Wednesday 16 June 2010

क़ुरआन सूरह बनी इस्राईल -१७





(दूसरी किस्त)
सूरह बनी इस्राईल



नाम से लगता है कि इस सूरह में बनी इस्राईल यानी याक़ूब की बारह औलादों की दास्तान होंगी मगर ऐसा कुछ भी नहीं, वही लोगों से जोड़ तोड़, अल्लाह की क़यामती धमकियाँ ही हैं. गीता की तरह अगर हम कुरआन सार निकलना चाहें तो वो ऐसे होगा - - -'' अवाम को क़यामत आने के यक़ीन में लाकर, दोज़ख का खौफ़ और जम्मत की लालच पैदा करना, फिर उसके बाद मन मानी तौर पर उनको हाँकना''क़यामत के उन्वान को लेकर मुहम्मद जितना बोले हैं उतना दुन्या में शायद कोई किसी उन्वान पर बोला हो. इस्लाम को अपना लेने के बाद मुसलमानों मे एक वाहियात इनफ्रादियत गई है कि मुहम्मद की इस 'बड़ बड़' को ज़ुबानी रट लेने की, जिसे हफ़िज़ा कहा जाता है. लाखों ज़िंदगियाँ इस ग़ैर तामीरी काम में लग कर अपनी फ़ितरी ज़िन्दगी से ना आशना और महरूम रह जाती हैं और दुन्या के लिए कोई रचनात्मक काम नहीं कर पातीं. अरब इस हाफ़िज़े के बेसूद काम को लगभग भूल चुके हैं और तमाम हिंदो-पाक के मुसलमानों में रायज, यह रवायती खुराफात अभी बाक़ी है. वह मुहम्मद को सिर्फ इतना मानते हैं कि उन्हों ने कुफ्र और शिर्क को ख़त्म करके वहदानियत (एक ईश्वर वाद ) का पैगाम दिया. मुहम्मद वहाँ आक़ाए दो जहाँ नहीं हैं. यहाँ के मुस्लमान उनको गुमराह और वहाबी कहते हैं.
तुर्की में इन्केलाब आया, कमाल पाशा ने तमाम कट्टर पंथियों के मुँह में लगाम और नाक में नकेल डाल दीं, जिन्हों ने दीन के हक़ में अपनी जानें कुरबान करना चाहा उनको लुक्माए अजल हो जाने दिया, नतीजतन आज योरोप में अकेला मुस्लिम मुल्क तुर्की है जो यरोप के शाने बशाने चल रहा है. कमाल पाशा ने बड़ा काम ये किया की इस्लाम को अरबी जुबान से निकल कर टर्किश में कर दिया जिसके बेहतरीन नतायज निकले, कसौटी पर चढ़ गया कुरआन. कोई टर्किश हाफ़िज़ ढूंढें से नहीं मिलेगा टर्की में. काश अपने मुल्क भारत में ऐसा हो सके, कौम का आधा इलाज यूँ ही हो जाए.
हमारे मुल्क का बड़ा सानेहा ये मज़हब और धर्म है, इसमें मुदाखलत हिदू भेड़ें चाहेगी और इस्लामी भेड़ें, इनके कसाई इनके नजात दिहन्दा बन कर इनको ज़िबह करते रहेंग. हमारे हुक्मरान अवाम की नहीं अवाम की 'ज़ेहनी पस्ती' की हिफ़ाज़त करते हैं. मुसलमान को कट्टर मुसलमान और हिन्दू को कट्टर हिन्दू बना कर इनसे इंसानियत का जनाज़ा ढुलवाते हैं.



