Wednesday 2 June 2010

क़ुरआन सूरह नह्ल १६-





सच का एलान


क़ुरआन मुकम्मल दरोग़, किज़्ब, लग्व, मिथ्य, असत्य और झूट का पुलिंदा है। इसके रचनाकार दर परदा, अल्लाह बने बैठे मुहम्मद सरापा मक्र, अय्यारी, बोग्ज़, क़त्लो-गारत गरी, सियासते-ग़लीज़, दुश्मने इंसानियत और झूटे हैं. इनका तख्लीक़ अल्लाह इंसानों को तनुज्ज़ली के ग़ार में गिराता हुवा इनकी बिरादरी कुरैशियों पर दरूद-सलाम भिजवाता रहेगा, इनके हराम ख़ोर ओलिमा बदले में खुद भी हलुवा पूरी खाते रहेंगे और करोरों मुसलमानों को अफ़ीमी इस्लाम की नींद सुलाए रखेंगे.
मैं एक मोमिन हूँ जो कुछ लिखता हूँ सदाक़त की और ईमान की छलनी से बात को छान कर लिखता हूँ.
मैं क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा मुसम्मी (बमय अलक़ाब) '' हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी'' को लेकर चल रहा हूँ जो हिंदो-पाक में अपना पहला मुक़ाम रखते हैं. मैं उनका एहसान मंद हूँ कि उनसे हमें इतनी क़ीमती धरोहर मिली. मौलाना ने बड़ी ईमान दारी के साथ अरबी तहरीर का बेऐनेही उर्दू में अक्षरक्ष: तर्जुमा किया जोकि बाद के आलिमों को खटका और उन्होंने तर्जुमें में कज अदाई करनी शुरू करदी, करते करते 'कूकुर को धोकर बछिया' बना दिया.
'' हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी'' ने इस्लामी आलिम होने के नाते यह किया है कि ब्रेकेट(मनमानी) के अन्दर अपनी बातें रख रख कर क़ुरआन की मुह्मिलात में माने भर दिए हैं, मुहम्मद की ग्रामर दुरुस्त करने की कोशिश की है, यानी तालिब इल्म अल्लाह और मुहम्मद के उस्ताद बन कर उनके कच्चे कलाम की इस्लाह की है, उनकी मुताशाइरी को शाइरी बनाने की नाकाम कोशिश की है.'' हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी'' ने एक और अहेम काम किया है कि रूहानियत के चले रहे रवायती फार्मूले और शरीयत की बारीकियों का एक चूँ चूँ का मुरब्बा बना कर नाम रखा 'तफसीर' जो कुछ कुरआन के तल्ख़ जुज़ थे मौलाना ने इस मुरब्बे से उसे मीठा कर दिया है. तफसीर हाशिया में लिखी है , वह भी मुख़फ़फ़फ़ यानी short form में जिसे अवाम किया ख़वास का समझना भी मोहल है.
दूसरी बात मैं यह बतला दूँ कि कुरआन के बाद इस्लाम की दूसरी बुनियाद है हदीसें. हदीसें बहुत सी लिखी गई हैं जिन पर कई बार बंदिश भी लगीं मगर ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की हदीसें मुस्तनद मानी गई हैं मैंने इनको ही अपनी तहरीर के लिए मुन्तखिब किया है। ज़ईफ़ कही जाने वाली हदीसों को छुवा भी नहीं. याद रखें कि हदीसं ही इस्लामी इतिहास की बुन्याद हैं अगर इन्हें हटा दिया जाए तो इस्लाम का कोई मुवर्रिख मिलेगा जैसे तौरेत या इंजील के हैं क्यूं कि यह उम्मी का दीन है. ज़ाहिर है मेरी मुखालिफत में वह लोग ही आएँगे जो मुकम्मल झूट कुरआन पर ईमान रखते है और सरापा शर मुहम्मद को ''सललललाहो अलैहे वसल्लम'' कहते हैं. जब कि मैं अरब की आलमी इंसानी तवारीख तौरेत Old Testament को आधा सच और आधा झूट मान कर अपनी बात पर कायम हूँ।




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अब आइए मुकम्मल झूट और सरापा शर कि तरफ . . .



