Hindu Dharm Darshan 50
19 मार्च एक यादगार दिन रहेगा.
अकसरियत की राय सर पर मगर आँखों पर नहीं,
आँखें तो नज़र होती हैं और नज़रिया जो बदला नहीं जा सकता.
मुझे उम्मीद है उनके कार्य काल में मुल्लाओं के पैरों तले रिक्शे का पैडल
और हाथों में होटल के झूठे बर्तन होंगे.
कम से कम एक वर्ग का कल्याण होगा कि इन हराम खोरों से मुसलामानों को नजात मिलेगी.
रह गई हिन्दू पंडे पुजारियो, बाबाओं और योगियों की तो बड़ा आसान है,
यही मुल्ले मोलवी हिन्दू उत्थान को रोके हुए है.
हिन्दू इनके हिसके में कट्टर हो गया है.
इन कंसों के लिए कन्हय्याओं का जन्म हो चुका है.
नज़रिया जो बदला नहीं जा सकता.
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वेद दर्शन - - -8 ऋग वेद -प्रथम मंडल
खेद है कि यह वेद है . . .
हे इंद्र ! तुमने शुष्ण असुर के साथ भयानक संग्राम में कुत्स ऋषि की रक्षा की थी तथा अतिथियों का स्वागत करने वाले दियोदास को बचाने के लिए शंबर असुर का बद्ध किया था. तुमने अर्बुद नामक महान असुर को पैरों से कुचल डाला था. इस तरह से तुम्हारा जन्म दस्यु नाश के लिए हुवा मालूम पड़ता है.
(ऋग वेद प्रथम मंडल सूक्त 51)(6)
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
इंद्र को पंडित असुरों का बाप राक्षस साबित कर रह है.
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हम महान इंद्र के लिए शोभन स्तुत्यों का पयोग करते हैं. क्योकि परिचर्या करने वाले यजमान के घर में इंद्र की स्तुत्यां की जाती हैं.
जिस प्रकार चोर सोए हुए लोगों की संपत्ति छीन लेते है, उसी प्रकार इंद्र असुरों के धन पर तुरंत अधिकार कर लेते हैं. धन देने वालों के विषय में अनुचित स्तुति नहीं की जाती.
(ऋग वेद प्रथम मंडल सूक्त 5)(1)
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )
और यहाँ इंद्र को चोरों का बाप डाकू साबित करता है.
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान
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