Friday 16 December 2016

Soorah toor 52 -2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह तूर ५२ - पारा २७
दूसरी क़िस्त 

"कोई इसे टाल नहीं सकता. जिस रोज़ आसमान थरथराने लगेंगे, और पहाड़ हट जाएँगे, जो लोग झुटलाने वाले हैं, जो मशगला में बेहूदी के साथ लगे रहते हैं , इनकी इस रोज़ कमबख्ती आ जायगी. जिस रोज़  इन्हें आतिशे दोज़ख की तरफ धक्के मार कर लाएँगे, . . ये वही दोज़ख है जिसे तुम झुट्लाते थे, फिर क्या सेहर है या तुमको नज़र नहीं आ रहा."
सूरह तूर ५२- परा २७ - आयत (८-१५)

"मुत्तकी लोग बिला शुबहा बागों और सामान ए ऐश में होंगे.
खूब खाओ पियो अपने आमालों के साथ.
तकिया लगाए हुए तख्तों पर बराबर बिछाए हुए हैं.
हम उनका गोरी गोरी, बड़ी बड़ी आँखों वालियों से ब्याह कर देंगे.
और हम उनको मेवे और गोश्त , जिस क़िस्म का मरगूब हो रोज़े अफ़जूँ  देते रहेंगे.
वहाँ आपस में जाम ए शराब में छीना झपटी करेंगे, इसमें न बक बक लगेगी.और न कोई बेहूदा बात होगी.
इनके पास ऐसे लड़के आएँगे, जाएँगे जो ख़ास इन्हीं के लिए होंगे,
गोया वह हिफ़ाज़त में रखे मोती होंगे वह एक दूसरे की तरफ़ मुतवज्जो होकर बात चीत करेंगे.
ये भी कहेगे की हम तो इससे पहले अपने घर में बहुत डरा करते थे, सो अल्लाह ने बड़ा एहसान किया.  
सूरह तूर ५२- परा २७ - आयत (१७-२७)

सामान ए ऐश के लिए गोरी गोरी, बड़ी बड़ी आँखों वालियों,
शराब कबाब के दौर चलेंगे, धींगा मुश्ती होगी,
तख्तों पर जन्नती बे खटके बेशर्मी करेंगे.
वहाँ न किसी क़िस्म की हरकत नाज़ेबा न होगी और इज्तेमाई अय्याशी रवा होगी. सभी जन्नती एक दूसरे की नकलों हरकत देख कर मह्जूज़ हुवा करेंगे. 
मन पसंद गोशत और मेवे शराब के साथ बदर्जा स्नैक्स होंगे, जिसे ऐसे लड़के लेकर आएँगे, जाएँगे जो ख़ास इन्हीं जन्नातियों के लिए वक्फ़ होगे वह चाहें तो उनका हाथ खींच कर उन्हें अपने तख्त पर लिटा लें.
सारी हदें पार करते हुए मुहम्मद जन्नातियों को लौंडे बाज़ी की दावत देते है. वहाँ कोई काम न करना पडेगा, न ही नमाज़ रोज़ा न वज़ू की पाकीज़गी की ज़रुरत होगी.
बस कि जिनसे लतीफ़ और जिनसे गलीज़ की जन्नत में हर वक़्त डूबे रहिए.

मुहम्मद का तसव्वर गौर तलब है. कहते है कि जन्नती ये भी कहेंगे - - -
"ये भी कहेगे की हम तो इससे पहले अपने घर में बहुत डरा करते थे, सो अल्लाह ने बड़ा एहसान किया."

शर्म! शर्म!!शर्म!!!
ये नापाक बातें किसी नापाक किताब में ही दीन के नाम पर मिलती होंगी. अय्यास मुसव्विर का तसव्वुर मुलाहिजा हो - --

"आप समझाते रहिए क्यूँकि आप बफ़ज्लेही तअला न काहन हैं न मजनूँ हैं, हाँ क्या ये लोग कहते हैं कि ये शायर है? हम इनके वास्ते हादसा ए मौत का इंतज़ार करते हैं."
हाँ क्या वह लोग कहते हैं की कुरआन को इसने खुद गढ़ लिया है, बल्कि तस्दीक नहीं करते तो ये लोग इस तरह का कोई कलाम ले आएँ."
सूरह तूर ५२- परा २७ - आयत (३०-३३

मुहम्मद काश की काहन या मजनू होते तो बेहतर होता की आज उनकी एक उम्मत न तैयार होती की जो मौत और जीस्त में मुअल्लक है.
मुहम्मद शायर तो कतई नहीं थे मगर मुतशयर (तुक्बन्दक) ज़रूर थे क्यूँकि पूरा कुरआन एक फूहड़ तरीन तुकबंदी है.
"हम इनके वास्ते हद्साए मौत का इंतज़ार करते हैं.
ये बात अल्लाह कह रहा है जो हुक्म देता है तो पत्ता हिलता है, और इतना मजबूर कि इंसान की मौत का मुताज़िर है कि ये कमबख्त मरे तो हम  इसको दोज़ख का मज़ा चखाएं.

"क्या ये लोग बदून खालिक के खुद ब खुद पैदा हो गए? हैं या ये लोग खुद अपने खालिक हैं? या उन्हों ने आसमान आर ज़मीन को पैदा किया है? बल्कि ये लोग यक़ीन नहीं लाते. क्या इन लोगों के पास तुम्हारे रब के खज़ाने हैं? या ये लोग हाकिम हैं? क्या इनके पास कोई सीढ़ी है? कि इस पर चढ़ कर बातें सुन लिया करते हैं- - - "
सूरह तूर ५२- परा २७ - आयत (३८)

ये तमाम बातें तो आप पर ही लागू होती है,
 ऐ अल्लाह के मुजरिम, नकली रसूल ! !

"वह आसमान का कोई टुकड़ा अगर गिरता हुवा देखें तो यूं कहेंगे की ये तो तह बहुत जमा हुवा बादल है ."
सूरह तूर ५२- परा २७ - आयत (४४)

इसका अंदाज़ा खुद मुहम्मद ने ही लगाया होगा क्यूँकि उनकी सोच यही कहती है.

  








जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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