सूरह नह्ल १६- परा १४



''अल्लाह तअला का हुक्म पहुँच चुका है, सो तुम इस में जल्दी मत मचाओ. वह लोगों के शिर्क से पाक और बरतर है. वह फरिश्तों को वह्यी यानी अपना हुक्म भेज कर अपने बन्दों पर जिस पर चाहे नाज़िल फ़रमाते हैं कि ख़बरदार कर दो कि मेरे सिवा कोई लायक़े इबादत नहीं है सो मुझ से डरते रहो. आसमान को ज़मीन को हिकमत से बनाया. वह उनके शिर्क से पाक है. इन्सान को नुतफ़े से बनाया फिर वह यकायक झगड़ने लगा. उसने चौपाए को बनाया, उनमें तुम्हारे जाड़े का सामान है और बहुत से फ़ायदे हैं और उन में से खाते भी हो. और उनकी वजेह से तुम्हारी रौनक़ भी है जब कि शाम के वक़्त लाते हो और जब कि सुब्ह के वक़्त छोड़ देते हो. और वह तुम्हारे बोझ भी ऐसे शहर को ले जाते हैं जहाँ तुम बगैर जान को मेहनत में डाले हुए नहीं पहुँच सकते थे. वाक़ई तुम्हारा रब बड़ी शफ़क़त वाला और रहमत वाला है. और घोड़े और खच्चर और गधे भी पैदा किए ताकि तुम उस पर सवार हो और ज़ीनत के लिए भी.''सूरह नह्ल १६- परा १४ आयत (-)यह कुर आन की आठ आयतें हैं. मुताराज्जिम ने अल्लाह की मदद के लिए काफी रफुगरी की है मगर मुहम्माग के फटे में पेवंद तो नहीं लगा सकता.
-अल्लाह तअला का हुक्म पहुँच चुका है . . . तो कहाँ अटका है?
-सो तुम इस में जल्दी मत मचाओ - - - किसको जल्दी थी, सब तुमको पागल दीवाना समझते थे.
-वह लोगों के शिर्क से पाक और बरतर है. . .क्या है ये शिर्क? अल्लाह के साथ किसी दुसरे को शरीक करना, ? फिर तुम क्यूं शरीक हुए फिरते हो.
- अल्लाह को तुम जैसा फटीचर बन्दा ही मिला था कि तुम पर हुक्मरानी नाज़िल कर दिया.
-सो मुझ से डरते रहो - - - आख़िर अल्लाह खुद से बन्दों का डरता क्यूं है?
-अल्लाह इन्सान को कभी नुतफ़े से बनता है, कभी बजने वाली मिटटी से, कभी, उछलते हुए पानी से तो कभी खून के लोथड़े से? तुहारा अल्लाह है या चुगद?
- इन्सान को अगर अल्लाह नेक नियति से बनता तो झगडे की नौबत ही आती.
- अब इंसान को छोड़ा तो चौपाए खाने पर गए, उनकी सिफ़तें गिनाते है जिस पर अलिमान दीन किताबों के ढेर लगाए हुए हैं, उन पर रिसर्च, उनकी नस्ल अफ़ज़ाइश पर काम, उनका तहफ़फ़ुज़ बल्कि उनका शिकार और उन पर ज़ुल्म देखे जा सकते हैं।