***************************************************************************


चलिए देखें कि अल्लाह तअला क्या फरमाता है - - -
''जिस शख्स को अल्लाह तअला ने हराम फ़रमाया है उसको क़त्ल मत करो, हाँ मगर हक़ पर और जो शख्स हक़ क़त्ल किया जावे तो हम ने इस के वारिस को अख्त्यार दिया है सो इस के क़त्ल के बारे में हद से तजावुज़ करना चाहिए वह शख्स तरफ़दारी के काबिल है.''सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (३३)मुहम्मद ने कुरआन नाजिल करते वक़्त ख्वाबों-ख़याल में ना सोचा होगा कि इंसानी इल्म और अक्ल इर्तेकई मंजिलें तय करती हुई इक्कीसवीं सदी में पहुँच जाएंगी. वह खुद से हजारों साल पहले इब्राहीमी दौर में अपनी उम्मत को ले जाना चाहते थे। पूरे कुरआन में तौरेती निज़ाम की तरह अपनी अलग ही लगाम बनाई. वह भी गैर वाज़ेह. जान के बदले जान पर बना क़ानून है. कलाम से कोई बात साफ नहीं होती जिसे मौलानाओं ने उनके फ़ेवर में कर दिया है. साफ कलाम करने में अल्लाह की क्या मजबूरी हो सकती थी, मगर हाँ उम्मी मुहम्मद की मजबूरी ज़रूर थी। सितम ये कि मुसलमान इसे उनकी ज़ुबान नहीं मानते हैं बल्कि समझते हैं कि अल्लाह ऐसी ही ना समझ में आने वाली भाषा बोलता रहा होगा. फ़ख्रिया कहते हैं अल्लाह का कलाम समझ पाना बच्चों का खेल नहीं।


''यतीम के मॉल को मत खाओ, अपने अहद पूरा करो. पूरा पूरा नापो तौलो. ज़मीन पर इतराते हुए मत चल क्यूँकि तू ज़मीन फाड़ सकता है और पहाड़ों की लम्बाई को पहुँच सकता है. ये सब काम तेरे रब के नजदीक ना पसंद हैं. यह बातें हिकमत की हैं जो अल्लाह तअला ने वाहियी के ज़रीया आप को भेजा है. तो क्या तुम्हारे रब ने तुम को तो बेटों के साथ ख़ास किया है और खुद फ़रिश्तों को बेटियाँ बनाई. बेशक तुम बड़ी बात कहते हो. आप फरमा दीजिए कि अगर उस के साथ और माबूद भी होते, जैसा कि ये लोग कहते हैं, तो इस हालत में उन्हों ने अर्श वाले तक का रास्ता ढूँढ लिया होता - - -सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (३४-४२)मुहम्मद जिन छोटी छोटी बातों को अल्लाह से कहलाते हैं, पढने वाला समझेगा कि उस वक़्त अरब को इन की तमाज़त ना रही होगी मगर हो सकता है अनपढ़ पैग़म्बर के लिए यह बाते नई रही हों. आज इन्सान कुरआन की बातों के बदले में ज़मीन फाड़ भी रहा है और पहाड़ों की बुलंदियाँ भी उबूर कर रहा है. अगर यह बात आज मुसलमानों के समझ में आती है तो कुरआन की हकीकत क्यूँ नहीं? कोई माबूद तो नहीं, मगर हाँ इन्सान ने अर्श पर सीढ़ियाँ लगा दी हैं, अल्लाह वह क़ुदरत के अनोखे निज़ाम की शक्ल में पा भी रहा है।


''और जब आप कुरआन पढ़ते हैं तो हम आप के और जो ईमान नहीं रखते उनके दरमियान एक पर्दा हायल कर देते हैं और हम उनके दिलों पर हिजाब डाल देते हैं, इस लिए कि वह इसको समझें और उनके कानों में डाट दे देते हैं. जब आप कुरआन में अपने रब का ज़िक्र करते हैं तो लोग नफ़रत करते हुए पुश्त फेरकर चल देते हैं,''सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (46)धन्य हैं वह लोग जो ऐसी कुरआन को नाचीज़ समझते थे और अफ़सोस होता है आज के लोग उसी इबारत की इबादत बना कर दिलो-दिमाग में बसाते हैं. जंगों की मार , माले-ग़नीमत की लूट और बेज़मीर ओलिमा की क़ल्मों की नापाक बरकत है जो मुसलमानों पर आज अज़ाब की शक्ल में तारी है। देखिए कि मुहम्मद का खुदाए बरतर कितने कमतर काम करता है, कहीं इंसानों के कानों में डाट ठोकता है तो कभी उनके आँखों के सामने पर्दा हायल करता है. क्या आपको अपने समझदार बुजुर्गों की तरह ही इन बातों से नफ़रत नहीं होती?


