Friday 29 January 2016

Sooerah Raed Qist 1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह राद - १३
(पहली किस्त) 

''अल्लरा - ये आयतें हैं किताब की और जो कुछ आपके रब की तरफ से आप पर नाज़िल किया जाता है, बिलकुल सच है, और लेकिन बहुत से आदमी ईमान नहीं लाते. अल्लाह ऐसा है कि आसमानों को बगैर खम्बों के ऊँचा खड़ा कर दिया चुनाँच तुम उनको देख रहे हो, फिर अर्श पर क़ायम हुवा और सूरज और चाँद को काम में लगाया हर एक, एक वक़्त मुअय्यन पर चलता रहता है. वही अल्लाह हर काम की तदबीर करता है और दलायल को साफ़ साफ़ बयान करता है.ताकि तुम अपने रब के पास जाने का यक़ीन करलो.''
सूरह रअद १३ परा-१३ आयत (१-२)
सबसे पहले क़ुरआन में नाज़िल का अर्थ जानें नाज़िल होने का सही अर्थ है प्रकृति की और से प्रकोपित (न कि उपहारित) नाज़िला (बला) होना, यानी क़ुरआन अल्लाह की तरफ से एक बला है, एक नज़ला है. उम्मी (जाहिल) पयम्बर ने अपने दीवान की व्याख्या में ही ग़लती करदी. इसी नाज़िल, नुज़ूल और नाज़िला के बुन्याद पर इस्लाम को भी खड़ा किया कि वह कोई भेंट स्वरूप नहीं, बल्कि क़ह्हार का क़हर है, हर वक़्त उसकी याद में मुब्तिला रहो. इसका फायदा और नुकसान खुद मुस्लमान ही उठा रहा है. अवाम डरपोक हो गई है और ख़वास (आलिम व् मुल्ला और धूर्त-जन) उनके डर का फ़ायदा उठा कर उनको पीछे किए हुए हैं. इसकी बुन्याद डाली है बद नियती के साथ दुश्मने इंसानियत मुहम्मद ने. गवाही में मुगीरा का वाक़ेआ पेश करचुका हूँ.
अल्लाह को ज़रुरत पेश आई यकीन दिलाने की कहता है ''बिलकुल सच है'' यह तो इंसानी कमज़ोरी है, इस लिए कि ''लेकिन बहुत से आदमी ईमान नहीं लाते.''
उम्मी आसमान को छत तसव्वुर करते हैं जब कि इनसे हज़ार साल पहले ईसा पूर्व सुकरात और अरस्तू के ज़माने में सौर्य मंडल का परिचय इन्सान पा चुका था और यह अपने अल्लाह को ऐसा घामड़ साबित कर रहे हैं कि उसको अभी तक इसका इल्म नहीं . अल्लाह बगैर सीढ़ी के उस पर चढ़ कर कयाम पज़ीर हो जाता है और फिर मुंतज़िर खड़े सूरज और चाँद को हुक्म देता है कि काम पर लग जाओ. इन बातों को उम्मी दलायल का साफ़ साफ़ बयान बतलाते हैं और मुसलमान अपने रब के पास जाने का यक़ीन कर लेता है? इस सदी में भी मुसलमानों के चेहरों पर दीदा और खोपड़ी में भेजा नहीं आता तो ज़रूर जाएँगे असली जहन्नम में.

''वह ऐसा है कि उसने ज़मीन को फैलाया और उसमे पहाड़ और नहरें पैदा कीं और उसमे हर किस्म के फलों से दो दो किस्में पैदा किए. रात से दिन को छिपा देता है. इन उमूर पर सोचने वालों के लिए दलायल है. और ज़मीन में पास पास मुख्तलिफ़ टुकड़े हैं और अंगूरों के बाग़ है और खेतयाँ हैं और खजूरें हैं जिनमें तो बअजे ऐसे है कि एक तना से जाकर ऊपर दो तने हो जाते हैं और बअज़े में दो तने नहीं होते, सब को एक ही तरह का पानी दिया जाता है और हम एक को दूसरे फलों पर फौकियत देते हैं इन उमूर पर सोचने वालों के लिए दलायल है.''
सूरह रअद १३ परा-१३ आयत (३-४)
चार सौ साल पहले ईसाई साइंटिस्ट गैलेलियो ने बाइबिल को कंडम करके ज़मीन को फैलाई हुई रोटी जैसी चिपटी नहीं बल्कि गोल कहा था तो उसे ईसाई कठ मुल्ला निजाम ने फाँसी की सजा सुना दिया था, 
खैर वह उनकी बात अपनी जान बचाने के लिए मान गया मगर आज सारे ईसाई गैलेलियो की बात को मान गए हैं. 
तौरेत के नकल में गढ़े कुरआन के पैरोकार ज़िद में अड़े हुए हैं कि नहीं ज़मीन वैसे ही है जैसी कुरआन कहता है, हालांकि वह रोज़ उसकी तस्वीर कैमरों में देखते हैं. हे कुरआन के रचैता! 
पहाड़ तो कुदरती हैं मगर उस पर नहरें तो इंसानों ने बनाई! 
आप को इस बात की भी ख़बर न मिली होगी. 
अहमक अल्लाह! कौन सा फल है जिसकी सिर्फ दो किस्में होती हैं? 
(दरअस्ल मुहम्मद को भाषा ज्ञान तो था नहीं शायद दो दो से उनका अभिप्राय बहु वचन से हो)
''रात से दिन को छिपा देता है'' 
ये जुमला भी कुरआन में बार बार आता है. खुदाए आलिमुल ग़ैब को क्या इस बात का पता न था कि ज़मीन पर रात और दिन का निज़ाम क्यूँ है? 
दरख्तों में तनों की बात फिर करता है, 
एक या दो दो - - -
यहाँ पर भी दो दो से अभिप्राय बहु वचन से हैं. 
इसी तरह तर्जुमा निगारों ने पूरे कुरआन में 
'' अल्लाह के कहने का मतलब ये - - - है'' 
लिख कर मुहम्मद की मदद की है. लाल बुझक्कड़ के इन फ़लसफ़ों पर बार मुहम्मद इसरार करते हैं कि
''इन उमूर पर सोचने वालों के लिए दलायल है.''