'' और वह ऐसा है कि उसने दरया को मुसख़ख़िर (प्रवाहित) किया ताकि उस में से ताजः ताजः गोश्त खाओ और उसमें से गहना निकालो जिसको तुम पहेनते हो. और तू कश्तियों को देखता है कि वह पानी को चीरती हुई चलती हैं और ताकि तुम इसकी रोज़ी तलाश करो और ताकि तुम शुक्र करो. और उसने ज़मीन पर पहाड़ रख दिए ताकि वह तुम को लेकर डगमगाने लगे. और उसने नहरें और रास्ते बनाए ताकि तुम मंजिले मक़सूद तक पहुँच सको . . . और जो लोग अल्लाह को छोड़ कर इबादत करते हैं वह किसी चीज़ को पैदा नहीं कर सकते और वह ख़ुद ही मख्लूक़ हैं, मुर्दे हैं, जिंदा नहीं और इस की खबर नहीं कि कब उठाए जाएँगे.सूरह नह्ल १६- परा १४ आयत (१४-२१)बगैर तर्जुमा निगारों के सजाए यह कुरआन की उरयाँ इबारत है. मुहम्मद बन्दों को कभी तू कहते हैं कभी तुम, ऐसे ही अल्लाह को. कभी ख़ुद अल्लाह बन कर बात करने लगते हैं तो कभी मुहम्मद बन कर अल्लाह की सिफ़तें बयान करते हैं. कहते हैं ''वह पानी को चीरती हुई चलती हैं और ताकि तुम इसकी रोज़ी तलाश करो और ताकि तुम शुक्र करो'' अगर ओलिमा उनकी रोज़े अव्वल से मदद गार होते तो कुरआन की हालत ठीक ऐसी ही होती ''कहा उनका वो अपने आप समझें या खुदा समझे.'' कठ मुल्ले नादार मुसलमानों को चौदा सौ सालों से ये बतला कर ठग रहे है कि अल्लाह ने ''ज़मीन पर पहाड़ रख दिए ताकि वह तुम को लेकर डगमगाने लगे.'' मुहम्मद इंसान के बनाए नहरें और रास्ते को भी अल्लाह की तामीर गर्दान्ते हैं. भूल जाते हैं कि इन्सान रास्ता भूल कर भटक भी जाता है मगर कहते हैं '' ताकि तुम मंजिले मक़सूद तक पहुँच सको'' मख्लूक़ को मुर्दा कहते हैं, फिर उनको मौत से बे खबर बतलाते हैं. ''वह ख़ुद ही मख्लूक़ हैं, मुर्दे हैं, जिंदा नहीं और इस की खबर नहीं कि कब उठाए जाएँगे''
मुसलामानों की अक्ल उनके अकीदे के आगे खड़ी ज़िन्दगी की भीख माँग रही है मगर अंधी अकीदत अंधे कानून से ज़्यादा अंधी होती है उसको तो मौत ही जगा सकती है, मगर मुसलमानों! तब तक बहुत देर हो चुकी होगी. जागो.
मुहम्मद जब अपना कुरआन लोगों के सामने रखते, लेहाज़न लोग सुन भी लेते, तो बगैर लिहाज़ के कह देते
'' क्या रक्खा है इन बातों में ? सब सुने सुनाए क़िस्से हैं जिनकी कोई सनद नहीं'' ऐसे लोगों को मुहम्मद मुनकिर (यानी इंकार करने वाला) कहते हैं और उन्हें वह क़यामत के दिन से भयभीत करते हैं. एक ख़ाका भी खीचते हैं क़यामत के दिन का कि काफ़िरो-मुनकिर को किस तरह अल्लाह जहन्नम रसीदा करता है और ईमान लाने वालों को किस एहतेमाम से जन्नत में दाखिल करता है. काफिरों मुशरिकों के लिए . . . '' सो जहन्नम के दवाज़े में दाखिल हो जाओ, इसमें हमेशा हमेशा को रहो, ग़रज़ तकब्बुर करने वालों का बुरा ठिकाना है.'' और मुस्लिमों के लिए ''फ़रिश्ते कहते हैं . . .अस्सलाम अलैकुम! तुम जन्नत में चले जाना अपने आमाल के सबब.''सूरह नह्ल १६- परा १४ आयत (२२-३४)इतना रोचक प्लाट, और इतनी फूहड़ ड्रामा निगारी.
मुशरिकीन ऐन मुहम्मद का कौल दोहराते हुए पूछते हैं ''अगर अल्लाह तअला को मंज़ूर होता तो उसके सिवा किसी चीज़ की हम इबादत करते और हमारे बाप दादा और हम बगैर उसके हुक्म के किसी चीज़ को हराम कह सकते'' इस पर मुहम्मद कोई माक़ूल जवाब देकर उनको गुमराह लोग कहते हैं और बातें बनाते हैं कि माज़ी में भी ऐसी ही बातें हुई हैं कि पैगम्बर झुटलाए गए हैं . . . जैसी बातें करने लगे.सूरह नह्ल १६- परा १४ आयत (35-३७)