''और कुफ्फर की कोई ऐसी बस्ती नहीं कि जिसको हम क़यामत से पहले हलाक ना करदें.या इसको अज़ाब सख्त ना देदें, ये किताब में लखी हुई है. और हमको खास मुअज्ज़ात के भेजने से मना किया गया है कि पहले लोग इस का मजाक उड़ा चुके हैं''सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (५७-५९)मिट तो सभी जाएँगे, क्या काफ़िर क्या मुस्लिम मगर नआकबत अंदेश (अपरिणामदर्शी) मुहम्मदी अल्लाह ! तेरी इस कुरआन की वजेह से मुसलमान ज़वाल बहुत पहले होगा और काफ़िरों का वजूद बाद में. तेरा मज़ाक पहले भी उड़ा करता था और आज तो पूरी दुन्या में उड़ रहा है। तूने मुसलमानों को जेहाद की तालीम देकर वह जुर्म किया है कि आने वाले दिनों में कोई तेरा नाम लेवा नहीं रह जाएगा. काश कि इन मुसलमानों की आँखें इस से खुल जाएँ कि वह तर्क इस्लाम करके सिर्फ मोमिन हो जाएँ, जिसकी ज़रुरत और लोगों को भी है। मोमिन यानी फितरी ईमान वाले.


जिन आयात को मैं अपनी तहरीर में नहीं लेता हूँ वह ऐसी होती हैं कि मुहम्मद उसमे अपनी बात को दोहराते रहते हैं। अक्सर अल्लाह अपनी तारीफें और हिकमत दोहराता रहता है। शैतान और आदम की कहानी रूप बदल बदल कर बार बार आती ही रहती है। अल्लाह कहता है - - -''अल्लाह अपने इल्म से तमाम लोगों को घेरे हुए है. हम ने जो तमाशा आप को दिखलाया था''
गोया अल्लाह को और कोई काम नहीं है इंसानों की घेरा बंदी के सिवा. यह तमाशे मुहम्मद के गढ़े हुए किस्से-मेराज की तरफ है.''जिस पेड़ की कुरआन में मज़म्मत की गई है. हम तो इनको डराते रहते हैं मगर इनकी सरकशी बढती ही जाती है.''अल्लाह अजब है अपने बनाए हुए दरख्त की मज़म्मत करता है. उसने बन्दों को क्यूं निडर बनाया कि समझदार है कि बात की माकूलियत को समझता है , उसको डरना नहीं पड़ रहा है. इन्सान उसका बन्दा होते हुए भी उसके साथ सर कशी करता है?


''तुम्हारा रब ऐसा है जो तुम्हारे लिए कश्ती को दरया में ले जाता है कि तुम उस में अपनी खूराक तलाश करो, फिर जब तुमको दरया में कोई तकलीफ़ पहुँचती है तो सिवाए उसके कोई दूसरा याद नहीं आता कि तुम जिनकी इबादत करते थे। फिर जब खुश्की में आते हो तो उसको भूल जाते हो, डरते नहीं कि वह तुम को ज़मीन में धँसा दे या फिर तेज़ हवा कंकर पत्थर बरसाने लगे. डरते नहीं कि फिर तुम को दरया में ले जाए और कोई तूफ़ान आए और तुम्हारे कुफ़्र के चलते तुम को डुबो दे.''


यह है कुरआन की बेसनद नहीं बल्कि बेसबब बातें जिनको एक झक्की बका करता था कि क़लम की ताक़त से यह आयाते-कुरानी बन गई हैं. वाकई काबिले नफ़रत हैं कुरआन की बातें अह्ल्र मक्का ठीक ही कहते थे.एक बार फिर क़यामत का खाका पेश करते हुए अल्लाह आमल नामा को उठाता है.
अल्लाह अपने रसूल से कहता है - - -
''अगर हमने आप को साबित क़दम बनाया होता तो आप उनकी तरफ़ कुछ कुछ झुकने के क़रीब जा पहुचते तो हम आप को हालते-हयात में या बअद मौत दोहरा मज़ा चखाते फिर आपको हमारे मुकाबले में कोई मददगार भी मिलता - - -''

