Wednesday 13 July 2011

सूरह अल्बक्र २ दूसरा पारा

मेरी तहरीर में - - -



क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।



नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.



सूरह अल्बक्र २ दूसरा पारा
छटवीं किस्त

हरामा


मुसलामानों में रायज रुस्वाए ज़माना नाजेब्गी हलाला जिसको दर असल हरामा कहना मुनासिब होगा, वह तलाक़ दी हुई अपनी बीवी को दोबारा अपनाने का एक शर्म नाक तरीका है जिस के तहेत मत्लूका को किसी दूसरे मर्द के साथ निकाह करना होगा और उसके साथ हम बिस्तारी की शर्त लागू होगी फिर वह तलाक़ देगा, बाद इद्दत ख़त्म औरत का तिबारा निकाह अपने पहले शौहर के साथ होगा, तब जा कर दोनों इस्लामी दागे बे गैरती को ढोते हुए तमाम जिंदगी गुज़ारेंगे.

अक्सर ऐसा भी होता है कि टेम्प्रेरी शौहर औरत को तलाक़ ही नहीं देता और वह नई मुसीबत में फंस जाती है, उधर शौहर ठगा सा रह जाता है. ज़रा तसव्वुर करें कि मामूली सी बात का इतना बड़ा बतंगड़, दो जिंदगियां और उनके मासूम बच्चे ताउम्र रुसवाई का बोझ ढोते रहें.

"मुहम्मदी अल्लाह तलाक़ शुदा और बेवाओं के लिए अधूरे और बे तुके फ़रमान जारी करता है. बच्चों को दूध पिलाने कि मुद्दत और शरायत पर भी देर तक एलान करता है जो कि गैर ज़रूरी लगते हैं. एक तवील ला हासिल गुफ्तुगू जो कुरआन में बार बार दोहराई गई है जिस को इल्म का खज़ाना रखने वाले आलिम अपनी तकरीर में हवाला देते हैं कि अल्लाह ने यह बात फलां फलां सूरतों की फलां फलां आयत में फरमाई है, दर असल वह उम्मी मुहम्मद कि बड़ बड़ है जो बार बार कुरआन का पेट भरने के लिए आती है, और आलिमों का पेट इन आयातों कि जेहालत से भारती है. "

(सूरह अल्बक्र २ दूसरा पारा आयत २३१-२४२)

अल्लाह औरतों के जिंसी और अजवाजी मसलों की डाल से फुधक कर अफ़साना निगारी की टहनी पर आ बैठता है बद ज़ायका एक किस्सा पढ़ कर, आप भी अपने मुंह का ज़ायका बिगादिए - - -

" तुझको उन लोगों का क़िस्सा तहकीक़ नहीं हुवा जो अपने घरों से निकल गए थे और वह लोग हजारो ही थे, मौत से बचने के लिए. सो अल्लाह ने उन के लिए फ़रमाया कि मर जाओ, फिर उन को जला दिया. बे शक अल्लाह ताला बड़े फज़ल करने वाले हैं लोगों पर मगर अक्सर लोग शुक्र नहीं करते."

(सूरह अल्बक्र २ दूसरा पारा आयत २४३)

लीजिए अफ़साना तमाम .क्या फ़ज़ले इलाही? उस जालिम अल्लाह का यही ही जिस ने अपने बन्दों को बे यारो मददगार करके जला दिया ? ये मुहम्मद कि ज़लिमाना फ़ितरत की लाशुऊरी अक्कासी ही है जिसको वह निहायत फूहड़ ढंड से बयान करते हैं.


देखिए मुहम्मद के मुंह से अल्लाह को या अल्लाह के मुंह से मुहम्मद को, यह बैंकिंग प्रोग्राम पेश करते हैं जेहाद करो - - -

अल्लाह के पास आपनी जान जमा करी, मर गए तो दूसरे रोज़ ही जन्नत में दाखला, मोती के महल, हूरे, शराब, कबाब, एशे लाफानी, अगर कामयाब हुए तो जीते जी माले गनीमत का अंबार और अगर क़त्ताल से जान चुराते हो का याद रखो लौट कर अल्लाह के पास ही जाना है, वहाँ खबर ली जाएगी. कितनी मंसूबा बंद तरकीब है बे वकूफों के लिए.


"और अल्लाह कि राह में क़त्ताल करो. कौन शख्स है ऐसा जो अल्लाह को क़र्ज़ दिया और फिर अल्लाह उसे बढा कर बहुत से हिस्से कर दे और अल्लाह कमी करते हैं और फराखी करते हैं और तुम इसी तरफ ले जाए जाओगे"
(सूरह अलबकर-२ तीसरा परा तिरकर रसूल आयत २४४+२४५)" अगर अल्लाह को मंज़ूर होता वह लोग (मूसा के बाद किसी नबी की उम्मत)उनके बाद किए हुआ बाहम कत्ल ओ क़त्ताल नहीं करते, बाद इसके, इनके पास दलील पहुँच चुकी थी, लेकिन वह लोग बाहम मुख्तलिफ हुए सो उन में से कोई तो ईमान लाया और कोई काफिर रहा. और अगर अल्लाह को मंज़ूर होता तो वह बाहम क़त्ल ओ क़त्ताल न करते लेकिन अल्लाह जो कहते है वही करते हैं"(सुरह अलबकर-२ तीसरा परा तिरकर रसूल आयत २५३)मुहम्मद ने कैसा अल्लाह मुरत्तब किया था? क्या चाहता था वह? क्या उसे मंज़ूर था? मन मानी? मुसलमान कब तक कुरानी अज़ाब में मुब्तिला रहेगा ? कब तक यह मुट्ठी भर इस्लामी आलिम अपमी इल्म के ज़हर की मार गरीब मुस्लिम अवाम चुकाते रहेंगे, मूसा को मिली उसके इलोही की दस हिदायतें आज क्या बिसात रखती हैं, हाँ मगर वक़्त आ गया है कि आज हम उनको बौना साबित कर रहे हैं. मूसा की उम्मत यहूद इल्म जदीद के हर शोबे में आसमान से तारे तोड़ रही है और उम्मते मुहम्मदी आसमान पर खाबों की जन्नत और दोज़ख तामीर कर रही है. इसके आधे सर फरोश तरक्की याफ़्ता कौमों के छोड़े हुए हतियार से खुद मुसलमानों पर निशाना साध रहे हैं और आधे सर फरोश इल्मी लियाक़त से दरोग फरोशी कर रहे हैं.


मुसलमानों!

खुदा के लिए जागो, वक्त की रफ़्तार के साथ खुद को जोडो, बहुत पीछे हुए जा रहे हो ,तुम ही न बचोगे तो इस्लाम का मतलब? यह इसलाम, यह इस्लामी अल्लाह, यह इस्लामी पयम्बर, सब एक बड़ी साजिश हैं, काश समझ सको. इसके धंधे बाज़ सब के सब तुम्हारा इस्तेसाल (शोषण) कर रहे है. ये जितने बड़े रुतबे वाले, इल्म वाले, शोहरत वाले, या दौलत वाले हैं, सब के सब कल्बे स्याह, बे ज़मीर, दरोग गो और सरापा झूट हैं. इसलाम तस्लीम शुदा गुलामी है, इस से नजात हासिल करने की हिम्मत जुटाओ, ईमान जीने की आज़ादी है, इसे समझो और मोमिम बनो.



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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