Saturday 19 November 2011

''सूरात्तुत तौबा ९ (पाँचवीं किस्त)

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।


नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.



बुजदिलान इस्लाम, इस्लाम की सड़ी गली लाश को नोच नोच कर खाने वाले यह गिद्ध सच्चाई से इस कद्र हरासां हैं कि बौखलाहट में सरकार से सिफारिश कर रहे हैं कि तसलीमा नसरीन को मुल्क बदर किया जाए. यह हराम ख़ोर जिनकी गिज़ा ईमान दारी है, जिसे खाकर पी कर और अपनी गलाज़त में मिला कर यह फारिग हो जाते हैं. यह समझते हैं कि तसलीमा नसरीन को हिदोस्तान से निकलवा हर बेफिक्र हो जाएँगे कि इन्हों ने सच्चाई को दफ़्न कर दिया. कोई भी इनमें मर्द नहीं कि तसलीमा नसरीन की किसी बातका का दलील के साथ जवाब दे सके.

इनका कुरान कहता है - - -


"काफिरों को जहाँ पाओ मारो, बाँधो, मत छोड़ो जब तक कि इस्लाम को न अपनाएं."

"औरतें तुम्हारी खेतियाँ है, इनमे जहाँ से चाहो जाओ."

"इनको समझाओ बुझाओ, लतियाओ जुतियाओ फिर भी न मानें तो इनको अंधरी कोठरी में बंद कट दो, हत्ता कि वह मर जाएँ."

"काफ़िर की औरतें बच्चे मिन जुमला काफ़िर होते हैं, यह अगर शब् खून में मारे जाएँ तो कोई गुनाह नहीं."

इन जैसे सैकड़ों इंसानियत दुश्मन पैगाम इन जहानामी ओलिमा को इनका अल्लाह देता है.


अब चलिए कुआनी खुराफातों में - - - -


सूरह तौबह --९


(पांचवीं किस्त)



"मुनाफ़िक़ वह लोग हुवा करते थे जो मुहम्मदी तहरीक में अपनी अक्ल का दख्ल भी रखते थे, आँख बंद कर के मुहम्मद की हाँ में हाँ नहीं मिलाया करते थे, मुहम्मद की जिहालत और ला इल्मी पर मुस्कुरा दिया करते थे और उनको टोक कर बात की इस्लाह कर दिया करते थे. बस ऐसे मुसलमान हुए लोगों से बजाए इसके कि खुदसर मुहम्मद उनके मशविरों का कुछ फ़ायदा उठाएँ, सीधे उनको जहन्नमी कह दिया करते थे. काफ़िर तो खुले मुखालिफ थे ही, उनसे जेहाद का एलान था मगर यह मुनाफ़िक़ जो छिपे हुए दुश्मन थे वह हमेशा मुहम्मद के लिए सर दर्द रहे. यह अक्सर समझदार, तालीम याफ्ता और साफिबे हैसियत हुवा करते थे. होशियार मुहम्मद को डर लगा रहता कि कही इन में से कोई इन से आगे न हो जाए और इनकी पयंबरी झटक न ले, इस लिए क़ुरआन में इन को कोसते काटते ही इन की कटी.

मुहम्मद का क़ुरआनी अंदाज़-ए-बयान एक यह भी है कि उनकी बात न मानने वाला सब से बड़ा ज़ालिम होता है, अक्सर क़ुरआन में यह जुमला आता है

'' उससे बड़ा ज़ालिम कौन होगा जो अल्लाह पर झूट बांधता हो?''

किसी बात को न मानना ज़ुल्म कहाँ ठहरा बात को ज़बरदस्ती मनवाना ज़रूर ज़ुल्म है। जैसा कि इस्लाम जेहादी तशद्दुद से खुद को मनवाता है."

सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (६५-६९)

''क्या इन लोगों को इसकी खबर नहीं पहुँची जो इन लोगों से पहले हुए जैसे कौम नूह, कौम आद, कौम समूद और कौम इब्राहीम और अहले मुदीन और उलटी हुई बस्तियाँ कि इन के पास इनके पयम्बर साफ़ निशानियाँ लेकर आए, सो अल्लाह तअला ने इन पर ज़ुल्म नहीं किया लेकिन वह खुद अपनी जानों पर ज़ुल्म करते थे.''

सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (७०)

इन उलटी हुई बस्तियों की कहानियां तौरेत में ऐसी हुआ करती हैं कि ज़ालिम और जाबिर मूसा जब मिस्र से यहूदियों को लेकर एक फरेब के साथ मिस्रियों को लूट कर फरार हुवा तो बियाबान जंगल में पनाह गुज़ीन हुवा जहाँ मन्ना और बटेरों पर बीस साल तक गुज़ारा किया. बीस साल बाद जब नई नस्ल की फ़ौज तैयार करली तो इर्द गिर्द के मुकामी बाशिंदों पर जो कि उमूमन फ़िलिस्ती हुआ करते थे, हमला शुरू कर दिया. मूसा का तरीका होता कि बस्ती में जवान मर्द औरत ही नहीं बूढ़े और बच्चे भी तहे-तेग कर दिए जाते थे, हत्ता कि कोई जानवर भी जिंदा न बचता था. उसके बाद बस्ती को आग से तबाह करके उस पर दो यहूदी सिपाहियों का पहरा हमेशा हमेशा के लिए बिठा दिया जाता था कि बस्ती दोबारा आबाद न होने पाए..यह बातें तौरेत में (old testament ) में रोज़े रौशन की तरह देखी जा सकती हैं. उम्मी मुहम्मद अपने गढ़े हुए पयम्बरों की यही निशानियाँ क़ुरआन में बार बार गिनवा रहे हैं. इन्हीं बस्तियों में कौम नूह, कौम आद, कौम समूद और कौम इब्राहीम की नस्लें भी बसा करती थीं.मुहम्मद ने बनी नुज़ैर की बस्ती को मूसा की तर्ज़ पर ही बर्बाद करने की कोशश की थी जिस पर खुद उनके खिलाफ उनके खेमे से ही आवाज़ बुलंद हुई और उनको अल्लाह की वही के नुजूल का सहारा लेना पड़ा. कि बनी नुज़ैर के बागात को जड़ से कटवा देना और उनके घरों में आग खुद उनके हाथों से लगवाना अल्लाह का हुक्म था.


''ए नबी! कुफ्फर और मुनाफिकीन से जेहाद कीजिए और उन पर सख्ती कीजिए, उनका ठिकाना दोज़ख है और वह बुरी जगह है. वह लोग कसमें खा जाते हैं कि हम ने नहीं कही हाँला की उन्हों ने कुफ्र की बात कही थी और अपने इस्लाम के बाद काफ़िर हो गए.- - -सो अगर तौबा करले तो बेहतर होगा और अगर रू गरदनी की तो अल्लाह तअला उनको दुन्या और आखरत में दर्द नाक सजा देगा और इनका दुन्या में कौई यार होगा न मददगार.''

सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (७२-७४)

मुहम्मद का अल्लाह डरा रहा है, धमका रहा है, फुसला रहा है और बहला रहा है हालाँकि वह चाहे तो दम भर में लोगों के दिलों को मोम करके अपने इस्लाम कि बाती जला दे मगर मुहम्मद के साथ रिआयत है कि उनकी पैगम्बरी का सवाल है और कुरैशियों की रोज़ी रोटी का।
शर्री मुहम्मद के सर में शर अल्लाह के नाम पर जेहाद बन कर समा गया था. आगे क़ुरआनी आयतें इन्हीं शर्री बहसों को लिए हुए चलती हैं, जेहाद मस्जिद में बैठे हुए समझदार मुनाफ़िक़ से, जेहाद पड़ोस में रहने वाले ग़ैरत मंद मुनकिर से, जेहाद, मोहल्ले में रहने वाले ज़हीन काफ़िर से, जेहाद बस्ती के क़दीमी बाशिंदे मुशरिक से, जेहाद साहबे किताब ईसाइयों से, जेहाद साहिबे ईमान और साहिबे रसूल मूसाइयों से। इतना ही नहीं जो मुसलमान गलती से इस्लाम कुबूल कर चुका है उसकी मुसीबत दोगुनी हो गई थी. अपनी मेहनत और मशक्क़त से अगर उसने अपनी कुछ हैसियत बनाई है तो वह भी मुहम्मद की आँखों में चुभती है, वस चाहते हैं कि वह अपना माल अल्लाह के हवाले करे और गायबाना अल्लाह बने बैठे हैं जनाब खुद.मुहम्मद कुरआन में मुसलमानों को समझाते हैं कि बद अह्द लोग अल्लाह से दुआ करते हैं कि वह अगर उन्हें माल ओ मतअ से नवाज़े तो बदले में वह अल्लाह के नाम पर खूब खर्च करेंगे और जब भोंदू अल्लाह उनके झाँसे में आ जाता है और उनको माल,टाल से भर देता है तो वह अल्लाह को ठेंगा दिखला देते हैं. मुहम्मद कहते हैं हालाँकि अल्लाह गैब दान है और ऐसे लोग ही जहन्नम रसीदा होंगे.

