Wednesday, 31 August 2011

सूरह अल्मायदा ५

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.



सूरह अल्मायदा ५
(छटवीं और आखरी किस्त )

मेरे गाँव की एक फूफी के बीच बहु-बेटियों की बात चल रही थी कि मेरा फूफी ज़ाद भाई बोला अम्मा लिखा है औरतों को पहले समझाओ बुझाओ, न मानेंतो घुस्याओ लत्याओ, फिरौ न मानैं तो अकेले कमरे मां बंद कर देव, यहाँ तक कि वह मर न जाएँ .
फूफी आखें तरेरती हुई बोलीं उफरपरे! कहाँ लिखा है?

बेटा बोला तुम्हरे क़ुरआन मां.--

आयं? कह कर फूफी बेटे के आगे सवालिया निशान बन कर रह गईं. बहुत मायूस हुईं और कहा

''हम का बताए तो बताए मगर अउर कोऊ से न बताए''

मेरे ब्लॉग के मुस्लिम पाठक कुछ मेरी गंवार फूफी की तरह ही हैं. वह मुझे राय देते हैं कि मैं तौबा करके उस नाजायज़ अल्लाह के शरण में चला जाऊं. मज़े कि बात ये है कि मैं उनका शुभ चिन्तक हूँ और वह मेरे?

ऐसे तमाम मुस्लिम भाइयों से दरख्वास्त है कि मुझे पढ़ते रहें, मैं उनका ही असली खैर ख्वाह हूँ .

हिदी ब्लॉग जगत में एक सांड के नाम से जाना जाने वाला कैरानवी है जो खुद तो परले दर्जे का जाहिल है मगर ज़मीर फरोश ओलिमा की लिखी हुई कपटी रचनाओं को बेच कर गलाज़त भरी रोज़ी से पेट पालता है.

अल्लाह का चैलेंज, अंतिम अवतार, बौद्ध मैत्रे जैसे सड़े गले राग खोंचे लगाए गाहकों को पत्ता रहता है. उसको लोगों के धिक्कार की परवाह नहीं. मेरे हर आर्टिकल पर अपना ब्लाक लगा देता है, कि मेरे पास आ मैं जेहालत बेचता हूँ.
अब आये अल्लाह की रागनी पर - - -

"तुम्हारे लिए दरया का शिकार पकड़ना और खाना हलाल किया गया"
सूरह अलमायदा 5 सातवाँ पारा-आयत (96)

ये एक हिमाकत कि बात है. जो जीविका का साधन हजारों साल से मानव जाति को जीवित किए हुए हैं, उसको कुरानी फरमान बनाना क़ुरआन का मजाक और बेवज्नी में इजाफा ही है. दरया में बहुत से जीव विषैले और गंदे होते हैं जिसको हराम करना मुहम्मद भूल गए हैं.


"अल्लाह ने काबे को जो कि अदब का मकान है, लोगों के लिए कायम रहने का सबब करार दे दिया है और इज्ज़त वाले महीने को भी और हरम में कुर्बानी होने वाले जानवरों को भी और उनको भी जिनके गले में पट्टे हों, ये इस लिए कि इस बात का यकीन करलो कि बे शक अल्लाह तमाम आसमानों और ज़मीन के अन्दर की चीजों का इल्म रखता है."

सूरह अलमायदा 5 सातवाँ पारा-आयत (97)

लगता है मुहम्मदी अल्लाह ने इन बकवासों से यह बात साबित कर दिया हो की उसको आसमानों और ज़मीन का राज़ मालूम है, जब कि वह यह भी नहीं जाता की आसमान सिर्फ एक है और ज़मीनें लाखों.

आप इस आयात को बार बार पढिए और मतलब निकालिए, नतीजे तक पहुँचिए।क्या साबित नहीं होता कि यह किसी पागल कि बड़ बड़ है, या क़ुरआनका पेट भरने के लिए मुहम्मद कुछ न कुछ बोल रहे हैं। इन बकवासों को ईश वाणी का दर्जा देकर और सर पर रख कर हम कहाँ के होंगे? एक बार फिर मौत से पहले विरासत नामे पर लम्बी तकरीर और बहसें दूर तक चलती हैं जिसको नज़र अंदाज़ करना ही बेहतर होगा.