''और लोग बड़े ज़ोर लगा लगा कर अल्लाह कि क़समें खाते हैं कि जो मर जाता है अल्लाह उसको जिंदा करेगा, क्यों नहीं? इस वादे को तो उस ने अपने ऊपर लाज़िम कर रक्खा है, लेकिन अक्सर लोग यक़ीन नहीं करते. . . . हम जिस चीज़ को चाहते हैं, पस इस से हमारा इतना ही कहना होता है कि तू हो जा, पस वह हो जाती है.''सूरह नह्ल १६- परा १४ आयत (३८+४०)


यह सूरह मक्का की है जब मुहम्मद खुद राह चलते लोगों से क़समें खा खा कर और बड़े ज़ोर लगा लगा कर लोगों को इस बात का यक़ीन दिलाते कि तुम मरने के बाद दोबारा क़यामत के दिन ज़िन्दा किए जाओगे और लोग इनका मज़ाक उड़ा कर आगे बढ़ जाते. मुहम्मद ने अल्लाह को कारसाज़े-कायनात से एक ज़िम्मेदार मुलाज़िम बना दिया है. उनका अल्लाह इतनी आसानी से जिस काम को चाहता है इशारे से कर सकता है तो अपने प्यारे नबी को क्यूँ अज़ाब में मुब्तिला किए हुए है कि लोगों को इस्लाम पर ईमान लाने के लिए जेहाद करने का हुक्म देता है? यह बात तमाम दुन्या के समझ में आती है मगर नहीं आती तो ज़ीशान और आलीशानों के।



''४१ से ५५'' आयत तक मुहम्मद ने अपने दीवान में मोहमिल बका है जिसको ज़िक्र करना भी मुहाल है। उसके बाद कहते हैं



''और ये लोग हमारी दी हुई चीज़ों में से उन का हिस्सा लगते हैं जिन के मुताललिक़ इन को इल्म भी नहीं. क़सम है ख़ुदा की तुम्हारी इन इफतरा परदाज़यों की पूछ ताछ ज़रूर होगी.सूरह नह्ल १६- परा १४ आयत (५६)मुहम्मद ज़मीन पर पूजे जाने वाले बुत लात, मनात, उज़ज़ा वगैरा पर चढ़ाए जाने वाले चढ़ावे को देख कर ललचा रहे हैं कि एक हवा का बुत बना कर सब का बंटा धार किया जा सकता है और इन चढ़ावों पर उनका क़ब्ज़ा हो सकता है, वह अपने इस मंसूबे में कामयाब भी हैं.एक अल्लाह वाहिद का दबदबा भी क़ायम हो गया है और इन्सान तो पैदायशी मुशरिक है, सो वह बना हुवा है. मुस्लमान आज भी पीरों के मज़ारों के पुजारी हैं,मगर हिदू बालाजी और तिरुपति मंदिरों के श्रधालुओं का मज़ाक उड़ाते हुए.



