Friday 16 October 2015

Soorah Anam 6 Part 7 (75-94)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह अनआम ६-
(सातवीं किस्त)
जेहनी ग़ुस्ल 

ज़िन्दगी एक दूभर सफ़र है,
 यह तन इसका मुसाफ़िर है. 
आसमान के नीचे धूप, धूल और थकान के साथ साथ सफ़र करके हम बेहाल हो जाते हैं। मुसाफ़िर पसीने पसीने हो जाता है, लिबास से बदबू आने लगती है, तबीअत में बेज़ारी होने लगती है, ऐसे में किसी साएदार पेड़ को पाकर हम राहत महसूस करते है. कुछ देर के लिए इस मरहले पर सुस्ताते हैं, पानी मिलगया तो हाथ मुंह भी धो लेते हैं मगर यह पेड़ का साया सफ़र का मरहला होता है, हमें पूरी सेरी नहीं देता। हमें एक भरपूर स्नान की ज़रुरत महसूस होती है। 
इस सफ़र में अगर कोई साफ़ सफ़फ़ाफ़ और महफूज़ गुस्ल खाना हमको मिल जाए तो हम अन्दर से सिटकिनी लगा कर, सारे कपडे उतार के फेंक देते हैं और मादर ज़ाद नंगे हो जाते हैं, फिर जिस्म को शावर के हवाले कर देते हैं. अन्दर से सिटकिनी लगी हुई है कोई खटका नहीं है. सामने कद्दे आदम आईना लगा हुआ है. इसमें बगैर किसी लिहाज़ के अपने पूरे जिस्म का जायज़ा लेते है, आखिर यह अपना ही तो है. बड़े प्यार से मल मल कर अपने बदन के हर हिस्से से गलाज़त छुडाते हैं. 
जब बिलकुल पवित्र हो जाते हैं तो खुश्क तौलिए से शारीर को हल्का करते हैं, इसके बाद धुले जोड़े पहेन कर संवारते हैं. इस तरह सफ़र के तकान से ताज़ा दम होकर हम अगली मंजिल की तरफ क़दम बढ़ाते हैं.
ठीक इसी तरह हमारा दिमाग भी सफ़र में है, 
सफ़र के तकान से बोझिल है। 
सफ़र के थकान ने इसे चूर चूर कर रखा है. 
जिस्म की तरह ही ज़ेहन को भी एक हम्माम की ज़रुरत है मगर इसके तकाज़े से आप बेखबर हैं जिसकी वजेह से ग़ुस्ल करने का एहसास आप नहीं कर पा रहे हैं। 
नमाज़ रोज़े पूजा पाठ और इबादत को ही हम ग़ुस्ल समझ बैठे हैं। यह तो सफ़र में मिलने वाले पेड़ नुमा मरहले जैसे हैं, हम्मामी मंज़िल की नई राह नहीं. 
जेहनी ग़ुस्ल है इल्हाद, नास्तिकता जिसे की धर्म और मज़हब के सौदागरों ने गलत माने पहना रखा है, गालियों जैसा घिनावना. 
बड़ी हिम्मत की ज़रुरत है कि आप अपने ज़ेहन को जो भी लिबास पहनाए हुए हैं, महसूस करें कि वह सदियों के सफ़र में मैले, गंदे और बदबूदार हो चुके हैं. इसको नए, फितरी, लौकिक ग़ुस्ल खाने में इन मज़हबी कपट के बोसीदा लिबास को उतार फेंकिए और एक दम उरियाँ हो जाइए, वैसे ही जैसे आपने अपने शारीर को प्यार और जतन से साफ़ किया था , अपने जेहन को नास्तिकता और नए मानव मूल्यों के साबुन से मल मल कर  धोइए. 
जदीद तरीन इंसानी क़दरों की सुगंध में नहाइए, जब आप तबदीली का ग़ुस्ल कर रहे होंगे कोई आप को देख नहीं रहा होगा, अन्दर से सिटकिनी लगी हुई होगी. शुरू कीजिए दिमागी ग़ुस्ल. 
धर्मो मज़हब, ज़ात पात की मैल को खूब रगड़ रगड़ कर साफ़ कीजिए, हाथ में सिर्फ इंसानियत का कीम्याई साबुन हो. इस ग़ुस्ल से आप के दिमाग का एक एक गोशा पाक और साफ़ हो जाएगा. धुले जोड़ों को पहन कर बाहर निकलिए. अपनी शख्सियत को बैलौस, बे खौफ जसारत के जेवरात से सजाइए, इस तरह आप वह बन जाएँगे जो बनने का हक कुदरत ने आप को अता किया है.
याद रखें जिस्म की तरह ज़ेहन को भी ग़ुस्ल की ज़रुरत हुवा करती है। सदियों से आप धर्म ओ मज़हब का लिबास अपने ज़ेहन को पहनाए हुए हैं जो कि गूदड़ हो चुके हैं. इसे उतार के आग या फिर क़ब्र के हवाले कर दें ताकि इसके जरासीम किसी दूसरे को असर अंदाज़ न कर सकें. नए हौसले के साथ खुद को सिर्फ एक इंसान होने का एलान कर दें.
अब मुहम्मदी अल्लाह की गैर फ़ितरी और इंसानियत सोज़ बाते सुनें - - -

