Friday 14 August 2015

Soorah Nisa 4 Part 9 (96124)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह निसाँअ ४ चौथा पारा  
किस्त 9
" मुहम्मदी अल्लाह कहता है जब ऐसे लोगों की जान फ़रिश्ते कब्ज़ करते हैं जिन्हों ने खुद को गुनाह गारी में डाल रक्खा था तो वोह कहते हैं कि तुम किस काम में थे? वोह जवाब देते हैं कि हम ज़मीन पर महज़ मग्लूब थे। वोह कहते हैं कि क्या अल्लाह की ज़मीन वसी न थी? कि तुम को तर्क वतन करके वहाँ चले जाना चाहिए था? सो इन का ठिकाना जहन्नम है।"
अल्लाह अपनी नमाजें किसी हालात में मुआफ नहीं करता, चाहे आजारी ओ लाचारी हो या फिर मैदाने जंग. मैदान जंग में आधे लोग साफ बंद हो जाएँ और बाकी नमाज़ की सफ में खड़े हो जाएँ. नमाज़ और रोजा अल्लाह की बे रहम ज़मींदार की तरह माल गुजारी है.बहुत देर तक और बहुत दूर तक अल्लाह अपने घिसे पिटे कबाडी जुमलो की खोंचा फरोशी करता है, फिर आ जाता है अपनी मुर्ग की एक टांग पर. 
"जो शख्स अल्लाह और उसके रसूल की पूरी इताअत करेगा, अल्लाह ताला उसको ऐसी बहिश्तों में दाखिल करेगा जिसके नीचे नहरें जारी होंगी, हमेशा हमेशा इन में रहेगे. यह बड़ी कामयाबी है." 
सूरह निसाँअ पाँचवाँ पारा- आयात (96-122) 
फिर एक बार कूढ़ मगजों के लिए मुहम्मदी अल्लाह कहता है - - - 
" और जो शख्स कोई नेक काम करेगा ख्वाह वोह मर्द हो कि औरत बशरते कि वोह मोमिन हो, सो ऐसे लोग जन्नत में दाखिल होंगे और इन पर ज़रा भी ज़ुल्म न होगा।" 
सूरह निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (124) 
अल्लाह न जालिम है न रहीम .करोरों साल से दुन्या क़ायम है ईमान दारी के साथ उसकी कोई खबर नहीं है, अफवाह, कल्पना, और जज़्बात की बात बे बुन्याद होती हैं. खुद मुहम्मद ज़ालिम तबाअ थे और अपने हिसाब से उसका तसव्वुर करते हैं. आम मुसलमानों में जेहनी शऊर बेदार करने के लिए खास अहले होश और बुद्धि जीवियों को आगे आने की ज़रुरत है। 

हलाकू के समय में अरब दुन्या का दमिश्क शहर इस्लामिक माले गनीमत से खूब फल फूल रहा था. ओलिमाए दीन (धर्म गुरू)झूट का अंबार किताबों की शक्ल में खड़ा कर रहे थे. हलाकू बिजली की तरह दमिश्क पर टूटा, लूट पाट के बाद इन ओलिमाओं की खबर ली, सब को इकठ्ठा किया और पूछा यह किताबें किस काम आती हैं? 
जवाब था पढने के। फिर पूछा - 
सब कितनी लिखी गईं? 
जवाब- साठ हज़ार । 

सवाल - - साठ हज़ार पढने वाले ? ?
 फिर साठ हज़ार और लिखी जाएंगी ???
इस तरह यह बढती ही जाएंगी. 
फिर उसने पूछा तुम लोग और क्या करते हो? 
ओलिमा बोले हम लोग आलिम हैं हमारा यही काम है। 

हलाकू को हलाक़त का जलाल आ गया । हुक्म हुवा कि इन किताबों को तुम लोग खाओ. 
ओलिमा बोले हुज़ूर यह खाने की चीज़ थोढ़े ही है। 

