Sunday 10 July 2011

सूरह अल्बक्र २ पहला पारा

मेरी तहरीर में - - -



क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।



नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.




सूरह अल्बक्र २ पहला पारा आयत 117 to 150)

चौथी किस्त


अल्लाह कहता है - - -

"मगर जो लोग तौबा कर लें और इस्लाह कर लें तो ऐसे लोगों पर मैं मुतवज्जो हो जाता हूँ और मेरी तो बकसरत आदत हे तौबा कुबूल कर लेना और मेहरबानी करना."

(सूरह अलबकर २, दूसरा पारा आयत १६०)अल्लाह की बकसरत आदत पर गौर करें. अल्लाह इंसानों की तरह ही अलामतों का आदी है. कुरान और हदीसों का गौर से मुतालिआ करें तो साफ साफ पाएँगे कि दोनों के मुसन्निफ़ एक हैं जो अल्लाह को कुदरत वाला नहीं बल्कि आदत वाला समझते हैं,


अल्ला मियां तौबा न करने वालों के हक में फरमाते हैं - - -"अलबत्ता जो लोग ईमान न लाए और इसी हालत में मर गए तो इन पर लानत है, अल्लाह की, फरिश्तों की, और आदमियों की. उन पर अज़ाब हल्का न होने पाएगा."

(सूरह अलबकर २, दूसरा पारा आयत १६१ )भला आदमियों की लानत कैसे हुई ? वही तो ईमान नहीं ला रहे. खैर अल्लाह मियां और रसूल मियां बोलते पहले हैं और सोंचते बाद में हैं. और इन के दल्लाल तो कभी सोचते ही नहीं. * बहुत सी चाल घात की बातें इस के बाद की आयतों में अल्लाह ने बलाई हैं, अपनी नसीहतें और तम्बीहें भी मुस्लमान बच्चों को दी हैं. कुछ चीजें हराम करार दी हैं, बसूरत मजबूरी हलाल भी कर दी हैं. यह सब परहेज़, हराम, हलाल और मकरूह क़ब्ले इसलाम भी था जिस को भोले भाले मुस्लमान इसलाम की देन मानते हैं.

कहता है - - -
" अल्लाह ताला ने तुम पर हराम किया है सिर्फ़ मुरदार और खून को और खिंजीर के गोश्त को और ऐसे जानवर को जो गैर अल्लाह के नाम से ज़द किए गए हों. फिर भी जो शख्स बेताब हो जावे, बशर्ते ये कि न तालिबे लज्ज़त हो न तजाउज़ करने वाला हो, कुछ गुनाह नहीं होता. वाकई अल्लाह ताला हैं बड़े गफूर्रुर रहीम"

(सूरह अलबकर २, दूसरा पारा आयत १७३)कुरान में कायदा कानून ज्यादा तर अधूरे और मुज़बज़ब हैं, इसी लिए मुस्लिम अवाम हमेशा आलिमों से फतवे माँगा करती है. मरहूम की वसीयत के मुताबिक कुल मॉल को हिस्से के पैमाइश या आने के हिसाब से बांटा गया है मगर रूपया कितने आने का है, साफ नहीं हो पाता, हिस्सों का कुला क्या है? वसीयत चार आदमी मिल कर बदल भी सकते हैं, फिर क्या रह जाती है मरने वाले की मर्ज़ी? कुरान यतीमों के हक का ढोल खूब पीटता है मगर यतीमों पर दोहरा ज़ुल्म देखिए कि अगर दादा की मौजूदगी में बाप की मौत हो जाय तो पोता अपनी विरासत से महरूम हो जाता है. क़स्सास और खून बहा के अजीबो गरीब कानून हैं. जान के बदले जान, मॉल के बदले मॉल, आँख के बदले आँख, हाथ के बदले हाथ, पैर के बदले पैर, ही नहीं,


