Tuesday 12 May 2015

Soorah Bakr 3 (117-18-27-30-33

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह अलबकर २ पहला पारा 2 
(तीसरी किस्त) A 117-133

अल्लाह की तरफ़ से भेजी गई कच्ची वातों पर जब लोग उंगली उठाते हैं और मुहम्मद को अपनी गलती का एहसास होता है तो उस आयत या पूरी की पूरी सूरह अल्लाह से मौकूफ (अमान्य) करा देते हैं। ये भी उनका एक हरबा होता. अल्लाह न हुवा एक आम आदमी हुवा जिस से गलती होती रहती है, उस पर ये कि उस को इस का हक है। बड़ी जोरदारी के साथ अल्लाह अपनी कुदरत की दावेदारी पेश करते हुए अपनी ताक़त का मजाहरा करता है कि वह कुरानी आयातों में हेरा-फेरी कर सकता है, इसकी वह कुदरत रखता है, कल वह ये भी कह सकता है कि वह झूट बोल सकता है, चोरी, चकारी, बे ईमानी जैसे काम भी करने की कुदरत रखता है। 
ज़बान बदलू अल्लाह कहता है - - - 
" हम किसी आयत का हुक्म मौकूफ़ कर देते हैं या उस आयत को फ़रामोश कर देते हैं तो उस आयत से बेहतर या उस आयत के ही मिस्ल ले आते हैं। क्या तुझ को मालूम नहीं कि अल्लाह ताला ऐसे हैं कि इन्हीं की सल्तनत आसमानों और ज़मीन की है और ये भी समझ लो कि तुम्हारे हक ताला के सिवा कोई यारो मदद गार नहीं। "
(सूरह अल्बक्र २ पहला पारा आयत) 
मुहम्मद इस कदर ताकत वर अल्लाह के ज़मीनी कमांडर बन्ने की आरजू रखते थे। 
" अल्लाह ताला जब किसी काम को करना चाहता है तो इस काम के निस्बत इतना कह देता है कि कुन यानी हो जा और वह फाया कून याने हो जाता है " 
(सूरह अल्बक्र २ पहला पारा आयत 117) 
विद्योत्मा से शिकस्त खाकर मुल्क के चार चोटी के क़ाबिल ज्ञानी पंडित वापस आ रहे थे , रास्ते में देखा एक मूरख (कालिदास) पेड़ पर चढा उसी डाल को काट रहा था जिस पर वह सवार था, उन लोगों ने उसे उतार कर उससे पूछा राज कुमारी से शादी करेगा? प्रस्ताव पाकर मूरख बहुत खुश हुवा। पंडितों ने उसको समझया की तुझको राज कुमारी के सामने जाकर बैठना है, उसकी बात का जवाब इशारे में देना है, जो भी चाहे इशारा कर दे। मूरख विद्योत्मा के सामने सजा धजा के पेश किया गया , विद्योत्मा से कहा गया महाराज का मौन है, जो बात चाहे संकेत में करें. राज कुमारी ने एक उंगली उठाई, जवाब में मूरख ने दो उँगलियाँ उठाईं. बहस पंडितों ने किया और विद्योत्मा हार गई। दर अस्ल एक उंगली से विद्योत्मा का मतलब एक परमात्मा था जिसे मूरख ने समझा वह उसकी एक आँख फोड़ देने को कह रही है. जवाबन उसने दो उंगली उठाई कि जवाब में मूरख ने राज कुमारी कि दोनों आखें फोड़ देने कि बात कही थी. जिसको पंडितों ने आत्मा और परमात्मा साबित किया. 
कुन फाया कून के इस मूर्ख काली दास की पकड़ पैगम्बरी फार्मूला है जिस पर मुस्लमान क़ौम ईमान रक्खे हुए है। ये दीनी ओलिमा कलीदास मूरख के पंडित हैं जो उसके आँख फोड़ने के इशारे को ही मिल्लत को पढा रहे है, दुन्या और उसकी हर शै कैसे वजूद में आई अल्लाह ने कुन फया कून कहा और सब हो गया. तालीम, तहकीक और इर्तेकई मनाजिल की कोई अहमियत और ज़रूरत नहीं. डर्बिन ने सब बकवास बकी है. सारे तजरबे गाह इनके आगे फ़ैल. उम्मी की उम्मत उम्मी ही रहेगी, इसके पंडे मुफ्त खोरी करते रहेंगे उम्मत को दो+दो+पॉँच पढाते रहेंगे . यही मुसलामानों की किस्मत है। 
अल्लाह कुन फया कून के जादू से हर काम तो कर सकता है मगर पिद्दी भर शहर मक्का के काफिरों को इस्लाम की घुट्टी नहीं पिला सकता। ये काएनात जिसे आप देख रहे हैं करोरो अरबो सालों के इर्तेकाई रद्दे अमल का नतीजा है, किसी के कुन फया कून कहने से नहीं बनी । 
* अज ख़ुद ना ख्वान्दा और उम्मी मुहम्मद अपने से ज्यादा ज़हीनो को जाहिल के लक़ब से नवाजते हैं जिसकी वकालत आलिमान इस्लाम आज तक आखें बंद करके अपनी रोटियाँ चलाने के लिए करते चले आ रहे हैं - -
" कुछ जाहिल तो यूँ कहते हैं कि हम से क्यों नहीं कलाम फ़रमाते अल्लाह ताला? या हमारे पास कोई और दलील आ जाए। इसी तरह वह भी कहते आए हैं जो इन से पहले गुज़रे हैं, इन सब के कुलूब यकसाँ हैं, हम ने तो बहुत सी दलीलें साफ साफ बयाँ कर दी हैं" 
