मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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क़ुरआन सूरह यूनुस १०
तीसरी किस्त
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क़ुरआन सूरह यूनुस १०
तीसरी किस्त
क़ुरआन मुहम्मद की वज्दानी कैफ़ियत में बकी हुई ऊट पटाँग बातों का ऐसा मज्मूआ ए कलाम है जिसका कुछ जंगी फ़तूहात से इस्लामी ग़लबा कायम हो जाने के बाद मज़ाक उड़ाना जुर्म क़रार दे दिया गया.
जंगों से हासिल माले ग़नीमत ने इसे मुक़द्दस बना दिया. फ़तह मक्का के बाद तो यह उम्मी की पोथी शरीयत बन कर मुमालिक के कानून काएदे बन्ने लगी. इसके मुजरिमीन ओलिमा ने तलवार तले अपने ज़मीरों को गिरवीं रखना शुरू किया तो इस मैदान में दौड़ का मुकाबला शुरू हो गया. शिकस्त खुर्दा हुक्मरानों और मजबूरो मज़लूम अवाम ने इसे तस्लीम करना शुरू कर दिया. फूहड़ ज़बान, मुतज़ाद बातें, वज्द की बक बक, बे वक़अत क़िस्से, गढ़े हुए वाकए, बुग्ज़ और मक्र की गुफ्तुगू, झूट की सैकड़ों अक्साम को ढकने के लिए मुहम्मद ने इसे तिलावत की किताब बना दिया न कि समझने और समझाने की.
झूट की सदाक़त यह है कि वह अपना पुख्ता सुबूत अपने पीछे छोड़ जाता है. क़ुरआन को तहरीरी शक्ल में महफूज़ करने का मुहम्मद का कोई इरादा नहीं था, यह तो याददाश्त के तौर पर सीना बसीना क़बीलाई मन्त्र तक चलते रहने का सिलसिला था जो इसकी औकात है, मगर उस्मान गनी को तब झटका लगा जब इसके हाफिज़ जंगों में मारे जाने लगे. उनको लगा कि इस तरह तो एक दिन ऐसा भी आ सकता है कि क़ुरआन को अगले सीने में मुन्तकिल करने वाला कोई मिले ही नहीं. इस तरह उन्हों ने क़ुरआन के बिखरे हुए नुस्खों को चमड़ों, छालों, पत्थर क़ी स्लेटों और कागजों पर जहाँ जैसा मिला इकठ्ठा किया. आधे से ज्यादा क़ुरआन रद्द हुवा बाक़ी मौजूदा आप के सामने है अपने झूट के हश्र को लिए खड़ा है.
देखिए कि क़ुरआन में मुहम्मद अल्लाह बने हुए क्या कहते हैं - - -
''जब हम लोगों को बाद इसके कि इन पर कोई मुसीबत पड़ चुकी हो, किसी नेमत का मज़ा चखा देते हैं तो फ़ौरन हमारी आयतों के बारे में शरारत करने लगते हैं. कह दीजिए अल्लाह तअला सज़ा जल्दी देगा. बिल यकीन हमारे भेजे हुए फ़रिश्ते तुम्हारी शरारतों को लिख रहे हैं.''
सूरह यूनुस १० -११-वाँ परा आयत (२१)
इस किस्म की ज़नानी तबा मुहम्मद की बातें आज कठ मुल्लों के काम आती हैं खास कर औरतों को मुसलमान बनाए रखने के। क़ुरआन ऐसे बहुत से हरबे ईजाद करता है जो कुन्द ज़ेहनों पर बहुत काम करती है. बुत परस्ती और इन वहमों में क्या फर्क़, बल्कि यह ज़्यादः गाढे हैं. अल्लाह के कलाम में जगह जगह पर फरिश्तों की तैनाती है, क़ुरआन फरिश्तों पर भी यक़ीन और ईमान रखने की हिदायत करता है. बड़ा फ़रिश्ता जिब्रील मुहम्मद की मदद में बड़ा करसाज़ है. अल्लाह के क़ुरआन की आयतें यही ढो ढो कर लाता है और मुहम्मद के सीने में भरता है जिसे वह नबूवत के चैनल से रिले करते हैं. यही फ़रिश्ता मुहम्मद को अपनी सवारी पर लाद कर सातों आसमानों की सैर करता है. मुहम्मद और उनकी बहू ज़ैनब के आसमान पर निकाह होने का गवाह भी जोकर का पत्ता जिब्रील अलैहिस्सलाम ही होता है. जिस ब्याहता के साथ अल्लाह मियाँ मुहम्मद का नाजायज़ निकाह पढाते हैं. इस मुहम्मदी खेल में गाऊदी कौम देखिए कब तक फंसी रहे.
''और जिस रोज़ हम इन सब को जमा करेंगे कि तुम और तुम्हारे शरीक अपनी जगह ठहरो, फिर हम इन आबदीन (पूजक)और मुआब्दीन (पूज्य)में आपस में फूट डाल देंगे और उनके शुरका (सम्लित) कहेंगे तुम हमारी इबादत नहीं करते थे सो हमारे तुम्हारे दरमियान अल्लाह काफी गवाह है कि हम को तुम्हारी इबादत की खबर भी न थी.''
