Tuesday 14 July 2015

Soorah Imran 3 Part 11 ( 168-198)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
**************
सूरह आले इमरान     
Part -11

एक मुहम्मद की फ़रामूदा हदीस मुलाहिज़ा हो - - -
मुहम्मद कालीन अबू ज़र कहते हैं कि हुज़ूर गिरामी सल लाल्लाहो अलैह वसस्सल्लम (अर्थात मुहम्मद) ने मुझ से फ़रमाया, 
''अबू ज़र तुम को मालूम है यह आफताब (डूबने के बाद) कहाँ जाता है? 
मैं ने अर्ज़ किया खुदा या खुदा का रसूल ही बेहतर जानता है, 
फ़रमाया यह अर्श पर इलाही के सामने जाकर सजदा करता है और दोबारा तुलू (प्रगट) होने कि इजाज़त तलब करता है. इसको इजाज़त दी जाती है, लेकिन क़रीब क़यामत में यह सजदा की बदस्तूर इजाज़त तलब करेगा, लेकिन इसका सजदा कुबूल होगा न इजाज़त मिलेगी, बल्कि हुक्म होगा कि जिस तरफ से आया है उसी तरफ को वापस हो जा. 
चुनांच वह मगरिब (पश्चिम) से तुलू होगा. '' 
(बुखारी १३०३) +(सही मुस्लिम - - किताबुल ईमान)
तो मियाँ मुहमम्म्द इस किस्म के लाल बुझक्कड़ थे और अबू ज़र जैसे उल्लू के पट्ठे जो आँख तो आँख मुँह बंद करके सुनते थे, यह भी पूछने की हिम्मत न करते कि सूरज के हाथ पांव सर कहाँ है कि वह सजदा करता होगा?
 मुहम्मद से सदियों पहले यूनान और भारत में आकाश के रहस्य खुल चुके थे। अफ़सोस का मुकाम यह है कि आज भी मुसलमान अहले हदीस लाखों की तादाद में इस गलाज़त को ढो रहे हैं। 
मैं एक गाँव में हुक्के के साथ पीने का मशगला अपने दोस्तों के साथ कर रहा था कि एक मुल्ला जी नमूदार हुए. हमने एख्लाकन उन्हें हुक्के कि तरफ इशारह करके कहा आइए नोश फरमाइए. 
हुक्के को धिक्कारते हुए बोले
'' हुज़ूर ने फ़रमाया है हुक्का, बीडी, सिगरेट पीने वालों के मुंह से क़यामत के दिन शोले निकलेंगे'' 
लीजिए हो गई एक ताज़ा हदीस, 
जी हाँ! मुहम्मद के नाम से हर कठ मुल्ला रोज़ नई नई हदीसें गढ़ता है। मुहमाद के ज़माने में हुक्का, बीडी, सिरेट कहाँ थे? 

