Saturday 9 July 2011

सूरह अलबकर २ पहला पारा

मेरी तहरीर में - - -



क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।



नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.




सूरह अलबकर २ पहला पारा 2 
(तीसरी किस्त)



अल्लाह की तरफ़ से भेजी गई कच्ची वातों पर जब लोग उंगली उठाते हैं और मुहम्मद को अपनी गलती का एहसास होता है तो उस आयत या पूरी की पूरी सूरह अल्लाह से मौकूफ (अमान्य) करा देते हैं। ये भी उनका एक हरबा होता. अल्लाह न हुवा एक आम आदमी हुवा जिस से गलती होती रहती है, उस पर ये कि उस को इस का हक है। बड़ी जोरदारी के साथ अल्लाह अपनी कुदरत की दावेदारी पेश करते हुए अपनी ताक़त का मजाहरा करता है कि वह कुरानी आयातों में हेरा-फेरी कर सकता है, इसकी वह कुदरत रखता है, कल वह ये भी कह सकता है कि वह झूट बोल सकता है, चोरी, चकारी, बे ईमानी जैसे काम भी करने की कुदरत रखता है।


ज़बान बदलू अल्लाह कहता है - - -" हम किसी आयत का हुक्म मौकूफ़ कर देते हैं या उस आयत को फ़रामोश कर देते हैं तो उस आयत से बेहतर या उस आयत के ही मिस्ल ले आते हैं। क्या तुझ को मालूम नहीं कि अल्लाह ताला ऐसे हैं कि इन्हीं की सल्तनत आसमानों और ज़मीन की है और ये भी समझ लो कि तुम्हारे हक ताला के सिवा कोई यारो मदद गार नहीं। "(सूरह अल्बक्र २ पहला पारा आयत)
मुहम्मद इस कदर ताकत वर अल्लाह के ज़मीनी कमांडर बन्ने की आरजू रखते थे।


" अल्लाह ताला जब किसी काम को करना चाहता है तो इस काम के निस्बत इतना कह देता है कि कुन यानी हो जा और वह फाया कून याने हो जाता है "(सूरह अल्बक्र २ पहला पारा आयत 117)विद्योत्मा से शिकस्त खाकर मुल्क के चार चोटी के क़ाबिल ज्ञानी पंडित वापस आ रहे थे , रास्ते में देखा एक मूरख (कालिदास) पेड़ पर चढा उसी डाल को काट रहा था जिस पर वह सवार था, उन लोगों ने उसे उतार कर उससे पूछा राज कुमारी से शादी करेगा? प्रस्ताव पाकर मूरख बहुत खुश हुवा। पंडितों ने उसको समझया की तुझको राज कुमारी के सामने जाकर बैठना है, उसकी बात का जवाब इशारे में देना है, जो भी चाहे इशारा कर दे। मूरख विद्योत्मा के सामने सजा धजा के पेश किया गया , विद्योत्मा से कहा गया महाराज का मौन है, जो बात चाहे संकेत में करें. राज कुमारी ने एक उंगली उठाई, जवाब में मूरख ने दो उँगलियाँ उठाईं. बहस पंडितों ने किया और विद्योत्मा हार गई। दर अस्ल एक उंगली से विद्योत्मा का मतलब एक परमात्मा था जिसे मूरख ने समझा वह उसकी एक आँख फोड़ देने को कह रही है. जवाबन उसने दो उंगली उठाई कि जवाब में मूरख ने राज कुमारी कि दोनों आखें फोड़ देने कि बात कही थी. जिसको पंडितों ने आत्मा और परमात्मा साबित किया. कुन फया कून के इस मूर्ख काली दास की पकड़ पैगम्बरी फार्मूला है जिस पर मुस्लमान क़ौम ईमान रक्खे हुए है। ये दीनी ओलिमा कलीदास मूरख के पंडित हैं जो उसके आँख फोड़ने के इशारे को ही मिल्लत को पढा रहे है, दुन्या और उसकी हर शै कैसे वजूद में आई अल्लाह ने कुन फया कून कहा और सब हो गया. तालीम, तहकीक और इर्तेकई मनाजिल की कोई अहमियत और ज़रूरत नहीं. डर्बिन ने सब बकवास बकी है. सारे तजरबे गाह इनके आगे फ़ैल. उम्मी की उम्मत उम्मी ही रहेगी, इसके पंडे मुफ्त खोरी करते रहेंगे उम्मत को दो+दो+पॉँच पढाते रहेंगे . यही मुसलामानों की किस्मत है।
अल्लाह कुन फया कून के जादू से हर काम तो कर सकता है मगर पिद्दी भर शहर मक्का के काफिरों को इस्लाम की घुट्टी नहीं पिला सकता। ये काएनात जिसे आप देख रहे हैं करोरो अरबो सालों के इर्तेकाई रद्दे अमल का नतीजा है, किसी के कुन फया कून कहने से नहीं बनी ।


