Sunday 12 March 2017

Hindu Dharm Darshan 48


मानव की मुक्ति 

इस्लाम और क़ुरान पर मेरा बेलाग तबसरा और निर्भीक आलोचना को पढ़ते पढ़ते , मेरे कुछ मित्र मुझे समझने लगे कि मैं हिन्दू धर्म का समर्थक हूँ मेरी हकीक़त बयानी पर वह मायूस हुए और आश्चर्य में पड गए . लिखते हैं- 
"आपसे मुझको ऐसी उम्मीद नहीं थी ."
 मेरे "कश्मीरी पंडितो "और दूसरे उन लेखों  पर जो उनके मर्ज़ी के मुताबिक न हुए .
अपने ऐसे मित्रों से मेरा निवेदन है कि मैं इस्लाम विरोधी  हूँ, वहां जहाँ होना चाहिए ,
और क़ुरान की उन बातों से सहमत नहीं जो इंसानियत विरोधी हैं , 
मैं उन नादान मुसलामानों का खैर ख्वाह हूँ  जो क़ुरान पीड़ित हैं .
इसी तरह मैं हिदू जन साधारण का दोस्त हूँ जो धर्म के शिकार हैं.
मैं हर धर्म को बुरा मानता हूँ . 
कोई ज्यादह बुरा हैं कोई कम बुरा ..
 मेरे मित्र गण अगर सत्य पर पूरा पूरा विशवास रखते हो तभी मेरे दोस्त रह सकते है .
झूट और पाखंड के पुजारियों को मैं दोस्त रखना पसंद नहीं करूंगा .
जो लौकिक सत्य पर ईमान रखता है  वही मोमिन है वही महा मानव है  , 
हिन्दू और मुसलमान खुद को बदलें और पुर अम्न इंसानियत की राह पर आ जाएं , देश को ऐसे वासियों की ही ज़रुरत है ,
इसी में मानव की मुक्ति हैं .
*****

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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