नोट बंदी के बाद बूचड़ खाना बंदी
पाकिस्तान की तरह ही उत्तर प्रदेश में धर्म की बासी कढ़ी में उबाल आ रहा है. इस्लाम1400 साल पुराना बासी कढ़ी है, तो मनुवाद 5000 साल पुराना बासी .
पाकिस्तान में शरीफों का जीना हराम हो गया है,
हिन्दुतान में जन साधारण का जीना तंग होने लगा है.
गऊ हत्या की सीमा अब जीव हत्या की सीमा पर आ गई है.
बूचड़ खाने बंद कर दिए है, बकरे, मुर्गे और मछली अखाद्य पदार्थ घोषित होने को हैं.
इस विपत्ति से संबंधित सूबे के 2 लाख लोग
और उनके परिवार के दस लाख इंसानी जाने परेशान हैं,
जिनका कल महफूज़ नहीं है.
तुष्टी करण बंद हुई अब प्रशाशन का दुष्टि करण की शुरुआत है.
बूचड़ खाने वैध हों या अवैध, अभी तक सरकारी आँखों के सामने चल रहे थे, उनको महीना पंद्रह दिन का वक़्त मिलना चाहिए था कि वैध हो जाएं.
सरकार को इसकी परवाह नहीं है, वह लाखों लोग लूट मार करें ,
और जेलों में जाएँ या भूखे मर जाएं.
क्या फ़र्क पड़ता है ?
एक अरब तीस करोड़ की आबादी वाले देश को.
दस लाख का कोई प्रतिशत भी तो नहीं बनता.
खबर है कि मुसलामानों के साथ साथ चिड़िया घरों के गोश्त खोर जीव दिन भर भूखे मरे. सरकार अपनी संकुचित सोच पर शर्म करे.
दुन्या के सारे जीव इंसान से लेकर हैवान तक शाकाहारी हैं या मांसाहारी.
समंदर में धरती से कई गुणा जीव रहते हैं जो अधिक तर मांसाहारी हैं,
उनके शिकार के सहारे कई परिदे भी भोजन पाते हैं,
यह कुदरत का नियम है, किसी योगी का नहीं.
आज दस लाख लोग असहाय हो गए हैं,
तो कल एक करोड़ लोग असहाय होंगे जिनका आहार मांस नहीं.
यह होंगे पशु पालक जिनका आधार सिर्फ दूध नहीं,
और किसान जो इन पर निर्भर है.
पशुओं के मांस,खाल,हड्डी,खुर,सींग वगैरा जिससे बड़े बड़े उद्योग चलते हैं.
बूचड़ खाना बंदी का असर आंशिक तौर पर मुसलमानों पर पड़ेगा,
जिसे निशाना बनाया गया है ,
उसके बाद पूर्ण रूप से जन साधारण पर पडेगा.
जो 80% जन मानस होंगे.
बड़ी विडंबना है कि मैं जब मज़लूमो के साथ खड़ा होता हूँ तो पाठक मुझे मुसलामानों की क़तार में खड़ा कर देते हैं, यथार्थ पर कोई गौर नहीं करता.
दस हिन्दू मिल कर एक मुसलमान को मार दें तो यह बहादुर है क्या ?
मैं एलान के साथ नास्तिक हूँ और नॉन बिलिवर हूँ.
इंसानी दर्द ही मेरा धर्म है.
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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