लड़ें खामोश आपस में - - -
हम अपनी खामियां खोलें , तुम अपने ऐब को खोलो ,
लड़ें खामोश आपस में , न तुम बोलो न हम बोलें .
शायर का मशविरा कितना मुफीद है कि कहता है
हमारी लड़ाई में कोई शोर व गुल, कोई हंगामा, कोई युफान बद तमीजी न हो.
हम एक दूसरे की बखिया उधेड़ने की बजाए ख़ुद apna आत्मलोकन करें,
ज्यादा आसान होगा कि मुझ से ज्यादा मेरी खामियां और कोई नहीं जनता.
दूसरो की कमियों को जान्ने के लिए हमें प्रयास करना पड़ता है.
बुरा जो देखन मैं चली, मुझसे बुरा न कोई.
कोई नेक बंदा, बन्दों के हक में कुछ सोचता है जिसे लोग पसंद करते हैं,
वह रात व रात शोहरत पा जाता है.
उसके प्रचारक उसके लिए समार्पित हो जाते है.
उसके मरने के बाद उसका धर्म बन जाता है,
यही धर्म एक रोज़ होशियारों का धंधा हो जाता है.
आजकी दुन्या में धर्म ही सब से बड़े अधर्म बने हुए हैं.
मानव धर्म मानवता, वजूद में आ चुका है.
इस बात की कद्र करें और अतीत की अमनीय कडुवाहट को भूल कर,
वर्तमान को नफरत मुक्त कर दें,
तुम्हारे दादा में मेरे दादा को मुर्गा बनाया था,
इस में मेरा क्या कुसूर है ?
हम भारतीय इसी माजी के तकरार में पड़े हुए हैं,
इस आधार हीन बातों को कुछ देश भूल कर आज मानवता के शिखर पर पहुँच गए हैं.
आइए हम भी सुधरें.
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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