मुहम्मद का जेहनी मकर उलटी चाल भी चलता है. लोगों को डराते डराते खुद भी बड़ी नादानी से अल्लाह का शिकार होने से बच गए.'' रात ढलने के बाद रात के अँधेरे तक नमाज़ अदा कीजिए ,सुब्ह की नमाज़ भी कि फरिश्तों के आने वक़्त होता है और रात के हिस्से में भी तहज्जुद अदा कीजिए, उम्मीद है आपका रब आप को मुकाम महमूद (आलिमों का गढ़ा हुवा ''तफसीरी चूँ चूँ का मुरब्बा'' के तहत कोई मुकाम) में जगह देगा .''सूरह बनी इस्राईल -१७, पारा-१५ आयत (६०-८२)अपने नबी को देखें कि नमाज़ों की भरमार से सराबोर हो रहे है ताकि लोग उनकी पैरवी करें। मुस्लमान इसी इबादत में रह गए मस्जिदों के घेरे में, ईसाई, यहूदी भी इन्ही बंधनों में थे कि बंधन तोड़ कर खलाओं में तैर रहे हैं, मुसलमान उनकी टेकनिक के मोहताज बन कर रह गए हैं। मुहम्मद ने इनके सरों में उस दुन्या का तसव्वुर जो भर दिया है.



मेरे भोले भले मुसलमान भाइयो ! जागो ! इक्कीसवीं सदी की सुब्ह हुए दस साल होने को हैं, यह ज़ालिम टोपी और दाढ़ी वाले मुल्ला तुम को इस्लामी अफ़ीम खिला कर सुलाए हुए हैं. सब कुछ यहीं मौजूद ज़िन्दगी में हैं, इसके बाद कुछ भी नहीं है, तुम्हारे बाद रह जाएगी तुम्हारी विरासत, कि अपने नस्लों को क्या दिया है. कम से कम उनको इल्म जदीद तो दो ही, कि तुमको याद करें। इल्म जदीद पा जाने के बाद तो यह सब कुछ हासिल कर लेंगे। मगर हाँ! इन्हें इन ज़हरीले ओलिमा से बचाओ.


जीम। मोमिन ''निसारुल ईमान''





**************************************************************

12 comments:

  1. कितनी खूबसूरत बातें बता रहा है कुरआन :
    "जिस शख्स को अल्लाह तअला ने हराम फ़रमाया है उसको क़त्लमत करो, हाँ मगर हक़ पर और जो शख्स न हक़ क़त्ल किया जावेतो हम ने इस के वारिस को अख्त्यार दिया है"
    "यतीम के मॉल को मत खाओ, अपने अहद पूरा करो. पूरा पूरानापो तौलो. ज़मीन पर इतराते हुए मत चल क्यूँकि तू न ज़मीनफाड़ सकता है और न पहाड़ों की लम्बाई को पहुँच सकता है. येसब काम तेरे रब के नजदीक ना पसंद हैं."
    ये बातें उसी को नापसंद होंगी जो किसी को नाहक क़त्ल कर चूका हो या यतीम का माल खा रहा हो. या नापतोल में डंडी मारता हो. और शायद तू ऐसे ही लोगों में शामिल है. तेरे जैसे लोगों के लिए ही कुरआन कह रहा है
    "(ये) वह किताब है। जिस में कुछ भी शक नहीं (ये) परहेज़गारों की रहनुमा है." (2.2)
    यह किताब हराम माल खाने वालों को रास्ता नहीं दिखाती. उनकी आँखों पर पट्टी बाँध देती है.

    ReplyDelete
  2. लगे रहो भाई....आंखे खोल देने वाला लिखते हो.....पर क्या कुछ पागल सांड यहां घूमने आते हैं वो नहीं दिखे आज ....चलो मैं तो निकल लेता हूं

    ReplyDelete
  3. "यहाँ के मुस्लमान उनको गुमराह औरवहाबी कहते हैं."
    दुनिया के सारे मुस्लिम आतंकवादी वहाबी मसलक से ही निकल रहे हैं.