२५ साल तक बकरियाँ चराने वाला और उसके बाद जोरू माता की गुलामी में रह कर मुफ्त रोटी तोड़ने वाला कठ मुल्ला मुसलामानों को ऐसी तिकड़म भरी कुरआन के सिवा और क्या दे सकता है?

सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (७५ -८१)

''और इनमें (जेहाद से गुरेज़ करने वालों) से अगर कोई मर जाए तो उस पर कभी नमाज़ मत पढ़ें, न उसके कब्र पर कभी खड़े होएँ क्यूं कि उसने अल्लाह और उसके रसूल के साथ कुफ्र किया और यह हालाते कुफ्र में मरे. हैं''

सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (८४)

इब्नुल वक़्त (समय के संतान) ओलिमा और नेता यह कहते हुए नहीं थकते कि इस्लाम मेल मोहब्बत, अख्वत और सद भाव सिखलता है, आप देख रहे हैं कि इस्लाम जिन्दा तो जिन्दा मुर्दे से भी नफरत सिखलाता है. कम लोगों को मालूम है कि चौथे खलीफा उस्मान गनी मरने के बाद इसी नफ़रत के शिकार हो गए थे, उनकी लाश तीन दिनों तक सडती रही, बाद में यहूदियों ने अज़ राहे इंसानियत उसको अपने कब्रिस्तान में दफ़न किया।

'' और जब कोई टुकड़ा कुरआन का नाजिल किया जाता है कि तुम अल्लाह पर ईमान लाओ और इस के रसूल के हमराह होकर जेहाद करो तो इनमें से मकदूर वाले आप से रुखसतमाँगते हैं और कहते हैं हमको इजाज़त दीजिए कि हम भी यहाँ ठहेरने वालों के साथ हो जाएँ.''

सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (८६)

सूरह तौबह में अल्लाह ने इंसानी खून ख़राबे से तौबः किया है तभी तो अपने नाम से सूरह को शुरू करने की इजाज़त नहीं दी. मुहम्मद कहते हैं

'' और जब कोई टुकड़ा कुरआन का नाज़िल किया जाता है कि - - - ''

बाकी सब कुरआन तो मुहम्मद की बकवास है. मुसलमानों को कैसे समझाया जाए कि कुरआन उनको गुमराह किए हुए है.मुहम्मद अपनी जुबान को उस खुदाए बरतर के कन्धों पर रख कर कैसी ओछी ओछी बातें कर राहे हैं- - -

''वह लोग खाना नशीन औरतों के साथ रहने पर राज़ी हो गए. इनके दिलों पर मोहर लग गई जिसको वह समझते ही नहीं.''

सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (८७)

समझने तो नहीं देते ये माहिरे कुरआन मुल्ला और मोलवी जो इसको वास्ते तिलावत ही महफूज़ किए हुए हैं, समझने समझाने को मना करते है.

.मुहम्मद की जेहादी तिजारत और उसके फायदों की शोहरत देहातों में दूर दूर तक फ़ैल गई है. बेरोज़गार नवजवान में उनकी लूट में मिलने वाले माले ग़नीमत की बरकतें गाँव के फिजा को महका रही हैं, गंवार रालें टपकते हुए जूक दर जूक मदीने भागे चले आ राहे हैं.मुहम्मद को यह घाटे का सौदा गवारा नहीं हाँला कि देहाती पत्थर के बुतों को तर्क करके हवाई बुत अल्लाह वाहिद को पूजने पर राज़ी हैं मगर मुहम्मद को इन खाली हाथ आने वाले मुसलामानों की कोई ज़रुरत नहीं.

मुहम्मद को जेहाद के लिए पहले माल चाहिए बाद में जान, अगर बच गए तो अल्लाह का मुक़द्दमा कि उसको देखना बाकी रह जायगा कि जेहादी ने दिल से जेहाद किया या बे दिली से. इन देहातियों को तो फ़ौज में भारती चाहिए वह भी गुज़ारा भत्ता एडवांस में.


कहाँ तो अल्लाह ने एक नबीना से बे इल्तेफाती पर मुहम्मद को फटकार लगाई थी और आज जुज़ामियों को बाहर से ही कहला देते हैं कि वापस जाओ कि समझो तुमसे बैत (हाथ पर हाथ देकर दीक्षा लेना)कर लिया. यह पैगम्बर थे या छुवा छूतकी बीमारी।

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

3 comments:

  1. bahut khoob.. umda...

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  2. Aap chunki insaaniyat ke talabgaar hain aapke research ko log kabhi n kabhi izzat denge.

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  3. bewakuf apni bewakufi say baaz aa ja aur tauba kar le Allah ki rassi ki dheel ko apni jeet na samajh maot kay ek jhatke say sab samajh me aa jayega magar afsos ki us waqt ka samajhna kuch kaam na aayega

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