Sunday 27 November 2011

सूरह यूनुस -१० (पहली किस्त)

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.


सूरह यूनुस -१०
पहली किस्त


आम मुसलमान मुहम्मद कालीन युग में इस्लाम पर ईमान लाने वाले मुसलामानों को जिन्हें सहाबी ए कराम कहा जाता है, पवित्र कल्पनाओं के धागों में पिरो कर उनके नामों की तस्बीह पढ़ा करते हैं, जब कि वह लोग ज़्यादः तर गलत थे, वह मजबूर, लाखैरे, बेकार और खासकर जाहिल लोग हुवा करते थे. क़ुरआन और हदीसें खुद इन बातों के गवाह हैं. अगर अक़ीदत का चश्मा उतार के तलाशे हक़ की ऐनक लगा कर इसका मुतालिआ किया जाए तो सब कुछ कुरआन और हदीसों में ही न अयाँ और निहाँ है . आम मुसलमान मज़हबी नशा फरोशों की दूकानों से और इस्लामी मदारियों से जो पाते है वही जानते हैं, इसी को सच मानते हैं. क़ुरआन में मुहम्मद का ईजाद करदा भारी आसमान वाला अल्लाह अपनी जेहालत, अपनी हठ धर्मी, अपनी अय्यारियाँ, अपनी चालबाजियाँ, अपनी दगाबज़ियाँ, अपने दारोग (मिथ्य), अपने शर और साथ साथ अपनी बेवकूफ़ियाँ खोल खोल कर बयान करता है. मैं तो क़ुरआनी फिल्म का ट्रेलर भर आप के सामने अपनी तहरीरों में पेश कर रहा हूँ. मेरा दावा है कि मुसलामानों को अँधेरे से बाहर निकालने के लिए एक ही इलाज है कि इनको नमाज़ें इनकी मादरी ज़ुबान में तर्जुमें की शक्ल में पढाई जाएँ. मुसलमान हैं तो इन पर लाजिम कर दिया जाए क़ुरआनी तर्जुमा बगैर तफसीर निगारों की राय के इन्हें बिल्जब्र सुनाया जाए. जदीद क़दरों के मुकाबिले में क़ुरआनी दलीलें रुसवा की जाएँ जोकि इनका अंजाम बनता है तब जाकर मुसलमान इंसान बन सकता है।
आइए चलें बे कद्र और अदना तरीन कुरानी आयतों पर - - -

''अलरा''

यह भी अल्लाह की एक आयत है, उसकी कही हुई कोई बात है जिसके मानी बन्दे नहीं जानते। मुहम्मद और मुल्ले कहते हैं इसका मतलब अल्लाह ही बेहतर जानता है. यह वैसे ही है जैसे किसी करतब से पहले मदारी कोई मोहमिल मन्त्र की ललकार भरता है। इसको क़ुरआनी इस्तेलाह में हुरूफे मुक़त्तेआत कहते हैं. मुहम्मद ने मदारियों की नकल में सूरह शुरू करने से पहले अक्सर ऐसा किया है.



''यह पुर हिकमत किताब की आयतें हैं.''
सूरह यूनुस १० -११-वाँ परा आयत (१)

पूरे क़ुरआन में इस जुमले को बार बार दोहराया गया है और इस बेढंगी किताब को कुराने-हकीम कहा गया है। मगर इसमें हिकमत के नाम पर एक सूई की ईजाद भी नहीं है, बखान है तो कुदरत के उन कारगुजारियों की जिसको दुन्या रोज़े अव्वल से जानती है। बहुत सी गलत और फूहड़ जानकारियां अल्लाह ने क़ुरआनमें गुमराह कुन ज़रूर पेश की हैं।


''क्या मक्का के लोगों को इस बात से तअज्जुब है कि हम ने उन लोगों में से एक के पास वही भेज दी कि सब लोगों को डराए और जो ईमान लाएँ उन को खुश खबरी सुनाएँ कि उन के रब के पास उन को पूरा मर्तबा मिलेगा. काफ़िर कहते हैं कि वह शख्स बिला शुबहा सरीह जादूगर है''
"बिला शुबहा तुम्हारा रब अल्लाह ही है जिसने आसमानों और ज़मीन को चार को दिनों में पैदा कर दिया और फिर अर्श पर कायम हुवा.''

