Monday 12 December 2016

Soorah toor 52

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

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सूरह तूर ५२ - पारा २७
पहली किस्त्त 

पूरी दुन्या की तमाम मस्जिदों में नमाज़ से पहले अज़ान होती है. फिर हर नमाज़ी नमाज़ की नियत बांधने के साथ साथ अज़ान को दोहराता है.
अज़ान का एक जुमला होता है - - -
अशहदों अन ला इलाहा इल्लिल्लाह.
(मैं गवाही देता हूँ कि एक अल्लाह के सिवा कोई अल्लाह नहीं है)
दूसरा जुमला है - - -
(मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं)
गवाही का मतलब होता है आँखों से देखा और कानों से सुना हो.
कोई बतलाए कि कोई कैसे दावा कर सका है कि एक अल्लाह के सिवा कोई अल्लाह नहीं है? इस बात पर यकीन हो सकता है कि इस कायनात को बनाने वाली कोई एक ताक़त है मगर इस बात की गवाही नहीं दी जा सकती
सवाल ये उठता है कि हज़ारों मुआज्ज़िन और लाखों नमाजियों ने ये कब देखा और कब सुना कि अल्लाह मुहम्मद को अपना रसूल (दूत) बना रहा था?
हर इंसान के लिए ये अज़ान आलमी झूट की तरह है जिसे मुसलमान आलमी सच मानते है और अज़ान देते हैं.
राम चंद परम हंस ने अदालत में झूटी गवाही दी कि 
"मैंने अपनी आँखों से कि गर्भ गृह से राम लला हो पैदा होते हुए देखा."
जिसे अदालत ने झूट करार दिया. इस साधू की गवाही झूटी सही मगर थी गवाही ही.
मुसलामानों की झूटी गवाही तो गवाही ही नहीं है, पहली जिरह में मुक़दमा ख़ारिज होता है कि मुआमला चौदह सौ साल पुराना है और मुल्लाजी की उम्र महेज़ चालीस साल की है, उन्हों ने कब देखा सुना है कि इनके नबी अल्लाह के रसूल बनाए गए? मुसलामानों की पंज वक्ता गवाही उनकी ज़ेहनी पस्ती की अलामत ही कही जाएगी.
जिस तरह मुहम्मदी अल्लाह झूटी गवाही और शहादत को पसंद करता है उसी तरह झूटी क़सम भी उसकी पसंद है.
 देखिए कि उसकी कसमें कौन कौन सी चीज़ों को मुक़द्दस और पवित्र बनाए हुए ही - - -

"क़सम है तूर पहाड़ की और इस किताब की जो कोरे काग़ज़ पर लिखी हुई है, और क़सम है  बैतुल उमूर की और ऊँची छत की और दरियाए शोर की जो पुर है कि बेशक तुम्हारे रब का अज़ाब होकर रहेगा."
सूरह तूर ५२- परा २७ - आयत (1-7)

* तूर पर्बत अरब में है, तौरेती रिवयात है कि अल्लाह ने मूसा को अपनी एक झलक दिखलाई थी जिसके तहेत तूर अल्लाह की झलक पड़ते ही जल कर सुरमा बन गया जो लोगों में आँख की राशनी बढ़ता है.
*कोई किताब कोरे काग़ज़ पर ही लिखी जाती है, लिखे हुए पर काग़ज़ पर नहीं. है न हिमाकत की बात?
* कहते हैं कि बैतुल उमूर सातवें आसमान पर एक काबा है जिसमें सिर्फ फ़रिश्ते हज करने जाते हैं. उसमें हर साल सत्तर हज़ार(मुहम्मद की पसंद दीदा गिनती) फ़रिश्ते ही हज कर सकते है. बाकी फ़रिश्ते वेटिंग लिस्ट में र्सहते हैं.
* ऊँची छत से मुराद है सातवाँ आसमान . फिल हाल अभी तक साबित नहीं हुवा कि आसमान है भी या नहीं? पहले, दूसरे छटें और सातवें की छत  काल्पनिक झूट है.
*दरिये शोर, अहमक रसूल समंदर को दर्याय शोर ही कहा करते थे,इसे भरा हुवा कहते है गरज ये भी एक हिमाक़त है.

झूठे रसूल अपनी बात सच साबित करने के लिए इन चीजों की कसमें खाते हैं, मुसलमानों को यकीन दिलाते है कि अज़ाब होकर रहेगा. जैसे अल्लाह कोई तौफ़ा देने का वादा कर रहा हो.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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