Tuesday 8 November 2011

सूरात्तुत तौबा९ (दूसरी किस्त)

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.


सूरात्तुत तौबा९

(दूसरी किस्त)

आज बकरीद है. धार्मिक अंध विश्वास के तहत आज क़ुरबानी का दिन है. अल्लाह को प्यारी है, क़ुरबानी. अब अगर अल्लाह ही किसी अनैतिक बात को पसंद करता हो, तो बन्दे भला कैसे उसको राज़ी करने का भर पूर मुजाहिरा न करेंगे, भले ही यह हिमाक़त का काम क्यूं न हो. वैसे अल्लाह को क़ुरबानी अगर प्यारी है तो मुस्लमान अपनी औलादों की कुर्बानी किया करे. जानवरों की क़ुरबानी कोई बलिदान है क्या? क़ुरबानी की कहानी ये है कि बाबा इब्राहीम की कोई औलाद न थी. उनकी पत्नी जवानी पार करने के हद पर आई तो उसने अपने शौहर को राय दिया की वह मिसरी लोंडी हाजरा को उप पत्नी बना ले ताकि वह उसकी औलाद से अपना वारिस पा सके.उसके बाद हाजिरा हमला हुई और इस्माईल पैदा हुए, मगर हुवा यूं कि उसके बाद वह खुद हामिला हुई और इशाक पैदा हुवा. इसके बाद सारा हाजिरा और उसके बेटे से जलने लगी. सारा ने हाजिरा से ऐसी दुश्मनी बाँधी कि पहली बार हामला हाजिरा को घर से बाहर कर दिया. वह लावारिस दर बदर मारी मारी फिरी और आख़िर सारा से माफ़ी मांगी और घर दाखिल हुई. जब इस्माईल पैदा हुवा तो सारा और भी कुढने लगी इसके बाद जब खुद इशाक की माँ बनी तो एक दिन अपने शौहर को इस बात पर अमादा कर लिया कि वह हाजिरा के बेटे को अल्लाह के नाम पर क़त्ल कर दे. इब्राहीम राज़ी हो गया मगर उसके दिल में कुछ और ही था. वह अलने बेटे इस्माईल को लेकर घर से दूर एह पहाड़ी पर ले गया, रास्ते में एक दुम्बा भी खरीद लिया और इस्माईल की क़ुरबानी को एक घटना बतलाया "इस्माईल की जगह अल्लाह ने दुम्बा ला खड़ा किया" जो आज क़ुरबानी के रस्म की सुन्नत बन गई है. इस नाटक से दोनों बीवियों को इब्राहीम ने साध लिया. जब इब्राहीम ने अपने बेटे की क़ुरबानी दी तो अकेले वह थे और उनका अल्लाह, बेटा मासूम था गोदों में खेलने की उसकी उम्र थी. यानि कोई गवाह नहीं था सिर्फ अल्लाह के जो अभी तक अपने वजूद को साबित करने में नाकाम है, जैसे कि तौरेत, इंजील और कुरान के मानिंद उसे होना चाहिए. दीगर कौमें वक़्त के साथ साथ इस क़ुरबानी के वाक़िए को भूल गईं जो इब्राहीम ने अपने दो बीवियों के झगडे का एक हल निकाला , मगर मुसलामानों ने इसको उनसे उधार लेकर इस फ़ितूर पर क़ायम हैं. हिदुस्तान मे भी ये पशु बलि और नर बलि की कुप्रथा थी, मगर अब ये प्रथा जुर्म बन गई है. कहीं कोई देव इब्राहीम नुमा नहीं बचा कि उसकी कहानी की मान्यता क़ायम हो.

अब देखिए कि क़ुरआन में मुहम्मद कल्पित साज़िशी अल्लाह क्या कहता है - - -


''यह लोग मुसलामानों के बारे में न कुर्बत का पास करें न कौलो-करार का और यह लोग बहुत ही ज़्यादती कर रहे हैं, सो यह लोग अगर तौबा कर लें और नमाज़ पढने लगें और ज़कात देने लगें तो तुम्हारे दीनी भाई होंगे और हम समझदार लोगों के लिए एहकाम को खूब तफ़सील से बयान करते हैं''

सूरात्तुत तौबा९ -१०वाँ परा आयत (११-१२)