कुरानी कानून देखिए - - -" ऐ ईमान वालो! तुम पर क़स्सास फ़र्ज़ किया जाता है मक़्तूलिन के बारे में, आज़ाद आदमी आज़ाद के एवाज़ और गुलाम, गुलाम के एवाज़ में और औरत औरत के एवाज़ में. हाँ, इस में जिसको फरीकैन की तरफ़ से कुछ मुआफी हो जाए तो माकूल तोर पर मतालबा करना और खूबी के तौर पर इसको पहुंचा देना यह तुम्हारे परवर दीगर की तरफ से तख्फ़ीफ़ तरह्हुम है जो इस बाद ताददी का मुरक्कब होगा तो बड़ा दर्द नाक अज़ाब होगा" (सूरह अलबकर २, दूसरा पारा आयत१७९)
एक फिल्म आई थी पुकार जिसमे नूर जहां ने अनजाने में एक धोबी का तीर से खून कर दिया था. इस्लामी कानून के मुताबिक धोबन को बदले में नूर जहाँ के शौहर यानी जहाँगीर के खून करने का हक मिल गया था और बादशाह जहाँ गिर धोबन के तीर के सामने आँखें बंद करके खडा हो गया था. गौर करें यह कोई इंसाफ का मेराज नहीं था बल्कि एन ना इंसाफी थी. खता करे कोई और सज़ा पाए कोई. हम आप के गुलाम को कत्ल कर दें और आप मेरे गुलाम को, दोनों मुजरिम बचे रहे. वाह! अच्छा है मुजरिमों के लिए मुहम्मदी कानून. सूरह की मंदर्जा ज़ेल आयतों में रोज़ों को फ़र्ज़ करते हुए बतलाया गया है कि कैसे कैसे किन किन हालत में इन की तलाफ़ी की जाए. यही बातें कुरानी हिकमत हैं जिसका राग ओलिमा बजाया करते हैं. मुसलमानों की यह दुन्या भाड़ में जा रही है जिसको मुसलमान समझ नहीं पा रहा है. यह दीन के ठेकेदार खैराती मदरसों से खैराती रिज़्क़ खा पी कर फारिग हुए हैं अब इनको मुफ्त इज्ज़त और शोहरत मिली है जिसको ये कभी ना जाने देंगे भले ही एक एक मुस्लमान ख़त्म हो जाए.

(सूरह अलबकर २, दूसरा पारा आयत १८४-१८७)


"तुम लोगों के वास्ते रोजे की शब अपनी बीवियों से मशगूल रहना हलाल कर दिया गया, क्यूँ कि वह तुम्हारे ओढ़ने बिछोने हैं और तुम उनके ओढ़ने बिछौने हो। अल्लाह को इस बात की ख़बर थी कि तुम खयानत के गुनाह में अपने आप को मुब्तिला कर रहे थे। खैर अल्लाह ने तुम पर इनायत फ़रमाई और तुम से गुनाह धोया - - -जिस ज़माने में तुम लोग एत्काफ़ वाले रहो मस्जिदों में ये खुदा वंदी जाब्ते हैं कि उन के नजदीक भी मत जाओ। इसी तरह अल्लाह ताला अपने एह्काम लोगों के वास्ते बयान फरमाया करते हैं इस उम्मीद पर की लोग परहेज़ रक्खें

"(सूरह अलबकर २, दूसरा पारा आयत १८७)आज के साइंसटिफिक दौर में, यह हैं अल्लाह के एह्कम जिसकी पाबंदी मुल्ला क़ौम से करा रहे हैं. उसके बाद सरकार पर इल्जाम तराशी कि मुसलमानों के साथ भेद भाव। मुसलमान का असली दुश्मन इस्लाम है जो आलिम इस पर लादे हुए हैं।


"आप से लोग चांदों के हालत के बारे में तहकीक करते हैं, आप फरमा दीजिए कि वह एक आला ऐ शिनाख्त अवकात हैं लोगों के लिए और हज के लिए। और इस में कोई फ़ज़िलत नहीं कि घरों में उस कि पुश्त की तरफ़ से आया करो। हाँ! लेकिन फ़ज़िलत ये है कि घरों में उन के दरवाजों से आओ।"