    ReplyDelete
  4. चाचा अलबेदार की नकल पे ला रहे हो अपने मामा का अनुवाद, शब्‍द xgalatx तक तुम्‍हें ठीक (ग़लत ghalat) से नहीं पता, चले हो अल्‍लाह कुरआन की बातें करने, जरा ध्‍यान से पढो और पढवाओ

    Quran:
    और व्यभिचार के निकट न जाओ। वह एक अश्‍लील कर्म और बुरा मार्ग है॥17:32॥
    किसी जीव की हत्या न करो, जिसे (मारना) अल्लाह ने हराम ठहराया है। यह और बात है कि हक़ (न्याय) का तक़ाज़ा यही हो। और जिसकी अन्यायपूर्वक हत्या की गई हो, उसके उत्तराधिकारी को हमने अधिकार दिया है (कि वह हत्यारे से बदला ले सकता है), किन्तु वह हत्या के विषय में सीमा का उल्लंघन न करे। निश्‍चय ही उसकी सहायता की जाएगी॥17:33॥

    ऐ मोमिन के मर्द आओ अभी समय है
    signature:
    विचार करें कि मुहम्मद सल्ल. कल्कि व अंतिम अवतार और बैद्ध मैत्रे, अंतिम ऋषि
    (इसाई) यहूदीयों के भी आखरी संदेष्‍टा? हैं या यह big Game against Islam है?
    antimawtar.blogspot.com (Rank-2 Blog) डायरेक्‍ट लिंक

    अल्‍लाह का चैलेंज पूरी मानव-जाति को

    अल्‍लाह का चैलेंज है कि कुरआन में कोई रद्दोबदल नहीं कर सकता

    अल्‍लाह का चैलेंजः कुरआन में विरोधाभास नहीं

    अल्‍लाह का चैलेंजः आसमानी पुस्‍तक केवल चार

    अल्‍लाह का चैलेंज वैज्ञानिकों को सृष्टि रचना बारे में

    अल्‍लाह का चैलेंज: यहूदियों (इसराईलियों) को कभी शांति नहीं मिलेगी

    छ अल्लाह के चैलेंज सहित अनेक इस्‍लामिक पुस्‍तकें
    islaminhindi.blogspot.com (Rank-2 Blog)
    डायरेक्‍ट लिंक

    ReplyDelete
  5. '' अवाम को क़यामत आने के यक़ीन में लाकर, दोज़ख का खौफ़ और जम्मत की लालच पैदा करना, फिर उसके बाद मन मानी तौर पर उनको हाँकना''

    Shbaash MOMIN

    ReplyDelete
  6. @मिहिरभोज
    लगे रहो भाई....आंखे खोल देने वाला लिखते हो.....पर क्या कुछ पागल सांड यहां घूमने आते हैं वो नहीं दिखे आज ....चलो मैं तो निकल लेता हूं

    Shbaash

    ReplyDelete
  7. मेरे भोले भले मुसलमान भाइयो ! जागो ! इक्कीसवीं सदी की सुब्ह हुए दस साल होने को हैं, यह ज़ालिम टोपी और दाढ़ी वाले मुल्ला तुम को इस्लामी अफ़ीम खिला कर सुलाए हुए हैं. सब कुछ यहीं मौजूद ज़िन्दगी में हैं, इसके बाद कुछ भी नहीं है, तुम्हारे बाद रह जाएगी तुम्हारी विरासत, कि अपने नस्लों को क्या दिया है. कम से कम उनको इल्म जदीद तो दो ही, कि तुमको याद करें। इल्म जदीद पा जाने के बाद तो यह सब कुछ हासिल कर लेंगे। मगर हाँ! इन्हें इन ज़हरीले ओलिमा से बचाओ.

