मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह यूसुफ़ -१२
(दूसरी किस्त)
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सूरह यूसुफ़ -१२
(दूसरी किस्त)
यहूदी काल में भी अन्ना समर्थकों का ताँता बंधा रहता. लोग किसी भी मौक़े पर तमाश बीन बन्ने के लिए तैयार रहते. एक व्यभिचारणी को जुर्म की सजा में संग सार करने की तय्यारी चल रही थी, लोग अपने अपने हाथों में पत्थर लिए हुए खड़े थे. वहीँ ईसा ख़ाली हाथ आकर खड़े हो गए. व्यभिचारणी लाई गई, पथराव शुरू ही होने वाला था कि ईसा ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा - - -
"तुम लोगों में पहला पत्थर वही मारेगा जिसने कभी व्यभिचार न किया हो"
सब के हाथ से पत्थर नीचे ज़मीन पर गिर गए.
अन्ना को, अगर उनमें दम हो तो चाहिए कि वह ईसा बनें लोगो से कहें - -
"कि मेरे साथ वही लोग आएं जिन्हों ने कभी भ्रस्ट आचरण न किया हो. न रिश्वत लिया हो और न रिश्वत दिया हो."
बड़ी मुश्किल आ जाएगी कि वह अकेले ही राम लीला मैदान में पुतले की तरह खड़े होंगे.
चलिए इस शपथ को और आसान करके लेते हैं कि वह अपने अनुयाइयों से यह शपथ लें कि आगे भविष्य में वह रिश्वत लेंगे और न रिश्वतदेंगे. रिश्वत के मुआमले में लेने वालों से देने वाले दस गुना होते हैं. पहले देने वाले ईमानदार बने. रिश्वत के आविष्कारक देने वाले ही थे. अन्ना सिर्फ सातवीं क्लास पास हैं, उनके अन्दर इंसानी नफ्सियात की कोई समझ है न अध्यन, परिपक्वता तो बिलकुल नहीं है, वह अनजाने में भ्रष्टा चार का एक रावन और बनाना चाहते हैं जिसका रूप होगा लोकायुक्त.
अन्ना को चाहिए कि वह अपनी बची हुई थोड़ी सी ज़िन्दगी को हिन्दुस्तानियों के चरित्र निर्माण में लगाएं.
पिछली किस्त में मैंने कहा थ कि यूसुफ़ की तौरेती कहानी आपको सुनाऊंगा जिसे मैं मुल्तवी करता हूँ कि यह बात मेरे मुहिम में नहीं आती। इतना ज़रूर बतलाता चलूँ कि मुहम्मद ने तौरेत की हर बात को ऐतिहासिक घटना के रूप में तो लिया है मगर उसमें अपनी बात कायम करने के लिए रद्दो बदल कर दिया है
तौरेत में यूसुफ़ हसीन इन्सान नहीं बल्कि ज़हीन तरीन शख्स है.
उसने सात सालों में इतना गल्ला इकठ्ठा कर लिया था कि अगले सात क़हत साली के सालों में पूरे मिस्र को दाने के एवाज़ में बादशाह के पास गिरवीं कर दिया था. ज़मीन बादशाह की और मज़दूरी पर रिआया काम करने लगी . कुल पैदावार का १/५ लगान सरकार को मिलने लगा. यूसुफ़ का यह तरीक़ा आलम गीर बन गया जो आज तक कहीं कहीं रायज है.
''ये क़िस्सा गैब की ख़बरों में से है जो हम वाहिय के ज़रीए से आप को बतलाते हैं. - - - और अक्सर लोग ईमान नहीं लाते गो आप का कैसा भी जी चाह रहा हो, और आप इनसे इस पर कुछ मावज़ा तो चाहते नहीं, यह क़ुरआन तो सारे जहां वालों के लिए सिर्फ़ नसीहत है."
सूरह यूसुफ़ १३- १३-वाँ पारा आयत (१०२-४)
मैंने आप को बतलाया था कि यूसुफ़ कि कहानी अरब दुन्या कि मशहूर तरीन वाक़ेआ है जिसे बयान करने के बाद झूठे मुहम्मद फिर अपने झूट को दोहरा रहे है कि ये गैब कि खबर है जो इन्हें वाहिय के ज़रीए मिली है.
मुसलमानों!
मेरे भोले भाले भाइयो!!
क्या तुम्हें ज़रा भी अपनी अक्ल नहीं कि ऐसे कुरआन को सर से उतार कर ज़मीन पर फेंको.
सिड़ी सौदाई की खाहिशे पैगम्बरी की इन्तहा देखो कि ज़माने के दिखावे के लिए अपने आप में गम के मारे गले जा रहे हैं, अपने जी की चाहत में तड़प रहे हैं, जेहादी रसूल. कुरआन सारे ज़माने को एक भी कारामद नुस्खा नहीं देता बस इसका गुणगान बज़ुबान खुद है.
