Friday 31 July 2015

Soorah Nisa 4 Part 5(77)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह निसाँअ ४ चौथा पारा  
किस्त 5

लोहे को जितना गरमा गरमा कर पीटा जाय वह उतना ही ठोस हो जाता है। इसी तरह चीन की दीवार की बुन्यादों की ठोस होने के लिए उसकी खूब पिटाई की गई है, लाखों इंसानी शरीर और रूहें उसके शाशक के धुर्मुट तले दफ़न हैं. ठीक इसी तरह मुसलमानों के पूर्वजों की पिटाई इस्लाम ने इस अंदाज़ से की है कि उनके नस्लें अंधी, बहरी और गूंगी पैदा हो रही हैं.(सुम्मुम बुक्मुम उम्युन, फहुम ला युर्जूऊन) इन्हें लाख समझाओ यह समझेगे नहीं.मैं कुरआन में अल्लाह की कही हुई बात ही लिख रह हूँ जो कि न उनके हक में है न इंसानियत के हक में मगर वह कुछ भी सुनने को तैयार नहीं, वजेह वह सदियों से पीट पीट कर मुसलमान बनाए जा रहे है, आज भी खौफ ज़दा हैं कि दिल दिमाग और ज़बान खोलेंगे तो पिट जाएँगे, कोई यार मददगार न होगा.
यारो! तुम मेरा ब्लॉग तो पढो, कोई नहीं जान पाएगा कि तुमने ब्लॉग पढ़ा,फिर अगर मैं हक बजानिब हूँ तो पसंद का बटन दबा दो, इसे भी कोई न जान पाएगा और अगर अच्छा न लगे तो तौबा कर लो, तुम्हारा अल्लाह तुमको मुआफ करने वाला है। 
अली के नाम से एक कौल शिया आलिमो ने ईजाद किया है, 
''यह मत देखो कि किसने कहा है, यह देखो की क्या कहा है.'' 
मैं तुम्हारा असली शुभ चितक हूँ, मुझे समझने की कोशिश करो.
" फिर जब उन पर जेहाद करना फ़र्ज़ कर दिया गया तो क़िस्सा क्या हुआ कि उन में से बअज़् आदमी लोगों से ऐसा डरने लगे जैसे कोई अल्लाह से डरता हो, बल्कि इस भी ज़्यादह डरना और कहने लगे ए हमारे परवर दिगार  ! आप ने मुझ पर जेहाद क्यूँ फ़र्ज़ फरमा दिया? हम को और थोड़ी मुद्दत देदी होती ----" 
सूरह निसाँअ4 पाँचवाँ पारा- आयात (77) 
आयात गवाह है कि मुहम्मद को लोग डर के मारे "ऐ मेरे परवर दिगर" कहते और वह उनको इस बात से मना भी न करते बल्कि खुश होते जैसा की कुरानी तहरीर से ज़ाहिर है। हकीक़त भी है क़ुरआन में कई ऐसे इशारे मिलते हैं कि अल्लाह के रसूल से वोह अल्लाह नज़र आते हैं. खैर - - -
खुदा का बेटा हो चुका है, ईश्वर के अवतार हो चुके है तो अल्लाह का डाकिया होना कोई बड़ा झूट नहीं है। मुहम्मद जंगें, बशक्ले हमला लोगों पर मुसल्लत करते थे जिस से लोगों का अमन ओ चैन गारत था। उनको अपनी जान ही नहीं माल भी लगाना पड़ता था. हमलों की कामयाबी पर लूटा गया माले गनीमत का पांचवां हिस्सा उनका होता. जंग के लिए साज़ ओ सामान ज़कात के तौर पर उगाही मुसलमानों से होती. उस दौर में इसलाम मज़हब के बजाए गंदी सियासत बन चुका था. अज़ीज़ ओ अकारिब में नज़रया के बिना पर आपस में मिलने जुलने पर पाबंदी लगा दी गई थी। तफ़रक़ा नफ़रत में बदलता गया. 
बड़ा हादसती दौर था. भाई भाई का दुश्मन बन गया था. रिश्ते दारों में नफ़रत के बीज ऐसे पनप गए थे कि एक दूसरे को बिना मुतव्वत क़त्ल करने पर आमादा रहते, इंसानी समाज पर अल्लाह के हुक्म ने अज़ाब नाजिल कर रखा था. नतीजतन मुहम्मद के मरते ही दो जंगें मुसलमानों ने आपस में ऐसी लड़ीं कि दो लाख मुसलमानो ने एक दूसरे को काट डाला, गलिबन ये कहते हुए कि 
इस इस्लामी अल्लाह को तूने पहले तसलीम किया - - -
नहीं पहले तेरे बाप ने - - 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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