Friday 22 January 2016

Soorah yusuf 12 Qist 1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

सूरह यूसुफ़ -१२ 

(पहली किस्त)
बनी इस्राईल का हीरो यूसेफ़, मशहूरे ज़माना जोज़फ़ और अरब दुन्या का जाना माना किरदार यूसुफ़ इस सूरह का उन्वान है जिसे अल्लाह उम्दः किस्सा कहता है. क़ुरआन में यूसुफ़ का किस्सा बयाने तूलानी है जिसका मुखफ़फफ़ (सारांश) पेश है - - - 
''अलरा ? यह किताब है एक दीन वाज़ेह की. हमने इसको उतारा है कुरआन अरबी ताकि तुम इसे समझो. हमने जो यह कुरआन आपके पास भेजा है इसके जारीए हम आप से एक बड़ा उम्दा किस्सा बयान करते है और इसके क़ब्ल आप महज़ बे खबर थे.''
क़ुरआन जिसे आप चूमा चाटा करते हैं और सर पे रख कर उसकी अज़मत बघारते हैं उसमें किस्से और कहानियाँ भी हैं जो की मुस्तनद तौर पर झूट हुवा करती हैं, वह भी नानियों की तरह अल्लाह जल्ले जलालहू अपने नाती मुहम्मद को जिब्रील के माध्यम से सुनाता है और फिर वह बन्दों को रिले करते हैं.मुसलमानों! कितनी बकवास है क़ुरआन की हक़ीक़त. अल्लाह खुद की पीठ ठोंकते हुए कहता है - - -
''हम आप से एक बड़ा उम्दा किस्सा बयान करते है''
इसके क़ब्ल आप देख चुके हैं कि उसको किस्सा गोई का कितना फूहड़ सलीक़ा है. मज़े की बात यह है कि अल्लाह यह एलान करता है कि 
''और इसके क़ब्ल आप महज़ बे खबर थे.'' 
मिस्र के बादशाह फ़िरआना को मूसा का चकमा देकर अपनी यहूदी कौम को मिस्रियों के चंगुल से निकल ले जाना, नड सागर जिससे क़ुरआन नील नदी कहता है, में मिसरी लश्कर का डूब कर तबाह हो जाना मूसा से लेकर मुहम्मद तक ६०० साल का सब से बड़ा वाक़ेआ था जोकि अरब दुनिया का बच्चा बच्चा जनता है, गाऊदी मोहम्मदी अल्लाह कहता है ''और इसके क़ब्ल आप महज़ बे खबर थे.'' यह ठीक इसी तरह है कि कोई कहे कि मैं तुम को एक अनोखी कथा सुनाता हूँ और वाचना शुरू कर दे रामायण। 
इसी लिए पिछले लेख में मैं ने कहा था 
''झूट का पाप=कुरान का आप'' 
लीजिए सदियों चर्चित रहे अंध विश्वास के इस दिल चस्प किस्से से आप भी लुत्फ़ अन्दोज़ होइए। गोकि मुहम्मद ने बीच बीच में इस किस्से में भी अपने प्रचार का बाजा बजाया है मगर मैं उससे आप को बचाता हुवा और उनके फूहड़ अंदाज़ ए बयान को सुधरता हुवा किस्सा बयान करता हूँ. 
''याकूब अपनी सभी बारह औलादों में अपने छोटे बेटे यूसुफ़ को सब से ज़्यादः चाहता है. यह बात यूसुफ़ के बाक़ी सभी भाइयों को खटकती है, इस लिए वह सब यूसुफ़ को ख़त्म कर देने के फ़िराक़ में रहते हैं. इस बात का खदशा याकूब को भी रहता है. एक दिन यूसुफ़ के सारे भाइयों ने साज़िश करके याकूब को राज़ी किया कि वह यूसुफ़ को सैर व तफ़रीह के लिए बाहर ले जाएँगे, वह राज़ी हो गया. वह सभी यूसुफ़ को जंगल में ले जाकर एक अंधे कुँए में डाल देते हैं और यूसुफ़ का खून आलूद कपडा लाकर याकूब के सामने रख कर कहते हैं कि उसे भेडिए खा गए. 
याकूब यूसुफ़ की मौत को सब्र करके ज़ब्त कर जाता है.