'' और अगर आप को तअज्जुब हो तो उनका ये कौल तअज्जुब के लायक है कि जब हम खाक हो गए, क्या हम फिर अज़ सरे नव पैदा होंगे. ये वह लोग हैं कि जिन्हों ने अपने रब के साथ कुफ़्र किया और ऐसे लोगों की गर्दनों में तौक़ डाले जाएँगे और ऐसे लोग दोज़खी हैं.वह इस में हमेशा रहेंगे.''
सूरह रअद १३ परा-१३ आयत (५)
यहूदियत से उधार लिया गया ये अन्ध विश्वास मुहम्मद ने मुसलामानों के दिमाग़ में भर दिया है कि रोज़े महशर वह उठाया जाएगा, फिर उसका हिसाब होगा और आमालों की बुन्याद पर उसको जन्नत या दोज़ख की नई ज़िन्दगी मिलेगी. आमाले नेक क्या हैं ? नमाज़, रोज़ा, ज़कात, हज, और अल्लाह एक है का अक़ीदा जो कि दर अस्ल नेक अमल हैं ही नहीं, बल्कि ये ऐसी बे अमली है जिससे इस दुन्या को कोई फ़ायदा पहुँचता ही नहीं, आलावा नुकसान के.
हक तो ये है कि इस ज़मीन की हर शय की तरह इंसान भी एक दिन हमेशा के लिए खाक नशीन हो जाता है बाकी बचती है उस की नस्लें जिन के लिए वह बेदारी, खुश हाली का आने आने वाला कल । वह जन्नत नुमा इस धरती को अपनी नस्लों के वास्ते छोड़ कर रुखसत हो जाता है या तालिबानियों के वास्ते .
मुहम्मद का भाषाई व्याकरण देखिए - -
''और अगर आप को तअज्जुब हो तो उनका ये कौल तअज्जुब के लायक है'' दोज़ख तो तड़प तड़प कर जलने की आग की भट्टी है, आपफ़रमाते हैं -''वह इस में हमेशा रहेंगे.''
''ये लोग आफियत से पहले मुसीबत का तकाज़ा करते हैं. आप का रब ख़ताएँ बावजूद इसके कि वह ग़लती करते हैं, मुआफ़ कर देता है और ये बात भी यक़ीनी है कि आप का रब सख्त सज़ा देने वाला है. और कहते हैं इन पर मुअज्ज़ा क्यूँ नहीं नाज़िल हुवा. आप सिर्फ डराने वाले हैं. - - 
और अल्लाह को सब ख़बर रहती है जो कुछ औरत के हमल में रहता है और जो कुछ रहिम में कमी बेशी होती रहती है. और तमाम पोशीदा और ज़ाहिर को जानने वाला है, सब से बड़ा आलीशान है.
सूरह रअद १३ परा-१३ आयत (६-७)
''क़यामत कैसी होती है लाकर बतलाओ''
लोगों के इस मज़ाक़ पर मुहम्मद की ये आयत कैसी चाल भरी है, रिआयत और धमकी के साथ साथ. लोगों के मुअज्ज़े कि फ़रमाइश को टाल कर जवाब देते है कि वह तो बिलाऊवा हैं सिर्फ डराने वाले, 
बे सुर कि तानते हैं कि अल्लाह औरत के गर्भ में झाँक कर सब देख लेता है कि क्या घट रहा है. 
और खुद अपनी शान भी बघारता है कि बड़ा आली शान है. क्या नतीजा निकालते हो ऐ मुसलमानों! अल्लाह की इन खुराफाती बातों से ?

''हर शख्स के लिए कुछ फ़रिश्ते हैं जिनकी बदली होती रहती है, कुछ इसके आगे कुछ इसके पीछे बहुक्म ए खुदा फ़रिश्ते हिफाज़त करते रहते हैं. वाकई अल्लाह तअला किसी कौम की हालत में तगय्युर नहीं करता जब तक वह लोग खुद अपनी हालत को बदल नहीं देते और जब अल्लाह तअला किसी काम पर मुसीबत डालना तजवीज़ कर लेता है तो फिर उस को हटाने की कोई सूरत नहीं होती और कोई इसके सिवा मदद गार नहीं होता.''
सूरह रअद १३ परा-१३ आयत (११)
बाइबिल के कौल को अल्लाह का कलाम बतलाते हुए मुहम्मद कहते हैं, ''वाकई अल्लाह तअला किसी कौम की हालत में तगय्युर नहीं करता जब तक वह लोग खुद अपनी हालत को बदल नहीं देते'' 'दूसरे लम्हे ही इसके ख़िलाफ़ अपनी क़ुरआनी जेहालात पेश कर देते हैं ''जब अल्लाह तअला किसी काम पर मुसीबत डालना तजवीज़ कर लेता है तो फिर उस को हटाने की कोई सूरत नहीं होती और कोई इसके सिवा मदद गार नहीं होता।''
 



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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