Monday 25 April 2016

Soorah haj 22 Q 2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह हज २२-१७ वाँ पारा 
दूसरी किस्त 

'' जो शख्स इस बात का ख़याल रखता है कि अल्लाह तअला उसकी  आखरत में मदद न करेगा तो उसको चाहिए कि एक रस्सी आसमान तक तान ले और मौकूफ करा दे गौर करना चाहिए कि तदबीर उसकी न गवारी की चीज़ को मौकूफ कर सकती है और हमने कुरान को इसी तरह उतारा है,''
सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-१५-१६)

दिमाद मुहम्मद का, कलाम अल्लाह का, समझ बंदए-मुस्लिम का - - - बड़ा मुश्किल मुक़ाम है कि ऐसी आयतें कुरआन की क्या कहना चाहती हैं? आम मुस्लमान में जब कोई इस किस्म की बाते करता है तो सुनने वाले उसे कठमुल्ला कह कर मुस्कुराते है. मगर अगर उनको बतलाया जाय कि क़ुरआनी अल्लाह ही कठमुल्ला है, ये उसकी बातें हैं, तो कुछ देर के लिए कशमकश में पड़ जाता है? 
मगर वह मुसलमान ही बना रहना पसंद करता है , कुछ बगावत के साथ. भारतीय माहौल में वह जाय तो कहाँ जाय? 
मोमिन का रास्ता उसे टेढ़ा नज़र आता है, जो कि है बहुत सीधा.सितम ये कि बे शऊर अल्लाह कहता है'' और हमने कुरान को इसी तरह उतारा है,'' 

''और अल्लाह तअला उन लोगों को कि ईमान लाए और नेक काम किए ऐसे बागों में दाखिल करेगा जिनके नीचे नहरें जरी होंगी. इनको वहाँ पर सोने के कंगन और मोती पहनाई जाएँगे और पोषक वहाँ रेशम की होगी.''
सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-23)

मुहम्मद को इतनी भी अक्ल नहीं है कि जहाँ सोने के घर द्वार हैं वहाँ सोने के कंगन पहना रहे हैं? वैसे भी सोने का जब तक ख़रीदार न हो उसकी कोई क़द्र व् कीमत नहीं. सोने और रेशम को मर्दों पर हराम करके दुन्या में तो कहीं का न छोड़ा, जहाँ इनकी जीनत थी. महरूम और मकरूज़ कौम. 

''बेशक जो लोग काफ़िर हुए अल्लाह के रस्ते से और मस्जिदे हराम (काबा ) से रोकते हैं जिसको हमने तमाम आदमियों के लिए मुक़र्रर किया है, कि इस में सब बराबर हैं। इसमें रहने वाले भी और बहार से आने वाले भी.''
सूरह हज २२-१७ वाँ पारा (आयत-२५)
कुरआन की यह आयत बहुत ही तवाज्जेह तलब है - - - आज काबे में कोई गैर मुस्लिम दाख़िल नहीं हो सकता है। काबा ही क्या शहर मक्का में भी मुसलामानों के अलावा किसी और के दाखिले पर पाबन्दी है। आज की हकीकत ये है जब कि ये आयतें उस वक्त कि हैं जब मुसलामानों पर काबे में दाखिले पर पाबन्दी थी. 
इसी कुरआन में आगे आप देखेंगे कि अल्लाह कैसे अपनी बातों से फिरता है. इनके ही जवाब में आज़ाद भारत में कई स्थान ऐसे हैं जहाँ मुसलामानों के दाखिले पर पाबन्दी है. 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान


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