Monday 14 December 2015

Soorah Tauba 9 Qist 4

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह ए तौबः ९
(चौथी किस्त) 

अव्वल दर्जा लोग 

मैं दर्जाए-अव्वल में उस इंसान को शुमार करता हूँ जो सच बोलने में ज़रा भी देर न करता हो, उसका मुतालिआ अश्याए कुदरत के बारे में फितरी हो (जिसमें खुद इंसान भी एक अश्या है.) वह ग़ैर जानिबदार हो, अक़ीदा, आस्था और मज़हबी उसूलों से बाला तर हो, जो जल्द बाज़ी में किए गए "हाँ" को सोच समझ कर न कहने पर एकदम न शर्माए और मुआमला साज़ हो. जो सब का ख़ैर ख्वाह हो, दूसरों को माली, जिस्मानी या जेहनी नुकसान, अपने नफ़ा के लिए न पहुंचाए, जिसके हर अमल में इस धरती और इस पर बसने वाली मखलूक का खैर वाबिस्ता हो, जो बेख़ौफ़ और बहादर हो और इतना बहादर कि उसे दोज़ख में जलाने वाला नाइंसाफ अल्लाह भी अगर उसके सामने आ जाए तो उस से भी दस्तो गरीबानी के लिए तैयार रहे. ऐसे लोगों को मैं दर्जाए अव्वल का इंसान, मेयारी हस्ती शुमार करता हूँ. 
ऐसे लोग ही हुवा करते हैं साहिबे ईमान यानी ''मरदे मोमिन''. 

दोयम दर्जा लोग

मैं दोयम दर्जा उन लोगों को देता हूँ जो उसूल ज़दा यानी नियमों के मारे होते हैं. यह सीधे सादे अपने पुरखों की लीक पर चलने वाले लोग होते हैं. पक्के धार्मिक मगर अच्छे इन्सान भी यही लोग हैं. इनको इस बात से कोई मतलब नहीं कि इनकी धार्मिकता समाज के लिए अब ज़हर बन गई है, इनकी आस्था कहती है कि इनकी मुक्ति नमाज़ और पूजा पाठ से है. अरबी और संसकृति में इन से क्या पढाया जाता है, इस से इनका कोई लेना देना नहीं। ये बहुधा ईमानदार और नेक लोग होते हैं. भोली भली अवाम इस दर्जे की ही शिकार है धर्म गुरुओं, 
ओलिमाओं और पूँजी पतियों की. हमारे देश की जम्हूरियत की बुनियाद इसी दोयम दर्जे के कन्धों पर राखी हुई है.
सोयम दर्जा लोग

हर कदम में इंसानियत का खून करने वाले, तलवार की नोक पर खुद को मोह्सिने इंसानियत कहलाने वाले, दूसरों की मेहनत पर तकिया धरने वाले, लफ़फ़ाज़ी और ज़ोर-ए-क़लम से गलाज़त से पेट भरने वाले, इंसानी सरों के सियासी सौदागर, धार्मिक चोले धारण किए हुए स्वामी, गुरू, बाबा और साहिबे रीश ऑ दुस्तार ओलिमा, सब के सब तीसरे और गिरे दर्जे के लोग हैं. इन्हीं की सरपरस्ती में देश के मुट्ठी भर सरमाया दार भी हैं जो देश को लूट कर पैसे को विदेशों में छिपाते हैं. यही लोग जिसका कोई प्रति शत भी नहीं बनता, दोयम दर्जे को ब्लेक मेल किए हुए है और अव्वल दर्जा का मजाक हर मोड़ पर उडाने पर आमादा रहते है. 
सदियों से यह गलीज़ लोग इंसान और इंसानियत को पामाल किए हुए हैं।

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आइए कुरआन के अन्दर पेवस्त होकर इंसानियत की आला क़दरों को पहचाने। इसके बारे में जो कुछ भी आप ने सुन रखा है वह लाखों बार बोला हुआ बद ज़मीर आलिमों का झूट है. आप खुद कुरआनी फरमान को पढ़ें और उस पर सदाक़त से गौर करें, हक की बात करें, मुस्लिम से ईमान दार मोमिन बनें और दूसरों को भी मोमिन बनाएँ. आप मोमिन बने तो ज़माना आपके पीछे होगा. 
यह जेहादी आयतें अपने हकीकत के साथ पेश है, जिसे ओलिमा आज जिहाद का मतलब समझा रहे हैं की "जद्दो जेहद"

