Tuesday, 19 July 2011

सूरह आले इमरान ३ तीसरा पारा

मेरी तहरीर में - - -

क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.


तीसरी किस्त


मैं हिन्दू हूँ न मुसलमान, न क्रिश्चेन और न ही कोई धार्मिक आस्था रखने वाला व्यक्ति. मैं सिर्फ एक इंसान हूँ, मानव मात्र। हिदू और मुस्लिम संस्कारों में ढले आदमी को मानव मात्र बनना बहुत ही मुश्किल काम है. कोई बिरला ही सत्य और सदाक़त से आँखें मिला पाता है कि परिवेश का ग़लबा उसके सामने त्योरी चढाए खड़ा रहता है और वह फिर आँखें मूँद कर असत्य की गोद में चला जाता है.

ग़ालिब कहता है - - -



बस कि दुश्वार है हर काम का आसान होना,

आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसान होना।

(हर आदमी, आदमी का बच्चा होता है चाहे उसे भेड़िए ने ही क्यूं न पाला हो और सभ्य होने के बाद ही आदमी इंसान कहलाता है)

मैं सिर्फ इन्सान हो चुका हूँ इस लिए मैं इंसान दोस्त हूँ. दुन्या में सब से ज्यादह दलित, दमित, शोषित और मूर्ख कौम है मुसलमन,

उस से ज्यादा हमारे भारत में अछूत, हरिजन, दलित और पिछड़ा वर्ग के नामों से पहचान रखने वाला हिन्दू .

पहले अंतर राष्ट्रीय कौम को क़ुरआनी आयातों ने पामाल कर रखा है,

दूसरेको भारत में लोभ और पाखण्ड ने।

मुट्ठी भर लोग इन दोनों को उँगलियों पर नचा रहे हैं. मैं फिलहाल मुसलामानों को इस दलदल से निकलने का बेडा उठता हूँ, हिन्दू भाइयो के शुभ चिन्तक लाखों हैं. इस लिए मैं इस मुसलमन मानव जाति का असली शुभ चिन्तक हूँ यही मेरा मानव धर्म है. नादान मुसलमान मुझे अपना दुश्मन समझते हैं जब कि मैं उनके अज़ली दुश्मन इस्लाम की का विरोध करता हूँ और वाहियात गाथा कुरआन का.

हर मानवता प्रेमी पाठक से मेरा अनुरोध है कि वह मेरे अभियान के साथ आएं, मेरे ब्लॉग को मुस्लिम भाइयों के कानों तक पहुँचाएँ। हर साधन से उनको इसकी सूचना दें। मैं मानवता के लिए जान कि बाज़ी लगा कर मैदान में उतरा हूँ, आप भी कुछ कर सकते हैं .
देखें क़ुरआन की बकवासें - - - 
" बिल यकीन जो लोग कुफ्र करते हैं, हरगिज़ उनके काम नहीं आ सकते, उनके माल न उनके औलाद, अल्लाह तआला के मुकाबले में, ज़र्रा बराबर नहीं और ऐसे लोग जहन्नम का सोखता होंगे।"सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (१०)खुद ला वलद मुहम्मद अपने दामाद की औलादों हसन और हुसैन का हशर हौज़ऐ कौसर के कनारे खड़े खड़े देख रहे होंगे। दुश्मने इंसानियत मुहम्मद तमाम उम्र अपने मुखालिफों को मारते पीटते और काटते कोसते रहे, असर उल्टा रहा अहले कुफ्र सुर्ख रू रहे और फलते फूलते रहे, मुस्लमान पामाल रहे और ज़र्द रू हुए। आज भी उम्मते मुहम्मदी पूरी दुन्या के सामने एक मुजरिम की हैसियत से खड़ी हुई है. किस क़दर कमजोर हैं कुरानी आयतें, मौजूदा मुसलमानों को कैसे समझाया जाय?



" आप फरमा दीजिए क्या मैं तुम को ऐसी चीज़ बतला दूँ जो बेहतर हों उन चीजों से, ऐसे लोगों के लिए जो डरते हैं, उनके मालिक के पास ऐसे ऐसे बाग हैं जिन के नीचे नहरें बह रही हैं, हमेशा हमेशा के लिए रहेंगे, और ऐसी बीवियां हैं जो साफ सुथरी की हुई हैं और खुश नूदी है अल्लाह की तरफ से बन्दों को."सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (15)देखिए कि इस क़ौम की अक़्ल को दीमक खा गई। अल्लाह रब्बे कायनात बंदे मुहम्मद को आप जनाब कर के बात कर रहा है, इस क़ौम के कानों पर जूँ तक नहीं रेगती. अल्लाह की पहेली है बूझें? अगर नहीं बूझ पाएँ तो किसी मुल्ला की दिली आरजू पूछें कि वह नमाजें क्यूँ पढता है? ये साफ सुथरी की हुई बीवियां कैसी होंगी, ये पता नहीं, अल्लाह जाने, जिन्से लतीफ़ होगा भी या नहीं? औरतों के लिए कोई जन्नती इनाम नहीं फिर भी यह नक़िसुल अक्ल कुछ ज़्यादह ही सूम सलात वालियाँ होती हैं। अल्लाह की बातों में कहीं कोई दम दरूद है? कोई निदा, कोई इल्हाम जैसी बात है? दीन के कलम कारों ने अपनी कला करी से इस रेत के महेल को सजा रक्खा है।" अल्लाह बड़ी नरमी के साथ बन्दों को अपनी बंदगी की अहमियत को समझाता है. काफिरों की सोहबतों के नशेब ओ फ़राज़ समझाता है. अपनी तमाम खूबियों के साथ बन्दों पर अपनी मालिकाना दावेदारी बतलाता है. दोज़ख पर हुज्जत करने वालों को आगाह करता है. कुरान से इन्हिराफ़ करने वालों का बुरा अंजाम है, ग़रज़ ये कि दस आयातों तक अल्लाह कि कुरानी तान छिडी रहती है जिसका कोई नतीजा अख्ज़ करना मुहाल है."सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (16-26)