    ReplyDelete
  8. काश अपने मुल्क भारत में ऐसा (टर्की) हो सके, कौम का आधा इलाज यूँ ही हो जाए.
    हमारे मुल्क का बड़ा सानेहा ये मज़हब और धर्म है, इसमें मुदाखलत न हिदू भेड़ें चाहेगी और न इस्लामी भेड़ें, इनके कसाई इनके नजात दिहन्दा बन कर इनको ज़िबह करते रहेंगे. हमारे हुक्मरान अवाम की नहीं, अवाम की 'ज़ेहनी पस्ती' की हिफ़ाज़त करते हैं. मुसलमान को कट्टर मुसलमान और हिन्दू को कट्टर हिन्दू बना कर इनसे इंसानियत का जनाज़ा ढुलवाते हैं.
    मुहम्मद जिन छोटी छोटी बातों को अल्लाह से कहलाते हैं, पढने वाला समझेगा कि उस वक़्त अरब को इन की तमाज़त ना रही होगी मगर हो सकता है अनपढ़ पैग़म्बर के लिए यह बाते नई रही हों. आज इन्सान कुरआन की बातों के बदले में ज़मीन फाड़ भी रहा है और पहाड़ों की बुलंदियाँ भी उबूर कर रहा है. अगर यह बात आज मुसलमानों के समझ में आती है तो, कुरआन की हकीकत क्यूँ नहीं? कोई माबूद तो नहीं, मगर हाँ इन्सान ने अर्श पर सीढ़ियाँ लगा दी हैं, अल्लाह वह क़ुदरत के अनोखे निज़ाम की शक्ल में पा भी रहा है।
    मेरे भोले भले मुसलमान भाइयो ! जागो ! इक्कीसवीं सदी की सुब्ह हुए दस साल होने को हैं, यह ज़ालिम टोपी और दाढ़ी वाले मुल्ला तुम को इस्लामी अफ़ीम खिला कर सुलाए हुए हैं. सब कुछ यहीं मौजूद ज़िन्दगी में हैं, इसके बाद कुछ भी नहीं है, तुम्हारे बाद रह जाएगी तुम्हारी विरासत, कि अपने नस्लों को क्या दिया है. कम से कम उनको इल्म जदीद तो दो ही, कि तुमको याद करें। इल्म जदीद पा जाने के बाद तो यह सब कुछ हासिल कर लेंगे। मगर हाँ! इन्हें इन ज़हरीले ओलिमा से बचाओ.

    bilkul yahi hai sandesh

    ReplyDelete
  9. मोमिन तेरा जवाब नहीं!!!!!!!!!!!!!!

    ReplyDelete
  10. मोमिन! दिल चाहता है तुम पर ईमान ले आऊँ

    ReplyDelete
  11. चमन में होने दो बुलबुल को फूल के सदके
    बलिहारी जाऊँ मै तो अपने रसूल के सदके

    सदा बहार सजीला है रसूल मेरा
    हो लाखपीर रसीला है रसूल मेरा
    जहे जमाल छबीला है रसूल मेरा
    रहीने इश्क रंगीला है रसूल मेरा

    चमन में होने दो बुलबुल को फूल के सदके
    बलिहारी जाऊँ मै तो अपने रसूल के सदके

    किसी की बिगड़ी बनाना है ब्याह कर लेंगे
    बुझा चिराग जलाना है ब्याह कर लेंगे
    किसी का रूप सुहाना है ब्याह कर लेंगे
    किसी के पास खजाना है ब्याह कर लेंगे

    चमन में होने दो बुलबुल को फूल के सदके
    बलिहारीजाऊँ मै तो अपने रसूल के सदके

    ReplyDelete
  12. चमन में होने दो बुलबुल को फूल के सदके
    बलिहारी जाऊँ मै तो अपने रसूल के सदके

    सदा बहार सजीला है रसूल मेरा
    हो लाखपीर रसीला है रसूल मेरा
    जहे जमाल छबीला है रसूल मेरा
    रहीने इश्क रंगीला है रसूल मेरा

    चमन में होने दो बुलबुल को फूल के सदके
    बलिहारी जाऊँ मै तो अपने रसूल के सदके

    किसी की बिगड़ी बनाना है ब्याह कर लेंगे
    बुझा चिराग जलाना है ब्याह कर लेंगे
    किसी का रूप सुहाना है ब्याह कर लेंगे
    किसी के पास खजाना है ब्याह कर लेंगे

    चमन में होने दो बुलबुल को फूल के सदके
    बलिहारीजाऊँ मै तो अपने रसूल के सदके

    ReplyDelete