सूरह यूनुस १० -११-वाँ परा आयत (२-३)फिर इसके बाद अल्लाह को आसमान से उतरने की फुर्सत न रही न ताक़त न ज़रुरत. वह मुहम्मद और मूसा जैसे लोगों को अपना पयम्बर बना बना कर भेजता रहा कि जाओ और हमारी ज़मीन पर मन मानी करो. मेरे नाम पर अपने गढ़े हुए झूटों की बुन्यादे रक्खो और ज़मीन पर फ़साद के बीज बोते रहो. मक्का के लोगों को इस बात पर न कभी तअज्जुब हुवा न यक़ीन कि उनमे से ही जाना बूझा एक अनपढ़ अल्लाह का नबी बन गया है, हाँ! इन के लिए मुहम्मद कुछ दिनों के लिए मशगला ज़रूर बन गए थे बाद में एक बड़ी बद अमनी बन करअज़ाब बने.
मक्का के लोगों ने मुहम्मद को कभी भी जादूगर नहीं कहा न ही इनके कलाम में जादूइ असर की बात की, यह तो खुद मुहम्मद अपनी तारीफ में बार बार यह बात कहते हैं कि क़ुरआनी बातें जादूई असर रखती हैं जो कि उल्टा उनके खिलाफ जाती हैं. तर्जुमानों के लिए बड़ी मुश्किल पैदा होती है, वह इस तरह बात को इस तरह रफू करते हैं ---
''नौज बिल्लाह जादू चूंकि झूट होता है यहाँ अल्लाह के कहने का मतलब हैकि - - -''

इस के बाद वह अपना झूट लिखते हैं.

"मक्का के लोग मुहम्मद को दीवाना समझते थे और इनके कुरआन को दीवानगी. दीवानगी के आलम में अगलों से चली आ रही सुनी सुनाई बातें. यही सच है कुरआन में इस के अलावःअगर कुछ है तो जेहादी लूट मार.''


''जिन लोगों को हमारे पास आने का खटका बिलकुल नहीं और वह दुनयावी ज़िन्दगी पर राज़ी हो गए हैं और जो लोग हमारी आयातों से बिलकुल गाफिल हैं, ऐसे लोगों का ठिकाना उनके आमाल की वजेह से दोज़ख है. जो शख्स अल्लाह और रसूल की पूरी इताअत करेगा, अल्लाह तअला उसको ऐसी बहिश्तों में दाखिल कर देंगे जिसके नीचे नहरें जारी होंगी, हमेशा हमेशा इन में रहेंगे. यह बड़ी कामयाबी है.''

सूरह यूनुस १० -११-वाँ परा आयत (७-९)दुन्या की बुलंद और बाला तर हस्तियों के आगे अवाम उनकी रूहानियत के कायल हो कर हाथ जोड़े दर्शन के लिए खड़े रहते हैं और मुहम्मद अवाम के आगे बेरूह कुरानी आयतें लिए पैगम्बरी की फेरी लगाते फिरते हैं कि मैं बक़लम खुद पैगम्बर हूँ और वह हर जगह से मारे भगाए जाते हैं. देखिए कि उनके दावत में कोई दम है? कुंद जेहन अकीदत मंद और अय्यार आलिमान ए दीन कहेंगे क़ि'' फिर इस्लाम इतना क्यूँ और कैसे फ़ैल गया ?''
जवाब है '' बाजोर तलवार और बज़रीए ए माले-गनीमत.


''और अगर अल्लाह तअला इन लोगों पर इन के जल्दी मचाने के मुवाफ़िक, जल्दी नुकसान वाक़े कर दिया करता जिस तरह वह फायदे के लिए जल्दी मचाते हैं, तो इसका वादा ए अज़ाब कभी का पूरा हो गया होता - - -
इस लिए हम इन लोगों को जिनको हमारे पास आने का खटका नहीं है , बिना अज़ाब चन्द रोज़ छोड़े रहते हैं क़ि वह अपनी सर कशी में चन्द रोज़ भटकते फिरेंगे."

यूनुस १० -११-वाँ परा आयत (11)मुसलमान कौम फटीचरों का गिरोह थी जब वजूद में आई इस के हाथ में कुछ न था यह भूखे नंगों की अक्सरीयत थी. इसकी पैदाशी फितरत थी खुश हालों की मुखालफत, गो कि दूसरों को लूट के खुश हाली की चाहत. अंजाम कार दूसरों का बद ख्वाह खुद अपनी कब्र खोदता है, यह कौम हमेशा बद हाल रही और दूसरों के निशाने पर रही.खुद मुसलमानो का खुश हाल हो जाना बड़ी मुसीबत है, हर घडी दीनी हराम खोर दामन फैलाए उसके दर पर खड़े रहते हैं।



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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