यह क़ुरआन का अनुवाद ईश-वाणी है, वह ईश जिसने इस ब्रह्माण्ड की रचना की है, हर आयत के बाद मेरी इस बात को सब से पहले ध्यान कर लिया करें.सूरह तौबा की पहली किस्त में बयान है की बे ईमान अल्लाह अपने ग़ैर मुस्लिम बन्दों से किस बे शर्मी के साथ किए हुए समझौते तोड़ देता है. अब देखिए कि वह उल्टा उन पर कौल क़रार तोड़ने का इलज़ाम लगा रहा है, लड़ने के बहाने ढूढ़ रहा है, नमाज़ें पढवा कर अपनी उँगलियों पर नचाने का इन्तेज़ाम कर रहा है, उनसे टेक्स वसूलने के जतन कर रहा है।


''क्या तुम ख़याल करते हो कि तुम यूँ ही छोड़ दिए जाओगे ? हालां कि अभी अल्लाह तअला ने उन लोगों को देखा ही नहीं जिन्हों ने तुम में से जेहाद की हो और अल्लाह तअला और रसूल और मोमनीन के सिवा किसी को खुसूसयत का दोस्त न बनाया हो''

सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (१६)

जंग, जेहाद से लौटे हुए लाखैरे, बे रोज़गार और बद हाल लोग लूट के माल में अपना हिस्सा मांगते हैं तो 'आलिमुल-ग़ैब'' मुहम्मदी अल्लाह बहाने बनाता है कि अभी तो मैं ने जंग की वह रील देखी ही नहीं जिसमें तुम शरीक होने का दावा करते हो. उसके बाद अभी अपने ग़ैबी ताक़त से यह भी मअलूम करना है कि तुम्हारे तअल्लुकात हमारे दुश्मनों से तो नहीं हैं या हमारे रसूल के दुश्मनों से तो नहीं है या कहीं मोमनीन के दुश्मनों से तो नहीं हैं, भले ही वह तुम्हारे भाई बाप ही क्यूँ न हों. अगर ऐसा है तो तुम क्या समझते हो तुम को कुछ मिलेगा ? बल्कि तुम गलत समझते हो कि तुम को यूं ही बख्श दिया जाएगा .

मुसलामानों!

यही ईश वानियाँ तुम्हारी नमाज़ों के नजर हैं. जागो।


''और अल्लाह तअला को सब खबर है तुम्हारे सब कामों का''

सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (१७)

मुसलामानों को डेढ़ हज़ार साल तक अक्ल से पैदल तसव्वुर करने वाले खुद साख्ता रसूल शायद अपनी जगह पर ठीक ही थे कि अल्लाह के कलाम में ताजाद पर ताजाद भरते रहे और उनकी उम्मत चूँ तक न करती. देखिए कि पिछली आयत में मुहम्मदी अल्लाह कहता है कि ''अभी अल्लाह तअला ने उन लोगों को देखा ही नहीं जिन्हों ने तुम में से जेहाद की हो और अल्लाह तअला और रसूल और मोमनीन के सिवा किसी को खुसूसयत का दोस्त न बनाया हो'' और अगली ही सांस में इसके बर अक्स बात करता है ''और अल्लाह तअला को सब खबर है तुम्हारे सब कामों का'' ऐसा नहीं कि उस वक़्त जब मुहम्मद लोगों को यह क़ुरआनी आयतें सुनाते थे तो लोग अक्ल से पैदल थे. मक्का में बारह सालों तक गलियों, सड़कों, मेलों, बाज़ारों और चौराहों पर जहाँ लोग मिलते यह शुरू हो जाते क़ुरआनी राग लेकर. लोग पागल, दीवाना, सनकी और ख़ब्ती समझ कर झेल जाते. कुछ तौहम परस्त और अंधविश्वासी इन्हें मान्यता भी देने लगे. कबीलाई सियासत ने इन्हें मदीना में शरन दे दिया, वहीँ पर यह दीवाना फरज़ाना बन गया. मुहम्मद को मदीने में ऐसी ताक़त मिली कि इनकी क़ुरआनी खुराफ़ात मुसलामानों की इबादत बन कर रह गई है. अल्लाह के रसूल शायद कामयाब ही हैं


''ऐ ईमान वालो! अपने बापों को, अपने भाइयों को अपना रफ़ीक़ मत बनाओ अगर वह कुफ़्र को बमुक़बिला ईमान अज़ीज़ रखें और तुम में से जो शख्स इनके साथ रफ़ाक़त रखेगा, सो ऐसे लोग बड़े नाफ़रमान हैं''

सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (२३)

