Friday 31 March 2017

Soorah Dahr 76

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

सूरह दहर 76 - पारा २९ 



शिर्डी का मुस्लिम फकीर जिसके पास दो जोड़े कपडे भी ढंग के न थे एक टूटी फूटी वीरान मस्जिद को अपना घर बना लिया था, उसी हालत में वह इस दुन्या से गया. उसकी मूर्ति करोरो का धंधा दे गई है और शयाने लोग हराम की कमाई का ज़रीया बनाए हुए है. 
दूसरी तरफ सत्य श्री साईं एक नया बुत जनता को पूजने के लिए दे गए है. उनकी ये दूसरी दूकान है. ये अरबों की संपत्ति छोड़ कर मरे जिसके बदौलत हजारो अस्पताल कालेज और दूसरे धर्मार्थ संस्थाएं चल रही हैं. 
"ये सब अंधविश्वास के कोख से निकले हुए चमतकार हैं, इस से अन्धविश्वासी बड़े बड़े डाक्टरसे ले कर जजों तक की घुस पैठ है, जिन्हों ने बाबा के रस्ते को फायदे मंद समझा."

अब हम एक महान हस्ती की बात करते हैं जो अंध विश्वासों से कोसों दूर कर्म फल के बिलकुल पास खड़ा है, जो न मदारियों का चमत्कार जनता को दिखलाता है, न झूट के पुल बांधता है. उसने अपने कर्म से दुन्या को नई ईजाद दिया, करोरो लोगों को रोज़ी रोटी दिया. उसने वह काम किया जो "सवाब ए जारिया" कहलाता है अर्थात हमेशा हमेशा के लिए जारी रहने वाला पुन्य. 
वह अपनी सफेद कमाई के बलबूते पर दुन्या का सब से बड़ा अमीर बना . उसने अपनी चाहीती बीवी के नाम पर एक न्यास बना कर अपनी दौलत का आधे से ज़्यादा हिस्सा दान कर दिया इतनी दौलत जो स्वयंभु बाबा के साम्राज को अपने जेब में रख ले., जिसमे दुनया के ईमान दार तरीन लोग शामिल हैं. 
आप समझ गए होंगे की मैं बिल गेट की बात कर रहा हूँ.
स्वयंभु बाबा और बिल गेट की तुलना इस तरह से की जा सकती है - - -

बिल गेट ने इंजीनियरिंग की एक परत को उकेरा जो तराशने के बाद हीरा बनी और बाबा ने मदारियों की हाथ की सफाई पेश किया जिसे कई बार जादूगरों ने उनको चैलेज करके रुसवा किया.
बिल गेट ने नए आविष्कार को जन्म दिया, पाला पोसा और बाबा ने पुराने अंध विशवास को नई नस्ल को परोसा.
बिल गेट ने करोरों लोगों को रोज़गार दिया और बाबा ने लाखों लोगों को निकम्मा और काहिल बनाया. उनके करोड़ों अरबों वर्किग आवर्स बर्बाद किए कि बैठ तालियाँ बजा बजा कर बाबा का गुणगान करते हैं.
बिल गेट ने सारी कमाई मुल्क को टेक्स भरके किया और वबा का सारा पैसा टेक्स चोरों की काली कमाई का है. दान धर्म पर कोई अपनी हलाल की कमाई चंदा में नहीं देता.

ये बिल गेट की और बाबा की तुलना नहीं है बल्कि पच्छिम और पूरब की मानसिकता की तुलना है. हम भारतीय हमेशा झूट को पूजते हैं और पश्चिम यथार्थ पर विश्वास रखता है. हमारी दास मानसिकता हमेशा दास्ता की परिधि में रहती है. वह इसका फायदा उठाते हैं.
आइए देखें कि इस स्वयंभु बाबाओं का असर मुसलमान पर कितना  गहरा है - - -
  
सूरह  दह्र ७६  - पारा 

"बेशक इंसान पर ज़माने में एक ऐसा वक़्त भी आ चुका है जिसमे वह कोई चीज़ काबिले तजकारा न था. हमने इसको मखलूत नुतफे से पैदा किया, इस लिए हम उसको मुकल्लिफ (तकलीफ ज़दा)  बनाईं, सो हमने इसको सुनता देखता बनाया. हमने इसको रास्ता बतलाया, यातो वह शुक्र  गुज़ार हो गया या नाशुक्रा हो गया . हमने काफिरों के लिए ज़ंजीर, और तौक और आतिशे सोज़ान तैयार कर राखी हैं."
सूरह  दह्र ७६  - पारा २९ आयत (आयत १-४)

ज़बान की कवायद से नावाकिफ उम्मी मुहम्मद का मतलब है की तारीख ए इंसानी में, इंसान उन मरहलों से भी गुज़रा कि इसका कोई करनामः काबिले-बयान नहीं.
इंसान माजी की दुश्वार गुज़ार जिंदगी में अपनी नस्लों को आज तक बचाए रख्खा यही इसका कारनामा है जब  कि कोई इंसानी तखय्युल का अल्लाह भी इंसानी दिमाग में न आया था. इंसान मख्लूत नुत्फे से पैदा हवा, यह भी अल्लाह को बतलाने की ज़रुरत नहीं कि इल्म मुहम्मद से बहुत पहले इंसान को हो चूका है. "उसको मुकल्लिफ (तकलीफ ज़दा)  बनाईं" ये सच है इसी का फायदा उठाते हुए मुहम्मद ने इन पर लूट मार का कहर बरपा किया था कि इंसान में कूवाते बर्दाश्त बहुत है.

