Friday 2 October 2015

Soorah anaam 6 Part 3 (11-24)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह अनआम ६
(तीसरी किस्त)
हिदुस्तान का सितारा फ़ी वक़्त दिशा हीन और गर्दिश में है. अक्ल्लियत के मुट्ठी भर ऐसे लोग हर तिमाही कुछ न कुछ धमाकेदार तोहफा मुल्क को अर्पित करते है. उनकी दहशत गर्दी उनके धर्म में मिले सबक से उन्हें मिलता है. 
कुरआन उनको जिहाद करने की हिदायत करता है, और वह अपनी जान की परवाह किए बगैर उस पर अमल करते हैं. जो क़ुरआनी तालीम उन्हें आतंक सिखलाती है, उसके तालीम के लिए सरकार उनके मुल्ला और मोलवियों का पालन सरकार करती है. हैरत का मुकाम है कि सीधे सीधे सरकार इनकी मदद करती है. मैं बार बार लिखता हूँ कि क़ुरआनी तालीम पर बंदिश लगाई जाय, मगर सियासत दानों को इसकी ज़रुरत है .
कुरआन पर पाबन्दी लगा देना कोई बड़ी बात नहीं है, मगर इसके सामानांतर मनु स्मृत जैसे हिन्दू धर्म ग्रन्थ पर पाबन्दी आयद करना. इससे तो तथा कथित गणतंत्र की मौत होगी.
सब ऐसे ही चलता रहेगा, जब तक सारे भारत वाशी धर्म ओ मज़हब के ज़हर को नहीं पहचानते.
अब आइए कुरआनी अल्लास कि जेहालत पर - - -

''और अगर हम कागज़ पर लिखा हुवा कोई नविश्ता आप पर नाज़िल फ़रमाते, फिर ये लोग इसको अपने हाथ से छू भी लेते, तब भी ये काफ़िर यही कहते, ये कुछ भी नहीं, सही जादू है और अगर हम इन को फ़रिश्ते तजवीज़ करते तो इसको आदमी ही बनाते . . . आप फ़रमा दीजिए ज़रा ज़मीन पर चलो फिरो देख लो कि तक्ज़ीब करने वालों का कैसा अंजाम हुवा.''
सूरह अनआम -६-७वाँ पारा आयत (11)
फिर मैं कुरआन के पाठकों को याद दिला दूं कि नाज़िल कोई प्रकोप ही होता है वरदान नहीं. जैसा कि मैं ने कुरआन की व्याख्या की शुरू में बतलाया था कि इस्लाम के प्रकोपित ओलिमा ने बहुत से लफ्जों के माने कुछ के कुछ कर दिए हैं. वैसे ही कुरआन वरदानित नहीं हुवा है बल्कि मुहम्मद पर प्रकोपित हुवा है. नाज़िल हुवा है. जिसे खुद वह गा बजा रहे हैं. कुरआन मुसलमानों पर मुहम्मदी अल्लाह का नज़ला है, नज़ला एक तरह की बीमारी है जो आधी बीमारियों कि जड़ होता है. जब तक मुसलमान इस नजला को नेमत समझता रहेगा उसका कल्याण कभी नहीं हो सकता. कुरआन किसी बरतर ताक़त का कलाम नहीं बल्कि एक चालाक अहमक की बतकही है.
"आप फरमा दीजिए कि मुझे ये हुक्म हुवा है कि सब से पहले मैं इस्लाम कुबूल करूँ और तुम इन मुशरिकीन में से हरगिज़ न होना. आप फरमा दीजिए कि अगर मैं अपने रब का कहना न मानूँ तो मैं एक बड़े दिन के अज़ाब से डरता हूँ.''
इन आयतों का तर्जुमा इस्लाम के मशहूर आलिम मौलाना शौकत अली थानवी का है. देखें कि उनका अल्लाह फूहड़ है या फिर उसका रसूल या फिर मौलाना का तर्जुमा. यह थानवी साहब वही हैं जो लड़कियों के तालीम के खिलाफ थे, क़ुरआन, हदीस, और अपनी गढ़ी हुई कठमुल्लाई किताबों (जैसे बेहिश्ती ज़ेवर) तक में उन्हों ने लड़कियों को एक सदी तक महदूद रखा. 
रसूल कैसा बच्चों को फुसला रहे है. अल्लाह जल्ले जलालहु उम्मी को आप फरमा दीजिए कह कर बात करता है, फिर अगली सांस में ही तुम पर उतर आता है. नाबालिग़ मुसलमान ऐसी पैगम्बरी की शान में नातें पढ़ रहे हैं.
अनआम -६-७वाँ पारा आयत (15)
क़ुरआन में मुस्म्मद ने जेहालत की दलीलें ऐसी फिट कीं हैं कि साहिबे इल्म अपना सर पीटे या उनका, मगर सदियों से यह दलीलें बेज़मीर ओलिमा सर झुकाए हुए बुजदिल कौम को समझा रहे हैं और उनके साथ हुकूमत की तलवारें आज भी उनके सरों पर झूल रही हैं, किसी इन्कलाब की आहट नहीं है. खुद को अल्लाह का रसूल और क़ुरआन को अल्लाह का कलाम साबित करने के लिए मुहम्मद अल्लाह की गवाही को काफी बतलाते हैं, बगैर किसी अदालत, मुक़दमा और वकील के, वही अल्लाह जिसको उन्हों से खुद गढा है. कहते हैं कि अगर अल्लाह ने कोई तकलीफ दिया है तो वही दूर करने वाला भी है.यह बात मुस्लिम समाज की इतनी दोहराई गई है कि गैर मुस्लिम भी यह गान गाने लगे हैं. मौत का मज़ा चखाने वाला भी यही ज़ालिम अल्लाह मुस्लिम समाज से है.अल्लाह मियाँ मुहम्मद से कहते हैं
''क्या तुम सचमुच गवाही दोगे कि अल्लाह के साथ और कोई देव भी हैं? आप कह दीजिए कि मैं तो गवाही नहीं देता. आप कह दीजिए कि वह तो बस एक ही माबूद है और बेशक मैं तुम्हारे शिर्क से बेजार हूँ"
उम्मी मुहम्मद की उम्मियत की इन जुमलों से बढ़ कर कोई गवाही नहीं हो सकती. इन मोहमिलात और अपनी पागलों कि सी बातों से खुद मुहम्मद परेशान हुए होंगे और इन बातों से पीछा छुडाते हुए इसे अल्लाह का कलाम करार दे दिया और इसकी तिलावत सवाब करार दे दी गई.'' जिन लोगों को हमने किताब दी वह लोग इसको इस तरह पहचानते हैं जिस तरह बेटों को पहचानते हैं.

हाँ! आलमे इंसानियत के लिए ना लायक़ और ना जायज़ बेटों की तरह.

'' जिन लोगों ने अपने आप को ज़ाया कर लिया वह ईमान न लाएंगे''
सच तो ये है वह ज़ाया हुवा जो उम्मी के नाक़बत अनदेशियों और उसकी जेहालत का शिकार हुवा.
फिर एक बार क़यामत में मुशरिकों पर मुक़दमे का सिलसिला शुरू होता है और उम्मी मुहम्मद की हठ धर्मी की गुफ्तुगू. हम इस मुसीबत की तफसील में जाना नहीं चाहते, अजीयत पसंद चाहें तो तर्जुमा पढ़ लें वर्ना वास्ते तिलावत टालें.''

सूरह अनआम -६-७वाँ पारा आयत (१६-२४) 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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