Saturday 18 July 2015

Soorah Nisa 4 Part 1 (1-15)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह निसाँअ ४ चौथा पारा  
पहली किस्त 

"ऐ लोगो ! अपने परवर दिगार से डरो, जिसने हमको एक जानदार से पैदा किया और उस जानदार से उसका जोड़ा पैदा किया और उन दोनों से बहुत से मर्द और औरतें फैलाईं और क़राबत से भी डरो . बिल यक़ीन अल्लाह तअला सब की इत्तेला रखता है."आयत (१) 

ऐ मुसलमानों! सब से पहले तो अपने अन्दर से अल्लाह का खौफ दूर करो. अल्लाह अगर है तो किसी को डराता नहीं, उसने एक निजाम बना कर, इस ज़मीन को इंसान के हवाले कर दिया है. हर अच्छे और बुरे अमल का अंजाम इसी दुन्या में मिल जाता है. डरो तो अपने अन्दर बैठे ज़मीर से डरो जो कम से कम इन्सान को कोई बुरा काम करने से रोकता है, 
उसके इंसाफ से डरो. 
अब अल्लाह राय देता है कि क़राबत दारियों से डरो, भला क्यूँ, क्या क़राबत दार भी छोटे अल्लाह होते हैं? मुहम्मद को राय देना चाहिए कि क़राबत में रिश्तों का एहतराम करो, 
खैर वह कोई मुफक्किर नहीं थे फ़क़त उम्मी थे.
तौरेती नकल आदम की कहानी है कि पहला इन्सान आदम मिटटी के पुतले से बना फिर उसकी पसली से हव्वा बनी और फिर उनसे नस्ल ऐ इंसानी फैली. यह सब मन गढ़ंत है. इन्सान इर्तेकई मरहलों को तय करता हुआ आजकी दुन्या में मौजूद है.
 
"जिन बच्चों के बाप मर जाएँ तो उनका माल उनको पहुंचाते रहो, अच्छी चीज़ को बुरी चीज़ से मत बदलो और अगर तुम्हें एहतेमाल हो कि यतीम लड़कियों के साथ इंसाफ़ न कर सकोगे तो और औरतों से जो तुम्हें पसँद हों निकाह कर लो. दो दो, तीन तीन या चार चार, बस कि इंसाफ सब के साथ कर सको, वर्ना एक, और जो लौड़ी तुम्हारी मिलकियत में है, वही सही." (२-३)
जंग जूई का दौर था मर्द आपस में कत्ल ओ खून किया करते थे. औरतें अपने बच्चों के साथ बेवा और यतीम हो जाया करते, आज यतीमों पर तरस खाने का वक़्त गया. अल्लाह के कानून में दूर अनदेशी नहीं है. इन चार चार शादियों का फरमान भी उसी माजी के लिए था, आज ये बात बेजा मानी जाती है मगर अरबी शेख आज भी उन्हीं फरमान का नाजायज़ फ़ायदा उठा रहे हैं. 
उस वक़्त साहिबे हैसियत लोग ज़्यादः से ज़्यादः लावारिस औरतों और बच्चों को सहारा दे दिया करते थे, चार बीवियों के बाद भी मजबूर और गरीब औरतें क़नीजें बन जाती थीं, यह बात हिन्दू समाज से बेहतर थी कि बेवाओं को पंडों को अय्याशी के लिए सन्यास में दे दी जाएं.
 
" यह सब अहकाम मज़्कूरह खुदा वंदी जाब्ते हैं और जो शख्स अल्लाह और रसूल की पूरी इताअत करेगा अल्लाह उसको ऐसी बहिश्तों में दाखिल करेगा जिसके नीचे नहरें जारी होंगी. हमेशा हमेशा उसमें रहेंगे, यह बड़ी कामयाबी है."
(८-१३)
यह आयत कुरान में बार बार दोहराई गई है. अरब की भूखी प्यासी सर ज़मीन के किए पानी की नहरें वह भी मकानों के बीचे पुर कशिश हो सकती हैं मगर बाकी दुन्या के लिए यह जन्नत जहन्नम जैसी हो सकती है. 
मुहम्मद अल्लाह के पैगाबर होने का दावा करते हैं और अल्लाह के बन्दों को झूटी लालच देते हैं. अल्लाह के बन्दे इस इक्कीसवीं सदी में इस पर भरोसा करते हैं. 
अल्लाह के कानूनी जाब्ते अलग ही हैं कि उसका कोई कानून ही नहीं है.

" जो औरतें बेहयाई का काम करें तुम्हारी बीवियों में से, सो तुम लोग उन औरतों पर अपने लोगों में से चार आदमी गवाह कर,सो अगर वह लोग गवाही देदें तो इन्हीं घरों में मुक़य्यद रखो. यहाँ तक कि उनकी मौत उनका खात्मा कर दे या अल्लाह उनके लिए कोई रह पैदा कर दे."
(१५)

यह आयतें आलमी हुक़ूक़ इंसानी के मुंह पर तमाचा हैं. मुहम्मदी अल्लाह ने औरत की बेबसी और बेकसी को बरकरार रखा है. इस कुरानी एहकाम पर आलमी बिरादरी आवाज़ उठाए, अगर मुसलमानों का ज़मीर बेदार ही नहीं होता. इसको मानने वाला हर शख्स इंसानियत का मुजरिम है. उसे इंसानी समाज में रहने के हक से महरूम किया जाय.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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