किसी कमज़र्फ अल्लाह को हक नहीं पहुँचता कि वह मखलूक को बंधक बनाने के लिए पैदा करे.  .
मुहम्मद ने इंसानों " के लिए ज़ंजीर, और तौक और आतिशे सोज़ान तैयार कर राखी हैं." 
बस देर है उनके जाल में जा फंसो. गौर करी कि अगर आप मुहम्मदी अल्लाह को नहीं मानते या जो भी नहीं मानता उसके लिए उसकी बातें मज्हका खेज़ हैं.

"जो नेक हैं वह ऐसी जामे शराब पिएंगे जिसमे काफूर की आमेज़िश होगी.यानी ऐसे चश्में से जिससे अल्लाह के खास बन्दे पिएँगे. जिसको वह बहा कर ले जाएँगे, वह लोग वाज बात को पूरा करते हैं और ऐसे दिन से डरते हैं जिसकी सख्ती आम होगी."
सूरह  दह्र ७६  - पारा २९ आयत (आयत ५-७)

जन्नत में मिलने वाली यही शराब, कबाब और शबाब की लालच में मुसलमान अपनी मौजूदा ज़िन्दगी को इन से महरूम किए हुए है. काफूर मुस्लिम जनाजों को सुगन्धित करता है, जन्नत में इसकी गंध को पीना भी पडेगा.

मसह्रियों पर तक्यिया लगे हुए होंगे .
वहाँ तपिश पाएँगे न जाड़ा,
और जन्नत में दरख्तों के साए जन्नातियों पर झुके होंगे .
और उनके मेवे उनके अख्तियार में होंगे,
और उनके पास चाँदी के बर्तन लाए जाएँगे,
और आब खोरे जो शीशे के होगे जिनको भरने वालों ने मुनासिब अंदाज़ में भरा होगा
और वहां उनको ऐसा जमे शराब पिलाया जाएगा जिसमें सोंठ की आमेज़िश होगी.
यानी ऐसे चश्में से जो वहाँ होगा जिसका नाम सलबिल होगा,
और उनके पास ऐसे लड़के आमद ओ रफ्त करेंगे जो हमेशा लड़के ही रहेंगे,
और ए मुखातिब! तू अगर उनको देखे तो समझे मोती हैं, बिखर गए हैं,
और ए मुखातिब तू अगर उस जगह को देखे तो तुझको बड़ी नेमत और बड़ी सल्तनत दिखाई दे
उन जन्नातियों पर बारीक रेशम के सब्ज़ कपडे होंगे और दबीज़ रेशम के भी,
 और उनको सोने के कंगन पहनाए जाएँगे.
और उनका रब उनको पाकीज़ा शराब देगा जिसमें न नजासत होगी न कुदूरत."
सूरह  दह्र ७६  - पारा २९ आयत (आयत १४-२१)

क़ुररान की आयतें कहती हैं कि जन्नतियों  को तमाम आशाइशों  के साथ साथ नवखेज़ लौंडे (पाठक मुआफ करें) होगे जो हमेशा नव उम्र ही होंगे, अल्लाह अपने मुखातिब को रुजूअ करता है वह 
"मोती हैं, बिखर गए हैं" 
क्या उसकी पेश कश जन्नातियो के लिए लौंडे बाजी की है (एक बार फिर पाठक मुझ को  मुआफ  मुआफ करें) दुरुस्त यही है.ये अमल भी शराब नोशी की तरह जन्नत में राव होगा.
 इग्लाम बाज़ी समाज की बदतरीन बुराई है जिसका ज़िक्र दो गैरत मंद आपस में आँख मिला कर नहीं कर सकते. और अल्लाह अपनी जन्नत में इसकी खुली दावत देता. इस फेल से समाज बातिनी तौर पर और जेहनी तौर पर मजरूह होता है ,जिस्मानी तौर पर बीमार हो जाता है मेयारी तौर पस्त. सर उठा कर चलने लायक नहीं रह जाता . दो इग्लाम बाज़ मर्द होते हुए भी नामर्द हो जाते हैं. 

किसी तहरीक को चलाने के लिए उमूमन जायज़ और नाजायज़ हरबे इस्तेमाल होते हैं, ये सियासत तक ही महदूद नहीं, धर्म तक इसका इस्तेमाल करते हैं मगर सबकी अपनी कुछ न कुछ हदें होती हैं हद्दे कमीनगी तक जाने के लिए इंसान सौ बार सोचता है और मुहम्मदी अल्लाह एक बार भी नहीं सोचता. इसका बुरा असर मुआशरे में बड़ी गहराई तक जाता है. अल्लाह के बलिगान दीन इन आयातों का सहारा लेकर मस्जिद के हुजरों  में अक्सर मासूमों को अपना शिकार बनाते हैं.



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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