खून के रिश्तों में निफ़ाक़ डालने वाला यह मुहम्मद का पैगाम दुन्या का बद तरीन कारे-बद है. इन रिश्तों से महरूम हो जाने के बाद क्या रह जाती है इंसानी ज़िन्दगी? मार कट, जंगो जद्दल, लूट पाट , की यह दुनयावी ज़िन्दगी या फिर उस दुन्या की उन बड़ी बड़ी आँखों वाली खयाली जन्नत की हूरें? मोती जैसे सजे हुए बहिश्ती लौंडे? शराब कबाब, खजूर अंगूर? इसके लिए भूल जाएँ अपने शफीक बाप को जिसके हम जुज़्व हैं? अपने रफ़ीक़ भाई को जिसके हम हमखून हैं? वह भी उस ईमान के एवज़ जो एक अकीदत है, एक खयाली तस्कीन. लअनत है ऐसे ईमान पर जो ऐसी कीमत का तलबगार हो. अफ़सोस है उन चूतियों पर जो बाप और भाई की क़ीमत पर मिटटी के बुत को छोड़ कर हवा के बुत पर ईमान बदला हो।


''आप कह दीजिए तुम्हारे बाप, तुम्हारे बेटे, तुम्हारे भाई और तुम्हारी बीवियां और तुम्हारा कुनबा और तुम्हारा माल जो तुमने कमाया और वह तिजारत जिस में से निकासी करने का तुम को अंदेशा हो और वह घर जिसको तुम पसंद करते हो, तुमको अल्लाह और उसके रसूल से और उसकी राह में जेहाद करने से ज़्यादः प्यारे हों तो मुन्तज़िर रहो, यहाँ तक की अल्लाह अपना हुक्म भेज दे. और बे हुकमी करने वाले को अल्लाह मक़सूद तक नहीं पहुंचता''

सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (२४)
उफ़ !

इन्तहा पसंद मुहम्मद, ताजदारे मदीना, सरवरे कायनात, न खुद चैन से बैठते कभी न इस्लाम के जाल में फंसने वाली रिआया को कभी चैन से बैठने दिया. अगर कायनात की मख्लूक़ पर क़ाबू पा जाते तो जेहाद के लिए दीगर कायनातों की तलाश में निकल पड़ते. अल्लाह से धमकी दिलाते हैं कि तुम मेरे रसूल पर अपने अज़ीज़ तर औलाद, भाई, शरीके-हयात और पूरे कुनबे को कुर्बान करने के लिए तैयार रहो, वह भी बमय अपने तमाम असासे के साथ जिसे तिनका तिनका जोड़ कर आप ने अपनी घर बार की खुशियों के लिए तैयार किया हो. इंसानी नफ्सियात से नावाकिफ पत्थर दिल मुहम्मद क़ह्हार अल्लाह के जीते जागते रसूल थे.

मुसलमानो!

एक बार फिर तुम से गुज़ारिश है कि तुम मुस्लिम से मोमिन बन जाओ. मुस्लिम और मोमिन के फ़र्क़ को समझने कि कोशिश करो. मुहम्मद ने दोनों लफ़्ज़ों को खलत मलत कर दिया है और तुम को गुमराह किया है कि मुस्लिम ही असल मोमिन होता है जिसका ईमान अल्लाह और उसके रसूल पर हो. यह किज़्ब है, दरोग़ है, झूट है, सच यह है कि आप के किसी अमल में बे ईमानी न हो यही ईमान है, इसकी राह पर चलने वाला ही मोमिन कहलाता है. जो कुछ अभी तक इंसानी ज़ेहन साबित कर चुका है वही अब तक का सच है, वही इंसानी ईमान है. अकीदतें और आस्थाएँ कमज़ोर और बीमार ज़ेहनों की पैदावार हैं जिनका नाजायज़ फ़ायदा खुद साखता अल्लाह के पयम्बर, भगवन रूपी अवतार , गुरु, महात्मा उठाते हैं.तुम समझने की कोशिश करो. मैं तुम्हारा सच्चा ख़ैर ख्वाह हूँ. ख़बरदार ! कहीं मुस्लिम से हिन्दू न बन जाना वर्ना सब गुड गोबर हो जायगा, क्रिश्चेन न बन जाना, बौद्ध न बन जाना वर्ना मोमिन बन्ने के लिए फिर एक सदी दरकार होगी. धर्मांतरण बक़ौल जोश मलीहाबादी एक चूहेदान से निकल कर दूसरे चूहेदान में जाना है. बनना ही है तो मुकम्मल इन्सान बनो, इंसानियत ही दुन्या का आख़िरी मज़हब होगा. मुस्लिम जब मोमिन हो जायगा तो इसकी पैरवी में ५१% भारत मोमिन हो जायगा।

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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