Saturday 22 July 2017

Hindu Dharm Darshan 82



अनर्गल  श्रद्धा

आस्थावान और श्रद्धालु पक्के चूतिए होते हैं. 
मुस्लिम आस्थावान हिन्दू आस्थावान की आस्था कुफ़्र, शिर्क और ढोंग समझता है औए हिन्दू आस्थावान मुसलमानों की आस्था और अक़ीदा को कूड़ा. 
दोनों की आस्थाएँ मनमानी हैं जो निराधार होती हैं.
मैंने आस्थावानों और श्रद्धालु के लिए कठोर, अभद्र और असभ्य  भाषा का इस्तेमाल जान बूझ कर किया है ताकि झटका लगे और यह अपनी धुन पर पुनर विचार करें.
इनको वस्त्रहीन करके दिखलाया जाए कि अभी तक ये बालिग़ नहीं हुए हैं, 
जैसेकि कभी कभी एक डाक्टर मरीज़ को नंगा कर देता है.
आस्थावान जेहनी मरीज़ ही तो होते हैं जो अपनी अपनी आस्था क़ायम करके या विरासत में मिली आस्था को लेकर समाज को अव्योस्थित किए रहते हैं. 
या कार्ल मार्क्स का कथन कि यह अफ़ीमची होते हैं.
इन मानसिक रोगियों से समाज डरता है जब यह समूह बन जाते हैं 
और इनकी खिल्ली उड़ाई जाती है जब अल्प संख्यक होते हैं. 
यानी चूतिए बनाम चूतिए. 
आस्थावान होना चाहिए उन मूल्यों का जो मानव जाति के भलाई में होती हैं, 
जो आस्था धरती के हर प्राणी के लिए शुभ हों, 
आस्थावान होना चाहिए धरती सजाने संवारने वाले उन सभी कार्यों के 
जो इसके लिए हमारे वैज्ञानिक अपनी अपनी ज़िंदगियाँ समर्पित किए हुए हैं. 
यही श्रद्धालु हमारी आगामी नस्लों के शुभ चिन्तक हैं.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

No comments:

Post a Comment