Sunday 2 November 2014

yaaqoob (Jaikab)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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झलकी नँबर ९ 
याक़ूब (जैकब)
क़ुरआन में कई अच्छी और कई बुरी हस्तियों का नाम बार आता है , जिसमे उनका ज़िक्र बहुत मुख़्तसर होता है। पाठक की जिज्ञासा उनके बारे में बनी रहती है कि वह उनकी तफ्सील जानें। मुहम्मद ने इन हुक्मरानों का नाम भर सुना था और उनको पैग़म्बर या शैतान का दरजा देकर आगे बढ़ जाते हैं , उनका नाम लेकर उसके साथ मन गढ़ंत लगा कर क़ुरआन पढ़ने वालों को गुमराह करते हैं।  दर अस्ल यह तमाम हस्तियां यहूद हैं जिनका विवरण तौरेत में आया है, मैं उनकी हक़ीक़त बतलाता हूँ , इससे मुहम्मदी अल्लाह की जिहालत का इन्किशाफ़ होता है। 


झलकी नँबर ९ 
याक़ूब (जैकब)

 याक़ूब अपने बाप इस्हाक़ के मशविरे को मान कर अपने मामा लाबान के वतन हारान चला जाता है। रस्ते में रात हो जाने पर एक पत्थर को तकिया बना कर सो जाता है। इसके ख्वाब में खुदा आता है और इसे इसके दादा इब्राहाम की तरह ही दुआ देता है कि उसकी पीढयों को दूध और शहद का देश मिले। जब इसकी आँख खुलती है तो वह ख़ुशी में झूम उठता है और उस जगह को जन्नत द्वार नाम देता है। सर के नीचे रखे पत्थर को ज़मीन में गाड़ कर इस जगह को यादगार बनाता है।  
दूसरे दिन सफर तय करने के बाद वह अपनी मंज़िल पर पहुँच जाता है। वह वहां सबसे पहले खेतों में बकरियाँ चरा रही एक दोशीजा को देखता है। याक़ूब अपने मामा लाबान का पता जब इससे पूछता है तो वह अपना नाम राहील बता कर कहती है कि मैं उनकी छोटी बेटी हूँ। यह सुनकर याक़ूब बहुत खुश होता है और आगे बढ़ कर उसका बोसा लेलेता है। दोनों घर जाते हैं , लाबान अपने भान्जे याक़ूब को देख कर बहुत खुश होता है। याक़ूब अपने मामा से अपना मुददुआ बयान करता है कि वह अपने बाप इस्हाक़ के मशविरे पर उसके पास रोज़ी कमाने के लिए यहाँ आया है।  
याक़ूब एक माह तक अपने मामा के साथ खेती बाड़ी में लगा रह कि एक दिन लाबान ने उससे पूछाकि वह कब तक मुफ्त मज़दूती करता रहेगा ? वह अपनी मज़दूरी तय कर ले। 
लाबान की दो बेटियां थीं , बड़ी लीआ और छोटी राहील। राहील खूब सूरत और सुडौल थी जबकि लीआ कमज़ोर। याक़ूब ने राहील को मज़दूरी में मांग लिया तो लाबान ने शर्त लगा दी कि वह सात साल तक इसकी खिदमत में रहे , जिसे याक़ूब मान गया। 
मुद्दत ख़त्म होने के बाद लाबान अपने वादे से फिर गया और राहील के बदले लीआ को याक़ूब के हवाले किया। इस बात पर दोनों में काफी तकरार हुई। 
लाबान की अगली शर्त थी कि वह सात साल तक और उसकी गुलामी में रहे तो राहील उसे मिल जाएगी। याक़ूब एक बार फिर लाबान की शर्त मान गया। 
चौदह सालों की गुलामी काट कर याक़ूब अपने चालबाज़ मामा के फन्दे से रिहा हुआ। वह अपनी दोनों बीवियों और बच्चों को लेकर लाबान का घर छोड़ दिया। 
(बहुत दिल चस्प क़िस्सा है यह तौरेत का। इसी याक़ूब ने बाद में इस्राईल का नाम पाया .
याक़ूब की बारह अव्लादें हुईं।  लीआ से लगातार पांच बेटे हुए लेकिन राहील अभी तक माँ नहीं बन पाई थी , इसकी वजह से वह अपनी बहन से खलिश रखने लगी थी। उसने याक़ूब को राय  दी कि वह उसके लिए उसकी बांदी बिल्हा को रखैल बना ले। याक़ूब राज़ी हो गया। बिल्हा से दो लड़के हुए जिन्हें पाकर राहील खुश रहने लगी। बहन लीआ ने बदले में अपनी नौकरानी जलपा से याक़ूब की शादी करा दी और उसने भी दो लड़कों को जनम दिया। इसके बाद लीआ से दो लड़के और एक लड़की और हुए। 
सबसे बाद में राहील की गोद हरी हुई और उसने एक बेटे को जन्मा जिसका नाम जोसेफ़ (युसूफ) पड़ा . इस तरह याक़ूब को बारह औलाद ए नरीना हुईं जिनके नाम मंदर्जा ज़ेल हैं - - -
१ राबिन 
२ समउन 
३ लेवी 
४ यूदा 
५ ईसराकार 
६ वान 
७ नफ्ताली 
८ लीबा 
९ गाद 
१० बिन्यामीन 
११ आशीर 
१२ यूसुफ़ 



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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