''और अल्लाह के लिए बेटियां तजवीज़ करते हैं सुबहान अल्लाह!और अपने लिए चहीती चीजें.''सूरह नह्ल १६- परा १४ आयत (५७)मुहम्मद भटक कर गालिबन ईसाई अकीदत पर गए हैं जो कि खुदा के मासूम फरिश्तों को मर्द और औरत से बाला तर समझते हैं. उनके आकृति में पर, पिश्तान, लिंग आदि होते हैं मगर पवित्र आकर्षण के साथ. मुहम्मद को वह लडकियाँ लगती हैं, वह मानते हैं कि ऐसा ईसाइयों ने खुदा के लिए चुना. और कहते है खुद अपना लिए चाहीती चीज़ यानि बेटा.मूर्ति पूजकों के साथ साथ ये मुहम्मद का ईसाइयों पर भी हमला है.



''और जब इन में से किसी को औरत की ख़बर दी जाए तो सारे दिन उस का चेहरा बे रौनक रहे और वह दिल ही दिल में घुटता रहे, जिस चीज़ की उसको खबर दी गई है इसकी आर से लोगों से छुपा छुपा फिरे कि क्या इसे ज़िल्लत पर लिए रहे या उसको मिटटी में गाड़ दे. खूब सुन लो उन की ये तजवीज़ बहुत बुरी है.''सूरह नह्ल १६- परा १४ आयत (५८-५९)
मुल्लाओं की उड़ाई हुई झूटी हवा है कि रसूल को बेटियों से ज़्यादः प्यार हुवा करता था. यह आयत कह रही है कि वह बेटी पैदा होने को औरत की पैदा होने की खबर कहते हैं. बेशक उस वक़्त क़बीलाई दस्तूर में अपनी औलाद को मार देना कोई जुर्म था बेटी हो या बेटा. आज भी भ्रूण हत्या हो रही है. मुहम्मद से पहले अरब में औरतों को इतनी आज़ादी थी कि आज भी जितना मुहज्ज़ब दुन्या को मयस्सर नहीं. इस मौज़ू पर फिर कभी.

6 comments:

  1. चाचा अलबेदार की नकल पे ला रहे हो अपने मामा का अनुवाद, अभी समय है आओ

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    विचार करें कि मुहम्मद सल्ल. कल्कि व अंतिम अवतार और बैद्ध मैत्रे, अंतिम ऋषि
    (इसाई) यहूदीयों के भी आखरी संदेष्‍टा? हैं या यह big Game against Islam है?
    antimawtar.blogspot.com (Rank-2 Blog) डायरेक्‍ट लिंक

    अल्‍लाह का चैलेंज पूरी मानव-जाति को

    अल्‍लाह का चैलेंज है कि कुरआन में कोई रद्दोबदल नहीं कर सकता

    अल्‍लाह का चैलेंजः कुरआन में विरोधाभास नहीं

    अल्‍लाह का चैलेंजः आसमानी पुस्‍तक केवल चार

    अल्‍लाह का चैलेंज वैज्ञानिकों को सृष्टि रचना बारे में

    अल्‍लाह का चैलेंज: यहूदियों (इसराईलियों) को कभी शांति नहीं मिलेगी

    छ अल्लाह के चैलेंज सहित अनेक इस्‍लामिक पुस्‍तकें
    islaminhindi.blogspot.com (Rank-2 Blog)
    डायरेक्‍ट लिंक

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  2. कमाल है, क्या क्या किया गया है इस्लाम के नाम पर... व्यापक शोध किया है आपने...

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  3. इस्लाम ने सब से ज्यादा नुक्सान मुसलामानों को ही पहुंचाया है ... तर्क और विवेक का ढक्कन कभी खुलने ही न दिया ... आपका विश्लेषण वाकई ज़बरदस्त है ... भाषा थोड़ा और तार्किक बनाएँ तो बेहतर होगा ...
    आपके शोध पर दो लाइने याद आ गयीं

    "अँधेरे आये थे मांगने उजालों की भीख
    हम अपना घर न जलाते तो भला क्या करते"

