Sunday, 19 October 2014

Loot

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.



क़ुरआन में कई अच्छी और कई बुरी हस्तियों का नाम बार बार आता है , जिसमे उनका ज़िक्र बहुत मुख़्तसर होता है।  पाठक की जिज्ञासा उनके बारे में बनी रहती है कि वह उनकी तफ्सील जानें।  मुहम्मद ने इन हुक्मरानों का नाम भर सुना था और उनको पैग़म्बर या शैतान का दरजा देकर आगे बढ़ जाते हैं , उनका नाम लेकर उसके साथ मन गढ़ंत लगा कर क़ुरआन पढ़ने वालों को गुमराह करते हैं।  दर अस्ल यह तमाम हस्तियां यहूद हैं जिनका विवरण तौरेत में आया है, मैं उनकी हक़ीक़त बतलाता हूँ , इससे मुहम्मदी अल्लाह की जिहालत का इन्किशाफ़ होता है। 
क़ुरआन के झूट - - - 
और तौरेती सदाक़त  

झलकियाँ - - -

झलकी नंबर 6

लूत (लोट)
ख़ुदा सोदेम और गोमेरा , दोनों बस्तियों के ख़िलाफ़ लोगों की दुहाइयाँ सुनी , कि यहाँ के लोग बड़े पापी और बद फ़ेल हुए जा रहे हैं। सोदेम में ही लूत परदेसियों की तरह रहता था।  ख़ुदा ने आदमियों की शक्ल में अपने फ़रिश्तों को सोदेम भेजा।  वह वहाँ लूत के घर में ही मेहमान बन कर वह ठहरे। नए मेहमानों को देख कर लोगों ने लूत का घर घेर लिया और मेहमानों को घर से बाहर निकालने का शोर करने लगे ताकि वह उनके साथ बद फेली कर सकें. लूत ने उन लोगों से बड़ी मिन्नत समाजत की कि वह घर आए मेहमान से यह नाज़ेबा सुलूक न करे।  उसने अपनी बेटियों को पेश करते हुए कहा , चाहो तो इनके साथ मुबाश्रत कर लो मगर हमारे मेहमानों को बख़्श दो , इस पर भी वहाँ के बाशिंदे न माने और बज़िद रहे।  कहने लगे तू पदेशी होकर भी हद से गुज़र रहा है , हम तेरे साथ तेरे मेहमानों का भी बुरा हशर करेंगे। 
तकरार होती रही कि फरिश्तों ने लूत का हाथ पकड़ कर उसे दरवाज़े के अंदर कर लिया और अंदर से कुण्डी लगा ली।  फरिश्तों ने बाहर खड़ी भीड़ को अँधा कर दिया। लूत और उसके कुनबे को सुब्ह होते ही बस्ती से बाहर निकाल लाए। 
इसके बाद ख़ुदा ने दोनों बस्तियों पर तेज़ाब और आग की बारिश कर के तबाह कर दिया। 
भागते वक़्त लूत की बीवी ने पलट कर बस्ती की तरफ़ देखा ही था कि वह नमक का खम्बा बन गई। लूत अपनी दोनों बेटियों को लेकर दूर पहाड़ों पर रहने लगा।  
 *पहाड़ियों पर दूर दूर तक न आदम न आदम ज़ाद , बस यही तीन बन्दे अकेले रहते थे। लूत की दोनों बेटियाँ फ़िक्र मंद रहने लगीं कि दस्तूर ज़माना के हिसाब से कौन यहाँ आएगा जो हम से शादी करेगा ? 
दोनों ने आपस में तय किया कि बूढ़े बाप को शराब पिला कर इतना नशे में कर दें कि इसको कोई होश न रह जाय , फिर दोनों बारी बारी रात को इसके पास सोएँ ताकि औलाद हासिल कर सकें और दोनों ने ऐसा ही किया। इस तरह दोनों को एक एक बेटे मिले। बड़ी बेटी के बेटे का  नाम मुआब पड़ा और छोटी के बेटे का नाम बैन अम्मी हुवा जो कि बाद में अपनी नस्लों के मूल पुरुष बने। दोनों की नस्लें मुआबियों और अमोनियों के नाम से मशहूर हुए। 



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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