मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह हुजरात -४९ -पारा -२६
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सूरह हुजरात -४९ -पारा -२६
मुहम्मद लगभग हाकिम बन चुके हैं. इनके मुँह से निकली हुई हर बात आयते क़ुरआनी हो जाती है. वह अल्लाह के रसूल की बजाए, अल्लाह उनका रसूल बन जाता है. नए रसूल की सियासी सूझ बूझ और तौर तरीकों के आगे पुराना रसूल मुहम्मद का साया नज़र आता है. वह अपने गिर्द फैले हुए जाँ निसारों, चापलूसों और लाखैरों की शिनाख्त बड़ी महारत से करने लगे हैं. मक्का में वह कुफ़फ़ार का मुकाबिला जूनून और मसलेहत के साथ कर रहे थे और मदीने में मुनाफिक़ों का सामना जिसारत के साथ करते नज़र आते हैं. रसूल को अब भर्ती के मुसलमान नहीं चाहिएं. वह अपने मुँह लगे साथियों के मुँह में लगाम लगाने लगे हैं.
मुहम्मदी अल्लाह कहने लगा - - -
"ऐ ईमान वालो ! अल्लाह और उसके रसूल से पहले तुम सिबक़त मत किया करो और अल्लाह से डरते रहो. बेशक अल्लाह सुनने वाला और जानने वाला है."
सूरह हुजरात -४९ -पारा -२६ - आयत (१)
रसूल अब अपने अल्लाह को शाने बशाने रखने लगे हैं, तभी तो कहते हैं "अल्लाह और उसके रसूल से पहले तुम सिबक़त मत किया करो और अल्लाह से डरते रहो" मुहम्मद में अल्लाह का तकब्बुर आ गया है , कोई उन्हें परवर दिगार कहता है तो उन्हें वह कोई एतराज़ नहीं करते, अन्दर से मह्जूज़ होते हैं.
"ऐ ईमान वालो! तुम अपनी आवाजें पैगम्बर की आवाज़ के सामने बुलंद मत किया करो. और न इनसे खुल कर बोला करो, जैसे तुम आपस में खुल कर बोलते हो. कभी तुम्हारे आमाल बर्बाद हो जाएँगे और तुमको खबर भी न होगी. बे शक जो लोग अपनी आवाज़ को रसूल की आवाज़ से पस्त रखते हैं, ये वही हैं जिनको के दिलों को अल्लाह ने तक़वा के लिए ख़ास कर दिया है. इन लोगों के लिए मग्फ़िरत और उजरे-अज़ीम है."
सूरह हुजरात -४९ -पारा -२६ - आयत (२-३)
मुहम्मद अपनी उम्मत बनी रिआया को आदाबे-महफ़िल सिखला रहे है. उनकी पीरी मुरीदी चल निकली है.
"जो लोग हुजरे के बहार से आपको पुकारते हैं, वह लोग अक्सर बे अक्ल होते हैं. बेतर है कि ये लोग सब्र करें, यहाँ तक कि आप खुद बाहर निकल आते तो ये उन लोगों के लिए बेहतर होता और अल्लाह गफूर्रुर रहीम है.
ऐ इमान वालो ! अगर कोई शरीर आदमी तुम्हारे पास कोई ख़बर लाए तो खूब तहकीक़ कर लिया करो, कभी किसी कौम को नादानी से कोई ज़रर न पहुँचाओ कि फिर अपने किए पर पछताना पड़े."
सूरह हुजरात -४९ -पारा -२६ - आयत (४-६)
तमाज़त और दूर अनदेशी भी मुहम्मद के आस पास फटकने लगी है.
"और जान रक्खो कि तुम में रसूल अल्लाह हैं. बहुत सी बातें ऐसी होती हैं कि अगर वह इसमें तुम्हारा कहना माना करें, तो तुम को बड़ी मुज़र्रत होगी.
और अगर मुसलमानों में दो गिरोह आपस में लड़ें तो उनके दरमियान इस्लाह कर दो. मुसलमान तो सब भाई हैं, सो अपने भाइयों के दरमियाँ इस्लाह कर दिया करो."
सूरह हुजरात -४९ -पारा -२६ - आयत (७-१०)
काश कि ये बातें आलमे-इंसानियत के लिए होतीं, न कि सिर्फ मुसलामानों के लिए. इन तालीमात से तअस्सुब का ही जन्म होता है.
ऐ ईमान वालो! मर्दों को मर्दों पर नहीं हँसना चाहिए और औरतों को न औरतों पर, क्या जाने कि वह हँसने वालों से बेहतर हो, और न एक दूसरे को तअने दो.
ऐ इमान वालो! बहुत से गुमानों से बचो क्यूँ कि बहुत से गुमान गुनाह होते है. सुराग न लगाया करो, किसी की गीबत न करो. क्या तुम में कोई पसंद करता है कि मरे हुए भाई का गोष्ट खाए."
सूरह हुजरात -४९ -पारा -२६ - आयत (११-१२)
औरत को मर्दों पर मर्दों को और औरतों पर हँसना भी ?
मुहम्मद को सहाबी कहा करते थे कि आप तो हमारी बातों पर कान धरे रहते हैं. चुगल खोरों की बातों को अल्लाह की वह्यी बतलाने वाले कमज़ोर इंसान आज दूसरों को नसीहत दे रहे हैं.
काफ़िर, मुशरिक और दीदरों की गीबत करने वाले मुहम्मद क्या बक रहे हैं?
जंगे-बदर भूल रहे हैं जहाँ अपने भाई बन्दों को मार कर उनके गोश्त को तीन दिनों तक सड़ने दिया था, फिर इनकी लाशों को बद्र के कुँए में फिकवा दिया था?
"अल्लाह के नजदीक बड़ा शरीफ वही है जो परहेज़गार हो"
सूरह हुजरात -४९ -पारा -२६ - आयत (१३०)
माले-गनीमत खाने वाला इंसान क्या कभी शरीफ़ इंसान भी हो सकता है?
"ये गंवार कहते हैं कि हम ईमान लाए, आप फ़रमा दीजिए कि तुम ईमान तो नहीं लाए, यूं कहो कि हम मती हुए. मोमिन तो वह है जो अल्लाह पर और उसके रसूल पर ईमान लाए. फिर शक नहीं किया और अपने जान ओ माल से अल्लाह की राह में जेहाद किया."
सूरह हुजरात -४९ -पारा -२६ - आयत (१४-१५)
करने लगे गीबत या रसूल अल्लाह.?
अल्लाह के नाम पर मार काट और लूट-पाट से ही इस्लाम फैला जो हमेशा रुस्वाए ज़माना रहा.
"ये लोग अपने ईमान लाने का आप पर एहसान रखते हैं, आप कही कि मुझ पर एहसान नहीं, बल्कि एहसान अल्लाह का का है तुम पर कि उसने तुमको ईमान लाने की हिदायत दी, बशर्ते तुम सच्चे हो. बे शक अल्लाह ज़मीन और आसमान की मुख्फी बातों को जनता है और तुम्हारे सब आमल जनता है.
सूरह हुजरात -४९ -पारा -२६ - आयत (१७-१८)
इस्लामी ईमान ,ईमान नहीं, बे ईमानी है.
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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