अब शुरू करता हूँ अल्लाह के नाम से मुहम्मद का राग माला - - - 

" और उन से कहा गया आओ अल्लाह की रह में लड़ना या दुश्मन का दफ़ीअ बन जाना। वह बोले कि अगर हम कोई लडाई देखते तो ज़रूर तुम्हारे साथ हो लेते, यह उस वक़्त कुफ़्र से नजदीक तर हो गए, बनिस्बत इस हालत के की वह इमान के नज़दीक तर थे।" 
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (168) 
ये जज़्बाए जेहाद ओ क़त्ताल ओ जंग और लूट मार जज़्बए ईमाने इस्लामी का अस्ल है. चौदह सौ सालों से यह इस्लामी ईमान के भूखे और इंसानी खून के प्यासे, भूके भेडिए मौजूदा तालिबान इंसानी आबादी को सताते चले आ रहे हैं. यह सब अपने आका हज़रात मुहम्मद(+अल्काबात) की पैरवी करते हैं. मुहम्मद पुर अमन किसी बस्ती पर हमला करने के लिए लोगों को वर्गाला रहे हैं, जिस पर लोगों का माकूल जवाब देखा जा सकता है जिसे मुहम्मद उनको कुफ्र के नज़दीक बतला रहे हैं. अफ़सोस कि भारतीय लोकतंत्र इस्लामी तबलीग के ज़हर को चीन की तरह नहीं समझ पा रही, इसके साथ समस्या ये है कि इसे पहले हिंदुत्व के बड़े देव के नाक में नकेल डालनी होगी। 
" ऐसे लोग हैं जो अपने भाइयों के निस्बत बैठे बातें बनाते हैं कि वह हमारा कहना मानते तो क़त्ल न किए जाते, आप कहिए कि अच्छा अपने ऊपर से मौत को हटाओ, अगर तुम सच्चे हो." 
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (170)
मुहम्मद नंबर१ कठ मुल्ला थे, 
कठ मुल्लाई दुन्या में शायद मुहम्मद की ही ईजाद है. 
जंग ओहद में मरने वालों के पस्मानदागान के आँखें खुश्क नहीं हो पा रही हैं और मुहम्मद उन के ज़ख्मों पर कठ मुल्लाई का नमक छिड़क रहे हैं, उनके गुंडे उनके साथ हैं, उनके सभी रिश्ते दार सूबों के हुक्मरान बन कर जेहादी वुसअत की मौज उड़ा रहे हैं. 
बे फौफ रसूल जो बोलते है वह अल्लाह की ज़बान होती है. 
सूरह के आखीर में अल्लाह अपने शिकार मुसलामानों को जेहादी लूट मार में लपेटने की भरपूर कोशिश कर रहा है. इसके दांव पेंच ऐसे हैं जैसे कोई सोबदे बाज़ किसी गंवारू बाज़ार में रंगीन राख को अक्सीर दवा बता कर बेच रहा हो जो खाने, पीने, लगाने और सूंघने, हर हाल में फायदे मंद है. कुरानी आयातों का भी यही हाल है. ओलिमा का प्रोपेगंडा है कि इसमें तमाम हिकमत है, यह कुरआने हकीम है, 
अगर हिकमत कहीं नज़र न आए तो इसे पढ़ कर मुर्दों को बख्शो सब उसके आमाल ए बद मग्फेरत की नज़र हो जाएगे, 
यह बात अलग है कि अल्लाह बन्दे की किस्मत उसके हमल में ही लिख देता है. 
इस तालिबानी अल्लाह के हाथों से जिब्रीली तलवार, शैतानी ढाल, दोज़ख के अंगार और जन्नत के लड्डू छीन लिए जाएँ तो यह कंगाल हो जाए. 