    निर्बाध और निर्भीक अँधेरे से लड़ते रहिये ... हमारी शुभकामना है

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  4. मैं एक मोमिन हूँ जो कुछ लिखता हूँ सदाक़त की और ईमान की छलनी से बात को छान करलिखता हूँ.
    उस चलनी से छानने के बाद बचे हुए कूड़े को तू यहाँ फेंक रहा है. ईमान तो तेरे हाथ से कब का रुखसत हो चुका है.
    बेशक उसवक़्त क़बीलाई दस्तूर में अपनी औलाद को मार देना कोई जुर्म न था बेटी हो या बेटा
    इसे कहते हैं कमीनी सोच. तू औलाद को मार देने के कबीलाई दस्तूर को सही ठहरा रहा है और नबी के सुधार को गलत कह रहा है. धीरे धीरे तेरी असलियत सामने आ रही है, मोमिन के भेस में छुपे शैतान.

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  5. मोमिन जी,
    हदिसो के बारे में भ्रांति निवारण के लिए शुक्रिया।
    हमें विश्वास था आप प्रामाणिक किताबों से ही उद्धत कर रहे है।
    आपका तरजुमा और विश्लेषण सफल है। उस सफलता के गवाह है वे कमेंट जो किरानवी और जीशान जैसे लोग उलजलूल बयानात से दे रहे है।
    आपके पोस्टों की इस सफलता के लिए बधाई!!

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  6. ये क्या पागलपन है एक तो जाकिर नाइक जिसके दिमाग में भूसा भरा है और ये दूसरा असरफअली है जिनका भी कोई स्क्रू ढीला लगता है एक को संस्कृत ठीक से नहीं आती और एक को अरबी का मतलब करना नहीं आता दोनों ही अपने अपने नाम का प्रचार करने में लगे है में कोई इस्लाम या मुसलमानों का विरोधी नहीं हूँ लेकिन ऐसे लोगो का विरोधी हूँ जो की किसी भी धर्म ग्रन्थ का अपमान करके अपने आप को बड़ा चतुर और समजदार बताते है इन लोगो की आदत होती है ये किसी भी धर्म ग्रन्थ का अध्ययन नहीं किया करते लेकिन ये धर्म ग्रन्थ इस लिए पढ़ते है की उसमे से कुछ ऐसा मसाले दार मतलब निकला जाये कि दुनिया अचंभित हो जाये ये सब दया के पात्र है और इनका साथ देनेवाले विकृत मनो विचार वाले कहलायेंगे (अगर जाकिर नाइक को संस्कृत और असरफ को अरबी उर्दू सीखनी है तो में सिखाने के लिया तैयार हु बिलकुल निःशुल्क ) चाणक्य के अनुसार मूर्खो से कोई भी सम्बन्ध रखने वाला अंत में संकट ही पाता है तो असरफ अली और जाकिर नाइक ये दोनों को एक दुसरे पर कीचड़ उछालना है तो उछाले लेकिन इनके पास खड़े रह कर अपने ऊपर भी किचल उचालेंगा ये तय है तो इनसे दूर ही रहा जाये यही बुध्धिमानी है असरफ अली मुस्लिम हो कर मुस्लिम के उपास्यो को निचा दिखा रहा है तो क्या ये दुसरे धमो की इज्जत करेगा ? इनसे पूछो की फिर किसकी उपासना की जाये? क्या तुम लोगो की ? इससे पूछना भी बेकार होगा की, तुम्हारे स्वामी रामकृष्ण परमहंस के बारेमे क्या विचार है? या तो गरीब नवाज़ के बारे में क्या विचार है? विवेकानंद के बारेमे या तो सूफी संत निजामुदीन के बारेमे? कबीर, तुलसीदास, मीराबाई के बारे में ?क्यों की ये दोनों बकवास ही करने वाले है. मैं तो हिन्दू, जैन, बुद्ध, सिख, इसाई और सबको इनसे दूर ही रहने की सलाह देता हूँ . - श्री दासअवतार

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