''जब इब्राहीम ने अपने बाप आज़र से फ़रमाया की क्या तू बुतों को माबूद करार देता है? बेशक मैं तुझको और तेरी सारी कौम को सरीह ग़लती में देखता हूँ.''
सूरह अनआम ७वां पारा आयत (७५)
इब्राहीम का बाप आज़र एक मामूली और गरीब बुत तराश था, जो अपने बेटे को अक्सर समझाता रहता कि बेटे हिजरत कर, हिजरत में बरकत है . यहाँ कुछ न कर पाएगा. बाहर निकल तुझे दूध और शहेद की नदियों वाला देश मिलेगा. 
फ़रमा बरदार बेटे इब्राहीम ने अपनी जोरू सारा और भतीजे लूत को लेकर एक रोज़ बाहर की राह अख्तियार की जिसको मुहम्मद ने गुस्ताखाना कहानी की शक्ल देकर अपना कुरआन बनाया है. 
मुहक्म्मद ने अब्राहम के बाप तेराह (आज़र) को बिला वजेह कुरआन में बार बार रुसवा किया है, ये मुहम्मद की मन गढ़ंत है. सच पूछिए तो वह ही इंसानी इतिहास के शुरुआत हैं.
''हमने ऐसे ही तौर पर इब्राहीम को आसमानों और ज़मीन की मख्लूकात (जीव) दिखलाईं और ताकि वह कामिल यक़ीन करने वाले बन जाएं फिर जब रात को तारीकी उन पर छा गई तो उन्हों ने एक सितारा देखा तो फ़रमाया ये हमारा रब है, फिर जब वह ग़ुरूब हो गया तो फ़रमाया मैं ग़ुरूब हो जाने वालों से मुहब्बत नहीं करता. फिर जब चाँद को चमकता हुवा देखा तो फ़रमाया ये मेरा रब है. सो जब वह ग़ुरूब हो गया तो फ़रमाया कि मेरा रब मुझ को हिदायत न करता रहे तो मैं गुमराह लोगों में शामिल हो जाऊं - - -''
सूरह अनआम ७वां पारा आयत (७६-७७-७८)
इब्राहीम, इस्माईल वगैरा का नाम भर यहूदियों और ईसाइयों से उम्मी मुहमद ने सुन रखे थे. इन पर किस्से गढ़ना इनकी जहनी इख्तेरा है. मुहम्मद की मंजिले मक़सूद थी ईसा मूसा की तरह मुकाम पाना जिसमें वह कामयाब रहे मगर इंसानी क़दरों में दागदार उनके पोशीदा पहलू उनको कभी मुआफ नहीं कर सकते. मुहम्मद के अन्दर छुपा हुआ शैतान उन्हें इंसानियत का मुजरिम करार ठहराएगा. 
जैसे जैसे इंसानियत बेदार होगी मुसलमानों के लिए बहुत बुरे दिन आने के इमकान है. 

