मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
'' हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी'' का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
सूरह नूर २४-१८वाँ पाराThe Light
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सूरह नूर मुहम्मद की जाती ज़िन्दगी का एक बड़ा सनेहा (विडंबना) के रद्दे-अमल में नाजिल हुई है. दौराने-सफ़र बूढ़े रसूल की नवखेज़ बीवी पर बद चलनी का इलज़ाम लग गया था. जब वह सफ़र में अपने काफिले से बिछड़ गई थीं. थोड़ी देर बाद ऊँट पर सवार, पराए मर्द के साथ आती दिखाई पड़ीं. वह ना-महरम (अपरिचित) ऊँट की नकेल थामे उसके आगे आगे पैदल चला आ रहा था. इस पर काफिले के कुछ शर-पसंद लोगों ने आयशा पर इलज़ाम तराशी कर दी. माहौल में चे-में गोइयाँ होने लगीं. इलज़ाम तराशों का पलड़ा भारी होता देख कर खुद अल्लाह के रसूल भी उन लोगों के साथ हो गए. आयशा इस सदमें को बर्दाश्त ना कर सकीं और शदीद बीमार हो गईं. एक महीने बाद मुहम्मद में जेहनी बदलाव आया और वह पुरसा हाली के लिए आयशा के पास पहुंचे. आयशा ने नफरत से उनकी तरफ से मुँह फेर लिया. मुहम्मद ने जिब्रीली पुडिया आयशा को थमाने की कोशिश की कि अल्लाह की वह्यी (ईश-वाणी) आ गई है कि तुम निर्दोष हो. आयशा ने कहा "मैं क्या हूँ ,ये मैं जानती हूँ और मेरा अल्लाह, मुझे किसी की शहादत की ज़रुरत नहीं है".
बाप अबू बकर के समझाने बुझाने पर एक बार फिर आयशा मान गई, जैसे छै साल की उम्र में बूढ़े के साथ निकाह के लिए मान गई थी और मुहम्मद को उसने मुआफ कर दिया.देखिए कि इस पूरी सूरह में मुहम्मद ने कैसे गिरगिट की तरह रंग बदला है. - - -
पहले ही संग सार के गैरत से मर गई।
सूरह नूर २४-१८ वाँ पारा आयत (३-४)पीर पैगमबर और महान आत्माएँ बड़ी से बड़ी गलतियों को माफ़ कर दिया करते हैं, साजिशी रसूल इंसानों की छोटी छोटी खताओं पर कैसे कैसे ज़ुल्म ढाने के पैगाम पेश कर रहे हैं? अभी T .V . पर एक खातून को ज़मीन में दफ़्न करते हुए मुहम्मदी अल्लाह के जल्लाद उस पर आखरी दम में संगसारी करते हुए उसकी शक्ल बिगाड़ रहे थे, देख कर कलेजा मुँह में आ गया. उफ़! मुहम्मद के दीवाने और दीवानगी की हद.मदीने में एक था"अब्दुल्ला बिन अबी इब्ने सलूल" यह अंसारी नौजवान मदीने के निगहबानी के लिए उस वक़्त चुनाव लड़ने की तय्यारी ही कर रहा था जब मुहम्मद हिजरत करके मक्के से मदीना आए . मुआहम्मद की आमद से इस के रंग में भंग पड़ गया था. पहले भी इससे मुहम्मद की नोक-झोक हो चुकी थी. अब्दुल्ला बिन अबी इब्ने सलूल ने कबीलाई माहौल में इस्लाम तो क़ुबूल कर लिया था मगर मुहम्मद को ज़क देने के कोई भी मौक़ा ना चूकता.
मुहम्मद का तरीका था कि जंगी लूट-पाट और मार-काट (जेहाद) पर जब जाते तो अपनी बीवियों में से किसी एक का इंतेखाब करके साथ ले जाते. इस जेहाद में नंबर था आयशा का. लूट मार-काट करके किसी जेहाद से मुहम्मद वापस मदीने आ रहे थे कि काफला पड़ाव के लिए रुका. आयशा ऊँट के कुजावा (वह हौद जो पर्दा नशीन औरतों के लिए होता है) से बहार निकलीं कि पेशाब पाखाने से फारिग हो लें. फारिग होकर जब वह वापस आईं तो देखा उनका हार उनके गले में ना था, तलाश के लिए वापस उस जगह तक गईं और तलाश करती रहीं. इसमें उनको इतना वक़्त लगा कि जंगी काफला आगे के लिए कूच कर चुका था. आयशा कहती हैं कि "यह देख कर कि लश्कर नदारद था, मुझे चक्कर आ गया और मैं बैठ गई कि अब क्या होगा मगर उम्मीद थी कि कोई वापस इनकी तलाश में आएगा उनको नींद आ गई बैठे बैठ सो गईं कि लश्कर के पीछे का निगराँ "सफवान इब्ने मुअत्तल'' आया जो उनको देख कर पहचान गया. उसने आयशा को ऊँट पर बिठाया और खुद ऊँट की नकेल पकड़ कर पैदल आगे आगे चला."
काफिले ने आयशा को ऊँट पर सवार एक ना महरम के साथ आते हुए देखा तो हैरत में पड़ गया, उसमें चे-में गोइयाँ होने लगीं. तेज़ तर्रार "अब्दुल्ला बिन अबी इब्ने सलूल" ने आयशा पर साजिश के साथ बद फेली का इलज़ाम लगा दिया और इस दलील के साथ बोहतान तराशी की कि लश्कर के ज़्यादा लोग उसकी बात को मान गए, यहाँ तक कि अल्लाह के नबी बने मुहम्मद भी भीड़ की आवाज़ में आवाज़ मिलाने लगे.इस वक़ेआ के बाद "सूरह नूर'' उतरी और अपने मुआमले को अपनी उम्मत के लिए कोड़े और संग सारी करके औरत को जिंदा दफन का कानून बना डाला.
"अब्दुल्ला बिन अबी इब्ने सलूल" ने हमेशा मुहम्मद के साथ बुग्ज़ रखा, उसके जीते जी मुहम्मद उसका कुछ ना बिगाड़ सके, उसके मरने के बाद उससे बदला यूं लिया - - -
जाबिर कहते हैं कि "अब्दुल्ला बिन अबी इब्ने सलूल" के मरने के बाद मुहम्मद उसकी कब्र पर गए, लाश को बाहर निकाला और उसके मुँह में थूका और उसको अपना उतरन पहनाया.(बुखारी ६१५)
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