Monday 21 December 2015

Soorah tauba 9 Qist 6

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह तौबह ९
छटवीं किस्त

अंडे में इनक़्लाब 
इंसानी जेहन जग चुका है और बालिग़ हो चुका है. इस सिने बलूगत की हवा शायद ही आज किसी टापू तक न पहुँची हो, वगरना रौशनी तो पहुँच ही चुकी है, यह बात दीगर है कि नसले-इंसानी चूजे की शक्ल बनी हुई अन्डे के भीतर बेचैन कुलबुलाते हुए, अंडे के दरकने का इन्तेज़ार कर रही है. मुल्कों के हुक्मरानों ने हुक्मरानी के लिए सत्ता के नए नए चोले गढ़ लिए हैं. कहीं पर दुन्या पर एकाधिकार के लिए सिकंदारी चोला है तो कहीं पर मसावात का छलावा. धरती के पसमांदा टुकड़े बड़ों के पिछ लग्गू बने हुए है. 
हमारे मुल्क भारत में तो कहना ही क्या है! कानूनी किताबें, जम्हूरी हुकूक, मज़हबी जूनून, धार्मिक आस्थाएँ , आर्थिक लूट की छूट एक दूसरे को मुँह बिरा रही हैं. ९०% अन्याय का शिकार जनता अन्डे में क़ैद बाहर निकलने को बेकरार है, १०% मुर्गियां इसको सेते रहने का आडम्बर करने से अघा ही नहीं रही हैं. गरीबों की मशक्क़त ज़हीन बनियों के ऐश आराम के काम आ रही है, भूखे नंगे आदि वासियों के पुरखों के लाशों के साथ दफन दौलत बड़ी बड़ी कंपनियों के जेब में भरी जा रही है और अंततः ब्लेक मनी होकर स्विज़र लैंड के हवाले हो रही है. हजारों डमी कंपनियाँ जनता का पैसा बटोर कर चम्पत हो जाती हैं. किसी का कुछ नहीं बिगड़ता. लुटी हुई जनता की आवाज़ हमें गैर कानूनी लग रही हैं और मुट्ठी भर सियासत दानों , पूँजी पतियों, धार्मिक धंधे बाजों और समाज दुश्मनों की बातें विधिवत बन चुकीहैं. 
कुछ लोगों का मानना है कि आज़ादी हमें नपुंसक संसाधनों से मिली, जिसका नाम अहिंसा है. सच पूछिए तो आज़ादी भारत भूमि को मिली, भारत वासियों को नहीं. कुछ सांडों को आज़ादी मिली है और गऊ माता को नहीं. जनता जनार्दन को इससे बहलाया गया है. इनक़्लाब तो बंदूक की नोक से ही आता है, अब मानना ही पड़ेगा, वर्ना यह सांड फूलते फलते रहेंगे. स्वामी अग्निवेश कहते हैं कि वह चीन गए थे वहां उन्हों ने देखा कि हर बच्चा गुलाब के फूल जैसा सुर्ख और चुस्त है. जहाँ बच्चे ऐसे हो रहे हों वहां जवान ठीक ही होंगे. कहते है चीन में रिश्वत लेने वाले को, रिश्वत देने वाले को और बिचौलिए को एक साथ गोली मारदी जाती है.
 भारत में गोली किसी को नहीं मारी जाती चाहे वह रिश्वत में भारत को ही लगादे. दलितों, आदि वासियों, पिछड़ों, गरीबों और सर्व हारा से अब सेना निपटेगी. नक्सलाईट का नाम देकर ९०% भारत वासियों का सामना भारतीय फ़ौज करेगी, कहीं ऐसा न हो कि इन १०% लोगों को फ़ौज के सामने जवाब देह होना पड़े कि इन सर्व हारा की हत्याएं हमारे जवानों से क्यूं कराई गईं? और हमारे जवानों का खून इन मजलूमों से क्यूं कराया गया? 
चौदह सौ साल पहले ऐसे ही धांधली के पोषक मुहम्मद हुए और बरबरियत के क़ुरआनी कानून बनाए जिसका हश्र आज यह है कि करोड़ों इंसान वक्त की धार से पीछे, खाड़ियों, खंदकों, पोखरों और गड्ढों में रुके पानी की तरह सड़ रहे हैं। वह जिन अण्डों में हैं उनके दरकने के आसार भी ख़त्म हो चुके हैं. कोई चमत्कार ही उनको बचा सकता है. 