* अज ख़ुद ना ख्वान्दा और उम्मी मुहम्मद अपने से ज्यादा ज़हीनो को जाहिल के लक़ब से नवाजते हैं जिसकी वकालत आलिमान इस्लाम आज तक आखें बंद करके अपनी रोटियाँ चलाने के लिए करते चले आ रहे हैं - - -" कुछ जाहिल तो यूँ कहते हैं कि हम से क्यों नहीं कलाम फ़रमाते अल्लाह ताला? या हमारे पास कोई और दलील आ जाए। इसी तरह वह भी कहते आए हैं जो इन से पहले गुज़रे हैं, इन सब के कुलूब यकसाँ हैं, हम ने तो बहुत सी दलीलें साफ साफ बयाँ कर दी हैं"(सूरह अल्बक्र २ पहला पारा आयत 118)
* नाम निहाद अल्लाह के ख़ुद साख्ता रसूल ढाई तीन हजार साल क़ब्ल पैदा होने वाले बाबा इब्राहीम से अपने लिए दुआ मंगवाते हैं, उस वक़त जब वह काबा की दीवार उठा रहे होते हैं- - -


" और जब उठा रहे थे इब्राहीम दीवारें खानाए काबा की और इस्माईल भी--- (दुआ गो थे) ऐ हमारे परवर दिगार हम से कुबूल फरमाइए,बिला शुबहा आप खूब सुनने वाले हैं, जानने वाले हैं, ऐ हमारे परवर दिगार! हमें और मती बना लीजिए और हमारी औलादों में भी एक ऐसी जमात पैदा कीजिए जो आप की मती हो। और हम को हमारे हज के अहकाम बता दिजिए और हमारे हाल पर तवज्जे रखिए. फिल हकीक़त आप ही हैं तवज्जे फरमाने वाले मेहरबानी करने वाले. ऐ हमारे परवर दिगार! और इस जमात से इन्हीं में के एक ऐसे पैगम्बर भी मुकर्रर कीजिए जो इन लोगों को आप की आयत पढ़ पढ़ कर सुनाया करें और आसमानी किताब की खुश फ़हमी दिया करें और इन को पाक करें - - - और मिल्लते इब्राहिमी से तो वही रू गर्दानी करेगा जो अपनी आप में अहमक होगा.और हम ने इन को दुन्या में मुन्तखिब किया और वह आखिरत में बड़े लायक लोगों में शुमार किए जाते हैं"(सूरह अल्बक्र २ पहला पारा आयत 127-130)इस तरह मुहम्मद एक चाल चलते हुए अपने चलाए हुए दीन इस्लाम को यहूदियों, ईसाइयों, और मुसलमानों के मुश्तरका पूर्वज बाबा इब्राहीम का दीन बनाने की कोशिश कर रहे हैं. गोया साँप और सीढ़ी का खेल खेल कर ख़ुद मूरिसे आला के गद्दी नशीन बन जाते हैं। इब्राहिम बशरी तारीख में एक मील का पत्थर है। इनकी जीवनी ऐबो हुनर के साथ तारीख इंसानी में पहली दास्तान रखती है। इसी लिए इनको फादर अब्राहम का मुकाम हासिल है। उसको लेकर मुहम्मद ने आलमी राय को गुराह करने की कोशिश की ।
सारा, बीवी के अलावा इब्राहीम की एक लौंडी हाजरा (हैगर) थी जिसका बेटा इस्माईल था जिसकी नस्लों से कुरैश और ख़ुद हज़रत हैं। साथ ही बतलाता चलूं कि इब्राहीम ने कुर्बानी अपने छोटे बेटे इसहाक इब्न सारा की दी थी, इस्माईल की नहीं जिसको मुहम्मद के कुरआन ने अल्लाह की गवाही में बदल दिया। आगे हदीस में देखिएगा कि मुहम्मद ने बाबा इब्राहीम को भी अपने सामने बौना कर दिया है।
मुझे कुरानी इबारतों को सोंच सोंच कर हैरत होत्ती है कि क्या आज भी दुन्या में इतने कूढ़ मग्ज़ बाक़ी हैं जो इसे समझ ही नहीं पा रहे हैं? या इस्लामी शातिर इतने मज़बूत हैं कि जो इन पर गालिग़ हैं।कुरआन में पोशीदा धांधली तो मुट्ठी भर लोगों के लिए थी. रात के अंधेरे में सेंध लगाती थी, आज तो दिन दहाड़े डाका डाल रही है. तालीम की रौशनी में ऐसी मुहम्मदी जेहालत पर मासूम बच्चा भी एक बार सुन कर मानने से हिचकिचाए
.