सूरह अलमायदा 5 सातवाँ पारा-आयत (९८-109)

ईसा को एक बार फिर नए सिरे से पकडा जाता है जिसे पढ़ कर मुँह पीटने को जी चाहता है मगर अल्लाह हाथ नहीं लगता. इसे मुहम्मद की दीवानगी कहें या उनकी मौजूदा उम्मत की जो इस पर ईमान रखे हुए हैं.

देखिए बकते हैं - - -

"आप बे शक पोशीदा बातों को जानने वाले है, जब अल्लाह तअला इरशाद फरमाएंगे : ऐ ईसा इब्ने मरयम! याद करो जो तुम पर और तुम्हारी वाल्दा पर, जब कि मैं ने युम्हें रूहुल-कुद्स से ताईद दी, तुम आदमियों से कलाम करते थे, गोद में भी और बड़ी उम्र में भी और जब की मैं ने तुम को किताबें और समझ की बातें और तौरेत और इंजील की तालीम किन और जब कि तुम गारे से एक शक्ल बनाते थे, जैसे परिंदे की होती है, मेरे हुक्म से फिर तुम उसके अन्दर फूँक मार देते थे, जिस से वह परिंदा बन जाता था,मेरी हुक्म से. और जब तुम अच्छा कर देते थे मदर ज़द अंधे को और कोढ़ से बीमार को, मेरे हुक्म से और जब तुम मुर्दों को निकाल कर खडा कर देते थे, मेरे हुक्म से और जब मैं ने बनी इस्राईल को तुम से बांध रखा, जब तुम उनके पास दलीलें लेकर आए थे, फिर उन में जो काफिर थे उन्हों ने कहा था यह सिवाय खुले जादू के और कुछ भी नहीं."

सूरह अलमायदा 5 सातवाँ पारा-आयत (110)

इसी दीवानगी की बड़बड़ाहट को करोरो मुस्लमान चौदह सौ सालों से दोहरा रहा है, नतीजतन दुन्या की सब से पिछली कतार में जा लगा है. इसके धार्मिक गुरु इसको गुमराह किए रहते है जब तक इनका सफाया नहीं होता, इनका उद्धार मुमकिन नहीं. अफ़सोस कि पढा लिखा वर्ग बहुत स्वार्थी गया है, वह सच को जनता है मगर आगे आना पसंद नहीं करता, वह सोचता है खुद को बचा लिया बाक़ी जाएँ जहन्नम में.

बस एक ही रास्ता है कि मुस्लिम अवाम बेदार हों और ओलिमा को नजिस जानवर का दर्जा दें.


मुसलमानों!

मैं मुस्लिम समाज का ही बेदार फर्द हूँ जो मुस्लिम से मोमिन हो गया, यह काम बहुत ही मुश्किल है और बेहद आसन भी. मोमिन का मतलब है ईमान दार और मुस्लिम का मतलब है हठ धर्मं, जेहालत पसंद, जेहादी, क़दामत परस्त, झूठा, शर्री, तअस्सुबी, ना इन्साफ और बहुत सी इन्सान दुश्मन बातें जो इसलाम की तालीम है. मोमिन के ईमान की कसौटी पर ही सच्चाई की परख आती है, मोमिम बनो, धरम कांटे का ईमान अपने अंदर पैदा करो, देखो कि अपने आप में आप का क़द कितना बढ़ गया है. इसलाम जिसे तस्लीम किया,मुस्लिम हो गए.ईमान जो फितरी (प्रकृतिक) सच होगा २+२=४ की तरह .ईमान पर ईमान लाओ इसलाम को तर्क करो.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

1 comment:

  1. हर किसी को आत्मावलोकन करना चा्हिये और समय के अनुरूप ही चलना चाहिये. आपने बेहतर कहा है.

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