमें नमाज़ ज़कात की बातें बतौर आमेज़िश शामिल कर देते. एक बेवकूफी की बात ज़रूर शामिल करते .... 
देखिए अल्लाह कहता है. 
" दूसरी बात सुनो ! बिला शुब्ह क़यामत ज़रूर आएगी . मैं इसको पोशीदा रखना चाहता हूँ ताकि लोगों को इसका बदला मिल सके." 

"अल्लाह मूसा की लाठी में करामत पेश करता है और गदेली में सफेद दाग जो यदे-बैजा कहा गाया. अल्लाह मूसा को हुक्म देता है कि इन निशानियों को लेके फिरौन के पास जाओ क्यूंकि वह हद से निकल गाया है. 
मूसा कुछ और चाहते हुए अल्लाह से कहते हैं कि वह इनकी ज़बान से लुक्नत (तुतलाहट) हटा दे और मदद के लिए इनके भाई हारून को इनका सहायक बना दे" 
सूरह ताहा २० आयत १५-३६ 
अल्लाह मूसा की दरख्वास्त को मंज़ूर करता है और कहता है,
" हम तो तुम पर और एक बार एहसान कर चुके है कि तुम्हारी माँ को इल्हाम में बतलाया था कि तुम को जल्लादों के हाथों से बचाने के लिए सन्दूक में रखकर दरया में डाल दें. हमने तुम्हारे दिल में डाल दिया था कि तुम हम से रागिब रहो और मेरी निगरानी में परवरिश पाओ. तुम्हारी बहन भागती हुई हमारे पास आई थी कि तुम्हें परवरिश के लिए कुछ करूँ, सो हमने कुछ ऐसी तरकीब किया कि तुम फिर अपनी माँ की परवरिश में चले गए ताकि इनकी आँखें ठंडी हों और तुमने एक शख्स को जान से मार डाला, फिर हमने तुमको ग़मों से नजात दी. और हमने तुमको सख्त मेहनतों में डाला और तुमको तुम्हारे भाई समेत मुअज्ज़ा दिया. जाओ हमारी यद् में सुस्ती मत करो."
सूरह ताहा २० आयत ३७-४२ 
मुहम्मद का जेहनी मेयार इन बातों में निहाँ है कि देखिए
 अल्लाह एहसान भी करता है और 
तरकीब भी भिड़ाता है. 
कितना बड़ा हादसा है जो मुसलामानों के दिल पर काबू किए हुए है. 
वह इन्ही बातों की सुब्ह व् शाम इबादत करते हैं. 
इस कौम की रहनुमाई कोई नहीं कर सकता.
ऐ अल्लाह अगर तू कोई हस्ती है तो हिन्दुस्तान में माओत्ज़े तुंग को भेज. 

मूसा अपने भाई हारुन को लेकर फिरौन के दरबार में पहुँचता है और उससे अपने लोगों को आज़ाद करने की बात करता है. मूसा से फिरौन और उसके जादूगरों से लफ्ज़ी जंग होती है 

"फिर अपने मकर का सामान जमा करना शुरू किया. मूसा ने उन लोगों से फ़रमाया
 " ऐ कमबख्ती मारो अल्लाह तअला पर झूठा इफ्तार मत बांधो, कभी वह तुमको सजा से बिलकुल नेस्त नाबूद न करदे . 
सूरह ताहा २० आयत ६१ 
फिरौनऔर मूसा में जादुई मुकाबले शुरू हो जाते हैं. अल्लाह कभी खुद फिरौन को जादूगर बतलाता है, कभी उसके जादूगरों को. यह तौरेत का मशहूर ज़माना वाक़िया है जिसे कुरआन में मुहम्मद निहायत फूहड़ ढंग से पेश कर रहे हैं . इस नाटक के आखिर में मूसा की लाठी का बड़ा सांप , फिरौन के जादूगरों की रस्सियों के छोटे छोटे साँपों को निंगल जाता है. फिरौन के जादूगर मूसा के क़दमों में गिर कर लिपट जाते हैं और मूसा पर ईमान लाते हैं. मूसा के बतलाए हुए अल्लाह पर ईमान लाते हैं. फिरौन अपने जादूगरों से नाराज़ होकर हुक्म देता है कि इनके हाथ और पैर काट कर इनको पेड़ों पर लटका दिया जाए. "
सूरह ताहा २० आयत ६८-७१ 
यहूदियों की सुनी सुनाई कहानी में मिलावट करके मुहम्मदी अल्लाह दूसरे वाकिआत को आगे बयान करते रहने का वादा करके फिर इस्लामी डफली क़यामत का राग अलापने लगता है..... 
जब सूर फूँका जाएगा और तमाम मुर्दे अपनी अपनी क़ब्रों से बरामद होंगे और आपस में बातें करेंगे . . . 

"जो शख्स अल्लाह और रसूल की पूरी इताअत करेगा, अल्लाह तअला उसे बहिश्तों में दाख़िल कर देगा जिसके नीचे नहरें जारी होंगी, हमेशा हमेशा इसमें रहेंगे , ये बड़ी कामयाबी होगी" 
सूरह ताहा २० आयत ७२-७६ 
ये जुमला मुहम्मदी अल्लाह  का तकिया कल्लम है. 
वर बार उसको दोहराता है. 
मूसा का फिरौन से बनी इस्राईल को आज़ाद कराने, फिर इन्हें दर्याए नील पार कराने और फिरौन को गर्क आब करने, इसके बाद कोहेतूर पर ले जाने और मन व् सलवा बरसाने की बातें दोहराते हुए अल्लाह मूसा को आगाह करता है कि तेरी कौम हद से न गुज़रे .
मूसा कलीम उल्लाह तूर पर अल्लाह के दरबार में वास्ते कलाम पहुँचते हैं तो अल्लाह शिकायत ले बैठता है कि तू जिस अपनी कौम को पीछे छोड़ आया है व एक सामरी के जाल में फँस चुकी है. मूसा रंजीदा हो कर पहाड़ से नीचे उतरता है, कौम पर अपनी खफ्गी का इज़हार करता है . मूसा सामरी से पूछता है 
"बता तेरा मुआमला क्या है? 
वह कहता है कि मैं मुट्ठी भर खाक उठता हूँ और डाल देता हूँ , 
इसनें इसका कोई कमाल छिपा होगा जिससे अवाम मुरीद हो गई होगी?मूसा इसको आगाह करता है कि एक माबूद के सिवा दूसरा कोई काबिले इबादत नहीं. और फिर इसके बाद शुरू हो जाती है तब्लिगे-इस्लाम .
अल्लाह वादा करता है आगे भी ऐसी कहानियाँ सुनाता रहूँगा"
सूरह ताहा २० आयत ७६-१०० 
मुसलमानों! 
तुम जिस कुरआन को वास्ते सवाब पढ़ते हो उसमे तुम्हारा अल्लाह ढंग की कहानी भी नहीं बयान कर पता. बेश कीमत फरमान और एलन तो दूर की बात है. मुहम्मद की आजिज़ करने वाली बकवास को कलाम इलाही समझते हो.



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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