Tuesday 12 April 2011

सूरह क़लम - ६८ पारा २९

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी ''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है, हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं, और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.

सूरह क़लम - ६८ पारा २९


"नून"
ये हुरूफ़ ए मुक़ततेआत है जिसके मअनी अल्लाह ही बेहतर जनता है. हुरूफ़ ए मुक़ततेआत ५० बार कुरआन में आए है. इस्लामी वज़े में सजे हुए (नूरानी गोल्डेन दाढ़ी, सफ़ा चट्ट मुच्छें, सर पे पगड़ी और आँखों में सुरमा) मुल्ला को व्यँग से 'चुकतता मुक़तता' कहा जाता है. इसी रिआयत से ऐसे बेमानी लफ़्ज़ों को 'हुरूफ़ ए मुक़ततेआत" कहा गया होगा.


"क़सम है क़लम की और इसके लिखने की कि आप अपने रब के फज़ल से मजनू नहीं हैं"
सूरह क़लम - ६८ पारा २९ आयत (१-२)

"और आपके लिए ऐसा उज्र है जो ख़त्म होने वाला नहीं. और आप बेशक एखलाक के आला पैमाने हैं"

सूरह क़लम - ६८ पारा २९ आयत (३-४)

"तो अनक़रीब आप भी देख लेंगे और ये लोग भी कि तुम में किसको जूनून था." सूरह क़लम - ६८ पारा २९ आयत (७)

''और आप ऐसे शख्स का कहना न मानें जो बहुत कसमें खाने वाला हो, बे वक़अत हो तअने देने वाला हो , चुगलियाँ लगाता फिरता हो, नेक काम से रोकने वाला हो." सूरह क़लम - ६८ पारा २९ आयत (8)

"हद से गुजरने वाला हो, गुनाहों का करने वाला हो, सख्त मिज़ाज हो, इन सब के अलावा हराम ज़ादा हो, इस सबब से कि माल और औलाद वाला हो. जब हमारी आयतें उसके सामने पढ़ी जाती हैं तो वह कहता है, ये बे सनद बातें हैं. अगलों से मान्कूल होती चली आई हैं.हम अनक़रीब उसकी नाक पर दाग लगा देंगे." सूरह क़लम - ६८ पारा २९ आयत (११-१६) "और ये काफ़िर जब कुरान सुनते है तो ऐसे मालूम होते हैं कि गोया आपको अपनी निगाहों से फिसला कर गिरा देंगे और कहते हैं कि ये मजनू है, हालाँकि ये कुरान जिसके साथ आप तकल्लुम फरमा रहे है, तमाम जहाँ के लिए नसीहत है."

सूरह क़लम - ६८ पारा २९ आयत (५२)

मुहम्मदी अल्लाह अपने रसूल के लिए क़लम की क़सम खाता है जिससे उसका कोई वास्ता नहीं है.वह इस बात की भी मुहम्मद को ये यकीन दिलाने के लिए कहता है कि आप जनाब दीवाने नहीं बल्कि आला ज़र्फ़ इंसान हैं, जैसे कि खुद मुहम्मद अपनी इस खूबियों से नावाकिफ हों. मुहम्मद की अय्यारी खुद इन आयतों का आईना दार हैं. मुहम्मद अपने दुश्मनों के लिए सल्वातें ही नहीं, गलियाँ भी अपने अल्लाह के ज़बानी सुनवाते हैं. मुसलामानों! क्या तुम सैकड़ों साल के पुराने क़बीलों से भी गए गुज़रे हो? जो इन बकवासों से इस शख्स को अपनी निगाहों से गिराए हुए थे. एक अदना सा बन्दा तुम्हारा खुदा और तुम्हारा रसूल बना हुवा है, वह भी इन गलीज़ आयतों की पूरी दलील और पूरे सुबूत के साथ.

जागो, वर्ना तुम्हारी मौत अनक़रीब लिखी हुई है. ज़माना तुम्हारी जेहालत का शर अब और बर्दाश्त नहीं कर सकता. सादिक दुन्या में बातिल खुद अपने आप में घुट रहा है. क्या तुम कोई घुटन महसूस नहीं कर रहे हो? इस सूरह में एक वाहियात सी मिसाल भी है कि लोगों ने बगैर इंसा अल्लाह कहे रात को खेत काटने की बात ठानी, सुब्ह देखते हैं कि खेत में फसल गायब है. ताकीद और नसीहत है कि बिना इंशा अल्लाह कहे कोई वादा मत करो. ये इंशा अल्लाह बे ईमानो को काफी मौक़ा दिए हुए है कि वह मामले को टालते रहें.

इस इंशा अल्लाह में मुसलमानों की बाद नियती शामिल रहती है.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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