अल्लाह की जुग्राफियाई मालूमात और क़ुदरत की राज़दारी के बारे में देखें। उम्मी मुहम्मद का तकमील करदा अल्लाह कहता है - - -" कि वोह रात को दिन में दाखिल कर देते हैं और दिन को रात में. वोह जानदार चीज़ों को बेजान से निकाल लेता है (जैसे अंडे से चूजा) और बे जान चीज़ों को जानदार से निकाल लेता है (जैसे परिंदों से अंडा)"सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (27)इस बात को मुहम्मद कुरआन में बार बार दोहराते हैं मगर आज के दौर में ओलिमा इस बात को जाहिल अवाम के आगे भी नहीं बयान करते, न ही अपनी तहरीर में कहीं इस आयत को छूते हैं. मगर मिस्कीन हिंदी हर रोज़ अपनी नमाजों में ज़रूर इस जेहालत को पढ़ते हैं। सोचिए कि जो शख्स यूनानी साइंस दानो सुकरात और अरस्तु से सदियों बाद पैदा हुवा हो उसकी समाजी जानकारी इतनी भी न हो कि रात और दिन कैसे होते है और अंडा जो परिन्दे के पेट से पैदा होता है वह जानदार होता है, जाहिलों के सरदार मोहम्मद अल्लाह के रसूल बने बैठे हैं. मुसलमानों के ये बद तरीन दुश्मन जो मुसल्मानो को जिंदा नोच नोच कर खा रहे हैं, ऐसे गाऊदी को सर्वर कायनात जैसे सैकडों लक़ब से नवाजे हुवे हैं.

*यहूदियों का खुदा यहुवा हमेशा यहूदियों पर मेहरबान रहता है, गाड एक बाप की तरह हमेशा अपने ईसाई बेटों को मुआफ़ किए रहता है, ज़्यादह तर धार्मिक भगवान दयालु होते हैं, बस की एक मुसलमानों का अल्लाह है जो उन पर पैनी नज़र रखता है। वोह बार बार इन्हें धमकियाँ दिए रहता है। हर वक़्त याद दिलाता है रहता कि वह बड़ा अज़ाब देने वाला है। सख्त बदला लेने वाला है. चाल चलने वाला वाला है. गर्दन दबोचने वाला है. क़हर ढाने वाला है. वह मुसलमानों को हर वक़्त डराए रहता है. उसे डरपोक बन्दे पसंद हैं, बसूरत दीगर उसकी राह में जेहादी. वोह मुसलमानों को महदूद होकर जीने की सलाह देता है, जिस की वजह से हिदुस्तानी मुस्लमान कशमकश की ज़िन्दगी जीने पर मजबूर हैं. इन्हें मुल्क में मशकूक नज़रों से देखा जाए तो क्यूँ न देखा जाए ?


देखिए अल्लाह कहता है - - -''मुसलमानों को चाहिए कुफ्फारों को दोस्त न बनाएं, मुसलमानों से तजाउज़ करके जो शख्स ऐसा करेगा, वोह शख्स अल्लाह के साथ किसी शुमार में नहीं मगर अल्लाह तुम्हें अपनी ज़ात से डराता है."
सूरह आले इमरान ३ तीसरा परा आयात (28)इस कुरानी आयात को सुनने के बाद भारत की काफिर हिन्दू अक्सरीयत आबादी मुस्लिम अवाम को दोस्त कैसे बना सकती है? ऐसी कुरानी आयतों के पैरोकारों को हिन्दू अपना दुश्मन मानें तो क्यूँ न मानें? दुन्या के तमाम गैर मुस्लिम मुमालिक में बसे हुए मुसलमानों के साथ किस दर्जा ना आकबत अन्देशाना और ज़हरीला ये पैगाम है इसलाम का.

मुस्लिम खवास और मज़हबी रहनुमा कहते हैं कि उनके बुजुर्गों ने पाकिस्तान न जाकर हिंदुस्तान जैसे सैकुलर मुल्क में रहना पसंद किया, इस लिए उन्हें सैकुलर हुकूक मिलने चाहिएं. सैकुलरटी की बरकतों के दावे दार ये लोग सैकुलर भी हैं और ऐसी आयात वाली क़ुरआन के पुजारी भी। इन्हीं की जुबान में - - -" ये सब के सब हिदुस्तान के जदीद मुनाफिक हैं" इन से सावधान रहे हिद्स्तान।




जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

1 comment:

  1. आप बहुत अच्छा काम कर रहे हैं, मुस्लिमों को आपके ब्लाग को जरूर पढ़ना चाहिये..

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