Saturday 17 December 2016

Hindu Dharam Darshan 30

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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राम नाम सत्य है 

ऐसे कीमती मन्त्र हमारे पूर्वजों ने वर्षों पहले हमें वरदान स्वरूप दिए हैं मगर इसे आज तक हम समझने में असफल हैं .
एक बच्चा स्कूल के रास्ते, जाते समय जब भी मंदिर के सामने से गुज़रता , कभी राम नाम सत्य है के नारे लगाता ,
तो कभी सत्य बोलो मुक्ति है के नारे लगाता.
मंदिर का पुजारी उसे पत्थर उठा कर दौडाता और हडकाता.
पुजारी नादान था और बच्चा बुद्धिमान था.
राम नाम सत्य है में पैगाम छुपा हुवा है कि 
"सत्य का नाम ही राम है", 
राम रुपी कोई हस्ती नहीं है, 
सत्य का रूप ही राम (ईश्वर) है .
यह राम दशरथ पुत्र नहीं, 
सत्य का कोई रूप रंग ही नहीं ,
सत्य कोई हस्ती भी नहीं जिसे देखा जा सके ,
सत्य तो निरंकार कर्म है .
कर्म के आधार पर ही हम जीते हैं .
हमारे कर्मों में अगर सत्य आधारित है. 
तो ही हमारी मुक्ति है .
मुक्ति मरणोपरान्त होती है? 
यह भी हास्य स्पद बातधारणा हैं.
मरने के बाद तो किस्सा तमाम हो जाता है.
कोई कर्म फल पाने का जीवन ही नहीं रहा.

राम नाम सत्य है, सत्य बोलो मुक्ति है 
का नारा बच्चे के पैदा होते ही उसके कान में लगवाना चाहिए, मगर लगता है उसके मरने के बाद, 
यह पाखंड की शुरुआत और अंत का अर्थ हीन नतीजा है,
जिसके नतीजे में भार युक्त जीवन जीते हैं.
इंसान की हर सांस भार रहित हो, यह उसकी मुसलसल मुक्ति है.
इन कीमती मन्त्रों का उल्टा रूप दे दिया गया है, 
हम बजाय सत्य मंदिर के राम मंदिर बनाते हैं 
और जीवन भर असत्य को जीते हैं और उसकी पूजा करते हैं. जीवन मुक्ति होने के बाद सत्य बोलने सन्देश मुर्दे को सुनबा ते हैं.

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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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