हलाकू बोला यह किसी काम की चीज़ नहीं है, और न ही तुम किसी काम की चीज़ हो। हलाकू के सिपाहिओं ने उसके इशारे पर दमिश्क की लाइब्रेरी में आग लगा दी और सभी ओलिमा को मौत के घाट उतर दिया. आज भी इस्लामिक और तमाम धार्मिक लाइब्रेरी को आग के हवाले कर देने की ज़रुरत है.
क़ज़ज़ाक़ लुटेरे और वहशी अपनी वहशत में कुछ अच्छा भी कर गए. 
हलाकू का ही पोता चंगेज़ खान जिसने इस्लाम को क़ज़ज़ाक़ की परम्परा में अपनाया। 

मुसलमान होने के बाद उसने दो मुल्लाओं को नौकरी पर रख लिया कि वह समय समय पर उसकी रहनुमाई किया करें कि हमारी शर्तों पर इस्लाम क्या कहता है - - -
उनमें एक थे बड़े मुल्ला और दुसरे छोटे मुल्ला, 
दोनों एक दुसरे के छुपे दुश्मन। 

एक दिन अचनाक चंगेज़ कि बूढी माँ मर गई। बड़े मुल्ला इस्लामिक तौर तरीके बतलाने के लिए तलब किए गए, बाक़ी मंगोली कबीलाई एतबार से जो होता है वह होगा, उस से इस्लाम का कोई लेना देना नहीं. 
माँ के साथ साथ उसके तमाम नौकर चाकर, साजो सामान, कुछ दिनों का खाना पीना दफन करना तय हवा। मौक़ा मुनासिब था कि बड़े मुल्ला छोटे को इसी बहाने निपटा दें.
चंगेज़ को राय दिया कि हुज़ूर कब्र में मुनकिर नकीर मुर्दे को ज़िदा करके सवाल जवाब के लिए आते है, एक मुल्ला की वहां ज़रुरत पड़ेगी, अम्माँ बेचारी कहाँ जवाब दे पाएगी ? बेहतर है कि छोटे मुल्ला को इन के हमराह कर दें। वह बहुत काबिल भी है. 
चंगेज़ को बात मुनासिब लगी और हुक्म हुवा कि छोटे मुल्ला को अम्माँ के साथ दफ़न कर दिया जाए। हुक्म सुन कर छोटे मुल्ला की जान निकल गई कि यह कारस्तानी बड़े की है. भाग कर चंगेज़ के पास गया और बोला यह क्या नादानी कर रहे हैं आप?. 
आप ने सुना नहीं कि बड़ा होकर भी उसने मेरी तारीफ की। मैं यकीनन उस से ज्यादा काबिल हूँ.आप मुझको अपने लिए बचा के क्यूं नहीं रखते, आप के सर लाखों के खूनों का गुनाह है मैं बखूबी मुनकिर नकीर से निम्टूगा, अम्माँ के लिए इस बूढ़े मुल्ला को भेज दें,ये मुनासिब होगा. 
चंगेज़ को बात समझ में आ गई और बड़े मुल्ला जी बुढिया के साथ दफ़न कर दिए गए।

क़ज़ज़ाक़ों का क़ज़ज़ाकिस्तान इस्लाम के असर में आकर एक इस्लामी मुल्क बन गया था।७९ साल तक रूस की लामजहबयत ने उसे मुसलमान से इंसान बनाया फिर वह आज़ाद हुए. 

आज़ाद क़ज़ज़ाकिस्तान के सामने मुस्लिम मुमालिक ने फिर इस्लामी लानत के टुकड़े फेंके जिसे उस जगी हुई कौम ने ठुकरा दिया।चंगेज़ का पोता तैमूर लंग हुवा जिसकी ज़ुल्म की कहानी दिल्ली कभी नहीं भूलेगी। तैमूर का पोता बाबर, बाबर के पोते दर पोते बहादुर शाह ज़फर और उनकी पोती आज कोलकोता की गली में चाय कि फुटपथी दूकान पर झूटी प्यालियाँ धोती है.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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