Tuesday 3 March 2015

allah kahta hai - - -

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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बेदारियाँ (जागृति) 


कुदरत के कुछ अटल कानून हैं. 
इसके कुछ अमल हैं 
और हर अमल का रद्दे अमल, 
इस सब का मुजाहिरा और नतीजा है सच, 
जिसे कुदरती सच भी कहा जा सकता है.
कुदरत का कानून है २+२=४ इसके इस अंजाम ४ के सिवा न पौने चार हो सकता है न सवा चार. कुदरत जग जाहिर (ज़ाहिर) है और तुम्हारे सामने भी मौजूद है.

कुदरत को पूजने की कोई लाजिक नहीं हो सकती,कोई जवाज़ नहीं, 
मगर तुम इसको इससे हट कर पूजना चाहते हो 
इस लिए होशियारों ने इसका गायबाना बना दिया है. 
उन्हों ने कुदरत को माफौकुल फितरत शक्ल देकर अल्लाह, खुदा और भगवन वगैरा बना दिया है. 
तुम्हारी चाहत की कमजोरी का फ़ायदा ये समाजी कव्वे उठाया करते है. तुम्हारे झूठे पैगम्बरों ने कुदरत की वल्दियत भी पैदा कर रखा है कि सब उसकी कुदरत है.
दर असल दुन्या में हर चीज़ कुदरत की ही क़ुदरत है, 
जिसे समझाया जाता है कि इंसानी जेहन रखने वाले अल्लाह की कुदरत है.
कुदरत कहाँ कहती है कि तुम मुझको तस्लीम करो, पूजो और मुझसे डरो? कुदरत का कोई अल्लाह नहीं और अल्लाह की कोई कुदरत नहीं. 
दोनों का दूर दूर तक कोई रिश्ता नहीं. 
क़ुदरत खालिक भी है और मखलूक भी. वह मंसूर की माशूक भी है 
और राबिया सरी का आषिक भी. 
भगवानों, रहमानों और शैतानों का उस के साथ दूर का भी रिश्ता नहीं है. देवी देवता और अवतार पयम्बर तो उससे नज़रें भी नहीं मिला सकते. क़ुदरत के अवतार पयम्बर हैं, उसके मद्दे मुकाबिल खड़े हुए उसके खोजी हमारे साइंसटिस्ट, जिनकी शान है उनकी फरमाई हुए मजामीन और उनके नतायज जो मखलूक को सामान ए ज़िन्दगी देते हैं. 
मजदूरों को मशीने देते है और किसानो को नई नई भरपूर फसलें. 
यही मेहनत कश इस कायनात को सजाने और संवारने में लगे हुए हैं. सच्चे फ़रिश्ते यही हैं.
तुम अपने गरेबान में मुँह डाल कर देखो कि कहीं तुम भी तो इन अल्लाह फरोशो के शिकार तो नहीं?
क़ुदरत को सही तौर पर समझ लेने के बाद, इसके हिसाब से ज़िन्दगी बसर करना ही जीने का सलीका है.

इन क़ुरआनी आयतों को एक सौ एक बार गिनते हुए पढो,
 शायद तुमको अपनी दीवानगी पर शर्म आए.
 तुम बेदार होकर इन घोड़ों की खुराफातें जो जंग से वाबिस्ता हैं, से अपने आप को छुड़ा सको.
 आप  को कुछ नज़र आए कि आप की नमाज़ों में घोड़े अपने तापों की नुमाइश कर रहे हैं.
 मुहम्मद अपने इग्वाई ( जेहादी) प्रोग्रामों को बयान कर रहे हैं,
 जैसा कि उनका तरीक़ा ए ज़ुल्म था कि अलल सुब्ह वह पुर अमन आबादी पर हमला किया करते थे.
Soorah aadiyaat 100

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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