Monday 25 July 2011

सूरह आले इमरान ३ तीसरा पारा

मेरी तहरीर में - - -



क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।

नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.


सूरह आले इमरान ३ तीसरा पारा आयात

छटवीं किस्त


यही बातें भड़काऊ साबित होती हैं और कौमों में शर का बाईस बनी, जिस के नतीजे में लाखों इंसानी जानें गईं. आज भी अमरीका, योरोप बनाम अफगानिस्तान, ईराक, ईरान और दीगर मुस्लिम दुन्या से दुश्मनी की वजह यही कुरानी आयतें बनी हुई हैं. इन को सलीबी जंगों की बाकियात कहा जा सकता है. कुरानी भूल भुलय्या में अल्लाह मुसलमानों को छका रहा है.

मुहम्मद ईसा की अल्लाह से बात चीत कराने लगते हैं जिस के बाद अल्लाह ईसा को न मानने वालों को भी काफ़िर कहने लगता है। और क़यामत में मज़ा चखने का वादा करता है, जब कि ईसा के हरीफ यहूदी ही होते हैं. ईसा को मानने वालो को अल्लाह मोमिन कहने लगता है. शोब्देबाज़ और मदारी अल्लाह कहता है - -


" और यहूदी एक चाल चले और ईसा को बचने के लिए अल्लाह एक चाल चला और अल्लाह खूब चालें चलने वाला है। यह आयतें हम तुम को पढ़ पढ़ कर सुनाते हैं जो की मिन जुमला दलाइल की हैं और मिन जुमला हिकमत आमोज मज़ामीं की हैं।"
सूरह आले इमरान ३ तीसरा पारा आयात (62-)
सोचिए कि वह अल्लाह कैसा होगा जो चालबाज़ हो? इसी तरह की बातों में अल्लाह मुसलमानों को लपेटे हुए है। इस में क्या अक़दस पाते हैं झुंड के झुंड नमाज़ी जिन्हें ओलिमा भेड़ बकरियों की तरह चरा रहे हैं.

अल्लाह मियां अपने प्यारे नबी से राज़ की बात का पर्दा फाश करते हैं - - -
"इब्राहीम तो न यहूदी थे, न नसरानी और मुशरिकीन में भी न थे लेकिन तरीके मुस्तकीम वाले साहिबे इसलाम थे।"सूरह आले इमरान ३ तीसरा पारा आयात (67)हज़रात इब्राहीम एक परदेसी थे, बद हाली और परेशानी की हालत में अपनी बीवी सारा को किसी मजबूरी के तहत अपनी बहन बतला कर मिसरी बादशाह फ़िरौन की पनाह में रहा करते थे. तौरेत के मुताबिक सारा हसीन थी और बादशाह कि मंजूरे नज़र हो कर उसके हरम में पनाह पा गई थी. सच्चाई खुलने पर हरम से बहार की गई और साथ में इब्राहीम और उनका भतीजा लूत भी. उसके बाद दोनों चचा भतीजों ने मवेशी पालन का पेशा अपनाया और कामयाब गडरिया हुए.


बनी इस्राईल की शोहरत की वजेह तारीख़ में फिरअना के वज़ीर यूसुफ़ की ज़ात से हुई. युसूफ इतना मशहूर हुवा कि इसके बाप दादों का नाम तारिख में आ गया, वर्ना याकूब, इशाक , इस्माईल, और इब्राहीम जैसे मामूली लोगों का नामो निशान भी कहीं न होता.


मानव की रचना कालिक अवस्था में इब्राहीम को जो होना चाहिए था वोह थे, न इतने सभ्य कि उन्हें पैगाबर या अवतार कहा जाए, ना ही इतने बुरे कि जिन्हें अमानुष कहा जाय. मानवीय कमियाँ थीं उनमें कि अपनी बीवी को बहन बना कर बादशाह के शरण में गए और अपनी धर्म पत्नी को उसके हवाले किया.

दूसरा उनका जुर्म ये था कि अपनी दूसरी गर्भ वती पत्नी हाजरा को पहली पत्नी सारा के कहने पर घर से निकल बाहर कर दिया था, जो कि रो धो कर सारा से माफ़ी मांग कर वापस घर आई.

तीसरा जुर्र्म था कि दोबारा इस्माईल के पैदा हो जाने के बाद हाजरा को मय इस्माईल के घर से दूर मक्का के पास एक मरु खंड में मरने के लिए छोड़ आए.

उनका चौथा बड़ा जुर्म था सपने के वहम को साकार करना और अपने बेटे इशाक को अल्लाह के नाम पर कुर्बान करना, जो मुसलमानों का अंध विश्वास बन गया है और हजारो जानवर हर साल मारे जाते हैं.

आइए देखें कि हमारे समाज की विडंबना क्या ज़हर इसके लिए बोती है - - -

" अल्लाह ऐसे लोगों की हिदायत कैसे करेगे जो काफ़िर हो गए, बाद अपने ईमान लाने के और बाद अपने इस इक़रार के कि मुहम्मद सच्चे हैं और बाद इस के कि उन पर वाजः दलायल पहुँच चुके थे और अल्लाह ऐसे बे ढंगे लोगों को हिदायत नहीं करते।"सूरह आले इमरान ३ तीसरा पारा आयात (86)
यह है मुहम्मद का अभियान जिसमे अल्लाह किसी गाँव के मेहतुक की तरह है जिसे कि वह रब्बुल आलमीन कहते हैं. उनका अल्लाह उन लोगों से बेज़ार हो रहा है जो रोज़ रोज़ मुसलमान से काफ़िर हो जाते हैं और काफ़िर से मुसलमान.


" ऐसे लोगों की सज़ा ये है कि इन पर अल्लाह ताला की भी लानत होती है, फरिश्तों की और आदमियों की भी, सब की। वह हमेशा हमेशा के लिए दोज़ख में रहेंगे, इन पर अज़ाब हल्का न होने पाएगा और न ही मोहलत दी जाएगी, हाँ मगर तौबा करके जो लोग अपने आप को संवार लेंगे, सो अल्लाह ताला बख्शने वाला है."सूरह आले इमरान ३ तीसरा पारा आयात (88-89)मुसलमानों!
सोचो अचानक मुहम्मद किसी अदभुत अल्लाह को पैदा करते है, उसके फ़रमान अपने कानों से अनदेखे फ़रिश्ते से सुनते हैं और उसको तुम्हें बतलाते है। वोह अल्लाह सिर्फ़ २३ सालों की जिंदगी जिया, न उसके पहले कभी था, न उसके बाद कभी हुवा। इस मुहम्मदी अल्लाह पर भरोसा करना क्या अपने आप को धोका देना नहीं है? सोचो कि ऐसे अल्लाह की क़ैद से रिहाई की ज़रुरत है, करना कुछ भी नहीं है, बस जो ईमान उस से ले कर आए थे उसे वापस कर दो. लौटा दो ऐसे हवाई और नामाकूल अल्लाह को उस का ईमान. ईमान लाओ मोमिन का जो धर्म कांटे का ईमान रखता है.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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