(सूरह अलबकर २, दूसरा पारा आयत १८९)
मुहम्मद या उनके अल्लाह की मालूमात आमा और भौगोलिक ज्ञान मुलाहिज़ा हो, महीने के तीसों दिन निकलने वाले चाँद को अलग अलग तीस चाँद (चांदों) समझ रहे हैं। मुहम्मद तो खैर उम्मी थे मगर इन के फटीचर अल्लाह की पोल तो खुल ही जाती है जिस के पास मुब्लिग़ तीस अदद चाँद हर साइज़ के हैं जिसको वह तारीख के हिसाब से झलकाता है ।ओलीमा अल्लाह की ऐसी जिहालत को नाजायज़ हमल की तरह छुपाते हैं। अल्लाह कहता है किसी के घर जाओ तो आगे के दरवाजे से, भला पिछवाडे से जाने की किसको ज़रूरत पड़ सकती है मुहम्मद साहब बिला वजेह की बात करते हैं।

"और तुम लड़ो अल्लाह की राह में उन लोगों के साथ जो तुम लोगों से लड़ने लगें, और हद से न निकलो, वाकई अल्लाह हद से निकलने वालों को पसंद नहीं करता और उनको क़त्ल करदो जहाँ उनको पाओ और उनको निकाल बाहर करदो, जहाँ से उन्हों ने निकलने पर तुम्हें मजबूर किया था. और शरारत क़त्ल से भी सख्त तर है - - - फिर अगर वह लोग बाज़ आ जाएँ तो अल्लाह ताला बख्श देंगे.और मेहरबानी फरमाएंगे और उन ललोगों के साथ इस हद तक लड़ो कि फ्सदे अकीदत न रहे और दिन अल्लाह का हो जाए."(सूरह अलबकर २, दूसरा पारा आयत १९०-१९२ )मुहम्मद को कुछ ताक़त मिली है, वह मुहतात रवि के साथ इन्तेकाम पर उतारू हो गए हैं "शरारत क़त्ल से सख्त तर है" अल्लाह नबी से छींकने पर नाक काट लो जैसा फरमान जारी करा रहा है. जैसे को तैसा,

अल्लाह कहता है - - -
"सो जो तुम पर ज्यादती करे तो तुम भी उस पर ज्यादती करो जैसा उस ने तुम पर की है"

(सूरह अलबकर २, दूसरा पारा आयत १९४ )क्या ये इंसानी अजमतें हो सकती हैं? ये कोई धर्म हो सकता है? ओलिमा डींगें मारा करते हैं कि इसलाम सब्रो इस्तेक्लाल का पैगाम देता है और मुहम्मद अमन के पैकर हैं मगर मुहम्मद इब्ने मरियम के उल्टे ही हैं.

" और जब हज में जाया करो तो खर्च ज़रूर ले लिया करो क्यों की सब से बड़ी बात खर्च में बचे रहना. और ऐ अक्ल वालो! मुझ से डरते रहो. तुम को इस में जरा गुनाह नहीं की हज में मुआश की तलाश करो- - -

(सूरह अलबकर २, दूसरा पारा आयत १९८)

अल्लाह कहता है अक़्ल वालो मुझ से डरते रहो, ये बात अजीब है कि अल्लाह अक़्ल वालों को खास कर क्यं डराता है? बे वक़ूफ़ तो वैसे भी अल्लाह, शैतान, भूत, जिन्, परेत, से डरते रहते हैं मगर अहले होश से अक्सर अल्लाह डर के भागता है क्यों कि ये मतलाशी होते है सदाक़त के. "सूरह में हज के तौर तरीकों का एक तवील सिलसिला है, जिसको मुस्लमान निजाम हयात कहता है."