उधर कुँए से यूसुफ़ की चीख़ पुकार सुन कर ताजिर राहगीर उसे कुँए से निकलते हैं और माल ए तिजारत में शामिल कर लेते हैं. 
मिस्र लेजा कर वह उसे अज़ीज़ नामी जेलर के हाथों फ़रोख्त कर देते हैं अज़ीज़ इस ख़ूब सूरत बच्चे को अपना बेटा बनाने का फ़ैसला करता है मगर यूसुफ़ के जवान होते होते इसकी बीवी ज़ुलैखा इसको चाहने लगती है. 
एक रोज़ वह इसको अकेला पाकर इस की क़ुरबत हासिल करने की कोशिश करती है लेकिन यूसुफ़ बच बचा कर इसके दाम से भाग निकलने की कोशिश करता है कि जुलेखा इसका दामन पकड़ लेती है जो कि कुरते से अलग होकर ज़ुलैखा हाथ में आ जाता है. इसी वक़्त इसका शौहर अज़ीज़ घर में दाखिल होता है, ज़ुलैखा अपनी चाल को उलट कर यूसुफ़ पर इलज़ाम लगा देती है कि यूसुफ़ उसकी आबरू रेज़ी पर आमादः होगया था. उसने अज़ीज़ से यूसुफ़ को जेल में डाल देने की सिफ़ारिश भी करती है.
बात बढती है तो मोहल्ले के कुछ बड़े बूढ़े बैठ कर मुआमले का फ़ैसला करते हैं कि यूसुफ़ बच कर भागना चाहता था, इसी लिए कुरते का पिछला दामन ज़ुलैखा के हाथ लगा. मुखिया ज़ुलैखा को कुसूर वार ठहराते हैं और बाद में ज़ुलैखा भी अपनी ग़लती को तस्लीम कर लेती है. 
इससे मोहल्ले की औरतों में उसकी बदनामी होती है कि वह अपने ग़ुलाम पर रीझ गई. जब ये बात ज़ुलैखा के कानों तक पहुंची तो उसने ऐसा किया कि मोहल्ले की जवान औरतों की दावत की और सबों को एक एक चाक़ू थमा दिया फ़िर यूसुफ़ को आवाज़ लगाई. यूसुफ़ दालान में दाखिल हुवा तो हुस्ने यूसुफ़ देख कर औरतों ने चाकुओं से अपने अपने हाथों की उँगलियाँ काट लीं.
अपने तईं औरतों की दीवानगी देख कर यूसुफ़ को अंदेशा होता है कि वह कहीं किसी गुनाह का शिकार न हो जाए, अज़ खुद जेल खाने में रहना बेहतर समझता है. 
जेल में उसके साथ दो ग़ुलाम क़ैदी और भी होते हैं जिनको वह ख़्वाबों की ताबीर बतलाता रहता है जो कि सच साबित होती हैं. कुछ ही दिनों बाद वह कैदी रिहा हो जाते हैं.
एक रात बादशाह ए मिस्र एक अजीब ओ ग़रीब ख्व़ाब देखता है कि दर्याए नील से निकली हुई सात तंदुरुस्त गायों को सात लाग़ुर गाएँ खा गईं और सात हरी बालियों के साथ सात सूखी बालियाँ मौजूद हैं. सुब्ह को बादशाह ने ख्व़ाब की चर्चा अपने दरबारियों में की मगर ख्व़ाब की ताबीर बतलाने वाला कोई आगे न आ सका. ये बात उस गुलाम क़ैदी तक पहुँची जो कभी यूसुफ़ के साथ जेल में था. उसने दरबार में ख़बर दी कि जेल में पड़ा इब्रानी क़ैदी ख़्वाबों की सही सही ताबीर बतलाता है, उस से बादशाह के ख्व़ाब की ताबीर पूछी जाए, बेतर होगा.
यूसुफ़ को जेल से निकाल कर दरबार में तलब किया जाता है. ख्व़ाब को सुन कर ख्व़ाब की ताबीर वह इस तरह बतलाता है कि आने वाले सात साल फसलों के लिए ख़ुश गवार साल होंगे और उसके बाद सात साल खुश्क साली के होंगे. सात सालों तक बालियों में से अगर ज़रुरत से ज़्यादः दाना न निकला जाए तो अगले सात साल भुखमरी से अवाम को बचाया जा सकता है.
