Friday 31 January 2020

शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (14)


शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (14)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
*जो इस जीवत्मा को मारने वाला समझता है तथा जो इसे मरा हुवा समझता है, वह दोनों ही अज्ञानी हैं, क्योंकि आत्मा न मरता है और न मारा जाता है.
**आत्मा के लिए किसी भी काल में न जन्म है न मृत्यु. वह न तो कभी जन्मा है न जन्म लेता है, न जन्म लेगा. वह अजन्मा, नित्य, शाश्वत तथा पुरातन है.शरीर के मारे जाने पर वह मारा नहीं जाता.
श्रीमद्  भगवद् गीता अध्याय 2   श्लोक 19 +20 +++++

अर्जुन युद्ध करने से कतराते हैं . 
कहते हैं कि अपने भाइयों को मारने से अच्छा है कि मैं ही मारा जाऊँ, 
इस पर भगवन उन्हें यह पट्टी पढ़ाते हैं . 
मामला गो़र तलब है. 
अर्जुन प्रतियक्ष शरीर की बात करते हैं 
तो भगवान् परोक्ष आत्मा की सुनाते हैं, 
यह धर्म है या अधर्म.

और क़ुरआन कहता है - - - 
"अगर अल्लाह को मंज़ूर होता वह लोग (मूसा के बाद किसी नबी की उम्मत) उनके बाद किए हुआ बाहम कत्ल ओ क़त्ताल नहीं करते, 
बाद इसके, इनके पास दलील पहुँच चुकी थी, 
लेकिन वह लोग बाहम मुख़्तलिफ़ हुए 
सो उन में से कोई तो ईमान लाया और कोई काफ़िर रहा. 
और अगर अल्लाह को मंज़ूर होता तो वह बाहम क़त्ल ओ क़त्ताल न करते 
लेकिन अल्लाह जो कहते है वही करते हैं" 
(सू रह अलबकर-२ तीसरा पारा तिरकर रसूल आयत २५३) 
धर्म व मज़हब के मंतर भाषा के दांव पेच से रचे हुवे मिलते हैं. सवाल उठता है कि यह रूहानियत के सौदागर आख़िर इंसानी जान के दुश्मन क्यूँ हैं ?
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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