Sunday 23 November 2014

Sulemaan No 13

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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झलकी नं १३ 
क़ुरआन में कई अच्छी और कई बुरी हस्तियों का नाम बार बार आता है , जिसमे उनका ज़िक्र बहुत मुख़्तसर होता है।  पाठक की जिज्ञासा उनके बारे में बनी रहती है कि वह उनकी तफ्सील जानें।  मुहम्मद ने इन हुक्मरानों का नाम भर सुना था और उनको पैग़म्बर या शैतान का दरजा देकर आगे बढ़ जाते हैं , उनका नाम लेकर उसके साथ मन गढ़ंत लगा कर क़ुरआन पढ़ने वालों को गुमराह करते हैं।  दर अस्ल यह तमाम हस्तियां यहूद हैं जिनका विवरण तौरेत में आया है, मैं उनकी हक़ीक़त बतलाता हूँ , इससे मुहम्मदी अल्लाह की जिहालत का इन्किशाफ़ होता है। 
क़ुरआन के झूट - - - 
और तौरेती सदाक़त  
झलकियाँ - - -

सुलेमान 
दाऊद ने अपनी ज़िन्दगी में ही अपनी चहीती बीवी बतशीबा के बेटे सुलेमान को बादशाह बना दिया था। इसके दीगर सरकश बेटे सुलेमान के खिलाफ थे। सारे मुल्क में अम्न का क़याम हो चुका था और सुलेमान को भरी- पुरी विरासत मिली थी जिसे उसने एक लायक जा नशीन की तरह संवारा और सजाया ही नहीं बल्कि बढ़ाया भी।  सुलेमान ने मिस्री फ़िरअना (बादशाह) की बेटी से शादी की। उसके बाद मुख़तलिफ़ मुमालिक , मज़ाहिब और क़बाइल् से बीवियाँ करके हरम की रौनक़ बढाता रहा। इसके हरम में सात सौ रानियां और तीन सौ पट-रानियाँ थीं। 
सुलेमान हर एक के मज़हब का एहतराम करता था और उन पर चलता भी था। इसका बाप दाऊद ज़िन्दगी भर जंगों में उलझा रहा , उसने सल्तनत तो बनाई मगर उसके लिए कुछ भला न कर सका। दाऊद की ख़्वाहिश थी कि वह कोई बड़ी इबादत गाह बनवाए मगर बनवा न सका जिसे उसके बेटे सुलेमान ने पूरी की। 
दाऊद के ज़माने में ऊँचे टीले पर बेदी बनाई जाती थी और उस पर जाकर जानवरों की बलि देकर दुआएं मांगी जाती थी। यही तरीका उसके पूर्वज नूह , मूसा और दाऊद का भी हुवा करता था , भारत में भी ऐसा ही था। 
सुलेमान ने एक आलिशान इबादत गाह 'योरोसलम' में बनवाई जिसके खंडहरों में दीवार गिरया आज भी क़ायम है। सुलेमान ने अपने लिए एक शानदार महल भी बनवाया था जिसमें पीतल के खम्बे और हौज़ हुवा करते थे और सोने की नक़्क़ाशी हुवा करती थी। 
सुलेमान के महल की शोहरत दूर दूर तक थी। 
सुलेमान बहुत ही ज़हीन इंसान था। वह माहिर ए नबातात (बनस्पति) और जीवों जानवरों पर शोध करता था। सारे राज काज के कामों में काफी पकड़ रखने वाला था। उसकी शोहरत सुनकर शीबा की रानी बिलक़ीस सुलेमान की मेहमानी में आई थी जो अपने साथ ऊंटों पर लाद कर तोहफे लाइ थी और दस दिनों तक सुलेमान की मेहमान रही।  सुलेमान भी उसको तोहफे तहायफ़ दिए। 
(क़ुरआन सुलेमान और बिलकीस की शर्मनाक कहानी गढ़े हुए है) 

सुलेमान की रानियों में मुआबी , अम्मोनी , सुदीदनी , हित्ती और मिस्री औरतें थीं जो अपने अपने अक़ायद के लिए आज़ाद थीं जिसे योवहा (खुदा) पसंद नहीं करता था , इसकी वजह से सुलेमान ज़वाल पिज़ीर (पतन) हुवा। सुलेमान ने योरोसलम को राजधानी बना कर चालीस साल तक हुकूमत की। उसने एक बड़ा इस्राईली साम्राज्य क़ायम किया। 
मूसा के ४८० सालों बाद सुलेमान हुक्मराँ हुवा यानी आज से तक़रीबन ३००० साल पहले। 
सुलेमान दानिश्वर होने के साथ साथ एक शायर भी था। इसकी रचनाएँ लगभग ३००० हैं , इनके आलावा १००० गीत लिखे। 
इन्ही को क़ुरआन ज़ुबूर कहता है और कहता है अल्लाह ने इसे उठा लिया।  

एक कामयाब और होनहार बादशाह सुलेमान। 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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