(सूरह अलबकर २, दूसरा पारा आयत १९६-२००)


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

3 comments:

  1. sundar aathi sundar,
    keep it up

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  2. आपकी तमाम कोशिशों के बाद भी ज्‍़यादातर मुस्लिमों को आपकी बातें ज़हरीली लगती हैं, हालांकि ये सच है कि आप उनके इस्‍लाम के बंद और घुटन भरे अंधेरे में कैद ज़ेहनों को आज़ाद करके उन्‍हें एक नई रौशनी की तरफ ले जाना चाहते हैं जहां हर आदमी उन्‍हें अपना भाई सा लगेगा और जहां पूरी दुन्‍या से वो प्‍यार कर सकेंगे और बदले में उन्‍हें भी उतना ही प्‍यार मिलेगा... लेकिन उनके दिमागों में कुरआन का शैतानी धुंआ इस कदर भर गया है कि उनके ज़ेहनों की सारी दीवारें ज़हर से काली हो चुकी हैं और आप की बात सुनकर उनके तन-बदन में आग लग जाती है...

    जिस मुहम्‍मद को वो यकीनन अल्‍लाह से एक करोड़ गूना ज्‍़यादा मानते हैं और जिसकी इबादत वो कुरआनी अल्‍लाह से भी ज्‍़यादा करते हैं उसकी पोल-पट्टी की आपके हाथों इस तरह धज्जियां उड़ते देख उनकी रूह जल उठती है और वो बौखला कर आपके मरने की दुआ करते हैं... (आप चाहें तो खुद इस बात की तस्‍दीक कर सकते हैं, वैसे भी इस्‍लामी अल्‍लाह शायद इस सारी दु‍न्‍या के सारे अल्‍लाहों और ख़ुदाओं में अकेला है जिसको मानने वाले उससे सारी कायनात के अमन, चैन और खुशी के लिए दुआ करने के बजाय गैर मजहब के लोगों के मरने और तड़पने की बद्दुआ ज्‍़यादा करते फिरते हैं और इस बात को आपने भी खुद देखा ही होगा)

    मुझे तो ऐसा लगता है कि अगर आज खुद मुहम्‍मद भी आकर इस मुस्लिम कौम को समझाने की कोशिश करे कि यह कुरआन बकवास है इससे तौबा कर लो तो ये लोग खुद उसके ही टुकड़े-टुकड़े करके कुत्तों को खिला देंगे...

    आप मेरी बातों पर शायद नाराज हों लेकिन आपकी मुहिम पूरी त‍रह नेक और अच्‍छी होने के बावजूद कितना असर कर पा रही है मेरी समझ में नहीं आता... आप खुद इस बात को समझते होंगे कि तमाम मुस्लिम आपकी साइट पर आकर पहले आग-बबूला होते हैं, फिर जी भर कर आप को कोसते हैं, गालियां देते हैं और आखिरकार मन ही मन आपके मरने और हजारों साल तक दोजख की आग में जलने की बद्दुआएं देते हुए इस साइट से रुखसत हो जाते हैं और फिर कभी भी लौट कर नहीं आते... जब इतने लंबे वक्‍त से लगातार चल रही आपकी मुहिम एक मुस्लिम को भी कुरआनी अंधेरे से बाहर नहीं ला पाई तो कैसे उम्‍मीद की जाए कि एक दिन सारी दुनिया के मुस्लिम इस्‍लाम नाम के अजाब से निजात पा कर खुली हवा में सांस ले सकेंगे???? वो अब इस अंधेरे और ज़हर के इतने आदी हो चुके हैं कि उन्‍हें इस में ही मज़ा आता है, जैसे एक सूअर को कीचड़ ही मज़ेदार लगता है, हालांकि इन्‍सान सूअर से बेहतर और समझदार जानवर है लेकिन मुस्लिमों के आंख-कान-दिमाग इस कुरआन के जरिए बंद कर दिए गए हैं...

    मुझे ऐसा लगता है कि मुस्लिम आज अगर सबसे मजलूम, पिछड़ी और हर किसी से नफरत की आग में जल रही कौम है तो इसके लिए वो खुद जिम्‍मेदार हैं क्‍योंकि उन्‍हें ऐसे ही रहने में मज़ा आता है और कोई उन्‍हें सच्‍ची और अमन की राह (जोकि इस्‍लाम, कुरआन और मुहम्‍मद की खतरनाक और गंदी तिकड़ी को छोड़े बिना मुमकिन नहीं है) दिखाने की कोशिश करे तो ये लोग उसी को अपना दुश्‍मन मानने लग जाते हैं....