" जिस वक्त याकूब का आखिरी वक्त आया अपने बेटों से पूछा, तुम लोग मेरे मरने के बाद किस चीज़ की परस्तिश करोगे? बेटों ने जवाब दिया हम लोग उसी की परस्तिश करेंगे जिस की आप, आप के बुजुर्ग, इब्राहीम, इस्माईल, इसहाक परस्तिश करते आऐ हैं, यानी वही माबूद जो वाद्हू ला शरीक है और हम उसी की एताअत पर रहेंगे "
(सूरह अल्बक्र २ पहला पारा आयत १३२-133)इस क़िस्म की आयतें कुरआन में वाकेआत पर आधारित बहुतेरी है जो सभी तौरेत की चोरी हैं मगर सब झूट का लबादा, हाँ जड़ ज़रूर तौरेत में छिपी है। इस वाकए की जड़ है कि यूसफ़ के ख्वाब के मुताबिक जो कि उसने देखा था कि एक दिन सूरज और चाँद उसके सामने सर झुकाए खड़े होंगे और ग्यारा सितारे उसके सामने सजदे में पड़े होंगे, जो कि पूरा हुवा, जब युफुफ़ मिस्र का बेताज बादशाह हुवा तो उसका बाप गरीब याकूब और याकूब की जोरू उसके सामने सर झुके खड़े थे और उसके तमाम सौतेले भाई शर्मिदा सजदे में पड़े थे. याकूब के सामने दीन का कोई मसला ही न था मसला तो ग्यारा औलादों की रोटी का था. मुहम्मद का यह जेहनी शगूफा कहीं नहीं मिलेगा, यूसुफ़ की दास्तान तारीख में साफ़ साफ़ है.


" आप फरमा दीजिए कि तुम लोग हम से हुज्जत किए जाते हो अल्लाह ताला के बारे में, हालां कि वह हमारा और तुम्हारा रब है। हम को हमारा क्या हुवा मिलेगा और तुम को तुम्हारा किया हुवा, और हम ने हक ताला के लिए अपने को खालिस कर रक्खा है. क्या कहे जाते हो कि इब्राहीम और इस्माईल और इसहाक और याकूब और औलाद याकूब यहूद या नसारा थे, कह दीजिए तुम ज़्यादा वाकिफ हो या हक ताला और इस शख्स से ज्यादा जालिम कौन होगा जो ऐसे शख्स का इख्फा करे जो इस के पास मिन जानिब अल्लाह पहंची हो और अल्लाह तुहारे किए से बे खबर नहीं "

(सूरह अल्बक्र २ पहला पारा आयत १३९-140)इस में आयत १४० बहुत खास है। पूरा कुरआन इसी की मदार पर घूमता है जिस से मुस्लमान गुमराह होते हैं तुम ज़्यादा वाकिफ हो या हक ताला कौमों की तवारीख कोई सच्चाई नहीं रखती, अल्लाह की गवाही के सामने. इसको न मानने वाले जालिम होते हैं, और जालिमों से अल्लाह निपटेगा.
मुसलमानों! पूरा यकीन कर सकते हो की तवारीख अक़वाम के आगे कुरानी अल्लाह की गवाही झूटी है। मुहम्मद से पहले इस्लाम था ही नहीं तो इब्राहीम और उनकी नस्लें मुस्लमान कैसे हो सकती हैं? ये सब मजनू बने मुहम्मद की गहरी चालें हैं.


" जिस जगह से भी आप बाहर जाएं तो अपना चेहरा काबा की तरफ़ रक्खा करें और ये बिल्कुल हक है और अल्लाह तुम्हारे किए हुए कामो से असला बे ख़बर नहीं है और तुम लोग जहाँ कहीं मौजूद हो अपना चेहरा खानाए काबा की तरफ़ रक्खो ताकि लोगों को तुम्हारे मुकाबले में गुफ्तुगू न रहे। मुझ से डरते रहो।"

(सूरह अल्बक्र २ पहला पारा आयत १४९- १५० )इस रसूली फरमान पर मुस्कुरइए, तसव्वुर में अमल करिए, भरी महफिल में बेवकूफी हो जाए तो कहकहा लगाइए। भेड़ बकरियों के लिए अल्लाह का यह फरमान मुनासिब ही है.
हुवा यूँ था की मुहम्मद ने मक्का से भाग कर जब मदीने में पनाह ली थी तो नमाजों में सजदे के लिए रुख करार पाया था बैतुल मुक़द्दस, जिस को किबलाए अव्वल भी कहा जाता है, यह फ़ैसला एक मसलेहत के तहत भी था, जिसे वक्त आने पर सजदे का रुख बदल कर काबा कर दिया गया ,जो कि मुहम्मद की आबाई इबादत गाह थी। इस तब्दीली से अहले मदीना में बडी चे-में गोइयाँ होने लगीं जिसको मुहम्मद ने सख्ती के साथ कुचल दिया, इतना ही नहीं, मंदर्जा बाला हुक्मे रब्बानी भी जारी कर दिया।

(सूरह अल्बक्र २ पहला पारा {सयाकूल} आयत १४९- १५० )



मुसलमानों!तुम्हारी बद नसीबी इन्हीं क़ुरआनी आयातों में छुपी हुई हैं. इन्हें गौर से पढो, फिर सोंचो कि क्या तुम मुहम्मदी फ़रेब में मुब्तिला हो? इससे निकल कर नई दुन्या में आओ.





जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

2 comments:

  1. Ae momin ! Elaan kar do es kainaat main ke kalki ka avtaar aa gaya hai... jo es namakool kaum islaam main hi paida hua hai ... aur es duniya main mazhabi gilazat ka safaaya karne ke waaste es duniyan main sarva shaktimaan eishwar ne bheja hai... aao uske hamraah bano...!!!

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