(सूरह अल्बक्र २ पहला पारा आयत 118) 
* नाम निहाद अल्लाह के ख़ुद साख्ता रसूल ढाई तीन हजार साल क़ब्ल पैदा होने वाले बाबा इब्राहीम से अपने लिए दुआ मंगवाते हैं, उस वक़त जब वह काबा की दीवार उठा रहे होते हैं- - - 
" और जब उठा रहे थे इब्राहीम दीवारें खानाए काबा की और इस्माईल भी--- (दुआ गो थे) ऐ हमारे परवर दिगार हम से कुबूल फरमाइए,बिला शुबहा आप खूब सुनने वाले हैं, जानने वाले हैं, ऐ हमारे परवर दिगार! हमें और मती बना लीजिए और हमारी औलादों में भी एक ऐसी जमात पैदा कीजिए जो आप की मती हो। और हम को हमारे हज के अहकाम बता दिजिए और हमारे हाल पर तवज्जे रखिए. फिल हकीक़त आप ही हैं तवज्जे फरमाने वाले मेहरबानी करने वाले. ऐ हमारे परवर दिगार! और इस जमात से इन्हीं में के एक ऐसे पैगम्बर भी मुकर्रर कीजिए जो इन लोगों को आप की आयत पढ़ पढ़ कर सुनाया करें और आसमानी किताब की खुश फ़हमी दिया करें और इन को पाक करें - - - और मिल्लते इब्राहिमी से तो वही रू गर्दानी करेगा जो अपनी आप में अहमक होगा.और हम ने इन को दुन्या में मुन्तखिब किया और वह आखिरत में बड़े लायक लोगों में शुमार किए जाते हैं" 
(सूरह अल्बक्र २ पहला पारा आयत 127-130)
इस तरह मुहम्मद एक चाल चलते हुए अपने चलाए हुए दीन इस्लाम को यहूदियों, ईसाइयों, और मुसलमानों के मुश्तरका पूर्वज बाबा इब्राहीम का दीन बनाने की कोशिश कर रहे हैं. गोया साँप और सीढ़ी का खेल खेल कर ख़ुद मूरिसे आला के गद्दी नशीन बन जाते हैं। इब्राहिम बशरी तारीख में एक मील का पत्थर है। इनकी जीवनी ऐबो हुनर के साथ तारीख इंसानी में पहली दास्तान रखती है। इसी लिए इनको फादर अब्राहम का मुकाम हासिल है। उसको लेकर मुहम्मद ने आलमी राय को गुराह करने की कोशिश की । 
सारा, बीवी के अलावा इब्राहीम की एक लौंडी हाजरा (हैगर) थी जिसका बेटा इस्माईल था जिसकी नस्लों से कुरैश और ख़ुद हज़रत हैं। साथ ही बतलाता चलूं कि इब्राहीम ने कुर्बानी अपने छोटे बेटे इसहाक इब्न सारा की दी थी, इस्माईल की नहीं जिसको मुहम्मद के कुरआन ने अल्लाह की गवाही में बदल दिया। आगे हदीस में देखिएगा कि मुहम्मद ने बाबा इब्राहीम को भी अपने सामने बौना कर दिया है। 
मुझे कुरानी इबारतों को सोंच सोंच कर हैरत होत्ती है कि क्या आज भी दुन्या में इतने कूढ़ मग्ज़ बाक़ी हैं जो इसे समझ ही नहीं पा रहे हैं? या इस्लामी शातिर इतने मज़बूत हैं कि जो इन पर गालिग़ हैं।कुरआन में पोशीदा धांधली तो मुट्ठी भर लोगों के लिए थी. रात के अंधेरे में सेंध लगाती थी, आज तो दिन दहाड़े डाका डाल रही है. तालीम की रौशनी में ऐसी मुहम्मदी जेहालत पर मासूम बच्चा भी एक बार सुन कर मानने से हिचकिचाए. 
" जिस वक्त याकूब का आखिरी वक्त आया अपने बेटों से पूछा, तुम लोग मेरे मरने के बाद किस चीज़ की परस्तिश करोगे? बेटों ने जवाब दिया हम लोग उसी की परस्तिश करेंगे जिस की आप, आप के बुजुर्ग, इब्राहीम, इस्माईल, इसहाक परस्तिश करते आऐ हैं, यानी वही माबूद जो वाद्हू ला शरीक है और हम उसी की एताअत पर रहेंगे " 
(सूरह अल्बक्र २ पहला पारा आयत १३२-133)
इस क़िस्म की आयतें कुरआन में वाकेआत पर आधारित बहुतेरी है जो सभी तौरेत की चोरी हैं मगर सब झूट का लबादा, हाँ जड़ ज़रूर तौरेत में छिपी है। इस वाकए की जड़ है कि यूसफ़ के ख्वाब के मुताबिक जो कि उसने देखा था कि एक दिन सूरज और चाँद उसके सामने सर झुकाए खड़े होंगे और ग्यारा सितारे उसके सामने सजदे में पड़े होंगे, जो कि पूरा हुवा, जब युफुफ़ मिस्र का बेताज बादशाह हुवा तो उसका बाप गरीब याकूब और याकूब की जोरू उसके सामने सर झुके खड़े थे और उसके तमाम सौतेले भाई शर्मिदा सजदे में पड़े थे. याकूब के सामने दीन का कोई मसला ही न था मसला तो ग्यारा औलादों की रोटी का था. मुहम्मद का यह जेहनी शगूफा कहीं नहीं मिलेगा, यूसुफ़ की दास्तान तारीख में साफ़ साफ़ है.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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