''और बहुत सी निशानियाँ आसमानों और ज़मीन पर जहाँ उनका गुज़र होता रहता है और वह उनकी तरफ तवज्जे नहीं देते हैं और अक्सर लोग जो खुदा को मानते भी हैं तो इस तरह के शिर्क करते जाते हैं तो क्या फिर इस बात से मुतमईन हुए हैं कि इन पर खुदा के अज़ाब का कोई आफ़त आ पड़े जो इनको मुहीत हो जावे या उन पर अचानक क़यामत आ जवे और उनको खबर भी न हो.''
सूरह यूसुफ़ १३- १३-वाँ पारा आयत (१०५-१०७)
गंवार चरवाहा बगैर कुछ सोचे समजे मुँह से बात निकालता है जिसको यह हराम ज़ादे ओलिमा कुछ नशा आवर अफीम मिला के कलामे इलाही बना कर आप को बेचते हैं. अब सोचिए कि आसमानों पर वह भी उस ज़माने में आप अवाम का गुज़र कैसे होता रहा होगा या इन मुल्लाओं का आज भी आसमानों पर जाने की तौफीक कहाँ , साइंस दानों के सिवा ?
रह गई ज़मीन की बात तो इस पर अरब दुन्या के लड़ाके यूसुफ़ से लेकर मूसा तक हजारो बस्तियों को यूँ तबाह करते थे कि वह ज़मीन कि निशानयाँ बन जाती थीं. (पढ़ें तौरेत मूसा काल)मुहम्मद हजरते इन्सान को कभी हालाते इत्मीनान में देखना या रहने देना पसंद नहीं करते थे. उनकी बुरी खसलत थी कि फर्द के ज़ातयात में दख्ल अंदाजी जिसकी पैरवी इस ज़माने भी उल्लू के पट्ठे तबलीगी जमाअत वाले जोहला, तालीम याफ्ता हल्के में, लोगों को जेहालत की बातें समझाने जाते है.मुहम्मद की एक खू शिर्क है कि जो उनके सर में जूँ की तरह खुजली किया करती है. शिर्क यानी अल्लाह के साथ किसी को शरीक करना. इसमें भी मुहम्मद की चाल है कि सिर्फ़ उनको शरीक करो.जेहादों की मिली माले गनीमत,तलवारों के साए में रचे इस्लामी कानून और हरामी ओलिमा के खून में दौड़ते नुत्फे ए मशकूक ने एक बड़ी आबादी को रुसवा कर रखाहै।
"आप फरमा दीजिए मेरा तरीक है मैं खुदा की तरफ इस तौर पर बुलाता हूँ कि मैं दलील पर क़ायम हूँ। मैं भी, मेरे साथ वाले भी और अल्लाह पाक है और मैं मुशरिकीन में से नहीं हूँ और हमने आप से पहले मुख्तलिफ बस्ती वालों में जितने रसूल भेजे हैं सब आदमी थे. और यह लोग मुल्क में क्या चले फिरे नहीं कि देख लेते कि इन लोगों का कैसा अंजाम हुवाजो इन से पहले हो गुज़रे हैं और अल्बस्ता आलमे आखरत इनके लिए निहायत बहबूदी की चीज़ है जो एहतियात रखते हैं. सो क्या तुम इतना भी नहीं समझते. इन के किस्से में समझदार लोगों के लिए बड़ी इबरत है। ये कुरान कोई तराशी हुई बात तो है नहीं बल्कि इससे पहले जो किताबें हो चुकी हैं ये उनकी तस्दीक करने वाला है और हर ज़रूरी बात की तफसील करने वाला है और ईमान वालों के लिए ज़रीया हिदायत है और रहमत है."
सूरह यूसुफ़ १३- १३-वाँ पारा आयत (१०९)
तुम किसी दलील पर क़ायम नहीं हो, तुम तो दलील की शरह भी नहीं कर सकते, अलबत्ता अपने गढ़े हुए अल्लाह के दल्लाली पर क़ायम हो. तुम और तुहारे साथी यह आलिमान दीन मुशरिकीन में से नहीं, बल्कि मुज्रिमीन में से हो. आ गया है वक़्त कि तुम जवाब तलब किए जा रहे हो.
तुम्हारे अल्लाह ने तुमसे पहले मूसा जैसे ज़ालिम जाबिर और दाऊद जैसे डाकू लुटेरे रसूल ही भेजे हैं जिसे तुम अच्छी तरह समझते हो कि उनकी पैरवी ही तुम्हें कामयाब करेगी। मुहम्मद के पास एह यहूदी पेशावर शागिर्द रहा करता था जो तमाम तौरेती किस्से और वाक़िए इनको बतलाता था और यह उसे अपनी गंवारू ग्रामर की शाइरी में गढ़ कर बयान करते और उसे वह्यी कहते।
कहते हैं अल्लाह की इस कहानी को दूसरी आसमानी किताबें भी तसदीक़ करती हैं. कैसा बेवकूफ़ बनाया है जाहिलों को और जो आज तक बने हुए हैं.
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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