''और ये ऐसी किताब है जिसको हमने नाजिल किया है, जो बड़ी बरकत वाली है और पहले वाली किताबों की तस्दीक करने वाली है और ताकि आप मक्का वालों को और इस के आस पास रहने वालों को डरा सकें।'' 
सूरह अनआम ७वां पारा आयत (९३)
जो शै डराए वह बरकत वाली कैसे हो सकती है? शैतान, भूत, परेत, सांप, दरिन्दे गुंडे, सब डराते हैं, यह सब मुफ़ीद कैसे हो सकते हैं? 
मुहम्मद की जेहालत और उनका क़ुरआन दर असल कौम के लिए अज़ाब बन सकते हैं.
''और उस शख्स से ज़्यादः ज़ालिम कौन होगा जो अल्लाह पर झूट तोहमत लगाए या यूं कहे की मुझ पर वही (ईश वाणी) आती है, हालाँकि उस के पास किसी बात की वही नहीं आती. और जो कहे जैसा कलाम अल्लाह ने नाज़िल किया है , इसी तरह का मैं भी लाता हूँ और अगर आप उस वक़्त देखें जब ज़ालिम लोग मौत की सख्तियों में होंगे और फ़रिश्ते अपने हाथ बढ़ा रहे होंगे - - - हाँ ! अपनी जानें निकालो. आज तुमको ज़िल्लत की सज़ा दी जाएगी, इस लिए की तुम अल्लाह के बारे में झूटी बातें बकते थे और तुम इस की आयात से तकब्बुर करते थे.''
सूरह अनआम ७वां पारा आयत (९४)
मुहम्मद को पैगम्बरी का भूत सवार था वह गली कूचे सड़क खेत और खलियान में क़ुरआनी आयतें गाते फिरते और दावा करते कि अल्लाह की भेजी हुई इन वहियों के मुकाबिले में कोई एक आयत तो बना कर दिखलाए. लोग इनकी नकल में जब आयतें गढ़ते तो यह राहे फरार में इस किस्म की बकवास करते. इसे अपने अल्लाह की तरफ से नाज़िल बतलाते. 
मुहम्मद ऐसे लोगों को ज़ालिम कहते जो इनकी नक़ल करते जब कि बज़ात खुद वह ज़ालिम नंबर एक थे 

''और उस शख्स से ज़्यादः ज़ालिम कौन होगा जो अल्लाह पर झूट तोहमत लगाए'' 
कौन बेवकूफ रहा होगा जो खालिक़े कायनात पर बोहतान जड़ता रहा होगा? मुहम्मद अपनी इन मक्र और बे शर्मी की बातों से अवाम को गुम राह कर रहे हैं. 
मुहम्मद खुद उस पाक और बे नयाज़ जात को अपनी फूहड़ बातों से बदनाम कर रहे हैं. 
कैसी अहमकाना बातें हैंकि जालिमों को मौत से डराते हैं जैसे खुद मौज उड़ाते हुए मरेंगे.
''ऐसा होगा क़यामत के दिन का मुसलामानों का काफिरों पर ताना. जन्नत सिर्फ़ मुसलामानों को ही मिलेगी, वह भी जो नेक आमाल के होंगे, 
नेक आमाल नेक काम नहीं बल्कि मुहम्मद नमाज़ रोज़ा ज़कात और हज वगैरा में नेकी देखते हैं. ईसाई,यहूदी और सितारा परस्त के लिए तो जन्नत में जगह नहीं है, जिनकोकि मुहम्मद साहबे किताब मानते हैं, मगर काफिरों (मूर्ति-पूजक)के लिए तो दहेकती हुई दोज़ख धरी हुई है, भले ही खुद अनाथ मुहम्मद को पालने वाले दादा और चाचा ही क्यूं न हों. 
उम्मी मुहम्मद को इस दलील से कोई वास्ता नहीं कि जिसने इस्लामी पैगाम सुना ही न हो या जो इस्लाम से पहले हुआ हो वह भला दोजखी क्यूं होगा??ऐसे हठ धर्म कुरआन को इस्लामी जंगजूओं ने माले ग़नीमत को जायज़ करार देने के बाद चौथाई दुन्या को पीट पीट कर तस्लीम कराया है. 
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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