Saturday 1 February 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (15)


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (15)

अर्जुन भगवन कृष्ण से पूछ ते हैं कि 
हे जनार्दन ! 
हे केशव ! 
यदि आप बुद्धि को सकाम कर्म से श्रेष्ट समझते हैं 
तो फिर आप मुझे इस घोर युद्ध में क्यों लगाना चाहते हैं ?
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  अध्याय -3- श्लोक -1-
भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
हे निष्पाप अर्जुन ! मैं पहले भी बता चुका हूँ कि 
आत्म साक्षात्कार का प्रयत्न करने वाले दो प्रकार के पुरुष होते हैं 
कुछ इसे ज्ञानयोग द्वारा समझने का प्रयत्न करते हैं 
तो कुछ इसे भक्ति मय सेवा के द्वारा.
न तो कर्म से विमुख होकर कोई कर्म से छुटकारा पा सकता है 
और न केवल संन्यास से सिद्धि प्राप्त की जा सकती है.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  अध्याय -3- श्लोक -3-4 

और क़ुरआन कहता है - - - 
"और जो शख़्स अल्लाह कि राह में लड़ेगा वोह ख़्वाह जान से मारा जाए या ग़ालिब आ जाए तो इस का उजरे अज़ीम देंगे और तुम्हारे पास क्या औचित्य है कि तुम जेहाद न करो अल्लाह कि राह में."
सूरह निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (75)
* धर्मान्धरो !
कैसे तुम्हारी आखें खोली जाएँ कि धरती पर धर्म ही सबसे बड़ा पाप है.
यह युद्ध से शुरू होते हैं और युद्ध पर इसका अंत होता है.
युद्ध सर्व नाश करता है जनता जनार्दन का.
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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