"और जो लोग कुफ्र कर रहे हैं वह ये खयाल हरगिज़ न करें कि हमारा इन को मोहलत देना बेहतर है। हम उनको सिफ इस लिए मोहलत दे रहे हैं कि ताकि जुर्म में उनके और तरक्की हो जाए और उन को तौहीन आमेज़ सजा होगी।'' 
"सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (178) 
किर्द गारे कायनात नहीं, किसी क़स्बे का बनिया हुआ जो लोगों को कर्ज़ दे कर सूद बढ़ते रहने का इन्तेज़ार कर रहा है. आखीर में मन मानी तौर पर बक़ाया वसूल कर लेगा. 
दुन्या से जेहालत अलविदा हुई, सूद, ब्याज और मूल धन की शक्लें बदलीं, न बदल पाई तो बेचारे मुसलमानों की तक़दीर में लिखी हुई ये कुरान। 
"कुल्ले नफ़्सिन ज़ाइक़तुलमौत''-हर जानदार को मौत का मज़ा चखना है, और तुम को तुम्हारी पूरी पूरी पादाश क़यामत के रोज़ ही मिलेगी, सो जो शख्स दोज़ख से बचा लिया गया और जन्नत में दाखिल किया गया, सो पूरा पूरा कामयाब वह हुवा। और दुनयावी ज़िन्दगी तो कुछ भी नहीं, सिर्फ धोके का सौदा है।" 
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (185) 
मुसलमानों की पस्मान्दगी की कहानी बस इसी आयत से शुरू होती है और इसी पर ख़त्म. वह मौत के अंजाम को हर हर साँस में ढोता है मुस्लमान, बजाए इस के कि ज़िन्दगी की नेमतों को ढोए. जब कभी रद्दे अमल में इसका बागी होता है तो जेहादी तशद्दुद को जीने की अंगडाई लेता है. दुन्या के हर नशेब ओ फ़राज़ से बे नयाज़ पल भर में खुद कुश आलात के हवाले अपने को करके अल्लाह और दीन की राह में शहीद हो जाता है। वहां उसे यकीने कामिल है कि वह सब कुछ मिलेगा जिसका वादा उस से अल्लाह कर रहा है। वह मासूम, नहीं जनता कि अल्लाह के खोल में एक खूखार पयम्बरी कयाम करती है। 
"ऐ मेरे परवर दीगर! बिला शुबहा आप जिसको चाहें दोजख में दाखिल करें, उसको वाकई रुसवा ही कर दिया और ऐसे बे इन्साफों का कोई साथ देने वाला नहीं।'' 
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (192) 
यह एक आयात है जिसमें साफ साफ मुहम्मद अल्लाह को मुखातिब कर रहे हैं और कहते हैं कि यह अल्लाह का कलाम है। कुरान में हर जगह अल्लाह बन्दों के साथ बे इंसाफी करता है और उल्टा इलज़ाम बन्दों पर लगता है। मन मानी अल्लाह की है, जिसको चाहे दोज़ख दे, जिसको चाहे जन्नत, इसको मानने वाले मूरख ही तो हैं, अपने आप में क़ैद इस झूठे अल्लाह के बन्दे. 
"ऐ हमारे परवर दिगर! हमें वह चीज़ भी दीजिए जिसका हम से आप ने अपने पैगम्बर के मार्फ़त वादा फ़रमाया था और हम को क़यामत के रोज़ रुसवा न कीजिए और यक़ीनन आप वादा खिलाफ़ी नहीं करते।'' 
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (194) 
यह आयत चीख चीख कर गवाही दे रही है कि क़ुरआन उम्मी मुहम्मद का गढ़ हुवा साजिशी कलाम है जिसको वह अल्लाह का कलाम कहते हैं. एक अदना आदमी भी इस आयत को पढ़ कर कह सकता है कि ये बात मुहम्मद की है जिस में कोई पैगम्बर गवाह भी है. खुदा गारत करे इन आलिमों को जो इतनी बड़ी मुसलमान आबादी की आँखों में धूल झोंके हुए हैं। 
"तुझ को इस शहर में काफिरों का चलना फिरना मुबालगा में न डाल दे. चंद दिनों की बहार है, फिर उनका ठिकाना दोज़ख होगा और वह बुरी आराम की जगह है." 
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (197) 
जुमले में उम्मियत टपक रही है. बुरी जगह आराम की कैसे हो सकती है? और अगर आराम की है तो बुरी कैसे हुई? 
दुश्मने इंसानियत, इंसानों के लिए हमेशा बुरा सोचा, बुरा किया. मुहम्मद की बुराई क़ौम पे अज़बे जरिया है. 
"जो लोग अल्लाह से डरें उनके लिए बागात हैं, जिनके नीचे नहरें जारी होंगी। वह इस में हमेशा हमेशा के लिए रहेंगे. यह मेहमानी होगी अल्लाह की तरफ से." 
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (198) 
यह लाली पफ की आयत पूरे कुरआन में बार बार आई है. शायद अल्लाह की इसी बात पर ग़ालिब ने चुटकी ली है. 



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

No comments:

Post a Comment