''निकल पड़ो थोड़े से सामान से या ज़्यादः सामान से और अल्लाह की राह में अपने माल और जान से जेहाद करो, यह तुम्हारे लिए बेहतर है अगर तुम यक़ीन करते हो.''
सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (४१)
मुहम्मद इज्तेमाई डकैती के लिए नव मुस्लिमों को वर्गाला रहे हैं अडोस पड़ोस की बस्तियों पर डाका डालने के लिए, अपनी ताक़त बढ़ाने के लिए, पुर अम्न आबादियों में बद अमनी फैलाने के लिए. मुहम्मद के दिमाग में एक अल्लाह का भूत सवार हो चुका था, अल्लाह एक हो या अनेक, भूके, नंगे, ग़रीब अवाम को इस से क्या लेना देना? 
''जो लोग अल्लाह और कयामत के दिन पर ईमान रखते हैं वह अपने माल ओ जान से जेहाद करने के बारे में आप से रुखसत न मांगेंगे अलबत्ता वह लोग आप से रुखसत मांगते हैं जो अल्लाह और क़यामत के दिन पर ईमान नहीं रखते और इन के दिल शक में पड़े हैरान हैं.
''सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (४५)
ज़रा डूब कर सोचें, अपने भरे पुरे परिवार के साथ उस दौर में खुद को ले जाएँ और उस बस्ती के बाशिंदे बन जाएँ फिर मुहम्मद के फर्मूदाद सुनें जिसे वह अल्लाह का कलाम बतलाते हैं,. आप महसूस करें कि अपने बाल बच्चों को छोड़ कर और अपने जानो-माल के साथ किसी अनजान आबादी पर बिला वजेह हमला करने पर आमादः को जाएँ, वह भी इस बात पर कि इस का मुआवजा बाद मरने के क़यामत के रोज़ मिलेगा. याद रखें कि इसी धोखा धडी और खूँ-रेज़ी की बुनियादों पर मुहम्मद ने इस्लाम की झूटी इमारत खड़ी की थी जो हमेशा ही खोखली रही है आज रुसवाए ज़माना है.
''इन में से बअजा शख्स वह है जो कहता है मुझको इजाज़त दे दीजिए और मुझको ख़राबी में मत डालिए. खूब समझ लो कि यह लोग तो ख़राबी में पड़ ही चुके हैं और यक़ीनन दोज़ख इन काफ़िरों को घेर लेगी.''
सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (४७-४९)
मुहम्मद इन बेवकूफों की बेवकूफी का खुला मजाक उड़ा रहे हैं जो इस्लाम कुबूल करने की हिमाक़त कर चुके हैं वाकई इस्लाम का यकीन हयातुद्दुन्या के लिए एक ख़राबी ही है जब कि दीन की दुन्या मुहम्मद का गढ़ा हुवा फरेब है.
''आप फर्म फ़रमा दीजिए कि हम पर कोई हादसा पड़ नहीं सकता मगर वही जो अल्लाह ने हमारे लिए मुक़द्दर फ़रमाया है, वह हमारा मालिक है. और अल्लाह के तो सब मुसलमानों के अपने सब काम सुपुर्द रखने चाहिए."
सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (५१)
मुहम्मद तकब्बुर की बातें करते हैं कि ''हम पर कोई हादसा पड़ नहीं सकता'' अगर कोई टोके तो जवाब होगा यह तो अल्लाह का कलाम है जब कि अगले जुमले में ही वह अल्लाह को अलग कर के कहते हैं- - '' मगर वही जो अल्लाह ने हमारे लिए मुक़द्दर फ़रमाया है, वह हमारा मालिक है.'' मुसलमान कल भी अहमक था और चौदा सौ साल गुज़र जाने के बाद आज भी अहमक ही है जो बार बार साबित होने के बाद भी नहीं मानता कि क़ुरआन एक इंसानी दिमाग की उपज है, इसमें कुछ नहीं रक्खा, अलावा गुमराही के..
''आप फरमा दीजिए तुम तो हमारे हक में दो बेहतरीयों में से एक बेहतरी के हक में ही के मुताज़िर रहते हो और हम तुम्हारे हक में इसके मुन्तजिर रहा करते हैं कि अल्लाह तअला तुम पर कोई अज़ाब नाज़िल करेगा, अपनी तरफ से या हमारे हाथों से.सो तुम इंतज़ार करो, हम तुम्हारे साथ इंतज़ार में हैं.''
सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (५२)
यह आयत मुहम्मद की फितरते बद का खुला आइना है, कोई आलिम आए और इसकी रफूगरी करके दिखलाए. ऐसी आयतों को ओलिमा अवाम से ऐसा छिपाते हैं जैसे कोई औरत बद ज़ात अपने नाजायज़ हमल को ढकती फिर रही हो. आयत गवाह है कि मुहम्मद इंसानों पर अपने मिशन के लिए अज़ाब बन जाने पर आमादा थे. इस में साफ़ साफ मुहम्मद खुद को अल्लाह से अलग करके निजी चैलेन्ज कर रहे हैं, क़ुरआन अल्लाह का कलाम को दर गुज़र करते हुए अपने हाथों का मुजाहिरा कर रहे हैं. अवाम की शराफत को ५०% तस्लीम करते हुए अपनी हठ धर्मी पर १००% भरोसा करते हैं. तो ऐसे शर्री कूढ़ मग्ज़ और जेहनी अपाहिज हैं 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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