Wednesday 19 July 2017

Hindu Dharm Darshan 81



गीता और क़ुरआन

सज्जन पुरुष अर्जुन कहता है - - -
*यदि हम ऐसे आततायियों का बद्ध करते हैं तो हम पर पाप चढ़ेगा,
अतः यह उचित न गोगा कि घृत राष्ट्र के तथा उनके मित्रों का बद्ध करें.
हे लक्षमी पति कृष्ण ! इस में हमें क्या लाभ होगा ?
और अपने ही कुटुम्भियों को मार कर हम किस प्रकार सुखी हो सकते हैं ?   
**हे जनार्दन ! 
यद्यपि लोभ से अभिभूत चित वाले यह लोग अपने परिवार को मारने या अपने मित्रों से द्रोह करने में कोई दोष नहीं देखते, 
किन्तु हम लोग जो परिवार को विनष्ट करने में जो अपराध देख सकते  हैं, ऐसे पाप कर्मों में क्यों प्रवृति हों ? 
 श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  1   श्लोक 36-37-38

युद्ध की आग भड़काने वाले भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
*किन्तु अगर तुम यह सोचते हो कि आत्मा सदा जन्म लेता है 
तथा सदा मरता है तो भी हे बाहुबली ! 
तुम्हारे शोक करने का कोई करण नहीं.
*जिसने जन्म लिया है, 
उसकी मृत्यु निश्चित है. 
अपने अपरिहार्य कर्तव्य पालन में तुम्हें शोक नहीं करना चाहिए.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय 2  श्लोक 26-27  
*
और क़ुरआन कहता है - - - 
''सो जब अश्हुर-हुर्म गुज़र जाएँ इन मुशरिकीन को जहाँ पाओ मारो 
और पकड़ो और 
बांधो और दाँव घात के मौकों पर तक लगा कर बैठो. 
फिर अगर तौबा करलें, नमाज़ पढने लगें और ज़कात देने लगें तो इन का रास्ता छोड़ दो,''
सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (५)

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क्या गीता और कुरआन के मानने वाले इस धरती को पुर अमन रहने देंगे ?
क्या इन्हीं किताबों पर हाथ रख कर हम अदालत में सच बोलने की क़सम खाते हैं ? ?
धरती पर शर और फ़साद के हवाले करने वाले यह ग्रन्थ 
क्या इस काबिल हैं कि इनको हाज़िर व् नाज़िल किया जाए, गवाह बनाया जाए ???
क्या यह अद्ल (न्याय) का अपमान नहीं.????
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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