    इस्‍लाम का फैलाव सारी दुनिया में तलवार, नफरत और जोर-जबर्दस्‍ती के दम पर हुआ था और बड़े अफसोस से कहना पड़ता है कि एक दिन इस्‍लाम का खात्‍मा भी इसी रास्‍ते के जरिए होगा क्‍योंकि हिन्‍दुस्‍तान जैसे चूतिया मुल्‍कों को छोड़कर तमाम दुन्‍या अब इस ज़हर को बर्दाश्‍त करने के मूड में नहीं है और जिस दिन अमेरिका और योरोपियन मुल्‍कों की बर्दाश्‍त की हद पार हो गई उस दिन इस्‍लामी मुल्‍कों और इस्‍लाम नाम के सोच का साथ देने वाले तमाम लोगों पर वो यकीनन कयामत बनकर टूट पड़ेंगे... इस्‍लाम इस दु‍न्‍या को धीरे-धीरे तीसरी बड़ी जंग की तरफ जाने पर मजबूर कर रहा है और इसका अंजाम बहुत खौफनाक होगा... अमेरिका और योरोप पूरी तरह से इस बात से वाकिफ हैं कि इस जंग में होने वाला नुक्‍सान एक तरह से कयामती ही होगा, इस लिए वो पूरी कोशिश करेंगे कि जंग के दौरान इस्‍लाम को सहारा और इस्‍लामी दहशतगर्दी को पनाह देने वाले तमाम मुल्‍क इतनी बेदर्दी से तबाह और राख कर दिए जाएं कि वहां बचने वाले लोग अपनी मौत की भीख मांगें...

    मेरी एक बार फिर से तमाम मुस्लिमों से गुजारिश है कि जीम. मोमिन साहब को एक नेक फरिश्‍ता मानकर उनकी बात गौर से सुनें और सिर्फ अपने सोच में बदलाव ले आएं.. और कुछ बदलने की ज़रूरत नहीं है, सब कुछ वैसा का वैसा रहेगा बस अपने सोच की गहराई से मुहम्‍मद नाम के उस खबीस और उसकी बकवास कुरआन और इस्‍लाम को तर्क कर दें... ऊपर से सब वैसा ही रहेगा लेकिन आपके अंदर एक नए इंसान की पैदाइश होगी और इस दुन्‍या को देखने के लिए एक नया नज़रिया मिलेगा जिसमें से देखने पर सारी दुन्‍या अपनी सी लगेगी और तमाम इंसान अपने भाई-बहन... क्‍या इससे बड़ी कोई जन्‍नत हो सकती है???

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  3. विद्या जी ,
    भाषा में अविद्यित शब्द वली?
    असय्यामित आक्रोश ? ?
    स्खलित लेखनी, लेख और लेखक की गरिमा को धूमिल करती करती है.
    मैं गरीब मुस्लिम समाज का पक्ष धर हूँ, इस लिए कि इनका कोई खेवन हार नहीं. बाकी कौमों में समाज सुधारक पूरी कोशिश के साथ सर गर्म है. इनको जगाना मेरा लक्ष है. यह जब जागेंगे तो इनका ही नहीं भारत का कल्याण होगा.
    दुन्या में पैदायशी तौर पर पर सब इंसान हैं जो इन्सान नहीं है वह हैवान हैं (गाँधी जी)
    मैं इस्लामी ओलिमा को "अपनी माँ के ख़सम" लिखता हूँ जब उनकी बातों में अय्यारी महसूस करता हूँ. इसका मतलब ये नहीं कि दूसरे धर्मों के धंधे बाज़ सब हलाली और पाक साफ हैं. आज के युग में सभी धर्म अधर्म हैं, इस सच्चाई तक पहुँचने की करें. किसी के बाप को गालियाँ देकर आप उसके दिल में जगह नहीं बना सकते.
    अपने दृष्ट कोण को और कुशादा करें.
    आपको ढेर सारा आषिर वाद.

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