देखिए किउनका अल्लाह क्या क्या कहता है - - -
''और उन देहातियों में बअज़ बअज़ ऐसा है जो कुछ वह खर्च करता है, उसको जुर्माना समझता है और तुम मुसलामानों के लिए गर्दिशों का मुंतज़िर रहता है, बुरा वक्त उन्हीं पर है और वह अल्लाह सुनते और जानते हैं.'' 
सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (98) 
तो ये रही मुहम्मद के देहाती अल्लाह की देहातियों पर पकड़. 
"जिन देहातियों और अन्सरियों ने खुद को अल्लाह और उसके रसूल के हवाले बमय लाल और माल हवाले करदिया है उसके लिए जन्नत में महेल हंगे जिनके नीचे नहरन बह रही होंगी."
सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (१००)
मुहम्मद मक्का से बद हाली में फरार होकर जब अपने साथी अबू बक्र के हमराह मदीने आए और जिस घर में पनाह लिया उस घर को बाद में वहाँ के लोगों ने मस्जिद बनवा दिया, जब कि मुहम्मद ने उसी घर से लगी ज़मीन खरीद कर मस्जिद बनवाई जिसका नाम आज तक मस्जिदे नबवी है. मुहम्मद मक्के से मदीने जब आए तो वहां के लोग बहुत खुश गवारी में थे कि मक्के का बाग़ी आ रहा है, 
दूसरे यह कि यहूदी और ईसाई के योरो सलम वाले मदीने में बुत परस्तों की मुखालफत करने वाला एक बुत परस्त कुरैश उनका हम नवा बन कर पैदा हुवा है. 
तीसरी बात ये कि मक्का हमेशा शर पसंद रहा है, मदीनियों ने ख्याल किया कि दुश्मन का दुश्मन हमारा दोस्त बनेगा. 
इन्हीं तमाम जज़्बात को मद्दे नज़र रखते हुए लोगों ने उस घर को भी मस्जिद बना दिया था जिस में मुहम्मद ने पहली बार क़दम रखा था, कामयाबी मिलने के बाद मुहम्मद का इस्लाम शैतानी शक्ल अख्तियार करने लगा तो यहाँ के मुसलमानों ने मुहम्मद का साथ उनके अल्लाह के मनमानी फरमान में उसकी बात की मुखालिफत की. बस मुहम्मद ने इनको कुफ्र का लक़ब दे दिया और मस्जिद को नाम दिया '' मस्जिदे ज़र्रार'' यानी ज़रर पहुँचाने वाली मस्जिद. मुहम्मद और नुकसान उठाएं? ना मुमकिन. 
सूरात्तुत तौबा ९ -१०वाँ परा आयत (१०१-११०) 
मुहम्मद क़ीमती इंसानी ज़िन्दगी को अपने मुफ़ाद के लिए जेहाद के नज़र यूँ करते हैं - - - 
''बिला शुबहा अल्लाह तअला ने मुसलमानों से उनके जानों और उनके मालों को इस बात के एवज़वाज़ ख़रीद लिया है कि उनको जन्नत मिलेगी, वह लोग अल्लाह की राह में लड़ते हैं , क़त्ल करते हैं, क़त्ल किए जाते हैं, इस पर सच्चा वादा है तौरेत में, इन्जील में, और कुरआन में और अल्लाह से ज्यादा अपना वादा कौन पूरा करने वाला है? तो तुम लोग अपने बयनामे पर जिसका तुम ने अल्लाह के साथ मुआमला ठहराया है ,ख़ुशी मनाओ.'' 
सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (१११)
यही कुरानी आयतें तालिबानी ज़ेहनों को आत्म घाती हमलों पर आमादः करती हैं और मुसलामानों को इस तरक्क्की याफ़्ता दुन्या के सामने ज़लील करती हैं. इनपर तमाम दुन्या केशरीफ़ और समझदार कयादत को एक राय होकर पाबंदी आयद करना चाहिए.
''पैगम्बर और दूसरे मुसलामानों को जायज़ नहीं कि मुशरिकीन की मगफेरत की दुआ मांगे, चाहे वह रिश्तेदार ही क्यूं न हो, इस अम्र के ज़ाहिर हो जाने के बाद कि वह दोजखी है.'' 
सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (११२-१३) 
मुहम्मद की क़ल्ब सियाही इन बातों से देखी जा सकती है मगर उनका दोहरा मेयार भी याद रहे कि जब अपने मोहसिन चचा अबू तालिब की अयादत में गए तो उनसे पहले अपने हक में कालिमा मुहम्मदुर रसूलल्लाह पढ़ लेने की बात की, वह नहीं माने तो उठते उठते कहा खैर, 
मैं आपकी मगफिरत की दुआ करूंगा. मगर ठहरिए, लोगों की याद दहानी पर मुहम्मद इसे अपनी भूल मानने लगे हैं और ऐसी भूल स्य्य्दना इब्राहीम अलैहिस सलाम से भी हुई, 
गढ़ी हुई आयत मुलाहिज़ा हो - - - 
''और इब्राहीम ने दुआए मगफिरत अपने बाप के लिए माँगा और वह सिर्फ वादा के सबब था जो इन्हों ने इस से वादा लिया था, फिर जब उन पर यह बात ज़ाहिर हो गई की वह खुदा का दुश्मन है तो वह उस से महज़ बे ताल्लुक हो गए." 
सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (११४) 
पिछले बाब में मैं लिख चुका हूँ, फिर दोहरा रहा हूँ कि बाबा इब्राहीम इंसानी तवारीख के पहले नामवर इंसान हैं जिनका ज़िक्र आलमी इतिहास में सब को मान्य है.पाषाण युग था वह पत्थर तराश के बेटे थे, बाप के साथ संग तराशी में बमुश्किल गुज़रा होता था. बाबा इब्राहीम की वजेह से उनके बाप नाम भी जिंदा-ए-जावेद हो गया. यहूदी तौरेत उनको तेराह बतलाती है अरबी आजार कहते हैं. उन्हों ने अपने बेटे अब्राहाम और भतीजे लूत को ग़ुरबत से नजात पाने के लिए ठेल ढकेल के परदेस भेजा यह सपना दिखला कर कि तुम को दूध और शहद की नादियों वाला देश मिलेगा. इब्राहीम और लूत  न पैगम्बर थे और न आजार काफ़िर. वह लोग पाषाण युग के अविकसित सभ्यता के पथिक मात्र थे. कुरान में जो आप पढ़ रहे है वहझूटी पैगम्बरी के गढ़े हुए मकर हैं. बे ज़मीर पैगम्बरी तमाम हदें पार करती हुई अल्लाह यानी खुदाए बरतर को यूं रुसवा करती है - - - 
''और अल्लाह तआला ऐसा नहीं करता कि किसी क़ौम को हिदायत किए पीछे गुमराह करदे जब तक कि उन चीज़ों को साफ़ साफ़ न बतला दे जिन से व बचते रहें.'' 
सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (११५) 
देहातियों की तादाद बहुत बढ़ गई है, मुहम्मद को एक राह सूझी है कि इनके बड़े बड़े इलाक़ाई गिरोह बना दिए जाएँ उनमें से चुने हुए नव जवानों की टुकडियाँ बना दी जाएँ जो अतराफ़ की काफिरों की बस्तियों पर हमला करके अपने कबीले को माले-गनीमत से खुद कफ़ील बनाएँ.
''ए ईमान वालो! इन कुफ्फ़रो से लड़ो जो तुम्हारे आस पास रहते हैं और इनको तुम्हारे अन्दर सख्ती पाना चाहिए.'' 
सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (१२२-२३) 
मुहम्मद की इस नुज़ूली क़लाबाज़ी में लोग उनकी नबूवत की दावत पर दाखिल होते हैं और उसे परख कर ख़ारिज हो जाते हैं. साथ साथ अल्लाह भी क़ला बाज़ियां खाता रहता है - - - 
''और क्या उनको नहीं दिखाई देता कि यह लोग हर साल में एक बार या दो बार किसी न किसी आफ़त में फंसे रहते हैं, फिर भी बअज़ नहीं आते और न कुछ समझते हैं और जब कोई सूरह नाज़िल की जाती है तो एक दूसरे का मुंह देखने लगते हैं कि तुम को कोई देखता तो नहीं , फिर चल देते हैं, अल्लाह तअला ने इनका दिल फेर दिया है इस वजेह से कि वह महेज़ बे समझ लोग हैं. तुम्हारे पास एक ऐसे पैगम्बर तशरीफ़ लाए हैं जो तुम्हारे जिन्स से हैं जिनको तुम्हारी मुज़िररत की बातें निहायत गराँ गुज़रती हैं जो तुम्हारे मुन्फेअत के बड़े खाहिश मंद रहते हैं. ईमान दारों के साथ निहायत शफीक़ और मेहरबान है. फिर अगर यह रू गरदनी करें तो आप कह दीजिए मेरे लिए अल्लाह तअलाकाफ़ी है और वह बड़े भारी अर्श का मालिक है.'' 
सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (१२६-१२९) 
कुदरती आफतों को भी मुहम्मद भुनाना नहीं भूलते, लोग इनकी फित्तीनी आयतों से नालां होकर दूर भागने लगे हैं, अब इन को वह काफ़िर भी नहीं कहते महेज़ बे समझ लोग कहते हैं. उनके लिए ज़बरदस्ती शफीक़ और मेहरबान बने रहते हैं. रू गर्दानी करने वालों को आगाह करते हैं कि उनका कुछ नहीं बिगड़ता है क्यूँ कि उनके साथ उनका तलाश किया हुवा अल्लाह जो है जिसके सिवा कोई मअबूद नहीं और वह बहुत भारी आसमान का मालिक जो है एक टुकड़ा मुहम्मद के नाम करदेगा. 
खुद को जिन्स ए इंसानी या लोगों का हम जिन्स बतला कर मुहम्मद जिन्स के बारे में महज़ जेहालत की बातें करते हैं, जिसे हर बार मुतराज्जिम मुश्किल में पड कर ब्रेकेट लगा कर मुहम्मद की रफ्फु गरी करता है. 




जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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