फ़िरआना (फिरौन) इसकी बतलाई हुई ताबीर से ख़ुश होता है और यूसुफ़ को जेल से दरबार में बुला कर इसका ज़ुलैखा से मुतालिक़ मुक़दमा नए सिरे से सुनता है, पिछला दामन ज़ुलैखा के हाथ में रह जाने की बुनियाद पर यूसुफ़ बा इज़्ज़त बरी हो जाता है. यूसुफ़ को इस मुक़दमे से और ख्व़ाब की ताबीर से इतनी इज़्ज़त मिलती है कि वह बादशाह के दरबार में वज़ीर हो जाता है.
बादशाह के ख्व़ाब के मुताबिक सात साल तक मिस्र में बेहतर फसल होती है जिसको यूसुफ़ महफूज़ करता रहता है, इसके बाद सात सालों की क़हत साली आती है तो यूसुफ़ अनाज के तक़सीम का काम अपने हाथों में लेलेता है. क़हत की मार यूसुफ़ के मुल्क कन्नान तक पहुँचती है और अनाज के लिए एक दिन यूसुफ़ का सौतेला भाई भी उसके दरबार में आता है जिसको यूसुफ़ तो पहचान लेता है मगर वज़ीर ए खज़ाना को पहचान पाना उसके भाई के लिए ख्वाब ओ ख़याल की बात थी. यूसुफ़ उसकी ख़ास खातिर करता है और उसके घर की जुगराफ़िया उसके मुँह से उगलुवा लेता है. वक़्त रूखसत यूसुफ़ अपने भाई को दोबारा आने और गल्ला ले जाने की दावत देता है और ताक़ीद करता है कि वह अपने छोटे भाई को ज़रूर ले आए.( दर अस्ल छोटा भाई यूसुफ़ का चहीता था, इसका नाम था बेन्यामीन). यूसुफ़ ने वह रक़म भी अनाज की बोरी में रख दी जो गल्ले की क़ीमत ली गई थी. यूसुफ़ का सौतेला भाई जब अनाज लेकर कन्नान बाप याक़ूब के पास पहुँचा तो वज़ीर खज़ाना मिस्र की मेहर बानियों का क़िस्सा सुनाया और कहा कि चलो खाने का इंतेज़ाम हो गया और साथ में यह भी बतलाया कि अगली बार छोटे बेन्यामीन को साथ ले जाएगा, जिसे सुन कर याक़ूब चौंका, कहा कहीं यूसुफ़ की तरह ही तुम इसका भी हश्र तो नहीं करना चाहते? मगर बाद में राज़ी हो गया. कुछ दिनों के बाद याक़ूब के कुछ बेटे बेन्यामीन को साथ लेकर मिस्र अनाज लेने के लिए पहुँचते हैं. यूसुफ़ अपने भाई बेन्यामीन को अन्दरूने महेल ले जाता है और इसे लिपटा कर खूब रोता है और अपनी पहचान को ज़ाहिर कर देता है. वह आप बीती भाई को सुनाता है और मंसूबा बनाता है कि तुम पर चोरी का इलज़ाम लगा कर वापस नहीं जाने देंगे, गरज़ ऐसा ही किया. बगैर बेन्यामीन के यूसुफ़ के सौतेले भाई याकूब के पास पहुँचे तो उस पर फ़िर एक बार क़यामत टूटी. उसने सोचा कि यूसुफ़ की तरह ही बेन्यामीन को भी इन लोगों ने मार डाला.कुछ दिनों बाद यूसुफ़ सब को मुआफ़ कर देता है और बादशाह के हुक्म से सब भाइयों, माओं और बाप को मिस्र बुला भेजता है। याकूब के बेटे याकूब को, यूसुफ़ की माँ को लेकर यूसुफ़ के पास पहुँचते हैं, यूसुफ़ अपने माँ बाप को तख़्त शाही पर बिठाता है, उसके सभी ग्यारह भाई उसके सामने सजदे में गिर जाते हैं, तब यूसुफ़ अपने बाप को बचपन में देखे हुए अपने ख्व़ाब को याद दिलाता है कि मैं ने चाँद और सूरज के साथ ग्यारह सितारे देखे थे जो कि उसे सजदा कर रहे थे, उसकी ताबीर आप के सामने है.'' 



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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