सूरह यूनुस १० -११-वाँ परा आयत (२८-२९)
लअनत है ऐसे अल्लाह पर जो दो आस्था वानों में फूट डलवाने का काम भी करता हो, यह तो सरासर शैतानी हरकत है। वह महज़ मिटटी पत्थर के बुत नहीं हैं, अल्लाह यह भी साबित कर रहा है कि उसकी मर्ज़ी के मुताबिक वह बोलने लगेंगे, जब कि उनको वह हमेशा बेजान और सिफार बतलाता है मगर मुहम्मद कि खोपड़ी कुछ भी साबित कर सकती है।यहाँ बुतों को अल्लाह का गवाह बना रही है.
''आप जानदार चीज़ों से बेजान को निकल देते हैं(जैसे बैजा से चूजा) और बेजान चीज़ों से जानदार को निकल देता है (जैसे परिंदे से अंडा)
सूरह यूनुस १० -११-वाँ परा आयत (३१)
अल्लाह की इस बात को बार बार आपके गोश गुज़र करा देता हूँ कि शायद कभी आपको यह बात दिल पर लगे और शर्म आ जाए कि आप किस अल्लाह की इबादत कर रहे हैं.जिसको उस वक़्त इतनी तमीज भी न थी कि अंडे में जान होती है.
'' इस में कोई शक नहीं कि यह (कुरआन ) रब्बुल आलमीन के तरफ़ से नाज़िल हुवा है. क्या वह लोग कहते है कि आप ने इसे अपनी तरफ से बना लिया है? फिर तुम कहदो कि तुम इस के मिस्ल एक ही सूरह लाओ और जिन जिन गैर अल्लाह को बुला सको बुला लो अगर तुम चाहो.''
सूरह यूनुस १० -११-वाँ परा आयत (३८)
मुहम्मदी अल्लाह का चैलेंज कुरआन के बारे में बार बार है कि वह इसे मुहम्मद की रचना नहीं मानता गोया मुहम्मद खुद अपनी किताब कुरआन को अपनी नहीं मानते और अल्लाह का नाजिल ओ नुजूल मानते है. इसमें बड़ी चालाकी छिपी हुई है.इसकी सारी खामियां अल्लाह के सर जाती हैं. कुरआन की कोई सूरह या कोई आयत भी कोई साहबे अक्ल और साहबे जेहन नहीं बक सकता अलावः किसी दीवाने के.
''और बअजे हैं जो इस पर ईमान लाएँगे और बअजे हैं जो इस पर ईमान न लाएँगे और आप का रब इन मुफस्सिदों(झूटों) को खूब जनता है और अगर आप को झुट्लाते है तो कह दीजिए कि मेरा किया हुवा मुझको और तुम्हारा किया हुवा तुमको मिलेगा. तुम मेरे किए हुए के जवाब देह नहीं, मैं तुम्हारे किए का जवाब देह नहीं.''
सूरह यूनुस १० -११-वाँ परा आयत (४१)
मुहम्मद के मुहिम में एक वक़्त मजबूरी आन पड़ी थी कि ऐसी आयतें नाजिल होने लगीं (देखें तारिख इस्लाम) वर्ना जेहादी अल्लाह के मुँह से इस किस्म की बातें ? तौबा ! तौबा !! यह आयत आज मुल्लाओं और सियासत दानों के बहुत काम आ रहे हैं. जैसे मुहम्मद के काम वक्ती तौर पर आ गई थीं ताक़त मिलते ही फिर ये लोग जेहादी तालिबान बन जाएँगे.
'' इन में से कुछ ऐसे हैं जो आप की तरफ़ कान लगा कर बैठे हैं, क्या आप बहरों को सुनाते हैं कि जिनके अन्दर कोई समझ ही न हो. और बअज़ ऐसे हैं जो सिर्फ़ देख रहे हैं तो क्या आप अंधों को रास्ता दिखाना चाहते हैं, गो इनको बसीरत भी नहीं है. यकीनी बात है कि अल्लाह तअला लोगों पर ज़ुल्म नहीं करता लेकिन लोग खुद ही को तबाह करते हैं.''
सूरह यूनुस १० -११-वाँ परा आयत (४२-४४)
आप की बातों में कोई दम ख़म हो, कोई इन्क्शाफ हो, इन्क्शाफ के नाम पर जेहालत की बातें कि अण्डे को आप बेजान बतलाते हैं और उसमें से जानदार परिन्द निकलते हैं, फिर परिन्द से बेजान अण्डा निकलने का अल्लाह का मुआज्ज़ा दिखलाते है.
आप के बातें वही ईसा मूसा की घिसी पिटी कहानियाँ दोहराती रहती हैं, कहाँ तक सुनें लोग? ऊंघने तो लगेंगे ही, अनसुनी तो करेंगे ही. आप कहते हैं कि वह सब हम्मा तन बगोश हो जाएँ. मुहम्मद की इन बातों से अंदाजः लगाया जा सकता है कि उनके गिर्द कैसे कैसे लोग रहते होंगे और उस वक़्त इस क़ुरआन की वक़अत क्या रही होगी ?
क़ुरआन की वक़अत तो आज भी वही है मगर हराम खोर ओलिमा और तलवार की धार ने इस पर सोने का मुलम्मा चढ़ा रखा है. नमाज़ अगर दुन्या के लोगों की मादरी जुबानों में हो जय तो चन्द दिनों में ही इस्लाम की पोल पट्टी खुल जाय. अवाम नए सिरे से आप को नए लकबों से नवाजना शुरू करदे.
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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