Friday 6 March 2015

Soorah zuha 93/30

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह जुहा ९३  - पारा ३० 
( वज़ज़ुहा वल्लैले इज़ा सजा) 
ऊपर उन (७८ -११४) सूरतों के नाम उनके शुरूआती अल्फाज़ के साथ दिया जा रहा हैं जिन्हें नमाज़ों में सूरह फातेहा या अल्हम्द - - के साथ जोड़ कर तुम पढ़ते हो.. ये छोटी छोटी सूरह तीसवें पारे की हैं. देखो   और समझो कि इनमें झूट, मकर, सियासत, नफरत, जेहालत, कुदूरत, गलाज़त यहाँ तक कि मुग़ललज़ात भी तुम्हारी इबादत में शामिल हो जाती हैं. तुम अपनी ज़बान में इनको पढने का तसव्वुर भी  नहीं कर सकते. ये ज़बान ए गैर में है, वह भी अरबी में, जिसको तुम मुक़द्दस समझते हो, चाहे उसमे फह्हाशी ही क्यूँ न हो..
इबादत के लिए रुक़ूअ या सुजूद, अल्फाज़, तौर तरीके और तरकीब की कोई जगह नहीं होती, गर्क ए कायनात होकर कर उट्ठो तो देखो तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे सामने सदाक़त बन कर खड़ा होगा. तुमको इशारा करेगा कि तुमको इस धरती पर इस लिए भेजा है कि तुम इसे सजाओ और सँवारो, आने वाले बन्दों के लिए, यहाँ तक कि धरती के हर बाशिदों के लिए. इनसे नफरत करना गुनाह है, इन बन्दों और बाशिदों की खैर ही तुम्हारी इबादत होगी. इनकी बक़ा ही तुम्हारी नस्लों के हक में होगा.

"क़सम है दिन की रौशनी की,
और रात की जब वह क़रार पकडे,
कि आपके परवर दिगार ने न आपको छोड़ा न दुश्मनी की,
और आखरात आपके लिए दुन्या से बेहतर है.
अनक़रीब अल्लाह तअला आपको देगा, सो आप खुश हो जाएँगे.
क्या अल्लाह ने आपको यतीम नहीं पाया, फिर ठिकाना दिया और अल्लाह ने आपको बे खबर पाया, फिर रास्ता बतलाया और अल्लाह ने आपको नादर पाया.
और मालदार बनाया,
तो आप यतीम पर सख्ती न कीजिए,
और सयाल को मत झिड़कइए,
और अपने रब के इनआमात का का तज़किरा करते रहा कीजिए."    .
सूरह जुहा ९३  - पारा ३० आयत (१-११)
मुहम्मद बीमार हुए, तीन रातें इबादत न कर सके, बात उनके माहौल में फ़ैल गई. किसी काफ़िर ने इस पर यूँ चुटकी लिया,
"मालूम होता है तुम्हारे शैतान ने तुम्हें छोड़ दिया है."
मुहम्मद पर बड़ा लतीफ़ तंज़ था, जिस हस्ती को वह अपना अल्लाह मुश्तहिर करते थे, काफ़िर उसे उनका शैतान कहा करते थे. इसी के जवाब में खुद साख्ता रसूल की ये पिलपिली आयतें हैं.
नमाज़ियो !
इन आसमानी आयतों को बार बार दोहराओ. इसमें कोई आसमानी सच नज़र आता है क्या? खिस्याई हुई बातें हैं, मुँह जिलाने वाली.
यहाँ मुहम्मद खुद कह रहे हैं कि वह मालदार हो गए हैं. जिनको इनके चापलूस आलिमों ने ज़िन्दगी की मुश्किल तरीन हालत में जीना इनकी हुलिया गढ़ रखा है. ये बेशर्म बड़ी जिसारत से लिखते है कि मरने के बाद मुहम्मद के पास चाँद दीनार थे. मुहम्मद के लिए दस्यों सुबूत हैं कि वह अपने फायदे को हमेशा पेश इ नज़र रखा. तुम्हारे रसूल औसत दर्जे के एक अच्छे इंसान भी नहीं थे. 



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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